BHAI KI SHAADI AUR AVKAASH books and stories free download online pdf in Hindi

भाई की शादी और अवकाश

कोरोना काल चल रहा था। रोज मरने-दफनाने-जलाने की ख़बरें आ रही थीं। चाँद पर अवस्थित एक विद्यालय में कार्यरत सुजय सर को अपने छोटे भाई की शादी में घर जाना था। उन्होंने अपना ट्रेन में अपना आरक्षण करवा लिया था। इतने में सीबीएसई द्वारा कक्षा दसवीं के छात्रों के लिए एक अलग से नीति आ गयी। जिससे उनका शादी में घर जाना कठिन हो गया। अब उन्हें शादी में जाने के लिए अवकाश नहीं मिलने वाला था। सुजय सर अपने घर में सबसे बड़े थे। उनका घर में शादी के अवसर पर रहना अत्यंत आवश्यक था।

समस्या प्राचार्य महोदय के पास अवकाश को मांगने को लेकर थी। प्राचार्य महोदय हमेशा बात-बात में सुजय सर को फटकारते ही रहते थे। उनके फटकारने के भय से सुजय सर उनके पास जाना ही नहीं चाहते थे। अब उनके सामने समस्या उत्पन्न हो गयी।

इस वक्त आशा की किरण उनके सामने उपप्राचार्य नजर आए। उपप्राचार्य में एक बहुत ही अच्छा गुण था। हर बात में ‘मालूम नहीं’ बोलकर गेंद वापस प्राचार्य के पास ही फेंक देते थे। कच्चू पत्ता की तरह अपने सर पर परेशानी लेने का ख्याल भी उन्हें नहीं रहता था। जैसे भी हो, आनेवाली परेशानी को वे टाल ही देते थे।

सुजय सर को उन्होंने आसानी से टरका दिया। उन्हें कह दिया कि जाकर सीधे प्राचार्य से अवकाश मांग लीजिए। मांगना ही तो है। हिम्मत करें और जाकर कह दें। कुछ नहीं होगा। वैसे सुजय सर ने उनसे बहुत आरजू-मिन्नत की थी कि यह अवकाश तो अवैतनिक ही रहेगा। वेतन तो कटेगा ही। प्राचार्य महोदय से आप ही कह दें।

उसी विद्यालय में एक सिंह सर भी थे। उन्होंने सुजय सर को आवेदन लिखने की सलाह दी। हिम्मत बंधाई तथा प्राचार्य के पास भेज दिया।

सुजय सर सर झुकाए प्राचार्य महोदय के सामने खड़े थे।

प्राचार्य महोदय ने कड़क आवाज में पूछा, “ क्या बात है?”

सुजय सर मिमियाते हुए बोले, “ सर! अवकाश चाहिए! भाई की शादी में जाना है”

प्राचार्य ने फिर रौबदार स्वर में कहा, “ तो जाइए! शौक से जाइए। लेकिन यदि सीबीएसई के काम में बाधा आई तो आप जिम्मेदार होंगे।”

सुजय सर इसके लिए पहले से ही तैयार थे, “ जी ! सिंह सर को सब समझा दिया है”

प्राचार्य – तो ठीक है, अवकाश पर जाइए।

सुजय सर के प्राचार्य-कक्ष से निकलने के पश्चात प्राचार्य के चेहरे पर एक स्निग्ध कोमल मुस्कान उभरी। हमेशा कठोर रहने वाला चेहरा आज खिला-खिला था। उनके चेहरे पर मुस्कान रहती ही नहीं थी। कुछ करना भी यदि वे चाहते थे तो बिना किसी को बताए करते। सच कहा जाए तो उनकी यह मुस्कान भी भयानक लग रही थी।

इतने में सुजय सर के साथ क्या बात हुई, यह जानने के लिए उपप्राचार्य महोदय प्राचार्य कक्ष में पहुंचे।

प्राचार्य और उपप्राचार्य महोदय में बहुत अच्छी बात बनती थी। दोनों एक दूसरे के पूरक थे। प्राचार्य महोदय ने अपने से उम्र में बड़ी के साथ प्रेम विवाह किया था। पत्नी बहुत बातूनी थी। बोलते ही रहती थी। सच कहा जाए तो उनकी वैवाहिक स्थिति ठीक नहीं थी। प्राचार्य महोदय परेशान ही रहते थे।

प्राचार्य महोदय शून्य में ताकते हुए उपप्राचार्य महोदय से बोले, “सुजय सर, अपने भाई की शादी करवाने जा रहे हैं। शादी-विवाह ज़िंदगी का यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण क्षण होता है, ऐसा क्षण जो हमारी भावी... सारी भावी ज़िंदगी को संवार भी सकता है, बिगाड़ भी सकता है।’ कहते हुए हठात् उन्होंने गहरी सांस ली। ‘वास्तव में, आदमी की ज़िंदगी में ऐसे क्षण दो बार आते हैं- एक विषय का चुनाव और दूजा यह। गलत विषय चुन लिया तो आदमी जीवन भर ग़लत जगह फिट हो जाता है..., और गलत जीवनसाथी...’उनकी आवाज थोड़ी भर्रा गई। वे रोने लगे। उपप्राचार्य महोदय ने उन्हें जल लाकर दिया। यह बात थी कि वे तेल लगाने में भी माहिर थे।

प्राचार्य महोदय ने अपनी बात को जारी रखा। विवाह में जल्दबाज़ी से काम नहीं लेना चाहिए। मन को जंचे ,तभी करना चाहिए। सिर्फ चेहरे की सुंदरता पर न जाते हुए मन व व्यवहार की सुंदरता का भी ख्याल रखना चाहिए। बस वो ही सच्ची-साथ निभाने वाली सुंदरता है।

कार्यालय में बिना काम फाइलों में खोए रहना, घर जाने के नाम पर चेहरे पर अजीब वितृष्णा के भाव छा जाना, लगभग हर रोज़ घर से आते समय चढ़ा मुंह और सारा दिन स्टाफ पर उतरता दावानल...!
क्या पृष्ठभूमि थी इन सबकी ?
लगता था किसी नर्क की आग में जल रहे थे प्राचार्य महोदय? न जाने क्यों उस दिन एकदम निरीह मासूम लगने लगे। एक ऐसे इंसान, जो प्यार और मानसिक शांति की तलाश में प्यासे भटक रहे हैं। जिनका रोम-रोम अपनत्व को तरस रहा है।

इधर सुजय सर स्टाफ रूम में बोल रहे थे, “आज तक उन्होंने किसी के काम की प्रशंसा नहीं की। कोई कितनी भी जल्दी व सुन्दरत से काम खत्म करके दिखा भी दे तो उनके भावशून्य चेहरे पर कभी संतोष या प्रशंसा की किरणें नहीं कौंधेंगी।

स्टाफ रूम में सभी सुजय सर की हां में हां मिला रहे थे। उधर उपप्राचार्य महोदय प्रक्षालक की बोतल प्राचार्य महोदय को हाथ साफ़ करने के लिए दे रहे थे।

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