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मिड डे मील - 12

केशव, और रमिया काकी दोनों की नज़रें बाहर लगी हुई थीं। उन्होंने केशव को सुलाने की बहुत कोशिश की। मगर उसकी आँखों में नींद कहाँ थीं। वह यही सोच रहा था, सुबह हो चुकी हैं, अब बापू कभी भी मनोहर को दवाई दिलवा उसे घर ले आएँगे। रमिया काकी को भी नई सुबह के साथ सबकुछ ठीक होने की ही आशा थीं। तभी देखा दो लोग हरिहर को सँभालते हुए चले आ रहें हैं। और दो लोग ठेले को खींचकर ला रहे थे । सबने गौर से देखा, मनोहर बेसुध सा ठेले पर सो रहा था। केशव ने जैसे ही दूर से देखा बापू आ रहे हैं। वह भागता हुआ गया। उसे देखकर हरिहर वही ज़मीन पर बैठ गया। केशव मनोहर की और लपका, क्यों बापू? भाई, ठीक नहीं हुआ क्या? उसने मनोहर को आवाज़ लगाई, मनोहर उठ, उसे हिलाता रहा। तभी रमिया काकी और भी लोग नज़दीक पहुँच चुके थे। साथ आये आदमी ने जैसे ही कहा, मनोहर अब नहीं रहा। रमिया काकी की चीख निकल गई। वह ज़ोर से रोने लगी। केशव भी ज़ोर-ज़ोर से रोने लग गया। वह कभी बापू को हिलाता, कभी मनोहर को। पूरा गॉंव इस दुखद अंत पर अचंभित और शोकाकुल था। हरिहर के दोस्त भीमा ने आकर जैसे-कैसे सारे कारज पूरे किए। रमा दूर से मनोहर की अंतिम विदाई देख रो रही थीं। सबको यही लग रहा था, अभी मनोहर उठ खड़ा होगा और दौड़ने लग जायेंगा। बार-बार रमिया काकी यही कहीं जा रही थीं, अरे ! मुझ बुढ़िया को उठा लेता भगवन, इन बच्चो को काहे बुला लेता हैं। पहले माँ चली गई अब बेटा भी। हाय ! हाय ! कुछ ही देर में राम का नाम सत्य बोल मनोहर को भावभीनी विदाई दे दी गई। सब श्मशान घाट से घर आ गए। मगर हरिहर वहीं बैठा रहा। भीमा उसका साथ देने के लिए वहीं रुका रहा। तभी हरिहर की जैसे छाती फट गई हों, वह इतनी ज़ोर से दहाड़े मारकर रोया कि मानो उसकी चीखें आसमान से टकराकर सब जगह गूँज रही हों।

भीमा भी रोने लग गया और उसे गले लगा लिया। जब थोड़ा ऑंसू का यह सैलाब धीरे हुआ। तब वहीं किसी पत्थर का सहारा लेकर बैठ गया। देख ! तू टूट जायेंगा तो केशव को कौन सम्भालेगा। तू उसका अब भाई भी हैं। तेरे पास जीने की वजह हैं। तू इस तरह हिम्मत नहीं हार सकता, भीमा भरे गले से हरिहर से बोला। हाय ! यह क्या हों गया, रात को अच्छा ख़ासा सोया और सुबह होते ही सब ख़त्म। मेरा भगवान से भरोसा ही उठ गया हैं। पहले भागो, और अब मनु।आधा-अधूरा वाक्य बोल वह फ़िर फूट-फूट कर रोने लगा। हमारा मनु भाभी के पास गया है। अब वो ही उसका ध्यान रखेंगी। हरि भाई, घर चल। केशव रमिया काकी से नहीं संभलेगा कहकर भीमा ने हरिहर को खड़ा किया और दोनों लौटने लगे। पूरे गॉंव में किसी ने अपने घर चूल्हा नहीं जलाया। केशव बापू को देख, उनसे लिपट गया और हरिहर ने उसे कसकर गले लगा लिया। हरिहर केशव को चिपकाए भीमा के साथ अपने घर में घुसा तो उसे चारों तरफ़ मनोहर ही नज़र आया। उसने चारपाई पर केशव को लिटाया। और वही दीवार से सिर टिका बैठ गया। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने भीमा को कहा, कोई गॉंव का हों तो हाथ जोड़कर मना कर दियो। अभी मेरा केशु सोया हैं और मेरी हालत नहीं कि मैं किसी और से बात कर सको। भीमा गया और थोड़ी देर बाद अपने साथ शालिनी को लेकर लौट आया।

शालिनी को वहीं रखी चौकी पर बिठा , भीमा कमरे के कोने में खड़ा हों गया। शालिनी ने कहना शुरू किया, "हरिहर, मैं कल रात पहुँची हूँ। तुम्हारे बारे में पता चलते ही खुद को रोक न सकी। मुझे पता है कि अभी तुम्हारी बात करने की हालत नहीं हैं। मगर मैं फ़िर भी पूछूँगी कि यह सब कैसे हुआ? " हरिहर ने अपनी भरी आँखों से शालिनी को पहले देखा और फ़िर अपनी आवाज़ को ढूँढते हुए रात से लेकर अब तक की घटना सुनाई। तभी केशव भी उठ गया और घबराते हुए पिता की गोद में चला गया। स्कूल में ऐसा क्या खा लिया जिसकी वजह से उसके पेट का पाचन ऐसा विषैला हुआ कि यह अनहोनी घट गई? शालिनी हैरान होकर बोली। मिड डे मील खाया था। केशव ने दबी आवाज़ में कहा। और शालिनी ने उसे प्यार से अपने पास बुलाते हुए कहा, केशव बेटा, ज़रा मेरे पास आओंगे। उसने बापू को देखा, फिर बापू के सिर हिलाने पर वह शालिनी के पास गया। तुम मुझे कल स्कूल में क्या हुआ था, आराम से बाताओ। केशव ने धीरे -धीरे सारी बात बता दीं। केशव की बात सुनकर शालिनी जैसे किसी निर्णय पर पहुँच गई। केशव के सिर पर हाथ फेरकर बोली, अब मैं चलती हूँ। फ़िर मिलने आऊँगी अपने बेटे का ख्याल रखना। और हाँ, जो दो बच्चों की जान गई हैं, क्या तुम उनका पता बता सकते हों ? शालिनी ने पूछा। जी, दोनों हमारे गॉंव से दूर सड़क पार करते ही दूसरे गॉंव के थे । हरिहर ने जवाब दिया।

रात का वक़्त था। रमिया काकी केशव को अपने साथ घर ले गई। इतना भूखा रहना भी इस बच्चे के लिए ठीक नहीं हैं। तू भी कुछ खा ले हरि। रमिया काकी केशव का हाथ पकड़कर बोली। नहीं काकी, तुम इसे खिला देना। मेरा मन नहीं हैं। बहुत समझाने पर भी हरिहर न माना। तब काकी केशव को ही अपने साथ ले गई। कुछ देर बाद शालिनी एक -दो लोगों के साथ वहाँ पहुँच गई। हरिहर कल पुलिस स्टेशन पहुँच जाना। हम इस घटना की शिकायत करेंगें। शालिनी ने ज़ोर देते हुए कहा। किसलिए, हम क्या कर सकते हैं बहनजी ? हमें क्या पता कि गलती किसकी हैं ?कौन हमारी बात का यकीन करेंगा। हरिहर की आवाज़ में उदासीनता थीं। यह काम पुलिस करेंगी। मगर हमें पहला कदम उठाना होगा। शालिनी ने अब भी समझाया। बहनजी, आप अभी जाए। मैं देखूँगा। हरिहर ने हाथ जोड़ शालिनी को जाने के लिए कह दिया।

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