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होली की एक शाम







""""""""होली की एक शाम"""""""""



मार्च का महीना था रोज़ की तरह रघु अपने परिवार के साथ जमींदार के खेत में बैलों के साथ आलू के खेत की जुताई कर रहा था,हल के पीछे -पीछे रघु के दोनों बच्चे और उसकी पत्नी राधा आलू बिन कर इकठ्ठा कर के जमीदार के सामने रख रहे थे। एक एक आलू पर जमींदार की पैनी नज़र थी,मजाल है कि कोई एक आलू भी इधर का उधर कर दे। रघु के दोनों बच्चे छोटे जरूर थे मगर उन्हें यह भली भांति मालूम था कि एक आलू चोरी करने की सजा क्या होगी।
पिछले साल की ही तो बात थी रघु का परिवार गेंहूँ की कटाई कर रहा था और जब शाम को घर जाने को हुवा तो रघु ने गेंहू का एक छोटा सा गठ्ठर अपने साथ घर यह सोच कर ले आया की शाम को खाने की कुछ व्यवस्था हो जायेगी,मगर यह बात जमींदार को पता चल गयी थी और रघु को जमींदार ने बहुत पीटा था और गेंहू का गठ्ठर अपने घर उठवा ले गया था।उस दिन रघु का परिवार अपमान और जिल्लत के घूंट पी कर भूखा ही सो गया था।

ऐसा नही था कि यह घटनाएं केवल रघु के परिवार के साथ ही होती थी इस तरह की घटनाएं हर उस शख्श के परिवार साथ घटित होती थी जो गरीब था और जमींदारों के बंधुवा मजदूर थे,और जमींदारों के क़र्ज़ तले दबे थे।
कहने को तो भारत को आज़ाद हुए 71 साल से अधिक हो गया है मगर क्या भारत की दुर्दशा में क्या कोई तबदीली आयी है?अगर आयी है तो कितने प्रतिशत?
आज भी महिलाओं को घर की मुर्गी समझा जाता है,और कल भी।आज भी रेप कर के जिंदा जला दिया जाता है।बस पहले सती प्रथा का नाम दिया जाता था और आज कानून की भाषा में खुद ख़ुशी कहा जाता है। यहाँ यह बात कंफर्म कर दी जाये की गुप्त काल में चीनी दार्शनिक इस बात का आँखों देखा ज़िक्र करता है कि""मैंने देखा कि बहुत सारी लकड़ियों का ढेर लगाया जाता है और उसमें आग लगाई जाती है जो प्रचंड रूप से जलती है और लोगो की भारी भीड़ इकठ्ठा हो जाती है ,ढोल की तेज़ थाप पर कुछ लोग किसी महिला को पकड़ कर ले आते हैं वह महिला ज़ोर ज़ोर से रो रही है और उनसे छूटने का प्रयास कर रही है मगर उसकी कोई नहीं सुन रहा है उसे घसीट कर ले आया जा रहा है और जबरदस्ती फूलों की माला पहना दी जाती है और उसे उठा कर बलात उसे आग में डाल दिया जाता है और ह्रदय विदारक चीख के साथ वह धू-धू कर जल जाती है"। कल्पना करिये वह सीन क्या हो सकती है ? क्या कोई महिला इस तरह सती होना चाहेगी जो विधवा हो?
आज भी गरीब की कोई नही सुनता है और कल भी कोई नही सुनता था। समय ही तो आगे बढ़ा है समस्याएं तो वैसी ही हैं। नियम कानून तो बस उन्ही के लिए हैं जिनके घर घी के दीपक जलते हैं।
क्या हमने कभी सोचा है कि हमारे बीच में समाज का वह तपका भी रहता है जिनके पास न अपना घर है न अपनी जमीन,दूसरों के रहम ओ करम पर ज़िंदा हैं। जिन्हें न पढ़ने का अधिकार था और न ही खुले रूप से किसी की पार्टी या उत्सव में शामिल होने का अधिकार ,,,अगर किसी ने तरस खा कर उन्हें निमंत्रण भी भिजवाया तो आधी रात तक उन्हें इंतिज़ार करना पड़ता था और जब सारे मेहमान,सारे गॉंव के लोग खा कर चले जाते थे तो अंत में जूठी जमीन पर बैठा कर बचा खुचा खाना उन्हें उनकी टूटी-फूटी थाली या जूठे पत्तल में डाल दिया जाता था। जिन्हें वह प्रसाद समझ कर खा लेते।

उस दिन भी होली थी रघु का परिवार भूखा था रघु की पत्नी राधा ने सोचा जमींदार के घर होली है कुछ बचा खुचा खाना शायद मिल जाये।इसी आस में वह जमींदार के घर पहुँच गयी ,।बहुत सारे रसूख़ दार लोग भांग और शराब के नशे में चूर जमींदार के चौखट पर मौजूद थे।फूहड़ और अभद्र गानों के बीच लोग झूम रहे थे।राधा को आते देख जमीदार के साथ कुछ लोग राधा की तरफ लपके। ""आखिर गरीब की लुगाई पुरे गांव की भौजाई"। राधा कुछ समझ पाती की इस से पहले गुलाल और अबीर ले कर टूट पड़े लोगों ने जहाँ जहाँ चाहा वहां वहां रंग लगाया । जब मन नहीं भरा तो उसे जमींदार के सामने नाचने के लिए कहा।जब उसने नाचने से मना किया तो बाल्टी भर के रंगों से नहला दिया गया।राधा कभी अपनी फटी पुरानी धोती से अपने तन को ढंकती तो कभी फटे आँचल से अपने आँखों को साफ़ करती।जमीदार के घर की औरतें खिड़कियों से झाँक कर हँसी के ठहाके लगा रही थी। जब राधा ने यह दृश्य देखा तो उसको अपनी हालत पर तरस आया और अचानक से उसमे बदलाव आया और इस से पहले वह कुछ और सोचती की उसकी निगाह जमीदार के पास में रखी लाठी पर पड़ी, दौड़ कर उसने लाठी उठाई और जमींदार और उसके आस पास अट्टहास कर रहे लोगों के सिर पर एक के बादः एक ज़ोर का प्रहार किया .....और फिर जमींदार के सिर से रक्त का फौब्बरा फूट पड़ा तो कुछ लोगो के हाथ टूट गए। राधा का यह रौद्र रूप देख कर कुछ देर के लिए माहौल में सन्नाटा पसर गया..भांग और दारू का नशा सब के सिर से रफूचक्कर हो गया....जमीदार वहीँ कराहते हुए गिर पड़ा ...कुछ लोग जमीदार को उठाने के लिए लपके। राधा ने वहां से भागना उचित समझा लेकिन यह एक औरत के लिए संभव नही था।और फिर जो हुआ उसे पूरे गांव ने देखा ......राधा को पकड़ कर पूरे गांव के सामने जिन्दा जला दिया गया। उस दिन फिर किसी होलिका को ज़िंदा जला दिया गया और जश्न मनाया गया।
यह प्रथा आज भी लगातार जारी है।बस कुछ ज़माने में बदलाव आ गया है ,होलिका आज रोज़ जलाई जाती है कभी रेप कर के जिन्दा जला दी जाती है तो कभी दहेज़ के लिए जिन्दा जला दी जाती है तो ,कभी जादू टोने के नाम पर जिन्दा जला दी जाती है तो कभी चोरी करने के नाम पर ज़िंदा जला दी जाती है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर हम क्या चाहते हैं ?होलिका को ज़िंदा बचाना या उसके नाम पर जश्न मनाना.....?

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