तुम्हारे बग़ैर Arjun Allahabadi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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तुम्हारे बग़ैर



""""""""तुम्हारे बगैर""""""
By... Arjun Allahabadi

अगर सही कहा जाये तो "अपनों की सही पहचान कठिन परिस्थितियों में ही होती है"। चीन के वुहान शहर से आये कोरोना वायरस ने जो दुनियाँ में तबाही मचाई इस से इंसान के लिए अपनी जान बचाना सर्वोपरि हो गया। इंसान इंसान से दूर हो गया ,अपने अपनों से ही दूरी बनाने लगे थे।जो जहाँ था वहीँ रोक दिया गया।मगर कब तक?

इंसानों का दूसरे शहर से अपने घर को पलायन करना 1947 के बंटवारे की याद दिला गया।जब भारत और पाकिस्तान के लोग अपने अपने मुल्कों को वापस जा रहे थे।कुछ वैसा ही।खैर मैं यहाँ उस त्रासदी की बात नही करना चाहता .......
मधु और रितेश की शादी को हुए अभी महज साल भर ही हुए थे कि घर वालो ने दोनों को कुछ बर्तन और कुछ अनाज दे कर अलग कर दिया ,मधु और रितेश का परिवार दोनों ईंट भट्ठे पर ईंट बनाने का काम करते थे।मधु पढ़ी लिखी नही थी मगर सिलाई -कढ़ाई जानती थी।और अपने परिवार का काम में हाथ भी बटाती थी। रितेश ने जब पहली बार मधु को देखा तो उसे दिल दे बैठा था। और कुछ दिनो बाद दोनों के परिवार वालों ने एक दूसरे की शादी कर दी।

समाज के निचले तपके में अक्सर यह देखा जाता कि नव विवाहित जोड़ो को एक साल बाद ही अपनी खुद की गृहस्थी बनानी पड़ती है।क्योंकि माता-पिता उतने सक्षम नही होते की उनकी जिम्मेदारियों को उठा सकें।लिहाज़ा शादी के बाद ही माता-पिता द्वारा बेटे और बहू को अपनी टूटी ;फूटी झोपड़ी का एक हिस्सा दे कर अलग कर दिया जाता है।ताकि अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकें।

शादी के बाद जब मधु और रितेश ने अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की तो मधु के सास और स्वसुर ने भी मधु के साथ ऐसा ही किया।
रितेश मधु को घर पर छोड़ कर दिल्ली पैसे कमाने के लिए निकल गया । रितेश दिहाड़ी मजदूर था वह जो भी कमाता उसमें से आधे से ज्यादा हिस्सा अपनी नई गृहस्थी के लिए संजो कर रखता । रितेश को दिल्ली गए हुए 6 महीने से भी ज्यादा हो गए थे ।मगर घर पर रह रही मधु के लिए अभी तक उसने कोई पैसा नही भेजा था ,मधु जब भी रितेश से
फोन पर बात करती तो रितेश यही कहता कि" मैं जल्दी ही घर आऊंगा और तुम्हे सरप्राइज दूँगा,तब तक बापू से कुछ पैसे ले कर काम चलाओ"। मधु आसानी से उसकी बात मान भी जाती।

रितेश के पिता से जब तलक हो सका उसने मधु को पैसे और अनाज दिया मगर जब उसके पास भी ज्यादा नही बचा तो मधु अपने पिता के पास चली गयी। कहते हैं कि इंसान को उम्मीद जिन्दा रखती है।और जब उम्मीद खत्म हो जाये तो इंसान कहाँ जाये ,किस पर यकीन रखे।
अभी रितेश को दिल्ली गए साल भर भी नही हुए थे की कोरोना वायरस ने भारत में कहर मचा दिया।दिल्ली जैसे शहर में भी कोरोना वायरस ने अपनी पहुँच बहुत आसानी से बना ली।और जब रितेश को पता चला की दो दिन बाद पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया जायेगा तो वह दिल्ली से भाग निकला।मधु को फोन लगाया तो मधु के परिवार वालो ने उससे कोई बात नही करने दिया।
किसी तरह वह अपने गांव पहुँचा मगर वह मधु के बगैर रह नही पाया।
अगले दिन वह मधु के घर पहुँच गया ।लेकिन मधु के घर वालों ने रितेश को मधु से मिलने नही दिया।
रितेश वापस अपने गांव आ गया।वह उदास रहने लगा।और वीमार पड़ गया।रितेश के घर वालो ने उसे डॉ को दिखाने के लिए बोला तो उसने मना कर दिया।
जब रितेश के वीमार होने की खबर मोहल्ले वालो को और बाद में गॉंव वालो को पता चली तो लोगो ने कहा उसे कोरोना हुआ है,पुरे गांव में हड़कंप मच गया।रितेश के घर वाले डर के मारे उससे दूरी बना लिए।गांव का कोई भी व्यक्ति उसके पास जाने को तैयार नहीं ,कोई उसे भोजन इस डर के मारे नही देने जाता कि कहीं उसे भी कोरोना न हो जाए।।रितेश को यह सब देख कर बहुत दुख हुआ वह खुद ही उठा और गांव के बाहर बने स्कूल में जा कर रहने लगा।
गांव वालों ने सरकारी महकमें को फोन कर के जानकारी दे दी।तभी मधु बदहवास भागती हुई आयी,और रितेश के परिवार से रितेश के बारे में पूछने लगी ।सब ने उसे रितेश के बारे में बताया तो वह भागती हुई गांव के बाहर बने स्कूल पहुँची।गांव वालों ने उसे बहुत समझाने का प्रयास किया कि उसके पास नही जाये नही तो उसे भी कोरोना हो जायेगा ।मगर उसने किसी की भी बात नही मानी और उसने सबको यह कह कर झिड़क दिया कि""जिसके साथ वह सात फेरे लिए उसी के साथ वह मरना भी चाहती है,उसके बगैर वह जी नही पाएगी"। मधु के कहे उपरोक्त वाक्य रितेश और रितेश के माँ-बाप के अलावां गांव वाले भी सुन रहे थे। मधु ने दौड़ के रितेश को गले से लगा लिया ,ऐसा लगा जैसे वह दोनों सादियों बाद मिले हैं।दोनों की आँखें भर आयी थी।
रितेश को लेने के लिए मेडिकल टीम आ गयी थी मगर मधु रितेश को छोड़ के जाने को तैयार नही थी,वह रितेश के साथ जाना चाहती थी।मेडिकल टीम रितेश के साथ मधु को भी ले गयी।मधु और रितेश दोनों की जाँच की गयी और दोनों की रिपोर्ट नेगेटिव आयी।
रितेश को मेडिसिन दे कर घर भेज दिया गया ।वह ठीक हो गया था उसे कोरोना नही था।
इस कोरोना वायरस ने इंसानी रिश्तो को परखने का अच्छा मौका दिया।कुछ ने साथ छोड़ दिया तो कुछ ने इस मुश्किल की घड़ी में एक दूसरे का ,अपनों का हाथ मजबूती से थामे रखा।
सड़कें सूनी-सूनी और गलियां विरान हो गईं।
जिंदंगी जैसे कुछ दिन की अब मेहमान हो गई।
सब ने छोड़ दिया हाथ अपनों का "अर्जुन"।
यह देख जिंदंगी कितनी हैरान हो गयी।