Gum hu tumhare ishq me - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

गुम हूं तुम्हारे इश्क़ में - ( भाग - 4 )





मौसम बरसात का था , हल्की - हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी , जिसकी वजह से फर्श काफी गीला था । अनुमेहा और सुधा अपनी बातों में मग्न चली जा रही थी और तभी तुलसी चौरे के पास , अनुमेहा एक व्यक्ति से इतनी जोर से टकराई , कि उसने दर्द से अपना कंधा पकड़ लिया और उस बेचारे व्यक्ति की तो हालत और भी खराब , बेचारा अनूमेहा से टकराया और फिर खुद संभल नहीं पाया और......, और वह फर्श में पड़े पानी की वजह से वही पर फिसलकर गिर गया । और बेचारे ने अपना सिर पकड़ लिया , क्योंकि गिरते ही उसका सिर फर्श से टकराया , जिससे उसका सिर फटते - फटते बचा , लेकिन कमर में अंदरूनी चोट जरूर असर कर गई । कुछ पल को वह व्यक्ति आंख बंद किए , अपना सिर एक हाथ से पकड़े , वहीं फर्श में पड़ा रहा । जबकि अनुमेहा अब तक संभल चुकी थी , सुधा ने उससे उसके हालात पूछे..।

सुधा - तुम ठीक तो हो न अनुमेहा...???

अनुमेहा - हां...., ठीक है हम ।

इसके बाद दोनों जमीन में पड़े उस शक्श को घूरने लगे , जिससे अनुमेहा टकराई थी । तभी प्रणय दूसरे दरवाजे से हाथ में प्रसाद का पैकट लेकर आया और जमीन में पड़े उस शक्श को देख , हैरानी से बोला ।

प्रणय - श्रेयु तू....!!!! तुझे क्या हुआ..????

फिर जमीन में बैठकर उसे उठाता है , तो श्रेयांश ( वही शक्श ) अपनी आंखे खोलता है और सिर को अपने हाथ से पकड़े हुए उठकर बैठ जाता है । उसे महसूस होता है , कि सिर पर छोटी बॉल के आकर की सूजन हो गई है और वह महसूस करते ही वह गुस्से से भर जाता है । वह गुस्से से चिल्लाकर कहता है ।

श्रेयांश - व्हाट द हेल...!!!???

इतना कहते हुए वह ऊपर की तरफ देखता है , तो पाता है कि अनुमेहा उसे घूरे जा रही थी और सुधा का अब उसकी हालत पर हंस - हंस कर बुरा हाल था । ये देख श्रेयांश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया । और उसने गुस्से से अनुमेहा को कहा ।

श्रेयांश - दिखाई नहीं देता तुम्हें ...??? देखकर नहीं चल सकती थी...??

तभी सुधा मन ही मन काउंट करती है ...., वन...., टू...., थ्री....., स्टार्ट.....। तभी अनुमेहा गुस्से से श्रेयांश को देखकर कहती है ।

अनुमेहा - देखकर हम नहीं चल रहे थे , या आप..??? हम तो अपने रास्ते चल रहे थे , आपको ही दिखाई नहीं दिया ....।

श्रेयांश ( सभी तरफ देखकर ) - हम...!!! अच्छा ...., तुम्हारे साथ - साथ ये छोटा पटाखा ( सुधा ) भी टकराई थी क्या मुझसे...????

अपने लिए "छोटा पटाखा" शब्द सुनकर सुधा अब उसे घूरने लगी । जबकि अनुमेहा ने उससे कहा ।

अनुमेहा ( गुस्से से उसे उंगली दिखाते हुए ) - माइंड योर लैंग्वेज मिस्टर...., वरना यही सबक सीखा देंगे आपको हम ।

श्रेयांश ( गुस्से से भर उठा ) - सबक तो तुम्हें मैं सिखाऊंगा ....। ( प्रणय से ) प्रणय...., भाई हेल्प कर तो उठने में मेरी ।

ये सुनकर सुधा को और जोर से हंसी आई , कि " सबक सिखाने की बात कर रहा है और खुद से उठ भी नहीं पा रहा " । जब श्रेयांश को कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला , तो उसने दोबारा अनुमेहा की तरफ देखकर अपनी बात दोहराई । लेकिन इस बार भी प्रणय का कोई रिस्पॉन्स नहीं आया । तब श्रेयांश ने अपनी नजरें प्रणय की तरफ घुमाई , तो पाया कि वह हंसती हुई सुधा को बड़े प्यार से देख रहा है और उसमें इतना खो गया है , कि उसे श्रेयांश की आवाज़ ही सुनाई नहीं दे रही । ये देख श्रेयांश ने उसे हल्का सा धक्का दिया , तो प्रणय भी वहीं गिर गया । ये देख सुधा और जोर - जोर से हंसने लगी और अनुमेहा की भी हंसी छूट गई । जबकि प्रणय अब होश में आ चुका था , वह उठकर खड़ा हुआ और अपने कपड़ों को देखकर कहा ।

प्रणय - अबे ये क्या किया तूने...?? क्यों गिराया मुझे...??? पूरे नए कपड़े खराब कर दिए तूने ...।

श्रेयांश ( उसे घूरकर ) - तू मेरे साइड है , कि इन लड़कियों की साइड , जिन्होंने मुझे गिराया है...!!???

प्रणय ( पहले सुधा और अनुमेहा की तरफ देखकर और फिर गुस्से से उसे घूर रहे श्रेयांश की तरफ देखकर बोला ) - भाई मैं तो तेरी तरफ हूं , तेरे बिना मैं कहां जाऊंगा ...???

श्रेयांश ( अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाकर ) - तो उठा मुझे..।

प्रणय ने उसका हाथ पकड़ कर उठाया , तो श्रेयांश अपनी कमर पकड़ कर खड़ा हो गया और दर्द से करहाते हुए बोला ।

श्रेयांश - ओह गॉड ...., मेरी कमर तोड़ दी इस लड़की ने ।

अनुमेहा और सुधा को उसकी हालत देख और हंसी आने लगी और उनका हंसना श्रेयांश को चुभ गया । उसने गुस्से से उन्हें घूरते हुए कहा ।

श्रेयांश - बत्तीसी अपनी अंदर कर लो दोनों , टूटी नहीं है कमर मेरी अभी ।

अनुमेहा और सुधा का हंसना बंद हो गया और दोनों गुस्से से तमतमाने लगे । सुधा कुछ बोलने को हुई , तो अनुमेहा ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया । और श्रेयांश के सामने खड़ी होकर बोली ।

अनुमेहा - तमीज से बात करने में कोई बुराई है क्या...?? अगर हम हंस भी दिए , तो इसमें आपको क्यों गुस्सा आ रहा है...???

श्रेयांश ( बिफर गया ) - तमीज़...!!! मुझे सिखाओगी तुम तमीज...??? ढंग से चलना तो आता नहीं है मैडम को , और ये हमें तमीज सिखायेंगीं ।

अनुमेहा ( गुस्से से ) - माइंड योर लैंग्वेज मिस्टर...!!!!

श्रेयांश ( उसकी आखों में गुस्से से देखकर ) - यू टू ...। ( फिर झल्लाते हुए ) यहां आना ही बेकार था हमारा , ऐसे स्वागत होता है इस शहर में मेहमानों का ।

अनुमेहा - अगर मेहमान अपनी तमीज अपने साथ लेकर चलें और लोगों की इज्जत करें , तो ये शहर बहुत अच्छे से स्वागत करेगा उनका । लेकिन अगर मेहमान ही बत्तमीज हो जाएं , तो ये शहर स्वागत करना तो दूर , उन्हें पूछेगा तक नहीं ।

श्रेयांश ( जबड़ा भींच कर ) - यू......!!!!!

प्रणय ( उनकी बढ़ती बहस को देख , तुरंत श्रेयांश को पीछे खींच बोला ) - प्लीज श्रेयांश....., डोंट डू दिस । हम यहां घूमने आए हैं , दर्शन करने आए हैं , बहस करने नहीं ।

श्रेयांश ( उसे गुस्से से घूकर बोला ) - सारा किया धरा तो तेरा ही है । ( अनुमेहा की तरफ पलटकर ) एंड यू...., मुझे ऐसी मेहमान नवाज़ी की जरूरत भी नहीं है , जहां तुम जैसे घमंडी और क्रूर लड़कियां रहती हों । देखकर चलती नहीं है और उल्टा लड़कों के ऊपर चढ़ जाती हैं । हेल्प करने की बजाय , बहस करती हैं ।

अनुमेहा - मदद करने लायक इंसान भी होना चाहिए मिस्टर बिना तमीज़ की फैक्ट्री ।

श्रेयांश ( गुस्से से उसकी तरफ बढ़ते हुए ) - यू.....!!!!

प्रणय ( पूरा जोर लगाकर उसे रोककर बोला ) - प्लीज़ भाई...., चल यहां से । मंदिर है ये , मीडिया का बहस बाजी का रूम नहीं और न ही कुश्ती का अखाड़ा ।

सुधा ( तीखा हंसकर बोली ) - हां.., हां...., ले जाओ इन पहलवान को , कहीं हमारी पहवान इन्हें औंधे मुंह पछाड़ न दे ।

इतना कहकर दोनों दूसरे गेट से बाहर आ गईं , जबकि प्रणय श्रेयांश को धकेल कर मंदिर के अंदर ले गया । और साथ ही साथ वह बार बार मुड़ कर देख भी रहा था । जब तक सुधा उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गई , तब तक प्रणय का बार बार मुड़कर पीछे देखना नहीं रुका । श्रेयांश ने खुद को उसकी पकड़ से आजाद किया और सारा गुस्सा उस पर उड़ेलते हुए बोला ।

श्रेयांश - ये क्या किया तूने...?? क्यों ले आया तू मुझे वहां से ..?? अगर तू मुझे नहीं लाता , तो मैं बताता उस घमंडी लड़की को ।

प्रणय ( उसे समझाकर ) - देख भाई , हम यहां घूमने आए हैं और इस वक्त भगवान के दर्शन करने । हमारा यहां किसी से भी उलझना ठीक नहीं । वैसे भी , मंदिर लड़ाई की जगह नहीं होती , बल्कि प्यार मोहब्बत से रहने की जगह होती है ।

श्रेयांश अब शांत पड़ गया । दोनों ने अपने - अपने पैर धोए और फिर मंदिर के अंदर चले गए .....।

क्रमशः

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