गुम हूं तुम्हारे इश्क़ में - ( भाग - 2 ) ARUANDHATEE GARG मीठी द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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गुम हूं तुम्हारे इश्क़ में - ( भाग - 2 )





सरिता जी ( मुंह बनाकर ) - तुम कभऊं नई सुधर सकती । तुमाओ जो पैसन खा ले के कंजूसी पनो कभऊ न जेहे...। ( अनुमेहा कुछ कहने को हुई , तो सुधा ने उसका हाथ दबा कर उसे पलकों से न का इशारा किया , तो अनुमेह चुप हो गई ) हम जा रहे , तुम भी तैयार होके जल्दी चली जइओ और समय से आ जइयो ।

इतना कहकर सरिता जी मुस्कुरा कर चली गई और अनुमेहा उनके जाते ही तुरंत सुधा से मुखातिब होते हुए बोली ।

अनुमेहा - क्यों रोका तुमने हमें...???? उन्हें इन चीजों को समझना होगा न , कब कैसी मुसीबत हमारे दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाए और उसके लिए हमें खर्चे की जरूरत होगी , तो कहां हाथ फैलायेंगे हम...??? वैसे भी दादा जी को पसंद नहीं है , किसी के भी सामने हाथ फैलाना ।

सुधा ( उसे बेड पर बैठाकर, कबर्ड में से उसके कपड़े निकालते हुए बोली ) - तुम्हें तो पता है न उसका स्वभाव । पैसे को लेकर उनका हाथ कितना खर्चीला है । और मोहल्ले के लोगों की बातें उनके दिल में , घर वालों से भी ज्यादा असर करती हैं । जानती तो हो न तुम...!!!! रही बात बब्बा जी ( दादा जी ) के उसूलों की , तो देर सबेर ये बात उन्हें भी समझ आ जायेगी । लेकिन इस वक्त उन्हें मना कर , उनके चेहरे पर आई खुशियों को तो रोकना हमें शोभा नहीं देता । अगर उन्हें ये सब करके खुशियां मिलती हैं , तो करने दो न । और जब जैसा समय आएगा , वो ढाल लेंगी खुद को वैसे ही । पता है तुम्हें भी ये , कि क्रिटिकल समय में सबसे ज्यादा सयंम वही रखती हैं और पूरे घर को भी वही संभालती हैं ।

अनुमेहा ( अपनी मां के बारे में सोचते हुए ) - ये बात तो तुमने एकदम सही कही सुधा । हमारी मां दिल की बहुत भोली हैं , इस लिए उन्हें सबकी बातों का असर ज्यादा पड़ता है , लेकिन वक्त पर सबसे ज्यादा समझदारी उन्हीं में देखी जाती है ।

सुधा ( कबर्ड से पिंक कलर का सूट निकाल कर बोली ) - ये कैसा लग रहा है ...??? ( अनुमेहा को दिखा कर ) तुमपे अच्छा लगेगा , इसी को पहन कर चलो तुम आज....।

अनुमेहा ( उससे रानी पिंक सूट लेकर , बेड पर रखते हुए ) - नहीं....., इतना चटक कलर नहीं पसंद हमें , जानती तो हो न तुम । देखो , कितना ज्यादा डार्क है ये, रानी पिंक कलर ।

सुधा ( कबर्ड में दोबारा से दूसरा सूट ढूंढते हुए ) - तो फिर लिया ही क्यों..???

अनुमेहा - मां को पसंद हैं , ऐसे चटक कलर । उन्हीं की जिद के कारण लिया था ।

सुधा ( क्रीम कलर का सूट उसके ऊपर लगाकर बोली ) - ये भी तो कितना प्यारा लग रहा है , इसे ट्राय करो ।

अनुमेहा - नो वे....., कुछ और देखो न ।

सुधा - मंदिर जाने के टाइम तुम्हारा ड्रेसेज का ऐसे पचास बार न कहना , हमें बहुत अखरता है । हमारे दिमाग का भरता बना देती हो तुम । और ऐसे तो देवी जी कुछ भी उठा कर पहन लेंगी , तब जैसे इन्हें कोई देखता ही न हो ।

अनुमेहा ( उसी के पास आकर कबर्ड में उसके साथ कपड़े ढूंढने लगी और कहा ) - तुम भी न , हमेशा ताने देती रहती हो हमें । अरे मंदिर जाना है , वहां ऐसे ही कोई भी कपड़े पहन कर थोड़े ही चल देंगे । और वैसे भी , किशोर जी का मंदिर है , रीवा का कॉलेज नहीं ....., कि उठाया जींस टॉप और पहन कर चल दिए । मंदिर में हजारों पहचान के लोग मिलते हैं , सब देखेंगे तो क्या कहेंगे...???

सुधा ( कमर पर हाथ रखते हुए ) - तुम्हें कब से फर्क पड़ने लगा , लोगों की सोच से ..???

अनुमेहा - जब से मां को फर्क पड़ता है, तब से । हम नहीं चाहते , कि कोई भी उन्हें ये कहे कि हमें कपड़े पहनने का सहूर नहीं है , जानती तो हो न लोगों की सोच ...., लड़कियों के कपड़ों से डिसाइड होती है । जींस पहनने वाली लड़की आजकल की मॉर्डन बत्तमीज़ , तो वहीं सूट साड़ी पहनने वाली लड़की सुशील संस्कारी कहलाती है ।

सुधा ( दोबारा कबर्ड में नजरें घुमाते हुए ) - व्हाट एवर अनु..., हमें तो कल भी फर्क नहीं पड़ता था और आज भी नहीं पड़ता । खैर जाने दो...., हम लेट हो रहे हैं, जल्दी से कोई ड्रेस देख लो पहनने के लिए , वरना अगर दोपहर के किशोर जी के पट बंद हो गए, तो सीधे शाम को दर्शन करने मिलेंगे और शाम की भीड़ को देखते हुए हमें मंदिर जाने नहीं दिया जाएगा ।

अनुमेहा - ओके....., देखते हैं कुछ ।

इतना कहकर अनुमेहा की नज़र एक प्यारे से लाइट ब्लू कलर के सूट पर पड़ी और उसने उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाया , तो देखा कि सुधा ने भी वही सूट पकड़ा हुआ है । दोनों ने एक दूसरे को देखा और फिर खिलखिलाकर हंस दी । अनुमेहा ने सूट कबर्ड से निकाला और आइने के सामने जाकर , उसे खुदपर लगा के देखने लगी । तो सुधा भी उसके पास आई और आइने में अनुमेहा को देखते हुए बोली ।

सुधा - बहुत प्यारा लग रहा है ये तुम्हारे ऊपर , बिल्कुल परफेक्ट ।

अनुमेहा ( मुस्कुराकर ) - हमें भी....।

सुधा ( अनुमेहा के लिए मैचिंग इयररिंग्स ड्रेसिंग टेबल के बॉक्स में ढूंढते हुए बोली ) - हमारी सोच हर चीज़ में कितनी मिलती है न..????

अनुमेहा ( सुधा को प्यार से पीछे से गले लगाकर बोली ) - तभी तो हम बेस्ट फ्रेंड हैं । याद है न , कॉलेज में कितना जलते थे लोग हमारी दोस्ती से ।

सुधा - हां...., वो तो है । अच्छा अब जा , और जल्दी से चेंज करके आ , लेट हो जायेंगे हम वरना ....।

सुधा की बात सुनकर अनुमेहा तुरंत चेंज करने बाथरूम चली गई ।

उसी वक्त पन्ना बस स्टैंड पर खजुराहो से एक बस आकर रूकी । खूब सारे यात्रियों से वह बस भरी हुई थी , जिससे यात्रियों के बैठने तक की जगह नहीं थी । बस स्टैंड पर रुकते ही यात्री जल्दी - जल्दी बस से उतरने लगे । जब सभी उतर गए , तो कंडेक्टर ने बस में चढ़कर देखा , कहीं कोई छूट तो नहीं गया । वह बस के लास्ट से तीसरी सीट की तरफ आया और जैसे ही अपने दाहिने तरफ देखा , तो उसका पारा चढ़ गया । वहीं पर बैठा एक लड़का , अपने दोस्त को , जो कि खिड़की की तरफ उसके कंधे पर सिर रखकर सो रहा था , उसे उठा रहा था और बड़बड़ाए जा रहा था ।

लड़का - अबे उठ....., उठ न प्रणित । हम पहुंच चुके हैं , जहां आने की तुझे जल्दी थी । उठ बे साले......। वैसे ही एक तो बस खचाखच भरी थी , ऊपर से इतनी गर्मी । और बचा खुचा ये लड़का दिमाग खराब किए जा रहा है । अबे उठा जा प्रणित , नहीं तो मैं तुझे यहीं छोड़ के चला जाऊंगा । बस में भी घोड़े गधे बेंच के सो रहा है ।

कंडक्टर ( लड़के से ) - आप दोनों को यहीं नाटक ही करना है , कि हमारे साथ वापस चलना है इस बस में ।

लड़का ( नासमझ सा उसे देखकर ) - कहना क्या चाहते हैं आप..??? हम भला वापस क्यों और कहां जायेंगे...???

कंडक्टर ( अपना सिर पीटते हुए ) - अरे महाशय....., जब आप ओरे उतरहो न , तो बस वापस खजुराहो तो जेहे , तब काए साथ चल्हो हमाय...???

लड़का ( गुस्से से ) - सबसे पहले तो आप इंग्लिश या हिंदी में बात कीजिए । सिर की नसें फटी जा रही हैं , ये भाषा सुन - सुनकर । जब से इस बस में बैठे हैं , बस यही भाषा सुनाई दे रही है । और मुझे ये भाषा समझ ही नहीं आ रही । तो आपने जो कुछ भी कहा , उसे हिंदी या इंग्लिश में कन्वर्ट कर मुझे दोबारा बताइए ।

कंडक्टर ने दोबारा सिर पीट लिया और फिर बड़ी शालीनता से कहा ।

कंडक्टर - देखिए भाई साहब , आप लोग बस से उतर जाइए । आप जहां आने वाले थे , वो बस स्टॉप यही है ।

लड़का - कुछ न्यू हो तो बताओ ।

कंडक्टर ( उसे खा जाने वाली नजरों से देखते हुए बोला ) - तुम उतरते हो , कि मैं पुलिस को बुलाऊं । इतनी देर से एक ही बात समझा - समझा के थक चुका हूं मैं ।

लड़का ( अपने दोस्त की ओर इशारा कर ) - मेरा ये दोस्त उठे, तब न हम बस से नीचे उतरेंगे । पूरे कंधे की वाट लगा के रख दी है , इस नालायक ने ।

कंडक्टर - देखो , ये सब मुझे नहीं पता । अगले पांच मिनट के अंदर बस से नीचे उतरो , दोनों प्राणी । वरना या तो हमारे साथ वापस खजुराहो चलना, या फिर मैं पुलिस को फोन करके , सब कुछ साफ - साफ बता दूंगा ।

लड़का ( चिढ़कर ) - तुम हमें पुलिस के हवाले करोगे , जानते नहीं हो तुम कौन हूं मैं ।

कंडक्टर ( वापस बस से उतरते हुए ) - देखो...., तुम जोन भी हो , तुम जानो । अबे तो हम बताबी , के हम कौन हैं , अगर पांच मिनट के अंदर तुम दोनों नीचे न उतरे तो ।

इतना कहकर कंडक्टर बस से नीचे उतर गया । और लड़का कुढ़ते हुए , दोबारा अपने दोस्त को उठाने लगा।

लड़का - अबे लंका का दूसरा कुंभकरण , उठ न बे साले । यहां हमें पुलिस की धमकियां मिल रही हैं और तेरी आंखें हैं कि फेविकोल सी चिपक गई हैं । तेरी बात माननी ही नहीं चाहिए थी मुझे , वहीं से मुंबई वापस चले जाते तो ठीक था । ( प्रणित के गाल पर जोर दार थप्पड़ बरसाते हुए ) अबे उठ न , नकली लंका पति के सपूत । और असली में, कश्यप खानदान के कुलदीपक । उठ , नहीं तो आज यहीं तेरी मय्यत बना देना है , मैंने ।

प्रणित इसके बाद भी नहीं उठा , तो लड़का परेशान हो गया । तभी उसकी नज़र, प्रणित के बगल में रखी पानी की बॉटल पर गई । बेचारे का कचूमर, तो प्रणित ने अच्छे से ही निकाल डाला था , उसके कंधे में इतनी देर से सिर रखकर सोने की वजह से , और अब उसकी हालत ये थी , की वो कंधा तक नहीं हिला पा रहा था । गुस्से में उसने पानी की बॉटल उठाई और ढक्कन खोलकर सारा पानी उसने प्रणित के मुंह पर उड़ेल दिया । पानी पड़ते ही , प्रणित सौ की स्पीड से तुरंत उठा और लड़के को गरियाते हुए बोला ।

प्रणित - अबे साले कमीने...., ऐसे उठाया जाता है अपने दोस्त को । शर्म नहीं आती तुझे नालायक , अपने दोस्त के साथ ऐसा सुलूक करते हुए ।

लड़का ( उठाकर गुस्से से उसे हाथ बांधकर मुक्का दिखाते हुए ) - साले चुप हो जा, वरना यहीं तुझे पीटकर तेरी कब्र बनाने का इरादा है आज मेरा । कंडक्टर पुलिस की धमकी देकर गया है , तेरी वजह से ।

प्रणित का लड़के का गुस्सा देख और साथ में उसके मुंह से पुलिस का नाम सुन , उसका गला सुख गया । वह लड़के का हाथ नीचे कर , बात को संभालते हुए बोला ।

प्रणित - ये क्या कर रहा है श्रेयांश ..??? अपने ही दोस्त को मारेगा ..??? और पुलिस ......, उसकी क्या जरूरत है । हम उसे दे देते हैं , जितने पैसे वह मांग रहा है ।

श्रेयांस ( अपने सिर को खुजलाकर बोला ) - अबे ....., पुरानी प्रजाति के डाइनासोर , वो चोर डांकू नहीं है , जो पैसे मांगेगा बिना वजह हमसे । वो हमारे यहां बेवजह रुकने के कारण , पुलिस बुलाने की धमकी दे रहा है ।

प्रणित ( आंखें बड़ी - बड़ी करके ) - क्या...???? इतनी सी बात के लिए पुलिस बुला रहा है वो..??? ( श्रेयांश ने हां में सिर हिलाया , तो वह जल्दी से सीट से निकलकर , ऊपर बने कबर्ड से बेग निकालते हुए बोला ) हां...., तो चल न, उतरते हैं हम । वरना खामखां...., यहां की पुलिस हमें पकड़ लेगी और हम कुछ कर भी नहीं पायेंगे । चल...., जल्दी चल , डिग्गी से सूटकेस भी निकालना है ।

श्रेयांश ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा, और फिर उसके साथ ही बैग निकालने लगा । दोनों बस से नीचे आए और प्रणित सूटकेस निकालने चला गया । श्रेयांश नीचे आते ही , खड़ा हो गया और अपनी नजरें घुमाकर आस - पास देखने लगा । जैसे वह उस जगह को महसूस कर रहा हो । प्रणित वापस आ गया , तो श्रेयांश ने उससे कहा ।

श्रेयांश - ये कैसी जगह ले आया है तू..??? यहां तो जो लैंग्वेज बोली जाती है , वो तक हमसे नहीं आती ।

प्रणित - तू पूरे रास्ते मुझे बस इसी बात के लिए सुनाते आया है , अब तो शांत हो जा । और यहां के बारे में मैंने नेट में सर्च किया है , बेहद अच्छी और खूबसूरत जगह है ये ।

श्रेयांश - अबे काहे की अच्छी जगह ...!!!! आते ही साथ कंडक्टर से पंगा हो गया , और तू कह रहा है अच्छी जगह है ।

प्रणित - यार तू बिना दारू को टेस्ट किए ही कैसे बता सकता है , उसका टेस्ट अच्छा है या खराब..??

श्रेयांश ( उसपर बिगड़कर ) - अबे..., तुझे पता है न मैं ड्रिंक नहीं करता । और जहां की तू इतनी तारीफ कर रहा है , वहां रहने के लिए तूने कोई होटल , कोई जगह वगेरह ढूंढी भी है , या इसके लिए भी मेरी सबसे बहस करवाएगा ...????

प्रणित ( मोबाइल स्क्रीन देखते हुए ) - कर लिया है , ऑनलाइन बुक मैंने होटल में रूम ।

श्रेयांश - तो चल न ...!!!!

प्रणित ( उसपर भड़कते हुए ) - पैदल जायेंगे क्या...??? टेक्सी वगेरह तो देख ।

श्रेयांश ( जगह का मुआयना कर ) - यहां देख के तुझे लग रहा , कि हमें टैक्सी मिलेगी । यहां तो रेलवे की सुविधा तक नहीं है ।

प्रणित - कितना निगेटिव आदमी है यार तू । ये सोच , यहां रेलवे नहीं है इसी लिए यहां प्रदूषण कम है और यही एक ऐसी जगह है , जहां जंगल थोड़ी बहुत बचे हुए हैं , वरना तो बिजनेस और खनिज पदार्थों की लालच में , जाने कितने जंगल ध्वस्त कर दिए गए हैं ( एक ऑटो की तरफ इशारा कर ) देख....., वो रही ऑटो रिक्शा ।

श्रेयांश ( ऑटो को देखकर ) - हम ऑटो में जायेंगे ...???

प्रणित - तो क्या तेरे लिए यहां प्राइवेट जेट मंगाऊं..???? चल चुप - चाप....।

दोनों ऑटो के पास आए और उससे बात करने लगे , वह भी बुंदेली भाषा में बोला , तो श्रेयांश ने गुस्से से उसे हिंदी में बात करने को कहा । ऑटो ड्राइवर हिंदी में बात करने लगा ।

ऑटो ड्राइवर - जाना कहां है आपको , ये तो बताइए...!!!

प्रणित ( मोबाइल स्क्रीन में होटल का नाम देखकर ) - ये कोई मोहन विलास होटल है , कहां होगा..???

ऑटो ड्राइवर ( ऊपर से नीचे तक दोनों को घूरते हुए ) - आप लोग कहां से आए हैं...??

श्रेयांश ( गुस्से से ) - जितना पूछा जा रहा है , उतना जवाब दो न । क्यों रिश्तेदार बन रहे हो..???

प्रणित ( श्रेयांश को शांत कराते हुए ) - तू क्यों बिना बात भड़क रहा है उसपर, शांत हो जा यार ।

श्रेयांश उनसे नजरें हटाकर धर्मशाला की ओर देखने लगा , और फिर उसी ओर बढ़ गया । प्रणित ने ऑटो वाले को होटल का एड्रेस दिया और जैसे ही बगल में मुड़ा, श्रेयांश गायब था । उसने अपना सिर पकड़ लिया और आस - पास उसे ढूंढने लगा । तभी उसे धर्मशाला के अंदर श्रेयांश दिखाई दिया और वह भागते हुए उसके पास आया ।

प्रणित ( अपने घुटनों पर हाथ रखकर हांफते हुए बोला ) - बिना बताए कहां गायब हो जाता है तू..??? आने से पहले बता तो देता ।

श्रेयांश ( बुक स्टॉल में बुक्स देखते हुए ) - अपना मुंह बंद कर और बता, ये मैगजीन कैसी है..???

प्रणित - पढ़ने लायक है ।

श्रेयांश ( घूरकर उसे देखता है ) - तू सीधा-सीधा जवाब दे, क्योंकि मैं तेरा यहां एनकाउंटर नहीं करना चाहता , समझा ।

प्रणित - ओके...., ओके....., चिल ब्रो । ले ले ये वाली..., अच्छी है ।

श्रेयांश ने पढ़ने के लिए अपनी पसंद की एक दो मैगजीन खरीदी और फिर दोनों ऑटो में बैठकर अपने होटल की तरफ आ गए......... ।

क्रमशः