राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक Anand M Mishra द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक

हर देश के लिए यह जरूरी है कि उसका एक झंडा हो, जिसके तले पूरा राष्ट्र एक हो जाए जो त्याग, शांति और एकता का प्रतीक हो। ऐसे में देश को एक सूत्र में बाँधने का कार्य हमारा राष्ट्रीय ध्वज करता है। ध्वज को देखते ही जोश आ जाता है। राष्ट्रीय पर्व के दिन जब तिरंगे को सलामी देते हैं तो मन झूमने लगता है। हम कोई भी राष्ट्रीय उत्सव मनाते हैं जब तक तिरंगे को हाथ में नहीं लेते हैं तब तक उत्सव मनाने का आनंद प्राप्त नहीं होता है। हमारे इस तिरंगे के आकार की कल्पना पिंगली वेंकैया द्वारा की गयी थी। वे सच्चे देशभक्त एवं कृषि वैज्ञानिक भी थे। इसकी अभिकल्पना के लिए उनकी सोच तथा मेहनत को तो याद करना ही होगा। ऐसा नहीं है कि एक दिन वे उठे और तिरंगे का निर्माण कर दिया। निश्चित रूप से इसमें उनकी गहन तपस्या का योगदान है। देशभक्ति का ज्वार बिना राष्ट्रीय ध्वज के नहीं आता है। बात भी सही है कि विभिन्न रूप-रंग, भाषा, खान-पान, संस्कृति के अलग होते हुए भी तिरंगे के नाम पर पूरा देश एक हो जाता है। यह वास्तव में देश के लिए गौरव की बात है। तिरंगे के अभिकल्पक के सम्मान में 22 जुलाई को ध्वज अंगीकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के एक राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया और, उनका यह विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया। पिंगली वैंकया ने पाँच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में वैंकया पिंगली महात्मा गाँधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद ही देश में कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशनों में दो रंगों वाले झंडे का प्रयोग किया जाने लगा लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी। इस बीच जालंधर के लाला हंसराजजी ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया। बाद में गांधी जी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने करांची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। हमारा तिरंगा सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। यह सद्भावना को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। प्रारम्भ में तिरंगे में चरखे को ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था। बाद में चरखे के स्थान पर 24 तीलियों वाले अशोक चक्र को शामिल किया गया। इस अशोक चक्र का आशय गतिशील जीवन से लगा सकते हैं। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा- अहिंसा और देश की एकता का प्रतीक होने के साथ-साथ सभी धर्मों का प्रतिनिधित्व करता है। ध्वज के अभिकल्पक के बहुत उपनाम थे। जापानी भाषा का ज्ञान होने के नाते उन्हें जापानी वेंकैया का नाम दिया गया। सूती कपड़े को लेकर लगातार शोध करने के कारण उन्हें पट्टी वेंकैया या काटन केंकैया भी का जाता था। राष्ट्रीय ध्वज की रचना करने के लिए उन्हें झंडा वेकैया नाम दिया गया। पिंगली वेंकैया चाहते थे कि झंडे के प्रति सभी लोग अपना समर्पण दिखाएं और उसका आदर करें। महान विचार रखने वाले, कड़ी मेहनत करनेवाले और देश के लिए शानदार योगदान करने के लिए वर्ष 2009 में उनके नाम से सरकार ने डाक टिकट जारी किया। ऐसे व्यक्तित्व का सम्मान आने वाली पीढ़ी करे। यह सुनिश्चित करना हम सब का दायित्व है।