मौत का खेल - भाग-21 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-21

ड्रोन


सदर अस्पताल दस मंजिला था और लाशघर पांचवी मंजिल पर था। लिफ्ट तेजी से ऊपर चली जा रही थी। न वह छठे फ्लोर पर रुकी थी और न सातवें और आठवें पर ही। सोहराब लिफ्ट का जायजा लेते हुए तेजी से सीढ़ियों पर दौड़ रहा था। लिफ्ट दसवें फ्लोर पर भी नहीं रुकी तो सोहराब आश्चर्य में पड़ गया। यानी लिफ्ट ओपेन फ्लोर पर गई थी।

सोहराब भी सीढ़ियां नापते हुए आखिरी मंजिल की छत की तरफ पहुंच गया। जहां पर सीढ़ियां खत्म हुई थीं। वहां पर एक दरवाजा था और उसमें ताला लगा हुआ था। सोहराब ने जेब से एक तार निकाला और ताले के छेद में डाल कर उसे खोलने की कोशिश करने लगा। इस काम में उसे वक्त लग गया।

जब ताला खोल कर वह ऊपर पहुंचा तो देखा कि लाश एक बड़े से ड्रोन में बंधी हुई ऊपर की तरफ जा रही थी। सोहराब ने एक लंबी छलांग लगाई और ड्रोन को पकड़ कर लटक गया। वजन बढ़ जाने की वजह से ड्रोन धीरे धीरे नीचे आने लगा। सोहराब एक हाथ से ड्रोन को पकड़े रहा और दूसरे हाथ से जेब में रखे चाकू को निकाल लिया। इसके बाद उसने उस रस्सी को काट दिया, जिससे लाश लटकी हुई थी। रस्सी आखिरी बंद तक कट चुकी थी। वजन की वजह से वह आखिरी बंद एक झटके में टूट गया। लाश को जल्दी से सोहराब ने दोनों हाथों में थाम लिया। इस चक्कर में ड्रोन उसके हाथ से छूट गया। ड्रोन तेजी से ऊपर की तरफ चला गया। सोहराब ने लाश को जमीन पर सम्मान के साथ रख दिया।

इंस्पेक्टर सोहराब ने ध्यान से ड्रोन की तरफ देखा। उसमें कैमरा लगा हुआ था। उसे समझते देर न लगी कि इस कैमरे से मुजरिम सारी गतिविधियां देख रहा है। ड्रोन पहले तेजी से ऊपर गया और फिर एक दिशा में जाकर नजरों से ओझल हो गया।

इंस्पेक्टर सोहराब को नर्स और वार्ड ब्वाय का ख्याल आया। उसने उन्हें छत पर काफी खोजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिले। कबाड़ रखने के लिए बनाए गए बड़े से टीन शेड में भी वह नहीं दिखे। सोहराब ने बड़े कबाड़ के पीछे जा-जा कर बारीकी से मुआयना किया। इसके बाद सोहराब लिफ्ट की तरफ चला गया। एक कैनोपी में लिफ्ट खुलती थी। कैनोपी के जालीदार दरवाजे में अंदर से ताला लगा हुआ था। यानी वह दोनों कैनोपी में अंदर से ताला लगा कर लिफ्ट के जरिए फरार हो गए थे। सोहराब को यह चोट बहुत तकलीफदेह लगी।

जहां सोहराब खड़ा था। वह एक बड़ी सी खुली छत थी। पहले तो लिफ्ट के यहां तक आने पर सोहराब को ताज्जुब हुआ था, लेकिन टीन शेड में रखी कबाड़ मशीनों को देखने के बाद उसकी समझ में बात आ गई। भारी सामान लाने ले जाने के लिए ही इस ओपेन छत तक लिफ्ट आने का इंतजाम किया गया था।

वह कुछ देर शांत खड़ा रहा। उसके बाद उसने सार्जेंट सलीम को फोन करके ऊपर बुला लिया। सार्जेंट सलीम जब ऊपर पहुंचा तो वह सोहराब को लाश के पास अकेला खड़ा देख कर चौंक पड़ा। उसकी कुछ समझ में नहीं आया कि माजरा क्या है?

“वह दोनों कहां गए और यह लाश किसकी है?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“दोनों चकमा देकर हाथ से निकल गए। काफी तेज साबित हुए दोनों। क्या लिफ्ट नीचे पहुंची थी?” इंस्पेक्टर सोहराब ने पूछा।

“नहीं वह ऊपर ही रुकी हुई है काफी देर से। मेरे यहां आने तक भी नीचे नहीं पहुंची थी।” सार्जेंट सलीम ने जवाब दिया।

“तुम ऊपर तक सीढ़ियों से आए हो?” सोहराब ने फिर पूछा।

“इस फ्लोर के ठीक नीचे तक एक दूसरी लिफ्ट से और फिर वहां से सीढ़ियों से ऊपर आया, क्योंकि वह लिफ्ट वहीं तक आती है।” सार्जेंट सलीम ने बताया।

“कोई अजीब बात नजर आई?” सोहराब ने फिर सवाल किया।

“नहीं... लेकिन क्यों?” सार्जेंट सलीम ने चौंकते हुए पूछा।

“नहीं कुछ नहीं।” सोहराब ने कहा।

“यह लाश किसकी है और यहां तक कैसे पहुंची?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“डॉ. वरुण वीरानी की।” सोहराब ने कहा और उसे यहां तक पहुंचने और ड्रोन से लाश ले जाने तक की पूरी बात बता डाली।

पूरी बात सुनने के बाद सार्जेंट सलीम ने पूछा, “आपको इतना यकीन कैसे है कि यह डॉ. वीरानी की ही लाश है।”

“खोल कर देख लो!” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

सार्जेंट सलीम ने जेब से निकाल कर हाथों पर सर्जिकल दस्ताने पहने और लाश के करीब पहुंच कर उस पर से कपड़ा हटा दिया। लाश का चेहरा देखने के बाद सार्जेंट सलीम सीधा खड़ा हो गया और एक कदम पीछे हट गया। लाश से आ रही बदबू ने भी उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। सार्जेंट सलीम ने इंस्पेक्टर सोहराब की तरफ देखा। सलीम ने लाश को पहली बार देखा था। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

“इस लाश का चेहरा तो बिगड़ा हुआ है। आपने बिना देखे कैसे यकीन कर लिया था कि स्ट्रेचर पर ले जाई जा रही लाश डॉ. वीरानी की ही है।”

“इस बारे में बाद में बात होगी। अभी जाओ और लाशघर के इंचार्ज और वहां पर पहरा दे रहे दोनों कांस्टेबल को बुला लाओ।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

सार्जेंट सलीम तेजी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। सोहराब ने जेब से निकाल कर मुंह पर मास्क लगाया और फिर हाथों पर रबर के दस्ताने पहने और लाश के ऊपर बंधा सफेद कपड़ा हटा दिया। लाश के जिस्म पर बहुत कीमती सूट था। अजीब बात यह थी कि वह सूट उसके साइज से कुछ बड़ा था। सोहराब ने कपड़े की जेबों की तलाशी ली। उसे जेब से कुछ बुरादा सा मिला। उसने उसे हाथ पर लेकर देखा और फिर जेब से रुमाल निकाल कर बुरादे को उसमें लपेट लिया।

इसके बाद वह पैंट और शर्ट की कॉलर पर लगे टैग को देखने लगा। उस पर ‘लॉर्ड एंड लैरी टेलर्स’ लिखा हुआ था। यह राजधानी का सब से बड़ा टेलर था। यहां कपड़े सिलवाने के लिए कई बार छह महीने तक इंतजार करना पड़ता था। पहली खास बात यह थी कि इनके यहां अभी भी हाथों से कपड़ों की सिलाई होती थी। दूसरी अहम बात इनकी फिटिंग थी। ऐसी फिटिंग कोई नहीं दे सकता था। यह 127 साल पुरानी दुकान थी। इनके पुरखे अमरीका से आए थे और फिर यहीं के हो कर रह गए थे। हालांकि बेटियां और बेटे अब भी अमरीका में ही ब्याहे जाते थे।

इंस्पेक्टर सोहराब ने मोबाइल से टैग और कपड़ों की कई तस्सीरें खींचीं और फिर लाश पर कपड़ा फिर से बांध दिया। इस काम से फारिग होने के बाद उसने दस्ताने उतार दिए। सोहराब ने जेब से सिगार निकाली और उसका कोना तोड़ने लगा। वह गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसने सिगार सुलगा ली और हल्के हल्के कश लेने लगा। वह बीच-बीच में आसमान की तरफ भी देख रहा था।

सार्जेंट सलीम दोनों पुलिस कांस्टेबल और लाश घर के इंचार्ज के साथ लौट आया। दोनों कांस्टेबलों ने आते ही सोहराब को सैल्यूट मारा। दोनों ही बहुत डरे हुए थे। सोहराब ने उनसे नर्म लहजे में पूछा, “आप दोनों कहां चले गए थे?”

दोनों कांस्टेबलों ने नजरें झुकाए हुए एक साथ कहा, “साहब माफ कर दीजिए गलती हो गई।”

“मुझे यह जानना है कि आप लोग कहां और किसके कहने पर गए थे?” सोहराब का लहजा अब भी नर्म ही था।

“कक्किसी के कहने से नहीं सर... बस ज्जरा... चाय... प्पीने चले गए थे...।” एक कांस्टेलब ने हकलाते हुए धीमी आवाज में कहा।

“अगर हम समय से नहीं पहुंचते तो लाश गायब कर दी गई थी। अपनी ड्यूटी ठीक से अंजाम दीजिए। ड्यूटी नहीं होती है तो साफ बता दीजिए हम दूसरा इंतजाम कर लेंगे।” इंस्पेक्टर सोहराब ने शब्दों पर जोर देते हुए कहा।

“सर आइंदा ख्याल रखेंगे।” इस बार दूसरे वाले कांस्टेबल ने कहा।

“मैं चाय पीने जाने के खिलाफ नहीं हूं... लेकिन एक साथ मत जाइए। यह बहुत ही महत्वपूर्ण मामला है। अगर लाश गायब हो जाती तो आपकी नौकरी भी जा सकती थी।” आखिरी वाक्य बोलते हुए सोहराब का लहजा थोड़ा तेज हो गया था।

कुछ देर की खामोशी के बाद सोहराब ने लाशघर के इंचार्ज से कहा, “आप भी एहतियात बरतिएगा। इस लाश को ले जाइए और इसे लाश घर में रखवा दीजिए।”

दोनों कांस्टेबलों ने लाश को उठा लिया और उसे लेकर चले गए। उनके पीछे-पीछे लाश घर का इंचार्ज भी चला गया।

उनके जाने के बाद सोहराब ने कहा, “आओ चलें।”

सीढ़ी पर पहुंचने के बाद इंस्पेक्टर सोहराब ने दरवाजा बंद करके उसमें ताला लटका दिया। बंद ताला तो खोला जा सकता है, लेकिन खुले ताले को बिना चाबी के बंद नहीं किया जा सकता है। इसके बाद वह सीढ़ियों से नीचे आ गए। सलीम लिफ्ट की तरफ बढ़ा तो सोहराब ने उसे टोकते हुए कहा, “हमें सीढ़ियों से ही नीचे उतरना है।”

सोहराब की इस बात से सार्जेंट सलीम ने अजीब नजरों से सोहराब को देखा। जैसे कहना चाहता हो, ‘लिफ्ट होते हुए भी दसवें फ्लोर से सीढ़ियों से कौन उतरता है महाराज!’

सीढ़ियां उतरते हुए जब वह नौंवे फ्लोर पर पहुंचे तो सोहराब लिफ्ट की तरफ बढ़ गया। वहां सब कुछ नार्मल था। इसके बाद वह सीढ़ियों से ही आठवें फ्लोर पर पहुंचे। वह फिर लिफ्ट की तरफ चले गए। वहां का नजारा देख कर सोहराब के चेहरे पर एक हल्की सी चमक आ कर चली गई। उसका अनुमान सही निकला था।

जिस लिफ्ट से वह नर्स और वार्ड ब्वाय ऊपर गए थे, वह खुली हुई थी। उसमें स्ट्रेचर को फंसा दिया गया था। गेट न बंद हो पाने की वजह से वह लिफ्ट जहां थी वहीं रुकी हुई थी। सोहराब ने स्ट्रेचर को बाहर निकाल दिया। सलीम गेट पर पैर फंसा कर खड़ा हो गया। लिफ्ट के अंदर दोनों के मास्क, दोनों व्हाइट कोट और नर्स का स्कार्फ पड़ा हुआ था। सोहराब ने कोट की जेबों की तलाशी ली, लेकिन उनमें कुछ नहीं मिला। इसके बाद सोहराब ने स्ट्रेचर को अंदर कर दिया। लिफ्ट का ऑटोमेटिक दरवाजा बंद हो गया और वह नीचे की तरफ चली गई।

“अब आपको समझ में आया कि यह लिफ्ट नीचे क्यों नहीं जा रही थी?” सोहराब ने सलीम से कहा।

“बहुत चालाक हैं।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“चालाक नहीं शातिर हैं।” सोहराब ने कहा, “दरअसल उन्होंने आठवें फ्लोर को इसलिए चुना क्योंकि इस फ्लोर पर ज्यादा भीड़भाड़ नहीं रहती। दूसरे उन्होंने सोचा हो कि अगर हम उनका पीछा करेंगे तो आखिरी यानी दसवें या नवें फ्लोर पर उन्हें तलाशेंगे। उन्होंने लिफ्ट में अपनी पहचान बताने वाली चीजें उतार फेंकीं। फिर यहां से दूसरी लिफ्ट के जरिए आराम से चले गए। ऐसे में वह हमारे सामने भी होते तो हम उन्हें न पहचान पाते।”

“देखते हैं बकरे की मां कब तक खैर मनाती है!” सार्जेंट सलीम ने कहा।

सोहराब दूसरी लिफ्ट की तरफ बढ़ गया। वहां उसने बारीकी से जायजा लिया, लेकिन वहां उन्हें कोई सुराग नहीं मिला। इसके बाद दोनों उसी लिफ्ट से नीचे आ गए।

दोनों पार्किंट लाट की तरफ बढ़ गए। सोहराब ने सलीम को चाबी देते हुए कहा, “कार तुम ड्राइव करो।”

सलीम ने कार का गेट खोला और स्टेयरिंग सीट पर बैठ गया। सोहराब दूसरा गेट खोल कर उस की बगल वाली सीट पर बैठ गया। सार्जेंट सलीम ने इग्निशन में चाबी लगाई और कार स्टार्ट कर दी। कार धीमी रफ्तार से कंपाउंड से चल दी।

“कहां चलना है?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“लॉर्ड एंड लैरी टेलर्स।” सोहराब ने कहा।

“नया सूट सिलवा रहे हैं?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“नहीं... तफ्तीश के सिलसिले में चल रहे हैं।” सोहराब ने कहा, "एक अहम सवाल यह भी है कि इतना बड़ा ड्रोन किस के पास है? यह भी चेक करना होगा।"

कार सदर अस्पताल के कंपाउंड से निकल कर सड़क पर आ गई थी। कार के बाहर निकलते ही गेट पर खड़े आदमी ने किसी को फोन मिलाया और धीमी आवाज में कुछ बताने लगा।

*** * ***


लॉर्ड एंड लैरी टेलर्स के यहां से उन्हें क्या जानकारी मिली?
जब लाश गायब ही करनी थी तो कातिल ने लाश को जंगल में क्यों फेंका था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...