मौत का खेल - भाग-7 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-7

खून के धब्बे

कार के चले जाने के बाद राजेश शरबतिया ने नाइट गाउन उतार दिया और ओवरकोट पहन लिया। उस की पत्नी बेड पर बेखबर सो रही थी। वह चुपचाप बेडरूम से बाहर निकल आया।

उस ने बहुत आहिस्ता से कोठी का दरवाजा खोला। दरअसल जब कुछ राज रखना होता है तो आप का पूरा व्यवहार ही बदल जाता है। ऐसा ही शरबतिया के साथ हुआ था। उस ने इस आहिस्ता से कोठी का दरवाजा खोला था, मानों आवाज होते ही सब को डॉ. वीरानी मौत के बारे में पता चल जाने वाला था। उस ने दरवाजे को बहुत आहिस्ता से भेड़ भी दिया था। बाहर कोहरे का नामो-निशान भी नहीं था। तेज हवाओं ने कोहरे को निगल लिया था। शरबतिया ने बाहर निकल कर चारों तरफ देखा। दूर-दूर तक कहीं कोई नहीं था।

यहां से फार्म हाउस का मेन गेट तकरीबन तीन किलोमीटर दूर था। इसलिए गार्ड भी नजर नहीं आ रहे थे। सभी नौकर अपने-अपने क्वार्टर में गहरी नींद में सो रहे थे। शरबतिया हाउस में हर पार्टी के बाद नौकरों की दिन भर की छुट्टी हो जाती थी। आज भी वह शाम तक की छुट्टी पर थे।

राजेश शरबतिया दबे कदमों से जंगल की तरफ बढ़ गया। उस का रुख डॉ. वीरानी की कब्र की तरफ था। वह तस्दीक कर लेना चाहता था कि दिन में वह हिस्सा कैसा नजर आता है। किसी तरह का कोई निशान तो बाहर से नजर नहीं आ रहा है। इस इलाके में अकसर माली जाता रहता था। यही वजह थी कि शरबतिया सब कुछ दुरुस्त कर लेना चाहता था।

कुछ दूर पैदल चलने के बाद वह कब्र तक पहुंच गया। यहां सब कुछ सामान्य था। सिवाए इस बात के कि जमीन के अंदर की मिट्टी बाहर आ गई थी। इसलिए काली जमीन पर वह पीली-पीली सी अलग से नजर आ रही थी। वैसे भी यह कोई खास बात नहीं थी। जंगल में अकसर नए पेड़ लगाए जाते थे या मिट्टी के लिए गड्डे खोदे और बंद किए जाते थे। बस कब्र से कफन जैसी चीज नजर नहीं आनी चाहिए। शरबतिया को यही फिक्र थी।

कब्र देखने के बाद आसपास का जायजा लेने के लिए वह टहलते हुए कुछ दूर निकल गया। एक जगह पर उस की निगाह टिक गई। वह उसी जगह पर नजरें गड़ाए हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। जैसे-जैसे वह करीब पहुंच रहा था, उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह जमीन पर बैठ गया और एक जगह पर नजरें टिका दीं।

जमीन पर काफी सारा खून पड़ा हुआ था। खून ताजा लग रहा था। उस की चमक अभी तक बरकरार थी। शरबतिया बहुत ध्यान से उन धब्बों को देखने लगा।

“खून के धब्बे!” वह बड़बड़ाया।

उस ने नजर उठा कर देखा तो जमीन पर खून की बूंदें काफी दूर तक चली गई थीं। वह उठ गया और उन बूंदों का पीछा करने लगा। यह बूंदें चहारदीवारी तक गई थीं। चहारदीवारी काफी ऊंची थी। वह चहारदीवारी के नजदीक रुक कर कुछ सोचने लगा। उस के बाद एक बार फिर वह खून की बूंदों का पीछा करते हुए उस जगह पर लौट आया जहां ढेर सारा खून पड़ा हुआ था।

शरबतिया कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा। उस के चहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी। ऐसे खून के धब्बे फार्म हाउस पर पहली बार नजर आए थे। उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह एक बार फिर से डॉ. वरुण वीरानी की कब्र की तरफ आ गया। उस ने बहुत ध्यान ने कब्र को देखा। कब्र में दफनाए जाने के बाद से अब तक कोई तब्दीली नहीं आई थी। ‘फिर खून!’ यह सवाल उस के जेहन में अटक कर रह गया था।

शरबतिया चिंतामग्न हालत में धीमे कदमों से चलते हुए कोठी की तरफ चल पड़ा। एक रात में कितना कुछ बदल गया था। नए साल की पार्टी उस के लिए वबाले जान बन गई थी। इस से पहले उस ने जाने कितनी पार्टियां की थीं। इस पार्टी ने उसे बड़ी मुसीबत में डाल दिया था। इस बात का राजेश शरबतिया को बहुत गहराई से एहसास था। वैसे भी वह बिजनेसमैन था। उस का ऐसी बातों से कभी वास्ता ही नहीं पड़ा था।


लाश और कब्र


जब राजेश शरबतिया कोठी में पहुंचा तो ड्राइंग रूम में उस ने रायना को बैठे हुए पाया। रायना सुबह-सुबह शरबतिया हाउस पहुंच गई थी। वह अपने साथ फूलों का एक गुलदस्ता लाई थी। जिस तरह से डॉ. वीरानी का अंतिम संस्कार किया गया था, उस से वह काफी विचलित थी। यही वजह थी कि वह सुबह-सुबह ही एक गुलदस्ते के साथ शरबतिया हाउस आ गई थी। वह उस गुलदस्ते को कब्र पर चढ़ाने के लिए लाई थी।

शरबतिया और रायना ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे। दोनों ही खामोश थे। जैसे उन के पास कहने को ज्यादा कुछ न हो। वैसे भी जिन हालातों में डॉ. वरुण वीरानी की मौत हुई थी, इस से राजेश शरबतिया भी परेशान था।

दोनों ने साथ चाय पी और फिर कोठी से बाहर आ गए। सुबह के आठ बजे थे और हल्की-हल्की धूप फैली हुई थी। आज कोहरा तो नहीं था, लेकिन सर्दी काफी ज्यादा थी। रायना और शरबतिया, डॉ. वीरानी की कब्र की तरफ जा रहे थे। दोनों की चाल काफी धीमी थी। रायना ने अपने हाथों में गुलदस्ता संभाल रखा था।

कुछ देर बाद दोनों कब्र के करीब पहुंच गए। कब्र की तरफ नजर उठते ही रायना के मुंह से हल्की सी चीख निकल गई। वह भाग कर कब्र तक पहुंची। उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। उस ने पलट कर शरबतिया की तरफ देखा। वह भी तेज कदमों से कब्र की तरफ भागा आ रहा था।

कब्र की हालत देख कर उसके भी होश उड़ गए। कब्र खुदी पड़ी थी और लाश गायब थी। शरबतिया इतनी सर्दी में भी पसीने से तर हो गया। रायना धप से जमीन पर बैठ गई। वह दोनों हाथों से मुंह छिपा कर सिस्की ले-ले कर रोने लगी।

शरबतिया हवन्नकों की तरह चारों तरफ देख रहा था। अचानक वह दौड़ते हुए चहारदीवारी तक गया और लौट आया। वह इसी तरह से चारों दिशाओं में भागता फिर रहा था। वह दूर-दूर तक देख आया। उसे कहीं कुछ भी नजर नहीं आया।

शरबतिया रायना के पास आ कर खड़ा हो गया। भागने से उस की सांस फूल रही थी। वह पसीने से पूरी तरह से तर हो रहा था। उसे चक्कर आने लगे और वह भी कब्र के पास जमीन पर बैठ गया। दोनों काफी देर तक ऐसे ही बैठे रहे।

कुछ देर बाद जब दोनों के होश बहाल हुए तो वह उठ कर खड़े हो गए। दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि कब्र से लाश कहां गायब हो गई है। शरबतिया और रायना ने एक बार फिर जंगल को दूर-दूर तक छान मारा, लेकिन उन्हें लाश कहीं नहीं मिली। लाश कौन कहे किसी तरह का कोई सुराग भी हाथ नहीं लगा।

अलबत्ता राजेश शरबतिया रायना को उस जगह से दूर रखने में कामयाब रहा था, जहां खून के धब्बे पड़े हुए थे। उसे मालूम था कि अगर रायना ने खून के धब्बे देख लिए तो उसे समझा पाना मुश्किल होगा। वह इन धब्बों को डॉ. वीरानी की मौत से जोड़ कर देखेगी और उसे संतुष्ट कर पाना फिलहाल राजेश शरबतिया के बूते की बात नहीं थी।

हर तरफ से निराश हो कर दोनों कोठी में लौट आए। रायना फूलों का गुलदस्ता वहीं छोड़ आई थी। दोनों आ कर सोफे में धंस गए। दोनों देर तक शांत बैठे रहे। शरबतिया के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। रायना भी काफी परेशान नजर आ रही थी। कुछ देर बाद उस ने राजेश शरबतिया से पूछा, “आप के फार्म हाउस से लाश भला कैसे गायब हो सकती है?”

“यही मेरी समझ में भी नहीं आ रहा है।” राजेश शरबतिया के लहजे से परेशानी साफ झलक रही थी।

“लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि 24 घंटे में आप के फार्म हाउस से एक लाश गायब हो जाए!” रायना ने चुभते हुए लहजे में कहा।

यह चुभन राजेश शरबतिया ने भी साफ महसूस कर ली थी। उस ने जरा तेज आवाज में कहा, “तो तुम मुझे इस के लिए जिम्मेदार ठहरा रही हो!”

“यह फार्म हाउस आप का है मिस्टर शरबतिया और मेरे पति की लाश यहां से गायब हुई है। इस की जिम्मेदारी आप की ही बनती है।” रायना का लहजा भी तेज हो गया था।

“तो तुम्हारा कहने का मतलब यह है कि मैं बैठ कर तुम्हारे पति की लाश रखाता रहता।” राजेश शरबतिया की आवाज अब भी तेज थी।

“यह मत भूलो मिस्टर शरबतिया कि मेरे पति का कत्ल तुम्हारे फार्म हाउस में हुआ है। यह मेरी शराफत थी कि मैंने आप की बात मान ली और पुलिस में शिकायत नहीं की। वरना...” रायना ने बात अधूरी छोड़ दी।

उस की इस बात पर राजेश शरबतिया ढीला पड़ गया। कुछ देर की खामोशी के बाद उस ने रायना को समझाते हुए कहा, “देखो रायना! यह सच है कि लाश कब्र से गायब है... और यह फार्म हाउस भी मेरा ही है, लेकिन इस के लिए मैं किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हूं। यकीन मानो मैं सुबह ही कब्र पर गया था। उस वक्त वहां सब कुछ सामान्य था।”

उस की इस बात पर रायना कुछ नहीं बोली। ड्राइंग रूम में खामोशी छाई हुई थी। घड़ी की सुई की आवाज घंटे की आवाज जैसी गूंज रही थी।

कुछ देर बाद शरबतिया ने कहा, “मुझे लगता है कि मौजूदा हालात से हमें बाकी दोस्तों को भी अवगत करा देना चाहिए।”

“जैसा आप बेहतर समझें।” रायना ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

“मैं बाकी दोस्तों को भी यहीं बुलाए लेता हूं।” शरबतिया ने कहा और उठ कर लैंड लाइन से तमाम दोस्तों को फोन मिलाने लगा। जाने क्यों उस ने मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं किया था।

राजेश शरबतिया एक ऊंची कुर्सी पर बैठा डायरी से नंबर निकाल-निकाल कर सभी दोस्तों को फोन मिला रहा था।

शरबतिया की पीठ रायना की तरफ थी। अचानक ही रायना बड़ी खामोशी से उठ खड़ी हुई। वह दबे पांव कोठी के अंदरूनी हिस्से की तरफ चली गई।

*** * ***


डॉ. वरुण वीरानी की लाश गायब होने का राज क्या था?
रायना इस तरह से खामोशी से कोठी में क्या करने गई थी?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...