मौत का खेल - भाग-8 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-8

शीर्ष आसन


सार्जेंट सलीम न्यू इयर पार्टी से लौटने के बाद जम कर सोना चाहता था, लेकिन लगातार बजते फोन ने उसकी नींद में खलल डाल दिया था। उसने नींद में ही फोन उठाया और तेज आवाज में दहाड़ा, “रांग नंबर!” इसके बाद उसने फोन काट दिया और फिर सो गया।

अभी वह नींद की वादी में उतरा ही था कि फिर से फोन की घंटी बज उठी। उसकी फिर से आंख खुल गई। उसने फोन रिसीव किया और गुस्से में चिल्लाने जा ही रहा था कि दूसरी तरफ की आवाज सुनकर मुंह खुला का खुला ही रह गया। चिल्लाने का इरादा गले में ही दम तोड़ गया। दूसरी तरफ से सोहराब की आवाज आई, “मैं नाश्ते पर तुम्हरा इंतजार कर रहा हूं।”

जवाब में सलीम ने कहा, “मेरा पेट भरा हुआ है। आप मेरा हिस्सा भी खा लीजिए।”

“एक ग्लास बर्फ का पानी काफी होगा आपके लिए।” सोहराब ने उधर से कहा।

इस धमकी ने असर किया और सलीम कूद कर बिस्तर से बाहर आ गया। वह सीधा वाशरूम में घुस गया। उसे डर था कि कहीं सोहराब सचमुच उस पर बर्फ का ठंडा पानी न डाल दे। ऐसी सर्दी में बर्फ के पानी की बात सुन कर ही उसे कपकपी आने लगी।

जब सलीम डायनिंग टेबल पर पहुंचा तो सोहराब किसी से फोन पर बात कर रहा था। सलीम उस के सामने मुंह बना कर बैठ गया। सोहराब फोन से फारिग हुआ तो उस की नजर सीधे सलीम पर पड़ी। उसने सलीम का बुरा सा चेहरा देख कर कहा, “यह बेवा औरतों जैसा चेहरा बनाए क्यों बैठे हो? माथे पर लगा सिंदूर भी साफ कर लेना चाहिए था।”

जवाब में सलीम ने मेज से टिशू पेपर उठाया और सर पर रगड़ने लगा। उसकी इस हरकत पर सोहराब भन्ना गया। उसने कहा, “तुम्हारी इन बेहूदा हरकतों पर लड़कियां खुश होती होंगी मैं नहीं। काम के वक्त सीरियस रहा कीजिए।”

सलीम उठा और दीवार से लग कर शीर्ष आसन करने लगा। उसके बाद उसने कहा, “मैं अब सीरियस हो गया हूं। काम बताइए।”

“मैं तुम्हारे दोनों कान उखाड़ कर हाथ पर दे दूंगा।” सोहराब ने हंसते हुए कहा।

सलीम लौट कर कुर्सी पर बैठ गया। सोहराब ने उसे एक लिफाफा देते हुए कहा, “इसमें दो लोगों के नाम, पते और फोटो हैं। इन्हें चेक करो। इनकी पिछले दो साल की सारी गतिविधियां चाहिए। यह भी कि इनका आपस में रिश्ता कैसा है? तुम्हारे पास शाम तक का वक्त है।”

“शाम तक काम न हुआ तो!” सलीम ने फिर छेड़ा।

“चुल्लू भर पानी कहीं भी मिल जाएगा।” सोहराब ने गंभीरता से कहा और नाश्ता करने लगा।

सोहराब की गंभीर सूरत देख कर सलीम की फिर कुछ कहने की हिम्मत न हुई। वह भी चुपचाप नाश्ता करने लगा। नाश्ता करने के बाद उसने अपने लिए कॉफी बनाई और मग हाथ में उठा कर अपने रूम की तरफ चल दिया। अब उसका यहां बैठ कर काफी पीना बेकार था। वह सोहराब को गंभीर देख कर अकसर वहां से टल जाया करता था।

सलीम के जाने के बाद सोहराब ने सिगार सुलगाया और उठ कर लाइब्रेरी की तरफ चला गया। वह गहरी सोच में डूबा हुआ था।


तलाशी


रायना को यकीन था कि राजेश शरबतिया को सभी दोस्तों को फोन करने में कम से कम आधा घंटा जरूर लगेगा। वह मौके का फायदा उठाते हुए चुपचाप कोठी की तलाशी लेने के लिए उठ गई। जाने क्यों उसे शक था कि लाश को गायब करने में राजेश शरबतिया का हाथ है। वह पूरी कोठी की तलाशी लेना चाहती थी। उसे एक बात का खौफ हो रहा था कि कहीं शरबतिया लाश को गायब कर के उसे तो फंसाना नहीं चाहता है!

रायना की समझ में इस की एक वजह भी थी। शरबतिया उसे पसंद करता था। वह कई बार उसे परपोज भी कर चुका था। वह चाहता था कि रायना डॉ. वरुण वीरानी को तलाक दे दे और उसकी रखैल बन कर रहे। वह उसका पूरा ऐशो-आराम पूरा के लिए भी तैयार था। बाकायदा वह राजधानी में अपनी एक कोठी उसके नाम तक करने को राजी था। रायना ने उसे साफ मना कर दिया था। उसने कहा था कि वह डॉ. वरुण वीरानी के साथ खुश है। रायना को लग रहा था कि उसे परेशान करने के लिए ही शरबतिया ने लाश को गायब किया है।

रायना यह बात इशारे-इशारे में शरबतिया से कह भी चुकी थी। इसके बाद शरबतिया भन्ना गया था। शरबतिया को डर था कि कहीं रायना बखेड़ा न खड़ा कर दे, इसीलिए उसने अपनी सपोर्ट में तुरंत ही दोस्तों को बुलाने का फैसला कर लिया था। वह बिना वक्त गंवाए रात की पार्टी में मौजूद दोस्तों को बुलाने के लिए फोन कर रहा था।

रायना जल्दी-जल्दी कोठी के तमाम कमरों को चेक कर रही थी। उसने सबसे पहले नीचे की मंजिल के तमाम कमरे चेक कर डाले। उसके बाद वह ऊपर की मंजिल पर चली गई। वहां भी उसे कोई सुराग नहीं मिला। अलबत्ता उसे एक कमरे में मिसेज शरबतिया सोते जरूर मिलीं। उसने चुपचाप दरवाजा बंद कर दिया और नीचे उतर आई।

नीचे राजेश शरबतिया अभी भी फोन करने में बिजी था। फोन काल कट करने के बाद उसने रायना की तरफ पलटते हुए पूछा, “तुम कहां चली गईं थीं?”

“वाशरूम।” रायना ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

शरबतिया ने कुछ नहीं कहा और फिर फोन करने में बिजी हो गया। उसने दो और फोन काल किए और उसके बाद उठ कर रायना के पास आ कर बैठते हुए कहा, “मैंने कुछ खास दोस्तों को ही बुलाया है। वह अभी कुछ देर में आते ही होंगे।”

“इससे फायदा क्या होना है?” रायना ने खुश्क लहजे में पूछा।

उसके इस सवाल पर शरबतिया गड़बड़ा गया। फिर खुद को संभालते हुए कहा, “मिल कर फैसला करते हैं कि अब हमें क्या करना चाहिए।”

उसके इस जवाब पर रायना कुछ नहीं बोली।


चलती लाश


तकरीबन दो घंटे बाद शरबतिया हाउस में लोगों का आना शुरू हो गया। एक घंटे के अंतराल पर तमाम लोग आ गए थे। अलबत्ता कुछ लोगों ने किसी न किसी बहाने से आने से मना भी कर दिया था। यह वह लोग थे जो कत्ल जैसे मामले से खुद को दूर रखना चाहते थे। आने वालों में वही लोग थे, जिनके शरबतिया से बहुत गहरे रिश्ते थे।

तकरीबन बीस लोग इस वक्त मौजूद थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस वक्त उन्हें शरबतिया ने क्यों बुलाया है। राजेश शरबतिया ने किसी को भी लाश के गायब होने के बारे में कुछ नहीं बताया था। बस उन्हें एक जरूरी मीटिंग कह कर बुलाया गया था और वह पहुंच गए थे।

इस वक्त लोग आपस में गप्पें मारने में मशगूल थे। शरबतिया ने लोगों को मुखातिब करते हुए कहा, “आप लोगों को बुलाने की एक बड़ी वजह बन पड़ी है... डॉ. वरुण वीरानी की लाश... कब्र से गायब है।” शरबतिया ने लाश शब्द के बाद थोड़ा सा पॉज लिया था।

उसकी बात सुन कर हॉल में सन्नाटा छा गया था। कई लोगों के मुंह खुले के खुले रह गए थे। लोग एक-दूसरे का मुंह तक रहे थे। कुछ लोगों ने घूम कर रायना की तरफ भी देखा था।

कुछ देर बाद एक शख्स ने पूछा, “कैसे पता चला?”

“हम खुद देख कर आए हैं... मेरा मतलब है कि रायना वहां फूल चढ़ाने गई थी तो लाश वहां से गायब थी।” शरबतिया ने बताया।

“कब गायब हुई?” एक दूसरे व्यक्ति ने पूछा।

“सुबह मैं गया था तो सब ठीक था। उसके एक घंटे बाद जब हम दोनों दोबारा वहां गए तो लाश गायब थी।” शरबतिया ने कहा। उसकी आवाज में घबराहट अभी भी बाकी थी।

इसके बाद फिर सन्नाटा छा गया।

“कहीं ऐसा तो नहीं है कि डॉ. वीरानी जिंदा हों... और उन्हें बाद में होश आ गया हो और वह कब्र से उठ कर घर चले गए हों।” एक शख्स काफी दूर की कौड़ी लाया।

“बेवकूफों जैसी बातें मत करो। ऐसा फिल्मों में होता है। मैंने खुद चेक किया था। वह मर चुके थे।” वहां मौजूद डॉक्टर श्याम सुंदरम ने कहा।

कुछ देर बाद डॉ. सुंदरम ने तजवीज रखी, “क्यों न हम सब चल कर एक बार फिर से चेक कर लें। हो सकता है तुम लोग कोई गलत गड्ढा देख कर लौट आए हो। वैसे भी जिस वक्त डॉ. वरुण को दफनाया गया था वहां अंधेरा था। सुबह तुम लोग वह जगह ढूंढ ही न पाए हो।”

डॉ. सुंदरम की तजवीज सभी को पसंद आई। सभी कोठी से बाहर आ गए। बाहर सुनहरी धूप फैली हुई थी।

सभी जंगल की तरफ बढ़ गए, जहां पर डॉ. वरुण वीरानी को दफनाया गया था।

“रास्ता तो याद है न सुंदरम?” एक व्यक्ति ने डॉ. श्याम सुंदरम को छेड़ते हुए पूछा।

जवाब में डॉ. सुंदरम ने कुछ नहीं कहा। उसे इस मौके पर ऐसा मजाक बुरा लगा था।

कुछ देर बाद ही सभी लोग कब्र की जगह पर पहुंच गए। शरबतिया और रायना वहां पहुंच कर चौंक पड़े। दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे। कब्र का गड्ढा भरा हुआ था।

“ऐसा कैसे हो सकता है?” रायना ने बड़बड़ाते हुए कहा, “मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था... उस वक्त यह कब्र खुदी हुई थी और लाश गायब थी।”

डॉ. सुंदरम ने कहा, “तुम लोग किसी और जगह पहुंच गए थे गलती से।”

“ऐसा नहीं हो सकता।” रायना ने कहा, “मैं अपने साथ जो गुलदस्ता लाई थी वह देखिए वह वहां पड़ा हुआ है।”

सभी ने गुलदस्ते की तरफ देखा। वह यकीनन पड़ा हुआ था।

“रायना सही कह रही है।” शरबतिया ने कहा, “मैंने भी देखा था कि यह गड्ढा खुदा हुआ था और लाश गायब थी।”

*** * ***


डॉ. वरुण वीरानी की लाश दोबारा कैसे लौट आई थी?
सार्जेंट सलीम किस की प्रोफाइल चेक कर रहा था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...