राजेश शरबतिया की वाइफ नाइट गाउन में उन दोनों की तरफ चली आ रही थी। उसे देखते ही रायना ने पूछा, “आप अभी तक यहीं रह रही हैं। लगता है आपको फार्महाउस की लाइफ रास आ रही है।”
“शहर में ही थी। कल ही तो आई हूं।” शरबतिया की बीवी ने कहा। फिर पूछने लगी, “तुम कब आईं? और यहां क्या कर रही हो! आओ अंदर आओ। बाहर तो बहुत सर्दी है।”
राजेश शरबतिया की शहर में कई कोठियां और हवेलियां थीं। इन में से सबसे आलीशान कोठी ‘मिनाका हाउस’ में वह रहता था। बीच-बीच में वह फार्म हाउस भी आते रहते थे।
“बस इधर एक दोस्त से मिलन आई थी। शरबतिया साहब ने फोन पर बताया कि वह यहीं हैं, इसलिए चली आई।” रायना ने कहा, “अब मुझे चलना चाहिए।”
“इतनी रात में कहां जाओगी। फिर सर्दी भी बहुत है। यहीं रुक जाओ। कल हमारे साथ वापस चलना।” शरबतिया की वाइफ ने कहा।
“मुझे अकेले नींद नहीं आती है।” रायना ने आंख मारते हुए शोखी से कहा और अपनी कार की तरफ बढ़ गई।
शरबतिया और उसकी बीवी ने अर्थपूर्ण अंदाज में एक दूसरे की तरफ देखा और उसके बाद दोनों रायना की तरफ देखने लगे। रायना ने कार की तरफ जा रही थी। रायना ने कार में बैठने से पहले एक बार घूम कर दोनों की तरफ देखा और उसके बाद कार का दरवाजा खोल कर स्टेयरिंग सीट पर बैठ गई। उसने कार स्टार्ट की और तेजी से आगे बढ़ गई।
सार्जेंट सलीम जब गुलमोहर विला पहुंचा तो थक कर चूर हो रहा था। अपने कमरे में जाते ही बिना कपड़े उतारे कंबल में घुस गया। कुछ देर बाद ही उस के खर्राटे गूंजने लगे। दिन भर की भागदौड़ ने उसे इतना थका दिया था कि उसने डिनर भी नहीं किया।
सुबह सलीम की आंख जल्दी खुल गई। बिस्तर पर लेटे लेटे उसने फोन उठाया और 121 नंबर मिला कर कुछ देर इंतजार करता रहा। दूसरी तरफ से फोन उठते ही तेज आवाज में चिल्लाया, “मेरी नीबू की चाय अब तक क्यों नहीं आई। शाने दस मिनट में चाय नहीं पहुंची तो तेरी शान में गुस्ताखी तय है।”
शाना ठीक आठवें मिनट में चाय की ट्रे लेकर उसके बेडरूम में हाजिर हो गया। जब वह बेड के बगल की छोटी सी टेबल पर चाय की ट्रे रखने लगा तो सलीम ने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “तुम हो बहुत शानदार आदमी। शायद इसीलिए घर वालों ने शाने नाम रखा था।”
“मेरा नाम शाने आलम है।” शाने ने जवाब दिया।
“बेटा तुझे अपने नाम की मीनिंग पता है।” सार्जेंट सलीम ने चाय कप में उंडेलते हुए कहा।
“क्यों नहीं पता है। शाने आलम का मतलब होता है दुनिया की शान।” शाने ने जवाब दिया।
“वेरी गुड बेटा! लेकिन यह कुछ ज्यादा तारीफी नाम नहीं हो गया?” सोहराब ने चाय में नीबू की बूंदें निचोड़ते हुए पूछा।
“नाम अच्छे ही रखने चाहिए।” शाने ने कहा।
“तुमने आज खुश कर दिया।” सलीम ने कहा और पर्स से पांच सौ रुपये का नोट निकालते हुए कहा, “यह लो तुम्हारा इनाम।” सार्जेंट सलीम ने आज भरपूर नींद ली थी और उसका मूड इस वक्त बहुत अच्छा था।
“सर ने रिश्वत लेने से सख्ती से मना किया है।” शाने ने जवाब दिया।
“मेरे लाल... पीले... हरे... यह रिश्वत नहीं प्यार है।” सार्जेंट सलीम ने पुचकारते हुए कहा।
“ना जी हमें ऐसा प्यार नहीं चाहिए।” शाने ने गंभीरता से कहा और कमरे से बाहर चला गया।
सलीम उसे तारीफी नजरों से जाते हुए देखता रहा।
चाय पी कर सलीम वाशरूम में घुस गया। कुछ देर बाद वह डायनिंग हाल में था। वहां उसे सोहराब नजर नहीं आया। उसने झाना से पूछा तो पता चला कि सोहराब उसे घर छोड़ने के बाद फिर कहीं चला गया था। उसे बड़ा अजीब लगा। वह जानता था कि सोहराब पर काम का भूत सवार रहता है।
नाश्ता करने के उपरांत उसने कॉफी बनाई और पीने लगा। कुछ देर बाद वह बाहर निकल आया। पार्किंग की तरफ जाने पर पता चला कि सोहराब फैंटम ले गया है। घोस्ट वहीं खड़ी थी। वह स्टेयरिंग सीट पर बैठ गया और कार स्टार्ट कर दी। एक लंबा रास्ता तय करने के बाद घोस्ट कोठी से बाहर आ गई। उसका रुख खुफिया महकमे की तरफ था।
तकरीबन आधे घंटे बाद वह खुफिया महकमा पहुंच गया। सार्जेंट सलीम घोस्ट को पार्किंग लाट की तरफ ले गया तो वहां उसे सोहराब की फैंटम नजर आ गई। उसने धीमी आवाज में कहा, “ओह तो हुजूर यहां हैं!”
उसने घोस्ट को पार्क किया और नीचे उतर आया। उस के बाद वह सीधे इंस्पेक्टर सोहराब के ऑफिस की तरफ चल दिया। सोहराब ऑफिस में बैठा कोई फाइल देख रहा था। सलीम जा कर सामने की चेयर पर बैठ गया। सोहराब ने कोई नोटिस ही नहीं लिया। सलीम कुछ देर यूं ही बैठा रहा। उसे बेचैनी होने लगी। उसने दो बार बहुत जोर-जोर से खांसा। मानो यह एहसास कराना चाहता हो कि सोहराब के अलावा भी कोई है इस रूम में। इस के बावजूद सोहराब ने उसकी तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखा। इससे खीझ कर सलीम ने कहा, “अगर कोई खूबसूरत लड़की होती तो भी क्या आप ऐसे ही इग्नोर करते उसे!”
इस बात पर भी सोहराब कुछ नहीं बोला। कुछ वक्त गुजरने के बाद सलीम ने जेब से पाउच निकाला और पाइप में वान गॉग का तंबाकू भरने लगा। लाइटर से पाइप सुलगाया और धुंए के गोले बनाने लगा। सोहराब ने फाइल बंद करके मेज पर रख दी। सार्जेंट सलीम ने देखा उस पर डॉ. वरुण वीरानी का नाम लिखा हुआ था।
“नाइस पाइप।” इंस्पेक्टर सोहराब ने सलीम के पाइप की तरफ देखते हुए कहा।
“वान गॉग का हैंडमेड चेरी वुड पाइप है। कल ही मंगाया है।” सार्जेंट सलीम ने बताया।
“काफी खूबसूरत है।” सोहराब ने कहा।
“अच्छा लग रहा है तो आप ले लीजिए मैं दूसरा मंगा लेता हूं।” सार्जेंट सलीम ने मुस्कुराते हुए कहा।
सोहराब ने उस की बाद को नजरअंदाज करते हुए पूछा, “कॉफी पीनी है।”
“आप का मेहमान हूं। यह फर्ज तो आपका बनता ही है... लेकिन ब्लैक नहीं।” सलीम ने जवाब दिया।
इंस्पेक्टर सोहराब ने बेल बजाई। एक चपरासी अंदर आ गया।
“एक ब्लैक कॉफी।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा, “साहब को आज उनकी पसंद की कॉफी पिलाओ।”
“एस्प्रेीसो मैक्की।आटो।” सार्जेंट सलीम ने कहा।
चपरासी के जाने के बाद सलीम ने सोहराब से पूछा, “फाइल छानने पर कुछ मिला आप को?”
“हां एक सालमन मिली है। डिनर में वही बनेगी आज।” सोहराब ने पूरी गंभीरता से कहा।
सालमन एक खास मछली का नाम है। यह समुंदर और नदी दोनों में पाई जाती है। काफी महंगी होती है। सालमन में ओमेगा 3 एसिड पाया जाता है। इसे दिल, त्वचा, दिमाग के लिए काफी बेहतर माना जाता है। इसके अलावा सालमन प्रोटीन का भी अच्छा सोर्स है। नॉन वेजिटेरियन के बीच यह बात मशहूर है कि सालमन मछली नहीं खाई तो कुछ भी नहीं खाया!
सोहराब की बात पर सलीम ने खीझते हुए कहा, “डॉ. वीरानी का शव कब तक लाशघर में रखा रहेगा?”
“जब तक मुजरिम पकड़ा नहीं जाता... या फिर जब तक उस की बीवी रायना उस लाश को डॉ. वीरानी की लाश मान नहीं लेती है।”
तभी चपरासी कॉफी ले आया और दोनों की बात रुक गई। चपरासी के जाने के बाद सलीम ने कहा, “मुझे तो लगता है रायना और अबीर ने मौका देख कर डॉ. वीरानी को रास्ते से हटा दिया है... ताकि दोनों शादी कर सकें।”
“हो सकता है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने गंभीरता से जवाब दिया।
“राजेश शरबतिया भी उसे मजबूर करने के लिए डॉ. वीरानी को रास्ते से हटा सकता है।” सलीम ने खदशा जाहिर किया।
“यह भी संभव है।” सोहराब ने कहा।
इसके बाद सलीम ने कुछ नहीं कहा। वह समझ गया कि सोहराब जब तक पुख्ता सबूत न जुटा ले, वह कुछ नहीं बोलेगा। सोहराब ने कॉफी खत्म की और कुर्सी से उठते हुए कहा, “आओ चलें।”
“कहां?” सलीम ने पूछा।
“लाशघर।” सोहराब ने जवाब दिया।
“हम कब तक लाश के चक्कर लगाते रहेंगे आखिर?” सलीम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।
“जब तक हम खुद लाश में तब्दील नहीं हो जाते।” सोहराब ने कहा। इसके बाद वह ऑफिस से बाहर आ गया।
दोनों पार्किंग लॉट तक गए। सोहराब ने घोस्ट का गेट खोला और स्टेयरिंग सीट संभाल ली। सलीम दूसरी तरफ का दरवाजा खोल कर सोहराब के बगल वाली सीट पर बैठ गया। इस के बाद कार आगे बढ़ गई। कार खुफिया महकमे से निकल कर जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी। ब्लैक कलर की एक कार उस के पीछे लग गई। सोहराब ने कुछ दूर जाते ही यह बात भांप ली थी। इस के बावजूद वह बेपरवाह बना रहा। न तो उसने घोस्ट की स्पीड बढ़ाई और न ही उसे डाच देने की कोशिश ही की।
कुछ दूर जाने के बाद पीछे वाली कार ने अपनी स्पीड बढ़ा दी। इसके बावजूद सोहराब ने घोस्ट की रफ्तार वही रखी। हालांकि उस के लिए यह बहुत आसान था। घोस्ट तीन सेकेंड में सौ की रफ्तार पार कर सकती थी। इसके बावजूद सोहराब ने अपनी कार की स्पीड नहीं बढ़ाई।
टू लेन की यह रोड वनवे थी। पीछे वाली कार ने घोस्ट को बहुत तेजी से ओवर टेक किया और फिर कुछ आगे जाने के बाद उसकी स्पीड काफी कम हो गई। कार अब सड़क पर जिगजैग स्टाइल में चल रही थी। कभी दाहिनी तरफ बढ़ती और कभी बाईं तरफ। सोहराब को मकसद समझ में आ गया। कार में सवार लोग किसी भी तरह उस का वक्त खराब करना चाहते थे।
कुछ आगे जाने के बाद सर्विस लेन शुरू हो गया। सोहराब ने घोस्ट को सर्विस लेन पर उतारने के साथ ही एक्सीलेटर पर पैरों का दबाव बढ़ा दिया। नतीजे में कार की स्पीड चौथे सेकेंड में 120 किलोमीटर तक पहुंच गई। पीछा करने वाली कार काफी दूर रह गई थी। सोहराब अगला चौराहा रेड लाइट होने से ठीक पहले क्रास कर गया। कार को टर्न करने के बाद उसने फिर से स्पीड बढ़ा दी। वह जल्दी से जल्दी सदर अस्पताल पहुंचना चाहता था।
कुछ देर बाद उसकी कार सदर अस्पताल के कंपाउंड में दाखिल हो रही थी। उसने घोस्ट को पार्किंग लाट में पार्क किया और उतर कर तेजी से लाश घर की तरफ चल दिया। वह नुक्कड़ पर एक स्ट्रेचर से टकराते-टकराते बचा। कुछ दूर जाने के बाद ही सोहराब पलट कर स्ट्रेचर की तरफ देखने लगा। स्ट्रेचर को एक नर्स और एक वार्ड ब्वाय बहुत तेजी से लिए जा रहे थे। सोहराब ने उन्हें पुकारते हुए कहा, “रुको!”
इसके बावजूद वह नहीं रुके। उनकी रफ्तार और तेज हो गई थी। स्ट्रेचर को लेवकर वह लिफ्ट में चले गए। जब तक सोहराब और सलीम वहां पहुंचते वह लोग लिफ्ट में सवार हो चुके थे और लिफ्ट का गेट बंद हो चुका था। सोहराब ने लिफ्ट का गेट खोलने के लिए दीवार पर लगे बटन को कई बार दबाया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। ताज्जुब की बात यह थी कि लिफ्ट ऊपर की तरफ जा रही थी।
“तुम यहीं रुको। मैं ऊपर जाता हूं। लिफ्ट को वापसी में इस फ्लोर पर रोकने के लिए बटन दबाते रहना।” सोहराब ने कहा और तेजी से सीढ़ियों की तरफ भागा। जब वह इस फ्लोर के ऊपर वाली मंजिल पर पहुंचा तो लिफ्ट वहां भी नहीं रुकी थी। वह ऊपर की तरफ ही जा रही थी। सोहराब आश्चर्य से भरा हुआ ऊपर की सीढ़ियों की तरफ लपका। इसी तरह से दो फ्लोर और पार हो गए।
लाश को चुरा कर भागने वाले लोग कौन थे?
क्या वह लाश डॉ. वरुण वीरानी की थी?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...