मौत का खेल - भाग-19 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-19

लाश की वापसी


शरबतिया हाउस में लाश वैसे ही रखी हुई थी और रायना शव को लेने के लिए तैयार नहीं थी। कोतवाली इंचार्ज मनीष ने रायना को समझाते हुए कहा, “मैडम यह लाश डॉ. वीरानी साहब की ही है। हम ने तस्दीक कर ली है।”

“इंस्पेक्टर तुम मुझे मत समझाओ। मैं बिना सबूत के कैसे मान लूं कि यह डॉ. वीरानी की ही लाश है। मैंने उनके साथ कई साल बिताए हैं। तुम मुझे मत बताओ कि यह वही हैं।” रायना ने खुश्क लहजे में कहा।

“मैडम डॉ. वीरानी के कान की तरह ही लाश का एक कान कटा हुआ है।” कोतवाली इंचार्ज मनीष को अचानक याद आया।

“इस शहर में जाने कितने कनकटे होंगे। क्या वह सब मेरे पति हैं!” रायना ने गुस्से से कहा।

रायना की बात सुन कर मनीष खामोश हो गया। उसके पास यह साबित करने के लिए और कोई सबूत नहीं था कि यह लाश डॉ. वरुण वीरानी की ही है। राजेश शरबतिया भी असमंजस में खड़ा कभी लाश को देख रहा था तो कभी इंस्पेक्टर मनीष को और फिर रायना की तरफ कनखियों से देख लेता था। उस की हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ बोलने की।

“ख्वाहमख्वाह के लिए मेरा इतना वक्त बर्बाद कराया।” रायना ने बड़बड़ाते हुए कहा।

उसकी बात का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर बाद मनीष ने मजदूरों से लाश उठाने के लिए कहा और उसे एंबुलेंस में रख दिया गया। इसके बाद मनीष एंबुलेंस सहित रवाना हो गया। जीप के आगे बढ़ते ही मनीष ने इंस्पेक्टर सोहराब को फोन मिलाया, लेकिन उसका फोन नॉट रीचेबल बता रहा था। दरअसल इंस्पेक्टर सोहराब अपना फोन सलीम के पास ही छोड़ आया था। जाने से पहले उसने फोन को फ्लाइट मोड पर कर दिया था।

मनीष काफी भन्नाया हुआ था। एक तो सर्दी की रात में इतना लंबा सफर उसके बाद उसे मनचाहा सम्मान भी नहीं मिला था। अब बैरंग वापसी हो रही थी। सड़क दूर-दूर तक खाली थी। कभी-कभार कोई गाड़ी उधर से गुजर जाती थी। शरबतिया हाउस से निकलने के बाद ठीक पांचवे माइल स्टोन पर इंस्पेक्टर सोहराब एंबुलेंस से उतर गया। उतरने के बाद उसने सार्जेंट सलीम को फोन मिलाया और उस से पांचवे माइल स्टोन पर पहुंचने के लिए कहा। इसके बाद उसने जेब से बीड़ी निकाली और उसे सुलगा कर टहलने लगा।

लाश के कपड़े बदलने वाली बात उसके लिए काफी अहम थी। उसने लाश घर में सिर्फ चेहरा देखा था। वह कपड़े नहीं देख सका था। वह जिस राह पर सोच रहा था, वह सब सही साबित हुआ था। शातिर अपराधी लाश को किसी भी तरह ठिकाने लगाना चाहता था। उसने न सिर्फ लाश का चेहरा तेजाब डाल कर बिगाड़ दिया था, बल्कि शिनाख्त छिपाने के लिए कपड़े तक बदल दिए थे।

कत्ल के किसी भी मामले में लाश सबसे अहम होती है। यही वजह है कि अकसर अपराधी लाश को गायब करने की कोशिश करते हैं। इस मामले में भी मुजरिम ने यही किया था। सोहराब को यह बात खूब समझ में आ रही थी। अगर लाश गायब हो जाती तो यह केस खासा उलझ जाता। वैसे भी अभी तक कोई अहम सुराग हाथ नहीं आया था। सोहराब के लिए यह केस शतरंज के खेल की तरह हो गया था। जहां लगातार चालें चली जा रही थीं। बस फर्क इतना था कि शतरंज के खेल में खिलाड़ी सामने होता है। इस खेल में खिलाड़ी सामने से खिलाड़ी गायब था।

कछ देर बाद ही सार्जेंट सलीम कार ले कर आ गया। सोहराब आगे की सीट पर बैठ गया और घोस्ट तेजी से आगे बढ़ गई। कार के स्पीड पकड़ते ही सलीम ने पूछा, “बहुत टाइम लग गया। क्या नतीजा निकला?”

“रायना ने लाश लेने से मना कर दिया है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने बताया।

“ऐसा क्यों?” सार्जेंट सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“उसका कहना है कि यह लाश डॉ. वरुण वीरानी की नहीं है।” सोहराब ने बताया।

“उसकी बात में दम तो है। एक बिगड़े हुए चेहरे की लाश को कौन बिना सबूत के स्वीकार कर लेगा!” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“बरखुर्दार! मुझे मालूम था कि वह लाश स्वीकार नहीं करेगी।” इंस्पेक्टर सोहराब ने गंभीरता से कहा।

“इसके बावजूद आप इतनी सर्द रात में तफरीह के लिए निकल पड़े!” सार्जेंट सलीम ने चिढ़ते हुए कहा, “घर में आराम से बैठा चिकन सूप पी रहा होता इस वक्त।”

“सलीम साहब! रायना बच्ची नहीं है। वह बहुत चालाक लेडी है। वह लाश को स्वीकार करके अपने लिए किसी भी कीमत पर मुसीबत खड़ी नहीं करना चाहेगी। जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि डॉ. वीरानी मर चुके हैं, वह लापता ही माने जाएंगे और रायना आजाद रहेगी।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“आजाद तो वह डॉ. वीरानी की लाश स्वीकार करने के बाद भी रहने वाली थी। जब तक कि उस पर कत्ल का जुर्म आयद न हो जाए!” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“नहीं... ऐसा नहीं है। लाश को स्वीकार करते ही कानूनी रूप से यह तय हो जाना है कि डॉ. वीरानी कत्ल किए जा चुके हैं। इसके बाद रायना पूरे शहर की निगाहों में आ जाएगी। इस से उसकी ऐशपरस्ती में खलल पैदा होगा। जिस तरह से अबीर के साथ उसका इश्क चल रहा है और वह आजाद इठलाती घूमती है। लोगों का शक सबसे पहले उसी पर जाएगा कि दोनों ने मिल कर डॉ. वीरानी को रास्ते से हटा दिया है ताकि शादी कर सकें।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“लाश का क्या होगा अब?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“जस्ट वेट!” सोहराब ने कहा और डैशबोर्ड से मोबाइल उठा लिया। उसने फ्लाइट मोड हटाया और फिर कोतवाली इंचार्ज मनीष को फोन मिला दिया। उधर से फोन पिक होते ही सोहराब ने कहा, “क्या रहा मनीष साहब!”

“सर, उसने लाश लेने से मना कर दिया।” मनीष ने उधर से जवाब दिया।

“कोई बात नहीं... शव को सदर अस्पताल के लाशघर में रखवा दीजिए। पहले की तरह लाशघर पर पहरा जारी रहेगा। किसी भी कीमत पर लाश गायब नहीं होनी चाहिए। अपराधी एक बार फिर लाश को गायब करने की कोशिश करेगा।” सोहराब ने कहा और फोन काट दिया।

“लाश इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो गई है? लावारिस के तहत उसका अंतिम संस्कार करवा दीजिए।” सार्जेंट सलीम ने तजवीज पेश की।

“यह लाश सौ फीसदी डॉ. वरुण वीरानी की ही है... और जब तक लाश रहेगी मुजरिम की बेचैनी का सबब रहेगी। वह उसे ठिकाने लगाने की फिर से कोशिश करेगा। यह कोशिश ही उसे हमारी नजरों में ले आएगी।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा। कुछ देर खामोश रहने के बाद उसने गमगीन लहजे में कहा, “एक बात का अफसोस है। एक शरीफ इंसान की लाश यहां से वहां मारी-मारी फिर रही है। सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हर इनसान का आखिरी हक है।”

“हम कुछ मिस कर रहे हैं?” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“क्या?”

“उस औरत को जो लाशघर में मिली थी।”

“बरखुर्दार! मेरे जेहन में है वह, लेकिन रायना तक लाश पहुंचाना ज्यादा जरूरी था।”

“क्या हम उस पार्टी में शामिल हर शख्स से पूछताछ नहीं कर सकते हैं?”

“किस आधार पर करेंगे... और क्या पूछेंगे।” सोहराब ने कहा, “कोई सबूत हो... शक की कोई बुनियाद हो तब न। हम 70 आदमियों से पूछते फिरेंगे कि जब कत्ल हुआ था तो वह कहां छुपे थे। मान लीजिए उसने बता दिया कि वह वाशरूम में छुपा था। अब हम इसे कैसे साबित करेंगे कि वह वाशरूम में नहीं छुपा था।”

कुछ देर की खामोशी के बाद सोहराब ने कहा, “पार्टी में तकरीबन 70 लोग थे। सभी की निगरानी और जांच मुमकिन नहीं है। इसमें खासा वक्त लग जाएगा। मजरिम को जितना ज्यादा वक्त मिलता है... वह खुद को उतना ही सेफ करता जाता है, लेकिन हां.... संदिग्ध लोगों की जांच जरूर की जाएगी। लाश के तौर पर हमने पहली मंजिल पा ली है। मुजरिम भी जल्द ही हमारी गिरफ्त में होगा।”

“शरबतिया हाउस में सीसीटीवी तो होगा!” सलीम ने कहा।

“बरखुर्दार! यह मिडिल क्लास फैमिली की पार्टी नहीं थी। जहां हर बात पर फोटो और सेल्फी खींची जाती है। अरबपतियों की ऐसी पार्टियों में वीडियो तो जाने दो कोई फोटो तक नहीं खींचता है। इनके लिए प्रिवेसी सबसे अहम मुद्दा होती है। यह आपस में बेबाक होते हैं... लेकिन दुनिया वालों के सामने आइडियल ही बने रहना चाहते हैं।”

“एक बात समझ में नहीं आई?” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“क्या?” सोहराब ने सिगार सुलगाते हुए पूछा।

“आप सिर्फ कटे कान के आधार पर तो इतने आत्मविश्वास से नहीं कह सकते हैं कि यह लाश डॉ. वीरानी की ही है! इस विश्वास की वजह क्या है?”

“वक्त आने पर बता दूंगा।” सोहराब ने कहा।

प्यार और पैसा


कोतवाली इंचार्ज मनीष के जाने के बाद रायना ने राजेश शरबतिया की कमर में चुटकी काटते हुए कहा, “तुम भी न डार्लिंग... न दिन देखो और न रात.... शरबतिया हाउस में मुझे बुलाने के बहाने ढूंढते रहते हो।”

“तुम इतना हंगामा कर चुकी हो लाश के लिए... इसलिए मैं अकेला कोई फैसला नहीं लेना चाहता हूं।” राजेश शरबतिया ने शिकायती लहजे में कहा।

दोनों लॉन में आ गए थे और अब साथ-साथ टहल रहे थे।

“अभी तक उसी गम में डूबे हुए हो।” रायना ने कहा, “डार्लिंग... मैं सबको सेफ करना चाहती हूं। वीरानी गया तो गया... लेकिन अब उसके चक्कर में मैं अपनी जिंदगी जहन्नुम तो नहीं बना सकती न। वैसे भी उस बूढ़े ने मुझे कोई सुख नहीं दिया था। वह एक अच्छा प्रेमी जरूर था... लेकिन एक अच्छा पति नहीं था।” रायना ने आंख मारते हुए कहा।

“मैं तो कब से तुम से कह रहा हूं कि मेरी जिंदगी में आ जाओ... लेकिन तुमने मेरी बात मानी ही नहीं।” राजेश शरबतिया ने उसका हाथ थामते हुए कहा।

“मैं बेवकूफ नहीं हूं शरबतिया… जो एक बूढ़े को छोड़ कर दूसरे अधेड़ का हाथ थाम लूं! अभी मेरी उम्र ही क्या है! वैसे भी तुम सारे पैसे वाले बूढ़े अंदर से खूसट होते हो। पैसे के अलावा तुम्हारे पास कुछ नहीं होता है... और एक जवान लड़की को पैसे के अलावा भी कुछ चाहिए होता है।” रायना ने हंसते हुए कहा।

“मैं तुम्हें बूढ़ा लगता हूं!” शरबतिया ने रायना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

“एक दो रातों के लिए तो तुम ठीक हो... लेकिन उम्र भर के लिए नहीं।” रायना ने हंसते हुए कहा।

“बहुत कमीनी हो।” शरबतिया ने रुक कर ठहाका लगाते हुए कहा।

“तुम धन पशुओं को ऐसा क्यों लगता है कि सब कुछ खरीदा जा सकता है!” रायना ने चुभते हुए लहजे में कहा।

“अफकोर्स!” शरबतिया ने कहा। उसके बाद उसने रायना के गालों को छूते हुए कहा, “लेकिन पूरी दुनिया में तुम सिर्फ एक ही ब्रांड हो। ब्रांड अपनी कीमत बताए... उससे दो गुनी कीमत दूंगा।”

“तुम धन पुशओं को लिए लड़कियां प्रोडक्ट ही होती हैं। इसीलिए मुझे तुम्हारा प्यार तो कुबूल है... लेकिन रखैल बनकर रहना नहीं।” रायना ने बेबाकी से कहा, “बहुत मुश्किल से वीरानी से पिंड छूटा है अब किसी बूढ़े के पल्ले नहीं बंधना।”

अभी रायना ने बात पूरी ही की थी कि उसे कदमों की आहट सुनाई दी और वह पलट पड़ी। शरबतिया भी उधर ही देखने लगा।

*** * ***


क्या सोहराब के हाथ कोई सुराग लग सका?
डॉ. वीरानी की लाश का क्या हुआ?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...