मौत का खेल - भाग-18 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग-18

क्रिमनल साइकोलॉजी


घोस्ट बहुत तेजी से भागी चली जा रही थी। शहर काफी पीछे छूट गया था। सड़क पर इस वक्त ज्यादा गाड़ियां नहीं थीं। वन वे होने की वजह से घोस्ट की रफ्तार 130 किलोमीटर प्रति घंटा के आसपास थी। यहां रोड लाइट नहीं थी। इस की वजह से जहां तक घोस्ट की हेडलाइट्स जा पा रही थी। उतना ही हिस्सा नजर आ रहा था। बाकी दूर दूर तक अंधेरे का राज था। सड़क पर टायरों की रगड़ से अजीब सी आवाज हो रही थी। ऐसा लगता था जैसे बहुत सारी बदरूहें कहकहा लगा रही हैं।

सलीम अभी तक सोहराब की बात में ही उलझा हुआ था। कुछ देर बाद उसने पूछा, “आप इतना कन्फर्म हो कर कह रहे हैं कि लाशघर वाला शव डॉ. वीरानी का ही है। इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास उनकी पुरानी डीएनए रिपोर्ट पहले से मौजूद है।”

उसकी इस बात का सोहराब ने कोई जवाब नहीं दिया। वह सोच में डूबा हुआ था। उसके जवाब न देने पर सलीम ने दोबारा नहीं पूछा। हालांकि सलीम की उलझन बढ़ती जा रही थी। कई सारे सवाल उसके मन में उभर रहे थे।

कुछ देर की खामोशी के बाद सार्जेंट सलीम ने पूछ ही लिया, “रायना को लाशघर बुला कर डॉ. वीरानी का शव वहीं उनके सुपुर्द कर देना चाहिए था। आखिर उसने उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी तो दर्ज कराई है। फिर आखिर लाश को शरबतिया हाउस मंगाने की क्या जरूरत थी?”

“मैं देखना चाहता हूं कि लाश देखने के बाद राजेश शरबतिया और रायना के चेहरे पर क्या भाव आते हैं। लाशघर में शरबतिया को नहीं बुलाया जा सकता है। वह वहां आने से इनकार भी कर सकता है।” कुमार सोहराब ने समझाते हुए बताया।

“तो क्या राजेश शरबतिया भी संदिग्धों में शामिल है?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“बेकार का सवाल है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा और जेब से सिगार निकाल कर उसे जलाने लगा।

“एक सवाल और कुलबुला रहा है। पूछ लूं।” सलीम ने मुस्कुराते हुए कहा।

“सारे सवाल आज ही पूछ लेना। कल मोची बुलवा कर तुम्हारा मुंह सिलवा दूंगा!” सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा।

“आपको इस बात का अंदाजा क्योंकर हुआ कि डॉ. वीरानी का शव लाशघर में हो सकता है या श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया गया है?”

“एक मुहावरा सुना होगा। बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा। अपराधी आम तौर पर रिस्क लेने से बचते हैं इसलिए वह अपराध की वस्तु छुपाने के लिए सबसे सेफ जगह चुनते हैं। इससे वह अपने अपराध की निगरानी भी करते रहते हैं, ताकि पुलिस की कारगर्दगी पता चलती रहे और वह अपने बचाव का इंतजाम कर लें।” सोहराब ने कहा।

“मैं अब भी नहीं समझा।” सलीम ने ढिठाई से कहा।

“गाड़ी चोर अकसर गाड़ियों को चुरा कर स्टैंड पर खड़ी कर देते हैं। ताकि चोरी की गाड़ी दूर ले जाने के रिस्क से बच जाएं और गाड़ी की निगरानी भी कर सकें। यह क्रिमनल साइकोलॉजी होती है। इस बात को ध्यान रखते हुए मैंने एक तीर मारा और वह निशाने पर भी लग गया।” इंस्पेक्टर सोहराब ने समझाते हुए कहा।

“गेटअप चेंज करने के पीछे क्या प्लान है?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“दिमाग का इस्तेमाल किया करो.... ताकि बेवजह मेरा दिमाग न खा सको!” इंस्पेक्टर सोहराब ने खीझते हुए कहा, “तुम्हें पहले ही बता चुका हूं कि मैं उस रात पार्टी में शामिल था। शरबतिया ने मेरा परिचय भले ही किसी से न कराया हो, लेकिन पार्टी में तो मुझे रायना ने भी देखा ही होगा वह तुरंत मुझे पहचान लेगी।”

“मैं वहां किस हैसियत से जाऊंगा? क्या शरबतिया के सामने आप अपने को प्रकट करेंगे?” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“तुम बाहर मेरा इंतजार करोगे। मैं लाश उठाने वाले के रूप में वहां जाऊंगा।” सोहराब ने सिगार के धुंए का गुबार छोड़ते हुए कहा। उसने सलीम के दूसरे सवाल को नजरअंदाज कर दिया था।

“एक आखिरी सवाल?” सार्जेंट सलीम ने कहा, “आप ने राजेश शरबतिया को फार्म हाउस पहुंचने के लिए कहा है। वह आप के न आने पर पूछेगा नहीं!” सार्जेट सलीम ने पूछा।

“क्यों बेतुक के सवाल पूछने बैठ गए हो।” इंस्पेक्टर सोहराब ने बिगड़ते हुए कहा, “जब लाश पहुंच जाएगी तो वह खुद ही समझ जाएगा। वैसे भी उसने मुझ से गोपनीय तौर पर मदद मांगी है। वह मेरा जिक्र रायना से नहीं करेगा।”

“एक और सवाल...!” सार्जेंट सलीम ने कहा।

सोहराब ने उसकी बात काटते हुए कहा, “वह आखिरी सवाल था। अब आप ड्राइविंग पर ध्यान दीजिए।”

इसके बाद दोनों ने ही खामोशी इख्तियार कर ली और सलीम ने कार की रफ्तार और बढ़ा दी।


फोन


इंस्पेक्टर कुमार सोहराब से बात होने के बाद राजेश शरबतिया ऑफिस से तुरंत ही निकल पड़ा था। उसने बेचैनी में कुछ देर बाद ही रायना को फोन मिला दिया था। इस वक्त रायना होटल सिनैरियो में अबीर के साथ ही थी। कई बार फोन मिलाने के बाद ही उसने फोन रिसीव किया। फोन रिसीव होते ही राजेश शरबतिया ने कहा, “रायना शरबतिया हाउस आ जाओ... बहुत जरूरी बात करनी है।”

“मैं बिजी हूं... फोन पर ही कर लो न।” रायना ने उधर से जवाब दिया।

“फोन पर करने की होती तो बुलाता ही क्यों?” शरबतिया ने कहा।

“यार समझा करो। रात हो गई है। इतनी दूर आना और फिर लौटना। मजाक है क्या।” रायना ने कहा।

“तुम शरबतिया हाउस में ही रुक जाना न।” शरबतिया ने कहा।

“रात में तुम तो वाइफ के साथ होगे। मुझे अकेले नींद नहीं आती है।” रायना ने बेबाकी के साथ कहा।

“अबीर के साथ हो!” शरबतिया ने भी पूछ ही लिया।

“तुम से मतलब।” रायना ने कहा।

“अच्छा सुनो... डॉ. वीरानी के बारे में कुछ अहम बात है। इसलिए तुम्हें यहां बुला रहा हूं।” शरबतिया ने कहा।

“ओके! वेट करो मैं आती हूं।” रायना ने कहा और फोन काट दिया।

शरबतिया ने ड्राइवर से गाड़ी को तेज चलाने के लिए कहा। जिस वक्त राजेश शरबतिया के पास इंस्पेक्टर सोहराब का फोन आया था। वह एक मीटिंग में था। यही वजह थी कि वह सोहराब से कुछ पूछ नहीं सका था। सिर्फ उसकी बात सुन कर रह गया था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर सोहराब ने उसे और रायना को क्यों बुलाया है? जैसे जैसे शरबतिया हाउस की तरफ उसकी कार बढ़ रही थी। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

कुछ देर बाद उसकी कार शरबतिया हाउस पहुंच गई।


लाश की शिनाख़्त


कुछ देर बाद घोस्ट शरबतिया हाउस के करीब पहुंच गई। इंस्पेक्टर सोहराब ने कार कुछ पहले ही रुकवा ली। सार्जेंट सलीम ने कार को सड़क से उतार कर सर्विस लेन में ले जाकर किनारे खड़ा कर दिया। उसने हेड लाइट्स बुझा दीं। कार के अंदर भी रोशनी नहीं थी। यह जगह शरबतिया हाउस से कुछ दूरी पर ही थी। यहां से शरबतिया हाउस का गेट साफ नजर आ रहा था।

इंस्पेक्टर सोहराब ने फोन निकाल कर कोतवाली इंचार्ज मनीष के नंबर डायल किए। उधर से फोन रिसीव होते ही सोहराब ने कहा, “कितनी दूर हो अभी शरबतिया हाउस से।”

“तकरीबन सात किलोमीटर दूर हूं।” मनीष ने कहा।

“शरबतिया हाउस से ठीक पहले वाले माइल स्टोन पर एक मजदूर सड़क के किनारे खड़ा मिलेगा। उसे लाश वाली एंबुलेंस में बैठा लेना।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा और फोन काट दिया।

सोहराब ने अपना फोन सलीम के हवाले कर दिया और एक टूटा फूटा फीचर फोन कार की डैश बोर्ड से निकाल कर जेब में डाल दिया। इस काम से फारिग होने के बाद उसने सलीम से कहा, “मैं शरबतिया हाउस से पांच किलोमीटर जाने के बाद एंबुलेंस से उतर जाऊंगा। तुम्हें फोन करूंगा तुम वहीं आ जाना।”

सोहराब घोस्ट से उतर कर वापस पीछे की तरफ चल दिया। माइल स्टोन आ जाने पर सोहराब सड़क के किनारे खड़ा हो गया। यहां बिल्कुल अंधेरा था। उसने जेब से बीड़ी निकाली और उसे माचिस से सुलगा कर पीने लगा।

वह अजीब से गेटअप में था। पैरों में हवाई चप्पल थी। उसने एक ढीली पतलून और मैली सी कमीज पहन रखी थी। सर पर अंगौछे की रफ सी पगड़ी बांध रखी थी।

कुछ देर बाद उसे दूर से रोशनी आती दिखाई दी। मजदूर बना सोहराब थोड़ा सड़क पर सरक आया। उस पर नजर पड़ते ही कोतवाली इंचार्ज मनीष ने जीप रोक दी। इस के साथ ही पीछे आ रही एंबुलेंस भी रुक गई। मनीष ने मजदूर बने सोहराब से कहा, “तुम पीछे वाली गाड़ी में बैठ जाओ।”

सोहराब एंबुलेंस में बैठ गया और वह चल पड़ी। कुछ देर बाद मनीष की जीप शरबतिया हाउस की तरफ मुड़ गई। गेट बंद होने की वजह से मनीष जीप से नीचे उतर आया। उसने गार्ड से गेट खोलने के लिए कहा। गार्ड ने इस बारे में फोन करके अंदर से इजाजत ली। उसके बाद उसने गेट खोल दिया। पहले मनीष की जीप और उसके बाद एंबुलेंस अंदर पहुंच गई। दोनों गाड़िया पार्किंग लॉट पर खड़ी हो गईं। मनीष और उसके साथ आए कांस्टेबल जीप से उतर पड़े। पूरा फार्म हाउस दूधिया रोशनी से जगमगा रहा था। जब से लाश गायब होने वाला मामला सामने आया था, शरबतिया ने रोशनी बढ़ा दी थी।

मनीष ने एंबुलेंस खुलवाई और मजदूरों ने लाश के स्ट्रेचर को बर्फ के बीच से उठा कर नीचे रख दिया। उसके बाद चार लोग स्ट्रेचर ले कर मनीष के पीछे-पीछे चल दिए। इनमें सोहराब भी शामिल था। मनीष के साथ चार लोग आए थे। बाकी बचा एक व्यक्ति लाश के साथ साथ चल रहा था। लाश को कोठी के सामने एक खुले स्थान पर रख दिया गया। लाश से बदबू आने लगी थी।

मनीष ने कोठी पर पहुंच कर सदर दरवाजे की बेल बजा दी। एक नौकर ने आ कर दरवाजा खोला। मनीष ने अपना विजिटिंग कार्ड अंदर भेज दिया। कुछ देर बाद मनीष को अंदर बुला लिया गया। इंस्पेक्टर सोहराब भी मनीष के पीछे पीछे तेजी से अंदर घुस गया। अंदर रायना और शरबतिया बैठे हुए थे। मनीष ने रायना को पहचान लिया था। वह अपने वकील के साथ डॉ. वीरानी के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज कराने आ चुकी थी।

मनीष कुछ दूरी बना कर खड़ा हो गया। सोहराब मनीश से आधे फुट की दूरी पर खड़ा था। वह बहुत ध्यान से राजेश शरबतिया और रायना को देख रहा था।

मनीष को देख कर राजेश शरबतिया ने पूछा, “यस इंस्पेक्टर! कैसे आना हुआ?”

“हम डॉ. वीरानी की लाश लेकर आए हैं।” कोतवाली इंचार्ज मनीष ने सपाट लहजे में कहा।

यह बात सुनने के बाद दोनों को जैसे करंट लगा हो। दोनों के चेहरे पर एक रंग आ कर चला गया। दोनों ने एक दूसरे की तरफ भी देखा था। कुछ देर बाद शरबतिया ने कहा, “कहां है लाश?”

“बाहर रखी है।” मनीष ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

उसे बैठने के लिए नहीं कहा गया था, इसलिए उसका मूड थोड़ा उखड़ा हुआ था। राजेश शरबतिया के लिए इंस्पेक्टर का ओहदा कोई मायने नहीं रखता था।, जबकि बड़े-बड़े पॉलीटिशियन उसकी जेब में रखे थे।

“कहां मिली लाश आपको?” इस बार सवाल रायना ने पूछा था।

“जंगल में।” मनीष ने खुश्क लहजे में कहा, “आप लोग लाश सुपुर्दगी में ले लीजिए ताकि हम लोग रवाना हो सकें।”

शरबतिया और रायना उठ कर खड़े हो गए और मनीष और सोहराब के पीछे-पीछे बाहर आ गए। मनीष उन्हें लाश के करीब ले कर आ गया। उसने जेब से एक कागज निकाल कर एक जगह उंगली रखते हुए कहा, “मैडम आप यहां पर दस्तखत कर दीजिए और सर आप.. गवाह के तौर पर उसके नीचे।”

“पहले मैं लाश तो देख लूं।” रायना ने कहा।

“मैडम लाश बहुत खराब हो गई है।” मनीष ने बताया।

“फिर भी मैं बिना शिनाख्त के लाश नहीं लूंगी।” रायना ने कहा।

मनीष ने मजदूरों से इशारा किया और उन्होंने लाश पर से कपड़ा हटा दिया। लाश देखते ही रायना कई कदम पीछे हट गई। उसने मुंह पर रुमाल भी रख लिया था। उसने मनीष से कहा, “यह डॉ. वीरानी की लाश नहीं है। मैं कैसे मान लूं कि यह वही हैं। इसका चेहरा बिगड़ा हुआ है जो कपड़े लाश पर हैं। वह भी डॉ. वीरानी के नहीं हैं।”

कपड़े वाली बात सुन कर सोहराब चौंक पड़ा।


*** * ***


क्या रायना ने लाश स्वीकार की?
लाश के कपड़े का क्या राज था?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...