यह एक विदेशी ओपेन कार थी। इसे एक मिस्री लड़की ड्राइव कर रही थी। उसका नाम शीना था। शक्लो सूरत में बहुत खूबसूरत थी। लंबे कद की और बहुत गोरी-चिट्टी। स्किन का कलर दूध सा सफेद था। यह मेजर विश्वजीत की खास ड्राइवर थी। इस लड़की को उसके एक दोस्त ने तोहफे में दिया था। यह बात अजीब थी कि किसी लड़की को तोहफे में दिया जाए, लेकिन बिजनेस वर्ल्ड में यह सब बहुत आम है। जैसे वाइफ स्वैपिंग। शीना भी बहुत खुशी-खुशी मेजर विश्वजीत के साथ रह रही थी। मेजर विश्वजीत उसका खास ख्याल रखता था। इसके अलावा एक मोटी रकम हर महीने सैलरी में देता था। यह रकम तोहफों के अलवा थी। कई बार मेजर के तोहफे शीना की साल भर की सैलरी से भी ज्यादा होते थे।
शीना के बगल में एक लेडी कमांडो बैठी हुई थी। वह देसी थी, लेकिन विश्वजीत ने उसकी ट्रेनिंग इजराइल में करवाई थी। इस कमांडो की खूबियां निराली थीं। यह सूरज जितनी तेज रोशनी आंखों पर पड़ने पर भी टार्गेट पर सटीक निशाना लगा सकती थी। इसी तरह घुप अंधेरे में भी इसे टार्गेट को शूट करने में कोई दिक्कत नहीं थी। आवाज सुन कर टार्गेट पर गोली चला देना उसके बांए हाथ का खेल था। इसके अलावा वह पांच दिन बिना सोए रह सकती थी। 15 दिन बिना खाए भी वह हेल्दी रह सकती थी। मेजर जब भी घर से बाहर होता था, वह साये की तरह उसके साथ होती थी।
पीछे की सीट पर मेजर विश्वजीत और रायना बैठे हुए थे। रायना ने गुलाबी रंगत का टॉप और ब्लैक कलर की शार्ट स्कर्ट पहन रखी थी। उसने गले में गुलाबी हीरे वाला पेंडेंट और कानों में इसी रंग के हीरे के टप्स पहन हुए थे। दाहिने हाथ की उंगली में गुलाबी हीरे की अंगूठी थी।
गुलाबी रंगत वाले हीरे बहुत महंगे और दुर्लभ होते हैं। दुनिया के सबसे कीमती गुलाबी हीरे ऑस्ट्रेलिया की अर्जेल खदान में पाए जाते हैं। यहां से अब गुलाबी हीरे मिलना बंद हो गए हैं। इसलिए इन हीरों की कीमत भी कई हजार गुना बढ़ गई है। गुलाबी हीरों वाला यह तोहफा आज ही मेजर विश्वजीत ने रायना को दिया था।
इन कपड़ों और हीरों की वजह से रायना कहर ढा रही थी। उसकी स्किन का रंग गुलाबी था। ऐसा लगता था जैसे दूध में हल्का सा गुलाबी रंग मिला दिया गया हो। अपनी जीरो साइज फिगर और रंगत की वजह से वह बॉर्बी डॉल लगती थी। अगर वह पलकें न झपकाए और हिले डुले न तो देखने वाला उसे बॉर्बी डॉल ही समझेगा। यह गुलाबी हीरे उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे।
कार का रुख फंटूश रोड की तरफ था। यह पूरा इलाका बहुत खूबसूरत था। काफी ऊंचाई पर पेड़ थे। नीचे साहिल और फिर नदी। नदी के पाट बहुत चौड़े थे। यह नदी समुंदर होने का एहसास कराती थी। इसका पानी भी एक दम साफ था। कई सालों से बंद ‘फन टू सन क्लब’ हाल ही में फिर से शुरू हो गया था। फन टू सन क्लब इसी नदी के किनारे थे। इसे कभी अंग्रेजों ने कायम किया था। इस के बाद यह काफी साल बंद रहा। इस क्लब की मेंबरशिप बहुत मुश्किल से मिलती थी। यही वजह थी कि यहां सिर्फ बड़े बिजनेसमैन और आला अफसर ही आते थे।
आज मौसम साफ था। धूप निकली हुई थी। इसकी वजह से सर्दी भी कम थी। नदी के किनारे ढेर सारी स्विमिंग चेयर्स पड़ी हुई थीं। इस पर लेट कर क्लब मेंबर धूप सेंकते थे। यहां स्पा सेंटर भी था। मेजर विश्वजीत और रायना कुछ देर में वहां पहुंच गए। कार को शीना पार्किंग लॉट की तरफ लेकर चली गई।
एक कार उनका पीछा करते हुए यहां तक आई थी। पीछा करने वाली कार पर स्पेशल स्टिकर नहीं लगा हुआ था। इस वजह से उसे गेट पर ही रोक दिया गया था। वह कार वापस चली गई और फिर कुछ दूर आगे जा कर रास्ते में एक पेड़ के नीचे रुक गई।
विश्वजीत और रायना क्लब हाउस के अंदर चले गए। क्लब का मैनेजर मेजर विश्वजीत को देखते ही उठ कर खड़ा हो गया। उसने बड़ी खुशदिली से दोनों का स्वागत किया। इस के बाद वह उन्हें उनके स्पेशल रूम तक छोड़ कर बाहर आ गया। कमांडो रूम के गेट पर जम कर खड़ी हो गई।
घोस्ट तेजी से रोड पर भागी चली जा रही थी। सोहराब ने अपनी तरफ के बैक मिरर में पीछे की तरफ देखा। कोई भी कार पीछा नहीं कर रही थी। सार्जेंट सलीम ने सोहराब से पूछा, “कुछ सवाल मेरे जेहन को परेशान कर रहे हैं।”
“पूछो।” सोहराब ने कहा।
“आप को इस बात का अंदाजा कैसे हो गया था कि नर्स और वार्ड ब्वाय लाश ले जा रहे हैं?”
“बहुत साधारण सी बात है। जिस तेजी से वह दोनों स्ट्रेचर लेकर जा रहे थे। इतनी तेजी सिर्फ बीमार लोगों को ले जाते वक्त दिखाई जाती है। किसी लाश के लिए नहीं। दूसरी बात... लाश ले जाते वक्त परिवार का कोई सदस्य या पुलिस साथ में होती है। वहां ऐसा भी नहीं था। जिस तरह से सफेद कपड़ा ढका हुआ था। उससे यह पहले ही साफ था कि वह एक लाश है। मैंने उन्हें रुकने के लिए आवाज दी लेकिन वह रुके नहीं। इस आधार पर मेरा शक यकीन में बदल गया।”
“मान गए फादर सौरभ!” सार्जेंट सलीम ने कहा।
“एक अहम बात और... रास्ते में एक कार हमारा रास्ता रोक कर वक्त खराब कराने की कोशिश कर रही थी। उससे भी मैं खबरदार हो गया था कि कुछ अहम होने वाला है। हम चाहते तो कार रोक कर उनसे निपट सकते थे, लेकिन मैंने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया। वह लोग दरअसल मुझे उलझाना चाहते थे, ताकि मैं वक्त पर सदर अस्पताल न पहुंच सकूं और वह लाश गायब कर सकें।”
“लेकिन मुजरिम को इस बात का अंदाजा कैसे हुआ कि हम वहीं जा रहे हैं?”
“बरखुर्दार! जुर्म करने के बाद मुजरिम की आपकी हर गतिविधि पर नजर होती है। जब आप तफ्तीश करते हुए ऐसे ट्रैक पर बढ़ते हैं, जो आपको मुजरिम की तरफ ले जा रहा हो। ऐसे में मुजरिम हमेशा आपको भ्रमित करने या किसी न किसी तरह से उस ट्रैक से हटाने की कोशिश में लग जाता है। उसकी यही गलती ही उसे पकड़वाने में हमेशा मददगार होती है।”
“इसका मतलब है कि हम सही ट्रैक पर जा रहे हैं?” सार्जेंट सलीम ने जोशीले अंदाज में कहा।
“हो सकता है!” सोहराब ने जवाब दिया।
“इसका मतलब आप को अंदाजा हो गया है कि कातिल कौन है?”
उसकी इस बात का सोहराब ने कोई जवाब नहीं दिया।
कुछ देर बाद सार्जेंट सलीम ने कहा, “एक सवाल ने और उलझा रखा है?”
“आज सारे ही पूछ डालो।” सोहराब ने हंसते हुए कहा।
“जब मुजरिम को लाश गायब ही करना था तो उसे पहले ही डिस्ट्राय कर देता। उसे जंगल में फेंकने की जरूरत क्यों थी भला?”
“इस केस के बारे में तुम ने पहली बार कोई ढंग की बात पूछी है।” सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुजरिम और तफ्तीश करने वाले के बीच हमेशा आंख मिचौली का खेल चलता रहता है। बिल्कुल तू डाल डाल... मैं पात पात की तरह।”
सोहराब सिगार सुलगाने के लिए कुछ देर के लिए रुका फिर कहना शुरू किया, “मुजरिम ने लाश को शरबतिया हाउस से गायब तो कर दिया। फिर उसके लिए यह लाश मुसीबत बन गई होगी कि इसका करे क्या? फिर उसने सोचा होगा कि इसकी पहचान मिटा दी जाए तो बात बन जाएगी। उसने लाश के कपड़े बदल दिए और चेहरे पर तेजाब डाल कर लाश को जंगल में फेंक दिया।”
“काम तो वाकई चालाकी का था!” सलीम ने
“कहते हैं न... जो चुप रहेगी जुबाने खंजर... लहू पुकारेगा आस्तीं का। इसी तरह से लाश भी सामने आ ही गई। डीएनए से यह बात भी साफ हो गई कि यह लाश डॉ. वरुण वीरानी की ही है। हालांकि मैंने डीएनए की बात छुपा रखी है, ताकि मुजरिम भ्रम में रहे कि हम लाश को पहचान नहीं सके हैं, लेकिन वह हमसे भी दो कदम आगे है।”
“मैं समझा नहीं आपकी बात!” सार्जेंट सलीम ने कहा।
सोहराब ने समझाते हुए कहा, “मुजरिम को हमारी गतिविधियों से पता चल गया कि हम ने लाश को पहचान लिया है। इस तरह से मुजरिम ने एक बार फिर से खुद के लिए खतरा महसूस किया। वह फिर से लाश गायब करने की कोशिश में लग गया है। इस बार अगर लाश उसके हाथ लगी तो वह उसे किसी भी तरह से डिस्ट्राय करने की पूरी कोशिश करेगा। अगर हमारे हाथ से लाश गायब हो गई तो हमारे लिए डॉ. वीरानी के कत्ल की बात को साबित करना मुश्किल हो जाएगा। वह गुमशुदा ही माने जाएंगे... जब तक लाश या कोई अकाट्य सुबूत न मिल जाए। रायना ने उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट पहले ही दर्ज करा दी है।”
“उनका कत्ल हुआ है... यह बात तो क्लियर है न!” सार्जेंट सलीम ने पूछा।
“सौ फीसदी। पूरी ताकत से डॉ. वीरानी का गला दबाया गया था। उनकी सर्वाइकल स्पाइन टूट गई थी।”
कुछ वक्त बाद वह लार्ड एंड लैरी टेलरिंग शॉप पहुंच गए। काउंटर पर एक बहुत खूबसूरत अमरीकी लड़की बैठी हुई थी। उसने उन्हें देखते ही बहुत खुशदिली से ‘वेलकम’ कहा। उसकी मुस्कुराहट देख कर सलीम निसार हो गया। लड़की की उम्र 20-21 साल थी।
सोहराब ने काउंटर पर बैठी हुई लड़की को अपना परिचय देते हुए अंग्रेजी में कहा, “मुझे मैनेजर से मिलना है।”
“आइए मैं आपको लेकर चलती हूं।” लड़की ने हिंदी में जवाब दिया। उसकी आवाज में भी सलीम को खास कशिश महसूस हुई।
सलीम वहीं खड़ा रह गया। सोहराब लड़की के साथ बगल के कारीडोर में मुड़ गया। लड़की ने एक दरवाजा खोल कर वहां बैठे बूढ़े आदमी से अंग्रेजी में कहा, “ग्रैंड पा यह इंस्पेक्टर कुमार सोहराब हैं। खुफिया विभाग से। आपसे मिलने आए हैं।”
बूढे ने इंस्पेक्टर सोहराब से हाथ मिलाते हुए कहा, “बैठिए... मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूं?” वह बहुत अच्छी उर्दू बोल रहा था।
इंस्पेक्टर सोहराब ने जेब से मोबाइल निकाला। उसमें कुछ देर पहले खींची गई डॉ. वीरानी के कपड़ों की तस्वीर बूढ़े को दिखाते हुए कहा, “इन कपड़ों को आप पहचानते हैं... क्या आपके यहां से यह मालूम चल सकता है कि इन्हें किसने सिलवाया था?”
क्या डॉ. वीरानी के कपड़ों की पहचान हो सकी?
मेजर विश्वजीत की कार का पीछा कौन कर रहा था?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...