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मे और महाराज - ( मुलाकात_१) 31


शायरा के कक्ष में,
शायरा गुस्से में अपनी गद्दी पर बैठी हुई थी। तो दूसरी ओर मौली घुटने के बल बैठकर रोए जा रही थी।

" हमें माफ कर दीजिए राजकुमारी। मैं आपकी हुक्म की तामील नहीं कर पाई। आप चाहे तो मुझे सजा दे दीजिए।" रोते हुए कहा।

" सजा तो तुम्हें मिलेगी। इस बार जरूर मिलेगी मौली।" शायरा अपनी जगह से उठी। उसने छड़ी ली और मौली की तरफ घूमाई। छड़ी मौली के कंधे पर आकर रुक गई। शायरा ने उसे मारने के लिए छड़ी घुमाई थी जरूर लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती।

" क्यों मौली? हमारे साथ ही ऐसा क्यों ? हम अच्छे हैं तो क्या लोग हमें बेबस समझते हैं। क्यों हर कोई बस हमारा फायदा उठाना चाहता है। नहीं अब नहीं। तुम उन्हे बता देना, अब हम उसकी एक भी बात नहीं सुनेंगे। बिल्कुल नहीं। जल्द से जल्द उसके लिए उस मिस्त्री को ढूंढो और उसे अपने घर रवाना करो। हमें अब वह अपने शरीर में नहीं चाहिए। समझ गई ना तुम।" शायरा ने कहा।

" जैसा आप चाहे राजकुमारी।" मौली।

" जाओ हमारे लिए नाश्ता लगाओ। और आज के बाद राजकुमार सिराज जब कभी हमारे बारे में पूछें उन्हे कह देना हमारी तबीयत ठीक नहीं है।" शायरा ने मौली से कहा।

दो दिन बाद,

" भाई आप ऐसे चलना बंद करेंगे। आपको ऐसे चलते हुए देख हमे चक्कर आ रहे हैं।" वीर प्रताप ने अपने बालों को सहलाते हुए कहा।

" हम चल नहीं रहे हैं। हम सोच रहे हैं और यही हमारे सोचने का अंदाज है। हम जानना चाहते हैं कि बड़े भाई के दिमाग में आखिर चल क्या रहा है ? हमारे ससुराल में उनकी हरकतें काफी संदिग्ध थी । वह कुछ ढूंढ रहे हैं। हमें उससे कुछ अच्छी भावनाएं नहीं आ रही है। हमें चौकन्ना रहना होगा। वरना वह हमसे हमारी सबसे प्यारी चीज छीन लेंगे। हमें उनके हर कदम से आगे दो कदम भरने होंगे। लेकिन उससे पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर वह जाना कहां चाहते हैं।" सिराज ने अपने छोटे भाई से कहा।

" आप उनसे हमेशा आगे की सोचते हैं। हमें आप पर पूरा यकीन है। आप पता लगा लेंगे कि वह क्या करना चाहते हैं।" वीर प्रताप ने अपने भाई से कहा।

" रिहान भाई के हर कदम पर ध्यान रखो। तुम्हारी नजर पूरी तरह सिर्फ उन पर होगी समझे।" सिराज ने कहा। हां मैं अपनी गर्दन हिलाकर रिहान उनके कमरे से बाहर चला गया।

अगले दिन राजकुमारी शायरा को राजकुमार अमन का एक संदेश मिला। जिसमें उन्होंने लिखा हुआ था कि उन्हें वह बिस्तर बनाने वाला मिस्त्री मिल चुका है। एक पते के साथ वक्त दिया गया था। उस वक्त वह उन्हें उस जगह मिलेगा।

" राजकुमारी क्या आप राजकुमार अमन से मिलना चाहेंगी ? उन्होंने यकीनन आप को मिलने के लिए बुलाया होगा।" मौली ने शायरा से पूछा।

" हम उनसे नहीं मिलना चाहते। हमारा उनसे कोई संबंध नहीं है।" शायरा की आखों में आसूं थे।

" अपने आप पर इस तरीके से अत्याचार मत कीजिए राजकुमारी। राजकुमार अमन आपसे बहुत प्यार करते हैं।" मौली ने उनके आसूं पोछने की कोशिश की।

" नहीं। हमे किसी के प्यार और हमदर्दी की जरूरत नहीं है। चली जाओ यहां से हमें कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो।" शायरा ने उसे कमरे से बाहर भेज दिया।

2 घंटे बीत चुके थे। दोपहर के खाने का वक्त हो रहा था। मौली ने शायरा के कमरे का दरवाजा खटखटाया। कोई जवाब ना पाकर वह दरवाजा खोलकर अंदर गई। राजकुमारी अपने बिस्तर पर पड़े पड़े उस चिट्ठी को देख रही थी। उनका अंदाज और हाव-भाव बदल चुके थे। जैसे ही मौली अंदर गई वह तुरंत उठी।

" क्या बात है आजकल दरवाजा खटखटा कर क्यों आ रही थी ?" राजकुमारी ने पूछा।

उसके सामने कौन खड़ा है यह समझने में मौली को देर नहीं लगी। " सैम तुम कब आई मुझे बुला लेती?‌ खाना लगा दू तुम्हारे लिए ?" मौली ने पूछा

" नहीं । यह बताओ यह पता किसका है ?" समायरा ने चिट्ठी को देखते हुए मौली से पूछा।

" यह। यह हमारे राजकुमार अमन ने राजकुमारी शायरा की विनंती पर उस मिस्त्री का पता भेजा है। जिन्होंने तुम्हारा खास बिस्तर बनाया है।" मौली ने जवाब दिया।

" तो इंतजार किस बात का? चलो जल्दी चलते हैं। जितनी जल्दी वह मिस्त्री मिलेगा, उतनी जल्दी मैं यहां से जा सकूंगी।" समायरा ने मौली का हाथ खींचा और उसे अपने साथ लेकर चली गई। कुछ ही देर बाद दोनों एक पुरानी हवेली के सामने आकर रुके।

" क्या यही जगह है ?" समायरा ने मौलि से पूछा।

" लग तो यही रही है।" मौली।

" ऐसी पुरानी हवेली में एक पागल मिस्त्री ही रह सकता है। कोई अचंभे की बात नहीं है कि उसने उस अजीब बिस्तर को बनाया। जो मुझे सदियों पीछे ले आया।" समायरा। " चलो अंदर चलते हैं।"

जैसे ही समायरा ने अंदर कदम रखा किसी ने मौली को पीछे से दबोच लिया।

" यहां पर तो कोई नहीं दिख रहा। घर भी बंद लग रहा है। मौली तुम कुछ कह क्यों नहीं रहीं ?" समायरा ने पीछे मुड़ कर देखा लेकिन मौली वहां नहीं थी।

" आपका यहां स्वागत है मेरी राजकुमारी।"

" तुम। तुम यहां क्या कर रहे हो ?" अपनी दोनों बाहें फैलाए हुए राजकुमार अमन समायरा के सामने खड़े थे।

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