नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 26 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 26

26

पुण्या ने दो-तीन बार डोर-बैल बजाई परंतु उधर से कोई उत्तर नहीं मिला | समिधा ने उसको चिढ़ाती हुई दृष्टि से देखा, मानो कह रही हो ‘मिलेगी तुम्हें चाय यहाँ –चलो अब वापिस ‘और वह चारों ओर नज़र घुमाने लगी | जेल का वातावरण शांत, सुंदर स्वच्छ लग रहा था | पीछे की ओर वे एक बड़ा सा ‘गेट’ छोड़कर आए थे जो उसके अनुसार जेल के भीतरी भाग में खुलना चाहिए था | चारों ओर नज़र घुमाते-घुमाते समिधा की दृष्टि फिर से दरवाज़े पर आकर चिपकी दरवाज़े पर लगी नाम-पट्टिका पर, जिस पर लिखा;

एस. पी. वर्मा

जेलर, कारागार

अलीराजपुर (मध्यप्रदेश)

अचानक दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और बाहर प्रतीक्षारत दोनों महिलाएँ सावधान हो गईं | 

“कहिए “दरवाज़े पर एक लंबा-चौड़ा, हृष्ठ-पुष्ठ पुरुष था जिसने चारखाने की लुंगी तथा सफ़ेद बनियान पहने हुए थे | लुंगी ऊपर घुटनों तक मुड़ी थी और बनियान पेट पर चढ़ा हुआ था | दो भद्र महिलाओं को अपने सामने देखकर वह सकपका गया और उसने अपने कपड़ों को फुर्ती से ठीक करने का प्रयत्न किया | उसकी फुर्ती देखकर भद्र महिलाओं के मुख पर मुस्कुराहट पसरने को हुई जिसे उन्होंने एक-दूसरे को देखकर संयत करने का प्रयत्न किया | 

“जी, कहिए—कहाँ से आना हुआ है ?”पुरुष ने स्वस्थ होते हुए पूछा | 

“जी, हमें मि.वर्मा से मिलना है| ’पुण्या ने नाम-पट्टिका को घूरते हुए कहा | 

“कहिए, क्या काम है ?”

“जी, जेलर साहब से मिलना है, प्लीज़ उन्हें बुला दीजिए –“पुण्या ने कहा | 

वह खीज रही थी भाई बार-बार अलापे जा रहा है किससे मिलना है?कहाँ से आए हैं ?अरे !चुपचाप जेलर से मिलवाओ तो चाय का कुछ जुगाड़ हो | 

बहुत से लोगों को बिस्तर से उठते ही चाय या कॉफ़ी की इतनी तलब लगती है कि वे बिना गर्म पेय के स्वयं को स्वस्थ महसूस नहीं करते | पुण्या की स्थिति भी इस समय कुछ ऐसी ही थी, उसे चाय की सख़्त ज़रूरत थी | यह उसके चेहरे तथा व्यवहार से साफ़ दिखाई दे रहा था | 

“जी, मैं ही हूँ जेलर –सतपाल वर्मा | ”उधर से आवाज़ आई | 

“आइए, आप लोग अंदर तो आइए | ”वर्मा ने दरवाज़े से हटकर स्त्रियों को सादर अंदर आने का निमंत्रण दिया | 

पुण्या झेंप गई, पल भर बाद ही उसने स्वयं को स्वस्थ कर लिया और वर्मा के पीछे-पीछे दोनों महिलाएँ कमरे में प्रविष्ठ हो गईं | 

कमरा –बैठक यानि ‘ड्रॉइंग–रूम ‘था जिसमें दोनों ओर सोफ़े पड़े थे, दो दीवारों पर सजावट के लिए साधारण कलाकृतियाँ थीं, दीवार के बीचोंबीच तीर-कमान लटके हुए थे | कमरे के कोनों में छोटी-छोटी तिपाइयाँ थीं जो जालीदार सफ़ेद कपड़ों से ढकी हुईं थीं | एक कोने में जालीदार कपड़े से ढका फ़ोन था जिसका काला रंग उसकी जाली में से झाँक रहा था, दूसरे कोने में एक गुलदस्ता था जिसमें फूल सजे हुए थे जो बहुत ताज़ा नहीं थे, शायद कल के थे | जेलर साहब ने उन्हें बहुत आदर से बैठाया और अंदर की ओर चले गए | 

महिलाएँ चाय के लिए आपस में इशारेबाज़ी कर ही रहीं थीं कि सामने से वर्मा साहब कुर्ता पहने हुए प्रगट हुए | अब वे स्वस्थ व सहज लग रहे थे | 

“बताइए, क्या सेवा कर सकता हूँ –आराम से बैठिए प्लीज़, मेरी पत्नी अभी चाय लेकर आ रही हैं –“वे सामने वाले सोफ़े पर बैठ गए | 

पुण्या का चेहरा अचानक खिल गया, चाय की तृप्ति बिना चाय पीए ही उसके चेहरे पर खिलने लगी | 

“अरे!साहब, चाय का तकल्लुफ़ रहने दीजिए –“पुण्या ने गंभीर लहज़े में कहा | 

‘कमाल है यह लड़की भी –‘समिधा ने मन ही मन सोचा | जिस चाय के बिना उसका दम सूखा जा रहा था, उसी चाय के लिए कितनी शिद्दत से मना कर रही है !

“इसमें तकल्लुफ़ क्या हुआ ?”कहते हुए जेलर साहब की सुंदर, सुशील दिखने वाली पत्नी ने कमरे में प्रवेश किया और नाश्ते की ट्रे मेज़ पर टिका दी | 

“नमस्कार –“जेलर साहब की पत्नी ने उन दोनों को बहुत सम्मान से नमस्ते की | 

“जी, नमस्कार –“दोनों खड़ी हो गईं | 

“अरे ! बैठिए न प्लीज़ ---मेरी पत्नी मुक्ता “जेलर वर्मा के मुख पर अपनी पत्नी का परिचय करवाते हुए गर्व झलक आया | 

वातावरण खुशगवार था।कहाँ वह सड़ा हुआ बदबूदार होटल और कहाँ ये साफ़-सुथरा घर !

समिधा व पुण्या के चेहरे जो मायूसी से भरे हुए थे, इस समय खिल आए थे| नाश्ते की प्लेटें सामने थीं जिसकी अभी कोई ज़रूरत नहीं थी पर –चाय --?पुण्या सोच ही रही थी कि इतनी देर में एक युवक कैदियों के साफ़–सुथरे कपड़े पहने हुए चाय की ट्रे लेकर आ पहुँचा | पुण्या के चेहरे पर जैसे बहार खिल आई | किसी ने जैसे उसके सामने कोई बहुत मूल्यवान वस्तु परोस दी हो जिसे वह न जाने कब से खोज रही थी, युवक ने चाय की प्यालियाँ सबके सामने बढ़ा दीं | 

“जी, अभी तक आपको हमने अपना परिचय भी नहीं दिया और आप लोग –“

“परिचय भी हो जाएगा, आप लोग चाय तो लीजिए “जेलर ने कहा | पुण्या तो इसीकी प्रतीक्षा कर रही थी | चाय की एक मधुर चुस्की ने ही उसके चेहरे की रौनक बढ़ा दी, उसके चेहरे पर ताज़गी खिल उठी | 

चाय पीते –पीते परिचय की औपचारिकता हो चुकी थी | जब जेलर की पत्नी को पता चला कि इन स्त्रियों में से एक दूरदर्शन की उद्घोषिका है तथा दूसरी लेखिका है, उसका चेहरा ताज़े फूल की तरह मुस्कुरा उठा | 

“आप लोगों को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है | मैंने आज तक न तो किसी एनाउंसर को देखा, न ही किसी लेखिका को –“ मुक्ता मुक्त कंठ से बोल उठी | वह उन दोनों स्त्रियों को देखकर ठगी सी रह गई थी | समिधा व मुक्ता के चेहरे कुछ ऐसे हो गए जैसे वे किसी अजायबघर की वस्तुएं हों !ऐसा तो कुछ अद्भुत नहीं था दोनों स्त्रियों में !हाँ।उनके लिए तो अच्छा ही था, पूरी संभावना हो गई थी सहायता प्राप्त होने की !

“हम आपसे शूटिंग के लिए समय की बात करने आए थे, यहाँ शूट होना है न ?आपके पास सूचना आ चुकी होगी | ”

“जी—“जेलर साहब ने विनम्रता से कहा | 

चाय पीते-पीते जेलर पति-पत्नी से अच्छी-ख़ासी मित्रता हो चुकी थी | जेलर पति व उनकी पत्नी मुक्ता का व्यवहार बहुत निश्छल और सरल था | 

समिधा व पुण्या ने उन्हें अपने आने का कारण तो बता ही दिया, साथ भी यह भी कि उन्हें अपने ठहरने के लिए कोई अन्य स्थान तलाशना है, वे दोनों उस होटल में नहीं रह पाएंगीं | 

“नहीं, नहीं –वह आप लोगों के लिए उचित स्थान नहीं है | आप चिंता न करें, मैं अपने पड़ौस के बंगले में आप लोगों के रुकने की व्यवस्था करवाता हूँ | ’लकीली’उसमें रहने वाला इंस्पेक्टर का परिवार पिछले हफ़्ते ही यहाँ से गया है | ”

अंधा क्या माँगे।दो आँखें ! इस बार दोनों स्त्रियों में से किसी ने भी कोई औपचारिकता दिखाने की ज़रूरत महसूस नहीं की थी | दोनों के चेहरे पर अपनी खोज पूरी होने की स्पष्ट छाप दिखाई देने लगी | जेलर पति-पत्नी के प्रति एक कृतज्ञता व अपनी खोज के प्रति एक संतुष्टि का भाव !