नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 27 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 27

27

आनन–फ़ानन में जेल से जीप भेजकर होटल से उनका सामान मँगवा लिया गया | मुक्ता ज़िद कर रही थी कि वे दोनों उसके पास ही ठहरें पर उन्होंने समझाया कि पास वाले बँगले में ही तो इंतज़ाम किया जा रहा था, मुक्ता कभी भी उनसे बात करने आ सकती थी | 

होटल से उनका सामान लाने वाले ड्राइवर ने बताया कि अहमदाबाद से आई हुई पार्टी अभी तक सोई है | जेलर ने होटल के मालिक महेश को फ़ोन करके स्थिति से अवगत कार्वा दिया था | 

“कमाल हैं मैडम आप लोग भी –“हड़बजेलर वर्मा ने उन्हें ड़ करते हुए दामले जेल पहुँचे थे | 

दोनों महिलाएँ जेलर साहब के यहाँ फ़्रेश होकर चाय-नाश्ते के साथ गप्पों में मगन थीं | वर्मा साहब अपनी दिनचर्या में संलग्न हो चुके थे | दामले तथा ड्राइवर को भी बड़े स्नेह से चाय पिलाई गई | चाय पीते-पीते ही दामले ने जेलर साहब से जेल का मुआइना करने तथा कैदियों से पूछने का समय ले लिया था | 

“आप लोग तो तैयार हैं –मैं होटल जाकर बाकी सब लोगों को देखता हूँ, मुझे नहीं लगता अभी कोई उठा होगा –“दमले चाय का प्याला मेज़ पर रखकर शीघ्र ही होटल वापिस चले गए | 

दस बज चुके थे, स्त्रियों की तिगड़ी अभी वहीं जमी हुई बातों में मशगूल थी | दोनों के लिए पास के बँगले में बढ़िया व्यवस्था हो चुकी थी | खाने-पीने का जुगाड़ भी था, बस –और क्या चाहिए था ! मुक्ता का उत्साह चरम सीमा पर था | वह बच्चों जैसी सरलता से बार-बार न जाने कितने पीआरएसएचएन पूछती जा रही थी | दोनों उसे अपने कम के व शूटिंग के बारे में बताती जा रही थीं | मुक्ता का खिला हुआ चेहरा उसकी भीतरी प्रसन्नता प्रदर्शित कर रहा था | वर्मा जी एक बार जेल का चक्कर काटकर फिर से मेहमानों में शरीक हो गए थे | 

“अरे भाई ! एक-एक बढ़िया चाय और बनाओ --:उन्होंने अपने ‘कुक’ को आज्ञा दी | 

“अरे साहब ! बहुत हो गया, और नहीं ---“पुण्या चाय से तृप्त हो चुकी थी | समिधा बहुत कम चाय पीती थी, उसने पुण्या की ओर मुस्कुराकर देखा, मानो कह रही हो ‘पीयो, जितनी चाय पीनी हो –‘

दोनों स्त्रियों को नींद से झटोके  आ रहे थे लेकिन दोनों किसी न किसी प्रकार आँखों को खोले बैठी थीं | 

“आज न जाने कितने दिनों बाद मुक्ता का खिला हुआ चेहरा देख रहा हूँ | ”पत्नी का खिला चेहरा देखकर सतपाल वर्मा का स्वर प्रसन्नता  से छ्लकने लगा था | 

स्त्रियों के चेहरे पर पसरे प्रश्न देखकर जेलर वर्मा ने उन्हें मुक्ता के बारे में बताते हुए कहा ;

“यहाँ की घुटन में ये खुलकर साँस नहीं ले पातीं हैं, दम घुटता है इंका यहाँ | मैं आप लोगों को डराना नहीं चाहता लेकिन कुछ शेयर कर्ण चाहता हूँ –“ पल भर रुककर फिर बोले ;

“आज शनिवार  है न –यह बात पिछले शनिवार की है, जेल के सामने वाले चौराहे पर चार मुंडियाँ कटी पड़ी थीं –जी, चार आदमियों के सिर –यह सब यहाँ आम बात है | अब आप ही बताएँ जहाँ यह सब आम बात हो, वहाँ कोई कैसे सामान्य जीवन बिता सकता है ?”

ज़हीर था वे अपनी पत्नी के लिए परेशान थे परंतु विवश थे, उनका काम भी तो जरूरी  था | उन्होंने बताया मुक्ता बिना बंदूकधारी सिपाही के घर से बाहर नहीं निकाल पाती | बच्चों को भी बाहर ही पढ़ाया गया था | वहाँ पर इतना अपराध था कि हर पल सुरक्षा के पल साथ रखने होते थे | वर्मा जी रात को अपने पलंग के पास ‘लोडेड गन ‘रखकर सोते थे | 

जेल के अधिकांश क़ैदी कत्ल के इल्ज़ाम में बंद थे | वे इन सब बातों  की जानकारी दे ही रहे थे  कि वही युवा क़ैदी जो पहले चाय लेकर आया था फिर से हाज़िर हो गया | वह एक सरल सा दिखने वाला युवक लग रहा था जो ट्रे रखकर चुपचाप वापिस चला गया | 

“वर्मा साहब !आज हमें इन लोगों के साथ ही काम करना है, आपकी बात सुनकर कुछ घबराहट सी हो गई –“समिधा के मुख से निकल गया, कुछ रुककर उसने फिर पूछा ;

“आप लोग इनसे दिन-रात घिरे रहते हैं न, डर नहीं लगता ?”

“अरे ! इन लोगों से कोईम डर नहीं है –डर तो है बाहर के लोगों से | आप देखिएगा कितनी शांति से बात करेंगे ये आप लोगों से, कितने विनम्र रहेंगे आप लोगों के साथ !”वर्मा जी अपने कैदियों का पक्ष ले रहे थे | 

एक अनिश्चितता का धूमिल आभास स्त्रियों के चेहरे पर फैला दिखाई दिया | दोनों बहुत थकी हुई लग रही थीं उन्होंने मूकटा से कुछ देर आराम करने की इच्छा ज़ाहिर की और पास वाले मकान में चली गईं | 

साफ़-सुथरा बिस्तर देखकर दोनों कुछ देर आराम करने के लिए लेतीं परंतु थके होने के कर्ण बातें करते-करते न जाने कब उन दोनों को ही निद्रा देवी ने अपने आगोश में ले लिया |