नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 3 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 3

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दामले खूब बातूनी थे, वे एक बार शुरू होते तो अपनी रौ में बोलते ही चले जाते, बिना इस बात को सोचे समझे कि उनके कथन का सुनने वाले पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?छोटे से कद और साँवले रंग के दामले अपनी बातें इतने मनोरंजन पूर्ण ढंग से सामने वाले से कहते थे कि सुनने वाले के समक्ष तस्वीर बनती चली जाती और उनके शब्द -चित्र सिनेमा की भाँति चलने लगते।

"कई वर्ष पुरानी बात है, झाबुआ में एक नया-नया अस्पताल खुला था जिसमें काम करने के लिए शहर से डॉक्टर्स, नर्सेज़ बुलाए गए । अस्पताल के अंदर ही आगे की ओर नर्सों के रहने के लिए निवास बनाए गए | एक दिन सुबह के समय कोई नर्स अपने घर के छज्जे में खड़ी बाल बना रही थी अचानक न जाने किस दिशा से सनसानता हुआ एक तीर आया और उसके गले को घायल करता हुआ निकल गया | नर्स लड़खड़ाई और गिर पड़ी | जब तक उसके इलाज की व्यवस्था हो पाती, वह ठंडी हो चुकी थी।

दामले के इस कथा संभाषण से सारांश उद्विग्न हो उठे।

“पर क्यों ?”उनके मुख से बेसाख्ता निकला |

" यह तो बाद में पता चला सर कि नर्स पर तीर चलाने वाले आदिवासी का दिल आ गया था। वह कई दिनों से नर्स के पीछे घूम रहा था, जब नर्स ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया वह क्रोधित हो उठा था और उसने नर्स का काम तमाम कर दिया था ।"

अपनी आदत के अनुसार दामले इस बात से बेख़बर मस्ती में बोले जा रहे थे, उन्हें तो सपने में भी ख्याल ना होगा कि सारांश के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं, उनके मुख पर गंभीरता देखकर समिधा हँस पड़ी।

" देख लीजिए मैडम कैसी जगह जा रही हैं आप ! " सारांश ने मानो चेतावनी का घंटा सा बजाया।

" अरे भाई! बस भी कीजिए आप लोग... जैसे किसी बच्चे के सामने 'भेड़िया आया, भेड़िया आया' की कहानी सुना कर डराने की कोशिश में लगे हुए हैं ! "

समिधा वहाँ से उठकर जलपान का प्रबंध करने रसोई घर में आ गई ।दामले को चुप कराने का उसका साहस नहीं था। जब तक वे बात पूरी करके उस पर सामने वाले का ठप्पा न लगवा लेते उनकी कथा पूरी ना हो पाती। वे समिधा को ऐसे व्यापारी लगते थे जो अपने उत्पादन की ख़रीदारी के लिए ख़रीदार को पटाकर ही दम लेते थे या उससे भी अधिक किसी ऐसे पंडित की तरह जो सत्यनारायण की कथा कहते समय, हनुमान चालीसा पढ़ते समय अथवा माता का रतजगा करते समय गा-गा कर रसिक भक्तजनों के भीतर भक्ति का समुद्र उड़ेलना चाहते हों और किसी के बीच में बोल पड़ने पर अथवा किसी को ऊँघते हुए देखकर नाराज़ होने से उनकी पेशानी पर बल पड़ जाते हों।

उनकी कथा के प्रस्तुतिकरण से सारांश के मन की दीवाल पर झाबुआ की ऐसी तस्वीर चित्रित हो जम गई थी जिसके उतरने का तब तक कोई अवसर नहीं आना था जब तक उनकी पत्नी सही सलामत वापस उनके पास लौट कर ना आ जाए।

जब तक समिधा झाबुआ के लिए निकल नहीं गई सारांश हर पल उसे चेताते से रहे, आखिर वह खीज उठी।

" कमाल हैं आप भी, एक बार आपके जे़हन में जो बात आ गई, वह आसानी से नहीं निकलती ।अरे! मैं कोई पहली अंतरिक्ष महिला यात्री तो नहीं हूँ जो अंतरिक्ष में झंडा गाड़ने जा रही है !कितने युवा लड़के- लड़कियों ने इस क्षेत्र पर काम करके संदर्शिका तैयार की हैं मैं किसी युद्ध में शरीक़ होने नहीं जा रही ।हाँ, इन किताबों और शोध कार्य के अतिरिक्त अगर और कुछ सामग्री एकत्रित हो पाती है तो मैं उसे उपयोग में ले सकूँगी, बस आप ख़ामाखाँ इतने आतंकित हो रहे हैं ! "

सारांश समझ गए, अब उनकी पत्नी को कोई नहीं रोक सकता था। इससे पहले भी उन्होंने समिधा को उसके बीच में पड़े काम की अधिकता के, उसके अनुवाद की एक पुस्तक के जमा करने की अंतिम तिथि के बारे में याद दिलाते हुए रोकने की चेष्टा की थी ।पर उनका समझाना हर बार की भाँति सब व्यर्थ !ठीक है, फिर जैसी देवी जी की इच्छा सारांश चुप हो गए।

उस दिन नियत समय पर समिधा तथा पूरा दस्ता (यूनिट) झाबुआ के लिए निकल गए ।समिधा व दामले के अतिरिक्त दो युवक शोध विभाग से भी थे और हाँ, बंसी नाम का वाहन-चालक भी!

इस बार झाबुआ में 5 दिन रहने का कार्यक्रम था ।सरकारी सुविधाओं में झाबुआ ख़ास में एक छोटा सा बँगला भी सम्मिलित था। जब योजना से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति झाबुआ जाता वह या तो वहीं रूकता या फिर होटल में, जिसे विभाग द्वारा आरक्षित करवा कर रखा गया था वहाँ।

"आप होटल में रुकना पसंद करेंगे मैडम या बँगले में ?"मिस्टर दामले ने पहले ही उससे पूछ लिया था।

वह होटल में नहीं रुकना चाहती थी, अतः दामले के बहुत बार इसरार करने पर वह तब तक टस से मस न हुई जब तक बँगले के ख़ाली होने का समाचार प्राप्त नहीं हुआ।

बँगले में पहले से ही शोध करने के लिए गए हुए कुछ लोग ठहरे हुए थे, इसलिए दामले को चार दिन प्रतीक्षा करनी पड़ी ।बँगला खाली होने की सूचना मिलते ही दामले ने उसे शीघ्र ही आरक्षित करवा लिया था ।अपनी पूरी कथा सुनाने के बाद दामले ने उसे और सारांश को आश्वस्त करने का प्रयास भी किया था कि समिधा को एक अलग कमरा और ज़रूरत की सभी चीजें मुहैया की जाएँगी, वह किसी भी प्रकार की कोई चिंता ना करें।