नज़र - 4 - एक रहस्यमई रात Aarti Garval द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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नज़र - 4 - एक रहस्यमई रात

"किसका फोन आया था मुग्धा को कि उसके चेहरे के हाव-भाव ही बदल गए थे? अब तो जब वह घर पर आए तभी पता चला।"- मन में यह सब सोचते हुए वीर वही मुग्धा का इंतजार कर रहा होता है। रात के लगभग 8:00 बज गए मगर अब तक ना मुग्धा का कोई कॉल आया ना वह खुद।

अब तो गौरी आंटी और गुलशन अंकल को भी उसकी चिंता होने लगी थी। गौरी आंटी मुग्धा को बार-बार कॉल लगा रही थी मगर उसका फोन लगी नहीं रहा था।

"वीर तुम हॉस्पिटल एक बार देखकर आओ शायद वहां गई हो!"- मुग्धा को कॉल लगाते हुए गौरी आंटी ने वीर से कहा। वीर मानो बस इसी बात की राह देख रहा था। गौरी आंटी के कहते ही वो फटाक से गाड़ी की चाबी लेकर सीधे हॉस्पिटल की तरफ निकल पड़ा। रास्ते में एक ऑटो स्टैंड के पास मुक्ता उसे खड़ी हुई मिली। उसने तुरंत गाड़ी घुमा ली और उसके पास गया।

मुग्धा की चिंता में वीर इतना डर गया था कि उसे वहां पर देखते ही सीधा गाड़ी से उतर कर मुग्धा को अपनी बाहों में समेट लिया।

" कहां थी तुम ?सुबह से मैं कितना परेशान हो गया था। ना कोई कॉल ना कुछ अता ना कुछ पता कहां थी तुम मुग्धा?"- वीर एक सांस में मुग्धा पर सवालों की बौछार लगा देता है।

वीर को अपने लिए इतना परेशान होते हुए देख मुग्धा थोड़ी देर के लिए सहम जाती है वो बस वीर को देखते ही रहती है बिना पलक झपकाए....

"अच्छा अच्छा ठीक है! चलो पहले घर चलो उसके बाद सारी बातें करेंगे"- वीरने अपने आप को संभालते हुए कहा।

घर पर पहुंचते ही मुग्धा सीधी अपने बेडरूम में जाकर सो जाती है। रास्ते में दो तीन बार विरने मुग्धा से पूछने की कोशिश की पर मुग्धा ने कोई जवाब नहीं दिया। सुबह मुग्धा तैयार होकर बिना किसी से मिले हॉस्पिटल चली जाती है। अचानक से उसके बर्ताव में इतना बदलाव देखकर घर पर सभी दंग रह जाते हैं।

"हेलो इंटर्नश! हमें कल सुबह पुना के पास एक गांव में सेमिनार के लिए जाना है तो आप सबको कल सुबह जल्दी रेडी होकर हॉस्पिटल आना है ऑल राइट? हमें शायद वहां पर दो दिन भी हो सकते हैं।"- डोक्टरो कश्यप ने सब को समझाते हुए कहा

सेमिनार की बात सुनकर सभी लोग बहुत खुश हो गए आखिर यह सेमिनार उन्हें काम से 2 दिन के लिए दूर जो ले जाने वाला था।

"हे गाइझ 2 दिन का होलीडे हो जाएगा यार! मैं तो काम से इतनी परेशान हो गई थी मुझे सच में हॉलीडे की जरूरत थी फाइनली नाउ आई केन गो आउटसाइड"- अंजलि ने उछलते हुए कहा

"शायद इस सेमिनार में मुग्धा के साथ थोड़ा और वक्त बिताने को मिल जाए"- सोचकर सुधीर हल्का सा मुस्कुरा दिया

मगर मुग्धा वहीं खड़ी चुपचाप बस सब की बातें सुन रही थी। ना वह कुछ बोल रही थी नाहीं उसके चेहरे पर कोई खुशी थी....

" हे मुग्धा क्या हुआ यार क्यों कब से इतने गुमसुम खड़ी है?"- आखिर नेहा ने उससे पूछ ही लिया

"अरे नहीं कुछ नहीं यार वह बस थोड़ी सी तबीयत खराब है और कुछ नहीं है"- कहकर मुग्धा अपने काम में लग जाती है


शाम को मुग्धा घर पहुंचकर गौरी आंटी गुलशन अंकल और वीर को बताती है कि वह 2 दिन के लिए पुणे जा रही है सेमिनार में और शाम को ही अपना सामान पैक कर के रख लेती है।सुबह जल्दी वह सेमिनार के लिए निकल जाती है। सफेद कुर्ती, गिले बाल, उसके नाजुक पैरों में पतली सी पायल और आंखों को नजर से बचाने के लिए बिंदी। सुधीर तो उसे बस देखता ही रह जाता है।

"सुधीर हो क्या गया है आजकल तुम्हें ध्यान का है तुम्हारा चलो जल्दी बस में चढ़ो"- सुधीर को मुग्धा को इस तरह से देखते हुए देखकर नेहा ने कहा

सब लोग हंसते, गाते हुए, मस्ती करते हुए, एक दूसरे से बातें करते हुए, पुणे पहुंच जाते हैं। पुणे के सेमिनार में पहुंचते ही वह लोग वहां के गांव वालों का इलाज करने लग जाते है। सब मन लगाकर वहां पर लोगों की सेवा करते हैं।

"सुनिए वहां एक बच्चे को चोट लगी है आप जाकर प्लीज उसकी मदद कर दीजिए"- डॉक्टर कश्यप ने मुग्धा से कहा

"येस सर हम अभी जाते हैं"- कहकर मुग्धा उस बच्चे की तरफ दौड़ कर चली जाती है। बच्चे को बहुत ज्यादा चोट लगी हुई है उसे इंजेक्शन लगाने की जरूरत थी मगर उसे इंजेक्शन से डर लग रहा था यह देखकर मुग्धा उसे प्यारी प्यारी बातों में उलझा कर इंजेक्शन लगा देती है। डॉक्टर कश्यप दूर से ही यह सब देख रहे होते है।

शाम को सब बोनफायर जलाते के उसके आसपास बैठते हैं। गाते हैं ,मस्ती करते हैं ,खेलते हैं ।रूद्र सब सबको अपने चुटकुले सुना कर हंसा रहा होता है, अंजलि और नेहा अपने गपशप में लगे हुए होते हैं, सुधीर, मुग्धा और डॉ कश्यप तीनों चुपचाप वहां बैठकर सबको देख रहे होते हैं। सुधीर और मुग्धा वॉक के लिए गांव की तरफ जाते हैं। डॉक्टर कश्यप उन दोनों को जाते हुए देखते हैं । कुछ आधे घंटे के बाद वह जो वापस आते हैं तब तक सब सो चुके होते हैं। लेकिन डॉक्टर कश्यप वहीं बाहर बैठे हुए थे। थोड़ी देर में वो लोग भी सोने चले जाते हैं। दूसरे दिन सुबह सब उठकर फिर से सब अपने काम में लग जाते हैं और शाम को वापस मुंबई के लिए निकलते हैं। रात के करीब 10:00 बज रहे थे। बस किसी रिसोर्ट के पास जाकर रुकती है वहां पर सब लोग मिलकर खाना खाते हैं।

सब खाना खाकर बस में जाकर अपनी सीट पर बैठ कर सोने की तैयारी करने लगते हैं । सब बस में बैठ जाते हैं मगर मुग्धा अभी तक नहीं आई थी।

"मैं जा कर देखता हूं"- कहकर सुधीर मुग्धा को ढूंढने के लिए वापस रिसोर्ट में जाता है। जैसे ही वो रिसोर्ट के कॉरिडोर में पहुंचता है वो मुग्धा वहीं पर सामने से आ रही थी।

"कहां रह गई थी तुम मुग्धा? चलो सब वेट कर रहे हैं"- सुधिरने कहा

"हां! चलिए"- कहकर मुग्धा आगे निकलती है

"मुग्धा...."-सुधिर ने धीरे से कहा

"हां क्या हुआ? चलिए ना!"- मुग्धा ने मुड़कर कहा

" मुग्धा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है"- सुधीर ने कहा

"अभी... हां... बताइए क्या हुआ?"- मुग्धा ने मासूमियत से पूछा

"मुग्धा मुझे नहीं पता यह सब तो सुनकर तुम क्या सोचोगी मेरे बारे में? शायद तुम मुझसे बात भी ना करो! लेकिन आज अगर मैंने नहीं बताया तो शायद कभी नहीं बता पाऊंगा धेट.... आई लव यू मुग्धा..... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं....."

सुधीर की बात सुनकर मुग्धा वहां से चुपचाप चली जाती है, बिना कुछ कहे, बिना जवाब दिए। सुधीर वही खड़ा रह जाता है यह सोच कर कि शायद उसने मुग्धा को पाने से पहले ही खो दिया। डॉक्टर कश्यप और नेहा जब मुग्धा और सुधीर को बुलाने के लिए आए तो उन्होंने भी यह बातें सुन ली। सब बस में जाकर बैठ जाते है। देखते ही देखते वह लोग मुंबई पहुंच जाते हैं। बस में भी मुग्धा ने सुधीर से कोई बात नहीं की थी। मुंबई पहुंच कर वह सीधा अपने घर की तरफ जाती हैं। रात के 12:30 बज रहे थे उस वक्त। वीर ऑलरेडी वहां पर मुग्धा का इंतजार कर रहा था। मुग्धा चुपचाप जाकर गाड़ी में बैठ जाती है।

2 दिन की थकान की वजह से मुग्ध घर जाते ही सो जाती है। मुंबई में मौसम बहुत खराब था आज। बहुत तेज बारिश हो रही थी। आसमान में बिजली कड-कडा रही थी। बादलों की आवाज मानो दिल दहला दे। और ऊपर से अमास की अंधेरी रात। घड़ी में रात के 1:30 बज रहे थे,तभी मुग्धा का फोन बजा ।फोन पर किसी से बात करते ही मुग्धा तुरंत बाहर जाने के लिए तैयार हो जाती है।

आज तो मानो पूरे शहर को अंधेरा खा गया था। मुग्धा किसी को ढूंढते हुए हॉस्पिटल की तरफ जाती है.... वहीं उसे कॉटेज के पास से कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई देती है और वह अपने कदम कॉटेज की तरफ बढ़ाते हैं कि तभी एक जोरदार चीख......

बचाओ........

सुबह की खिली खिली धूप! गौरी आंटी रोज की तरह पूजा कर रही थी। और गुलशन अंकल न्यूज़ देख रहे थे।

"ब्रेकिंग न्यूज़" मुंबई के फेमस हॉस्पिटल आरवीके के कॉटेज के पास मिली एक लड़की की लाश....

वीर दौड़कर मुग्धा के पास जाता है मगर मुग्धा वहां नहीं थी।

( आखिर किसने मारा मुग्धा को और क्यों? जानेंगे अगले एपिसोड में)