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नज़र - 5 - एक रहस्यमई रात

चारों तरफ एक ही न्यूज़ थी हर अखबार हर न्यूज़ चैनल पर एक ही लाइन "R.V.K. हॉस्पिटल के कॉटेज के पास मिली युवती की लाश"

न्यूज़ सुनकर डॉक्टर कश्यप सबसे पहले दौड़ कर हॉस्पिटल पहुंच जाते हैं। आसपास लोगों की भीड़... एंबुलेंस... पुलिस.... और ढेर सारे शोर के बीच वो अपने कदम धीरे धीरे कॉटेज की तरफ बढ़ा ही रहे थे, कि अचानक से उसे उन्हें किसी का धक्का लगा। वह सुधीर था। जल्दी से जल्दी वह सब भीड़ हटाकर बस वहां पहुंचना चाहता था कि कौन है वहां पर? किसकी है वो लाश? जैसे-जैसे सुधीर आगे बढ़ता गया आगे का रास्ता साफ होता गया। पीछे खड़े डॉक्टर कश्यप और रास्ता साफ करके आगे जाते हुए सुधीर दोनों की बढ़ी हुई धड़कनों के बीच उनके सामने थी -
"हल्के गुलाबी रंग के सलवार में, खून के लाल धब्बे और पेट में चाकू के वार के साथ बेजान पडी हुई मुग्धा की लाश...."

वह लड़की जिसे उसने बस कुछ घंटों पहले ही अपने दिल की बात बताई थी.... जिसके साथ वह सारी जिंदगी बिताना चाहता था.... उसकी आंखों के सामने ही उस लड़की की लाश पड़ी हुई थी। यह देखकर उसका खून ही सूख गया था। डॉक्टर कश्यप का चेहरा भी सफेद हो चुका था। पुलिस डॉक्टर कश्यप से सवाल जवाब करने लगती है। वह कुछ भी बोल ही नहीं पा रहे थे। इतने शोर के बीच एक और गाड़ी वहां आती है। गाड़ी अभी रुकी भी नहीं थी कि तभी उसमें से दरवाजा खोलकर वीर बाहर निकलता है। वह दौड़ कर कॉटेज के पास जाता है। सामने का नजारा देखकर उसके पांव तले से जमीन सरक जाती है वह वहीं जमीन पर बैठ जाता है।

यह खबर मुग्धा के परिवार के पास पहुंचती है। अपनी प्यारी सी बेटी जिसे आज तक उन्होंने सराखो पर बिठा कर रखा था। जिसे पहली बार ही शायद उन्होंने घर से दूर भेजा था। उसकी इस तरह से हत्या... तुरंत ही वह लोग मुंबई आने के लिए निकलते हैं,मगर किसे पता था कि कुदरत ने एक और अनहोनी तय कर रखी थी। अपनी छोटी बहन की ऐसी मौत ने एक भाई कुछ झिंझोड़ कर रख दिया था। वह लोग वापी हाईवे पर पहुंचे ही थे कि तभी-

धड़ाम.....

एक जोरदार एक्सीडेंट और मुग्धा का पूरा परिवार उस कार एक्सीडेंट में तबाह हो जाता है। आखरी बार ना मुग्धा उन्हें देख पाई ना वह लोग मुग्धा को देख पाए। और देखते ही देखते बस कुछ ही घंटों में एक पूरा हंसता खेलता परिवार खत्म हो जाता है।

नेहा, अंजलि, रुद्र, हॉस्पिटल स्टाफ, वॉचमैन, पुलिस सब को पूछताछ के लिए बुलाकर मुग्धा के कातिल को ढूंढने में लग जाती है। ना किसी से कोई झगड़ा, ना किसी से कोई बैर, बस अपने सपनों के पीछे भागने वाले एक प्यारी सी लड़की की हत्या ने सब को हिला कर रख दिया था। हर रोज पुलिस सब को पूछताछ के लिए बुलाती थी मगर कोई सुराग हाथ नहीं आ रहा था। और ना ही कोई वजह मिल रही थी मुग्धा जैसी लड़की का कत्ल करने की....

दिन बीतते जा रहे थे।सब का बस एक ही जवाब " किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं थी, वह बहुत सीधी लड़की थी"। और ना ही कोई सबूत मिल रहा था। सुधीर ने तो अब होस्पिटल जाना ही बंद कर दिया था। धीरे-धीरे सब लोग अब दोबारा अपने काम में लग रहे थे।

"इतनी प्यारी बच्ची थी पता नहीं किस की नजर लग गई उसे"- गौरी आंटी ने रोते हुए कहा।

मुग्धा की मौत का वीर को बहुत सदमा लगा था। उसने तो अपने घर वालों से बात करना तक बंद कर दिया था। मुग्धा जिस फ्लैट में रहती थी वीर उसी फ्लैट में जाकर रहने लगा था।

"बच्चे वीर, क्या हुआ? जो होना था वह हो गया है बेटा, अब हम उसे बदल नहीं सकते... तुम क्यों इतने गुमसुम बैठे रहते हो कुछ बात है क्या ?" - गुलशन अंकल ने वीर के पास बैठते हुए कहा।

"यह आप मुझसे कह रहे हैं पापा.... जैसे कि आपको कुछ पता ही नहीं है?- वीर ने गुस्से में कहा।

" क्या मतलब? तुम कहना क्या चाहते हो? मैं कुछ समझा नहीं...."- गुलशन अंकल ने आंख चुराते हुए कहा।


"मेरे सामने यह सब नाटक करने की जरूरत नहीं है पापा। मुझे पता है की आप मुग्धा पर चुप चुप के नजर रखते थे। मैंने कई बार आपको उसके फ्लैट में जाते हुए देखा भी था। बहुत बार कोशिश भी की मुग्धा को सच बताने की... मगर इतनी गिरी हुई बात उसे बताता भी तो कैसे? कैसे कहता उससे कि उस पर जो नजर रख रहा है जो उसे गंदी नजरों से देख रहा है वह कोई और नहीं उसके अपने ही गुलशन अंकल यानी कि आप थे पापा....

यह सब जानने के बाद मैंने उसे कभी अकेला तो नहीं छोड़ा पापा मगर पता नहीं कहां मैं पीछे रह गया। प्यार करने लगा था मैं उससे.... पापा बहुत ज्यादा प्यार.... मगर मेरी बदकिस्मती देखो मैं उसे बता तक नहीं पाया। गुलशन अंकल शर्म के मारे नजरें झुका कर वहां बस गुमसुम बैठे रहे। और वीर भरी हुई आंखों के साथ वहां से चला जाता है।

(कौन था मुग्धा का कातिल? और क्यों हुआ था उसका कत्ल? कहीं वो गुलशन अंकल ही तो नहीं थे‌ या कोई और???? )

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