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नज़र - एक रहस्यमई रात

"जरा सी देर हो जाएगी तो क्या होगा?
घड़ी घड़ी ना उठाओ नजर घड़ी की तरफ।"

पढ़ाई से जब भी वक्त मिलता मुग्धा यूं ही किताबों के पन्नों में खुद को समेट लेती थीं। कविताओं से कुछ ज्यादा ही लगाव जो था उसे। ट्रेन का सफर, कविताओं की पंक्तियां, और ऊपर से बारिश का मौसम। सब मुग्धा के इस शौख को आज और भी ज्यादा बढ़ावा दे रहे थे।
मुग्धा राठौड़। गुजरात के वापी शहर की एक राजपूत लड़की। परिवार में प्यारी सी मम्मा है जो सुबह-शाम बस सबकी चिंता और उनके लिए खुशियां बटोरने में लगी रहती है, और पापा जो बिल्कुल नारियल की तरह है ऊपर से बहुत स्ट्रिक्ट पर अंदर से उतने ही नरम, मुग्धा तो अपने पापा की लाडली बेटी थी। और एंड में एक एंग्री यंग मैन, याने की मुग्धा का भाई, उसका यह एंग्री यंग मैन वाला लुक सिर्फ बाकी सब के लिए था, अपनी बहन के पर तो वो जान छिड़कता था। परिवार से मिलता हुआ ढेर सारा प्यार, पढ़ाई और उसकी कविताओं की किताब, बस इन्हीं सब के साथ जुड़ी हुई थी मुग्धा की जिंदगी । पापा के सपने को अपना सपना बनाकर फाइनल एग्जाम्स में टॉप करके मुंबई के सबसे फेमस हॉस्पिटल V.R.K. में इंटरशिप के लिए मुग्धा ने आखिरकार स्कॉलरशिप हासिल कर ही ली।

बस इसी सपने की और उसका पहला कदम था आज का यह सफ़र। देखते ही देखते मुग्धा पहुंच जाती है सपनों के शहर में यानी की मुंबई। ट्रेन से उतरते ही वो देखती है कि चारों तरफ भगदड़ मची हुई थी। हर किसी को कहीं ना कहीं पहुंचने की जल्दी थी। लोग एक दूसरे को धक्का मारकर, या भागकर किसी भी तरह से बस आगे निकालना चाहते थे। ये सब देखकर मुग्धा की घबराहट और भी बढ़ गई कि तभी.....

"अरे नहीं,अरे सुनिए चोर... चोर.... हेल्प प्लीज, हमारा पर्स.... कोई हमारी हेल्प कर दीजिए"

उसकी आवाज सुनते ही स्टेशन पर खड़े सारे लोग उसकी तरफ देखने लगे और देखते भी क्यों ना एक अलग सा ही ठहराव था उसकी आवाज में।

"अरे बेटी यह मुंबई है यहां पर एक बार अगर कुछ चोरी हो जाता है तो वापस कभी नहीं मिलता" उसी भीड़ में से किसी ने आवाज लगाकर उससे कहा।

मुग्धा ने थोड़ी देर कुछ सोचा और फिर स्टेशन मास्टर के ऑफिस की तरफ चली गई, वहां पर कंप्लेंट की पर वहां भी यही जवाब मिला कि मुंबई में अगर एक बार कुछ खो जाय तो दोबारा नहीं मिलता। पर्स में ज्यादा कुछ था नहीं बस ट्रेन की टिकट और कुछ पैसे थे इसलिए वो भी घर जाना है मुनासिब समझती है और टैक्सी करके पापा के बताए हुए एड्रेस पर पहुंच जाती है। अपनी बेटी के लिए पापा ने रहने का इंतजाम अपने जिगरी दोस्त गुलशन के फ्लैट में करवा लिया था। मुग्धा वहां पर पहुंचकर देखती है तो उनके घर का दरवाजा पहले से ही खुला हुआ था। गुलशन अंकल की वाइफ गौरी आंटी वहां पर शाम की पूजा कर रहे थे, घर में चारों तरफ शांति फैली हुई थी मानो के वहां कोई रहता है ना हो, एक अजीब सा खिंचाव और तनाव महसूस हो रहा था वहां, मुग्धा ने जाकर दरवाजा खटखटाया। आवाज सुनकर गौरी आंटी और गुलशन अंकल दोनों की नजर दरवाजे की तरफ गई।

मुग्धा को देखते ही दोनों दौड़ के उसके पास आए। मुग्धा ने दोनों के पैर छुए, गौरी आंटी ने तो उसे ऐसे गले लगा लिया जैसे वो उन्हीं की बेटी हो। गुलशन अंकल और गोरी आंटी दोनों ने ही उसका बहुत ही अच्छी तरह से वेलकम किया मगर पता नहीं क्यों मुग्धा अजीब सी घुटन महसूस कर रही थी वहां, फिर शायद सफर की थकान की वजह से ऐसा हो रहा हो सोचकर वह वही चुपचाप बैठ जाती है।

"सफर कैसा रहा बच्चे तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना?" गौरी आंटी ने पानी देते हुए पूछा।

पानी पीते हुए मुग्धा की नजरें घर के चारों तरफ घूम रही होती है,थोड़ी सी घबराहट महसूस हो रही थी उसे। शायद मम्मा पापा के बगैर पहली बार घर से इतनी दूर आई थी किसी अनजान शहर में, अनजान घरमें ये इसलिए ऐसा हो रहा हो सोचकर वो खुद को संभालने की कोशिश करती हैं और कहती है,-
"जी नहीं आंटी सफर में तो कोई तकलीफ नहीं हुई पर वो स्टेशन पर उतरते ही हमारा पर्स चोरी हो गया"

"अरे कोई नहीं बच्चे ये तो मुंबई है यहां पर तो आए दिन चोरियां होती ही रहती है पर तु बिल्कुल फिक्र मत कर चल अब आराम करले हमने तेरा फ्लैट कब से साफ करके रेडी रखा है"- कहते हुए गुलशन अंकल मुग्धा का बैग लेकर बिल्कुल उनके बगल वाले फ्लैट में जाते हैं और वहां रख आतें हैं।

मुग्धा उन्हें जाते हुए देखती है। उसकी नजर अभी तक घर के चारों तरफ घूम रही होती है। घर काफी साफ सुथरा था और बहुत शांत भी।शायद अंकल आंटी अकेले रहते हैं यहां पर इस लिए ईतना सन्नाटा है सोचते हुए मुग्धा गौरी आंटी की तरफ देखती है।

"बच्चे तू जा आराम कर मैं अभी तुम्हारे लिए कुछ गरमा-गरम बना कर लाती हूं तब तक तुम चाहो तो फ्रेश हो जाओ, ठीक है?"-गौरी आंटी ने किचन की तरफ जाते हुए कहा।

मुग्धा जवाब में सिर झुका कर हां कहती हो और अपने फ्लैट में जाती है।

हल्की गुलाबी रंग की दीवारें,बीच में ब्राउन कलर के सोफे और टेबल,उनके ठीक सामने लगा हुआ टीवी और उसके पास वाले टेबल पर रखी हुई थी कुछ खूबसूरत मूर्तियां। खिड़की से आती हुई ठंडी हवा और वही रखे हुए थे कुछ प्यारे से पौधे जिन्हें देखकर लग रहा था मानो वो मुस्कुरा रहे हो।

कमरे की खूबसूरती और सजावट देखकर मुग्धा की थकान मानो गायब ही हो गई। वो बैग वहीं सोफे पर रखकर पूरे घर में घूमने लगती है और हर एक चीज को बड़ी उत्साह के साथ देखने लगती है। होल से सीधा अंदर जाने पर सामने था बेडरूम और उसके बिल्कुल बगल में था किचन। बेडरूम में भी हर एक चीज बहुत सलीके से रखी हुई थी। किचन की खिड़की से दूर तक दीख रहे थे हरे हरे पेड़ और खुला आसमान।

"अगर मां ने इस किचन को देख लिया ना तो वो तो यहीं पर बस जाए"- अपने आप से कहते हुए मुग्धा हंस पड़ी। इस प्यारी सी मुस्कान के साथ ही उसकी आंखों में एक नमी से छा गई वो तुरंत ही हॉल की तरफ गई, अपने बैग से मोबाइल निकाला और,

"हेलो मम्मा"- मुग्धा आगे कुछ बोलो उससे पहले ही,
" हां बेटा तुम पहुंच गई ना? हम तुम्हारे ही फोन की राह देख रहे थे। इतनी देर क्यों हो गई कॉल करने में और सफर कैसा रहा तुम्हारा? गुलशन अंकल और गौरी आंटी से मिली कि नहीं, कैसे हैं वो लोग? और अपना घर देखा तुमने?"- कॉल रिसीव करते ही मुग्धा की माने तो जैसे सवालों की फुहार ही बरसा दी।

"अरे रुको रुको रुको मुझे बोलने तो दो मम्मा, मैं मुंबई बिल्कुल सही सलामत पहुंच गई हूं।गुलशन अंकल और गौरी आंटी दोनों से भी मिल लिया, पापा से कहना वह दोनों बहुत अच्छे हैं,उन्होंने बिल्कुल अपनी बेटी की तरहां मेरा वेलकम किया मम्मा और ये घर इस की तो बात ही मत पूछो बहुत-बहुत प्यारा है। पापा कैसे हैं वो ठीक है ना?उनसे कहना कि मेरी बिल्कुल चिंता ना करें मैं यहां ठिक हूं और हां खुश भी!"
मां से बात करके अब उसका मन कुछ हल्का हुआ।

मोबाइल टेबल पर रख कर मुग्धा पर जैसे ही खड़ी हुई की ज़ोर से एक आवाज आई।।
धड़ाम.......
और दरवाजा अपने आप बंद हो गया। मगर फिर शायद हवा की वजह से होगा ऐसा सोचकर वो नहाने चली जाती है।

मुग्धा नहाकर अपने गीले बालों को तौलिए से सुखाते हुए बाहर आती हैं और उसकी नजरें तेजी से घर के चारों तरफ घूमने लगती है।
"कोई है क्या यहां ?गौरी आंटी आप है क्या?- किसी के आसपास होने के एहसास और थोड़ी सी घबराहट के साथ मुग्धा बोली पर कोई जवाब नहीं आया।
वो सोच ही रही थी कि आखिर ये सब हो क्या रहा है? क्यों उसे हर वक्त किसी के आस पास होने का एहसास हो रहा है कि तभी टेबल परर रखें चाय और नाश्ते की डिश पर उसकी नजर पड़ी।शायद आंटी वहां रखकर गई होगी ऐसा सोचकर वो चाय का कप हाथ में लेती है और बारिश में अपने आसपास के नजारे को खिड़की से झांक कर देखने लगी।

सफेद सलवार, लाल दुपट्टा और उसके लंबे गीले बाल उसे बहुत आकर्षक बना रहे थे, माथे पर छोटी सी काली बिंदी, उसकी हल्की हल्की सी मुस्कान और उस मुस्कान को नजर से बचाने के लिए होठों के बिल्कुल पास एक छोटा सा तिल, पैरों में पायल की मधुर आवाज उसके नाजुक कदमों का एहसास दिला रही थी, उसकी ये सादगी मानो किसी के भी दिल में जगह बना ले।

मुग्धा अपने एक हाथ में चाय का कप और दुसरे हाथ में कविताओं की किताब लेकर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो जाती है।वो अपनी कविताओं में इतनी खो जाती है कि उसे इस बात का भी एहसास नहीं होता कि वहां कोई था,कोई था जो कब से उसकी खूबसूरती को निहार रहा था या शायद नजर लगा रहा था.....

( क्या सच में वहां कोई था, और अगर हां तो कौन? )

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