डॉ ज्योति गजभिए मुंबई से हैं, वे लघु कथा,ग़ज़ल,मुकरी और दूसरी बहुत सी विधाओं मैं रचना करती हैं उनका कहानी संग्रह अयन प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह मैं ज्योति गजभिए की 14 कहानियां प्रकाशित हैं । कुल मिलाकर 116 पृष्ठ में फैली इन कहानियों का मूल विषय घर परिवार पति पत्नी और आसपास के रिश्ते और समाज को बनाया गया है।
बाहुली कहानी" बिरजू नहीं मरेगा" में एक ऐसी निसंतान महिला की कहानी है, जो दिखती तो विक्षिप्त है पर उसके पीछे दर्दनाक कथा है। उसका बेटा गंगा जी में डूब कर खत्म हो गया था और पति भी पूर्व में समाप्त हो चुका था। धनाढ्य परिवार की इस महिला की सारी संपत्ति रिश्तेदार हड़प चुके थे ,तो बेटे के गम में दुखी माई विक्षिप्त हो जाती है। बाजार में घूमती यह महिला कभी होटल पर खाना मांगती है तो कभी कुछ और । एक बार भोजनालय वाला उसे खाना ना लेकर लकड़ी लेकर उसे मारने के लिए डरपाता है तो वह गली में भाग जाती है । गली में इसी भोजनालय का पिछला दरवाजा है, जहां किशोर अवस्था का नौकर बिरजू भोजन बना रहा है। वह माई को कुछ खाने पीने को देता है । तो माई को इस बच्चे पर लाड़ आता है । वह भी अपनी सौतेली मां से पीड़ित है तो उसे अपनी मां की छबि नजर आती है । वह माई को अपनी कोठरी में रात बिताने की सहूलियत देता है । माई वहां आकर रोज रात बिताती है । एक दिन, दिन में भोजनालय मालिक जब बिरजू को पीट रहा होता है तो माई उससे बिरजू का हाथ छुड़ाकर कहती है कि ; अब बिरजू नहीं मरेगा ; और बिरजू को अपने साथ लेकर चल देती है (प्रष्ठ 16)
दूसरी कहानी "कवि सम्मेलन का आखरी कवि "कहानी में सुदामा रैकवार नामक कवि की दास्तान है, जो एक कवि सम्मेलन में शिरकत करता है ,लेकिन संचालक उसे जानबूझ कर अनदेखा कर सम्मेलन के अंत में कविता पाठ के लिए आमंत्रित करता है। वह भी सिर्फ सुदामा नाम से बुलाता है । सुदामा मंच पर जाकर अपना पूरा नाम सुदामा रेकबार बताता है। सुदामा की कविताएं खूब पसंद की जाती हैं ।(पृष्ठ 20)
भूखे भेड़िए कहानी में समाज के भूखे भेड़ियों की कथा है , जिसमें एक पिता अपनी पुत्री के साथ छेड़छाड़ करता है, तो प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ और प्रेमिका की अनुपस्थिति में किसी और के साथ। इस तरह समस्त पुरुष जाति की स्त्री के प्रति लोलुपता को इस कहानी में दर्शाया गया है। सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करती रेशमा एक बार कुछ मनचलों द्वारा सताई जा रही एक पागल महिला को बचाकर घर में लाती है। अपने घर में अपने मंगेतर प्रीतम के भरोसे छोड़कर भाई ड्यूटी पर जाती है और अचानक घर लौट कर मैं देखती है कि प्रीतम उस पागल स्त्री के साथ जबरदस्ती करने में लगा हुआ है। यह देखकर वह प्रीतम पर हमला कर देती है और समस्त पुरुष जाति को भेड़िया कहती है( पृष्ठ 26)
टुकड़ा टुकड़ा प्यार कहानी अमेरिका में पढ़ाने वाली निष्ठा के बिछड़े प्रेमी और अकस्मात मिल गए दूसरे प्यार की कहानी है । निष्ठा पूर्व में समीर से प्यार करती थी और उनके जिस्मानी संबंध भी हो चुके थे। निष्ठा एक बार समीर को एक आश्चर्य लड़की के साथ अंतरंग रूप में देख लेती है तो वह तुरंत समीर से रिश्ता तोड़ देती है, और अलग रहने लगती है समीर के संस्थान में उसे सेमिनार में आने का निमंत्रण मिलता है तो द्वंद में रहती है। अंततः वह सेमिनार में जाती है,। वहां समीर का स्टूडेंट मयंक पहली भेंट में ही निष्ठा के प्रति आकर्षित होता है और अपना अफेक्शन कह भी डालता है। निष्ठा को भी मयंक का प्यार सच्चा लगता है और वे उसे लगभग स्वीकार करने को तैयार हो जाती है ।( पृष्ठ 37)
"अनोखा ब्याह "कहानी भारतवर्ष के समाज में सदियों से दबाए गए दलित समाज के नए जमाने के युवक की कहानी है । नए जमाने का युवक भूरे अपने विवाह में घोड़ी पर चढ़कर बारात निकालने की ज़िद करता है। उसके मित्र और उसके परिवार वाले उसकी खुशी के लिए अनमने होकर घोड़ी की व्यवस्था करते हैं । जब बारात निकल रही होती है तो अगड़े समाज द्वारा उन पर फौजदारी यानी मारपीट की जाती है क्योंकि पहले से पुलिस को खबर दी जा चुकी है व
बाद में भी रिपोर्ट की जाती है तो पुलिस भी करती है और हेलमेट लगाए दूल्हा थाने पहुंचता है ।थाने के बाद मंडप जाकर विवाह की रस्म पूरी करता है ।यह अनोखा विवाह एक साहसी दलित युवक की कहानी है । (पृष्ठ42)
कहानी कुलच्छनी में पति सोमेन द्वारा शुरू से ही उपेक्षा ताने बाजी और अपमानजनक टिप्पणियों का शिकार पत्नी संपा द्वारा पूरे नियम और संयम से गृहस्ती बादाम पति को निभाने का प्रयास किया जाता है, लेकिन सुमन लगातार उसे कुलच्छिनी कहता रहता है । पड़ोस की काकी प्रभा का रिश्तेदार व किराएदार अनुराग एक बार शंपा को देखता है तो उसकी अद्वितीय सुंदरता और प्रभावशाली स्वभाव से प्रभावित होकर अपना दिल दे बैठता है ।फिर वह किसी ना किसी बहाने चंपा के पास आता रहता है ।सोमेन को यह निकटता पता चल जाती है तो वह चंपा को घर से निकालने का होता है, लेकिन शंपा के मां और बाप हाजिर होते हैं ,वे रोते हुए प्रार्थना करते हैं संपा को घर में रहने की इजाजत मिल जाती है । लेकिन उसका अपमान जारी रखा जाता है ।ऐसे में एक रात चंपा भागकर अनुराग के पास चली जाती है जो कोलकाता रह रहा है। इधर सोमेन शुरू से ही खुश एक को लक्ष्मी और चरित्र बताने का प्रचार शुरू कर देता है ।(पृष्ठ 52)
"नए जमाने की लड़की " कहानी एक पढ़ी-लिखी युवती रश्मि की कहानी है... जिसकी ससुराल में करोड़ों का घाटा हो गया है ,व्यवसाई ससुर जी अपने घाटे के कारण को जानने और धंधे को पूरा ठीक करने के लिए तंत्र मंत्र ग्रहों और ईश्वर आराधना की मदद के वास्ते एक प्रसिद्ध महात्मा के आश्रम में जाते हैं । महात्मा किसीतरह यह जान लेता है कि इनके घर में तब से ही घाटा शुरू हुआ है जब से नई बहू आई है ।वह महात्मा बहाने से नई बहू यानी रश्मि को अपने आश्रम में बुलाता है। रश्मि नए जमाने की लड़की है वह नए बाबाओं पर विश्वास नहीं करती ।पुलिस कमिश्नर को अपनी शिकायत करती है, तो पुलिस अपना जाल बिछाती है ।रश्मि पति सहित आश्रम में जाती है और रात को ठीक 12 बजे जब साधु कथित साधु अपने कमरे में रश्मि को बुलाकर उसे उसके साथ बलात्कार की तैयारी कर रहा होता है कि पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है ।(पृष्ठ60)
आठवीं कहानी शीर्षक कहानी है "बिन मुकदमों की दुनिया" यह कहानी अपेक्षाकृत बड़ी भी है , प्रभावशाली भी है और संग्रह के समस्त कथानक में व्यापक विपुल कथानक वाली और हर स्तर पर एक कंप्लीट कहानी कही जा सकती है। यह कहानी किसी तरह के मुखोटे ना लगाने वाले पागलों की कहानी है। पागल खाने में एक लड़की शोध करने जाती है और वहां वह अलग-अलग तरह के अनुभव लेती है। कुछ ही दिन में शोध छात्रा जान जाती है कि इस समाज में बाकी लोग तो नकली मुखौटा धारण करते हैं ,केवल पागल खाने के लोग की दुनिया बिना मुखोटों की दुनिया है यही सच्ची दुनिया है ।( पृष्ठ 76)
नवीं कहानी "फकीर नवाब "में शायर हसन के सृजन प्रकाशन व पुरस्कार मिलने की कहानी है, जिसमें कि प्रकाश भाई बहुत मदद करते हैं । हसन एक प्रतिभाशाली शायर हैं । वे बेहद गरीब हैं। एक झोपड़ी में निवास करते हैं। पर उन्हें फकीर नवाब की मानसिकता और उदारता से समृद्ध बताया गया है। वे पैसे को महत्व नहीं देते अपनी काबिलियत के दम पर लिखी हुई गजल और कविताओं को महत्व देते हैं । जिन्हें वह एक नकली मंचीय कविता द्वारा खरीदने की कोशिश करने पर भी बेचते नहीं है ।(पृष्ठ 83)।
संग्रह की अन्य कहानियों में "मिट्टी की खुशबू" " मन्नत का धागा" " हीर का तीसरा जन्म" " शेष हो तुम मेरे भीतर " व "महापुरुष" हैं ; जिनमें हमारे आसपास के घटित घटनाओं और चरित्रों की कहानियां कही गई है ।
इस संग्रह से गुजरने के बाद हम जो प्रमुख बिंदु इन कहानियों के बारे में और इन कहानियों को समझते हुए कह सकते हैं कि इन कहानियों में बहुत विशिष्टता है।
भाषा के नजरिए से यह संग्रह अपेक्षाकृत आगे समृद्धि की आकांक्षा जगाता है । ज्योति अभी तक ग़ज़ल और कविता लिखती रही हैं , पहली बार उन्होंने यह कहानियां लिखी हैं ,जिन पर इन कहानियों की भाषा के तौर पर लेखिका को अभी और साधना करनी है ,तपस्या करनी है ,तब उन्हें एक मुकम्मल कथा लेखिका के रूप में जाना जा सकेगा ।
इस संग्रह की कहानियों में सौतेली मां कई बार आती है बिरजू इसीलिए घर छोड़ता है कि उसकी सौतेली मां उस पर अत्याचार करती है ।
संग्रह की कहानियों में दलित नायक अनेक बार आए हैं । अनोखा ब्याह का एक भूरे दलित है, कवि सम्मेलन का आखरी कवि सुदामा रैकवार भी दलित है।इस बहाने से दलितों के बहाने से लेखिका ने दलितों की वर्तमान में स्थिति को सामने लाने का प्रयास किया है। भले ही सरकार और समाज आज दलितों को बराबर का दर्जा दे दिया जाने की घोषणा करते हो ।
साहित्यकार नायक भी इन इस संग्रह की कुछ कहानियों में है । कवि सम्मेलन का आखरी कवि का सुदामा, व फकीर नवाब , इन दोनों के नायक साहित्यकार हैं, इस तरह लेख का की पहली पसंद संवेदनशील साहित्यकार होता है ,जो न केवल त्यागी होता है बल्कि खरी-खोटी कहने वाला सुनने वाला व्यक्ति होता है और समाज का बुद्धिजीवी होता है।
विक्षिप्त लोगों की कहानियां भी इस संग्रह में कई कथानक में सम्मिलित होकर आई हैं । बिन मुखोटो की दुनिया और भूखे भेड़िए में न केवल विक्षिप्त लोग हैं बल्कि बिरजू नहीं मरेगा की नायिका भी विक्षिप्त है। ज्योति की कहानियों के विक्षिप्त व्यक्ति समाज का कोई नुकसान नहीं करते, हिंसा नहीं करते और कोई छेड़छाड़ नहीं करते। वे समाज के पीड़ित व्यक्ति हैं , इन कहानियों के विक्षिप्त लोगों को देखकर विक्षिप्तों के प्रति एक दया की भावना आती है और अगर यह मानवता जगाने में यह संग्रह सहायक होता है, तो लेखिका बधाई की पात्र होती है
कहानियों में पर्याप्त अंतर्द्वंद है जिसको कहानीकार ने खुल कर कहाहै
कहानियों का आकार भी पर्याप्त व ठीक साइज में है।
लेकिन असल बात है इन कहानियों के बुनावट कि जैसा लेखिका ने लिखा अभी कथा बुनावट में उन्हें इस कला में श्रेष्ठता हासिल करनी है। जिसका हम को अगले संग्रह में इंतजार रहेगा ।
यह संग्रह ज्योति गजभिए के पहले कथा संग्रह के रूप में स्मरण किए जाने योग्य है