कन्हर पद माल- शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 30
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज कृत
(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)
हस्तलिखित पाण्डुलिपि सन् 1852 ई.
सर्वाधिकार सुरक्षित--
1 परमहंस मस्तराम गौरीशंकर सत्संग समिति
(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्हर दास जी सार्वजनिक
लोकन्यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्द्री, पिछोर।
सम्पादक- रामगोपाल ‘भावुक’
सह सम्पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ राधेश्याम पटसारिया राजू
परामर्श- राजनारायण बोहरे
संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)
पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com
प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2045
श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)
2 चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी सम्वत् 2054
सम्पादकीय--
परमहंस मस्तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्द विभोर कर रहा है।
पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्दी साहित्य में स्थान दिलाने, संस्कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज सम्वत् 1831 में ग्वालियर जिले की भाण्डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्मे।
सन्त श्री कन्हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्हर सागर’’ में पर्याप्त स्थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्त संत श्री कन्हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्तुत कर रहे हैं।
कन्हर पदमाल के पदों की संख्या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्या का प्रमाण--
सवा सहस रच दई पदमाला।
कृपा करी दशरथ के लाला।।
के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्त हो पाये हैं। स्व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्द्र उत्सुक के सम्पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्त्रीय संगीत की धरोहर
तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।
गुरू कन्हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्थ।।
विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्तम श्री कृष्ण का जीवन झांकी से साम्य उपस्यित करने में बाबा कन्हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।
डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्त्रीय संगीत की धरोहर कन्हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।
सन्त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्ल, श्री रामनवमी रविवार सम्वत् 1939 को पिछोर में हुआ।
नगर निगम संग्रहालय ग्वालियर में श्री कन्हर दास पदमाल की पाण्डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्वालियर द्वारा पाण्डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्त चन्दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।
पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्हर साहित्य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।
इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।
रामगोपाल भावुक
दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्पादक
राग – भैरवी
छवि वर सोभित राम किसोर।।
हरि मंदिर चहुं ओर सुहाये, संखनि की घन घोर।।
पावन भूमि निवास संत जन, चितत प्रभु की ओर।।
पठन करै महि देव मनोहर, सुंदर निकट पिछोर।।
वन उपवन शुभ मान सरोवर, बोलत चातक मोर।।
कन्हर नगर मध्य गिरि राजत, तापर गढ़ वरजोर।।1019।।
राग – पीलू
रे मन तूं क्यों गाफिल सोवै।।
राम नाम कौ सुमिरन करि लै, निसिफल निसि मति खोवै।।
बालापन पन तरून गमायौ, जरा रहौ का जोवै।।
कन्हर जो न जपैगो हरि पद, सोई सिर धुनि रोवै।।1020।।
राम कहौ तुम्हें राम दुहाई।।
नाम लेत अघरेत रेत भये, कुटिल कोटि अपनाई।।
अजामेल द्विज गनिका नारी, सदना जाति कसाई।।
छीपा पीपा धना जुलायौ, गीध ब्याध मन भाई।।
नाम प्रभाव अटल पद ध्रुव कौ, समझि सदा गुन गाई।।
कन्हर भजन बिना रघुवर के, मिटै न मन मलिनाई।।1021।।
वन वन ढूंढ़े स्याम ना पाये।।
ये नैना दरसन के लोभी, निसि बासर तरसाये।।
मन तौ धीर धरत ना आली, छिन – छिन कल्प बिताये।।
कन्हर कहत कसीर हमारौ, मिलि करि कै बिलगाये।।1022।।
राग – सारंग
रसना वेगि सुमिरि सिय रामै।।
जा कारन दीनी नर देही, अबसि करौ ता कामै।।
सो दिन सांचौ राम भजन में, सो अब समझि न कामै।।
कन्हर कह दस दिवस ये फिरि, बंधै काल की लामै।।1023।।
गरगज के हनुमान अनेरे।।
गोपाचल ढिग लसत मनोहर, कस बरनौं गुन तेरे।।।
तेजपुंज रघुवीर पियारे, बसौ सदा मन मेरे।।
सिद्धि होति जन नाम लिये ते, लागत नहिं फिरि देरे।।
पुजवत सकल मनोरथ मन के, कीने पार घनेरे।।
कन्हर चरन सरन तकि आयौ, ताइ कृपा करि हेरे।।1024।।
मोकौ गुलाम करौ राम अपनौ।।
आवागमन व्याल जा जग में, मानौं निसि कौ सपनौ।।
काम क्रोध मद लोभ लहरि में, फिरि – फिरि कै अब झपनौं।।
कन्हर तुम्हरी कृपा बिना अब, घटै नहीं तन तपनौ।।1025।।
राम मोई कब करिहौ रे दास।।
काम क्रोध मंद लोभ मोह में, पावत नहीं प्रकास।।
इनिबस भयौ खबरि नहिं तन की, कैसे आऊं पास।।
कन्हर कहि मन लागि रही है, हरि चरनि की आस।।1026।।
राम नाम गुन गावै, कोई पार न पावै।।
रिग यजु स्याम अथर्वन चारों वेद, सदा उर ल्यावै।।
वैसेसिक कहि साखि मीमांसा, सब ही सरन लखावै।।
अरू वेदान्त न्याई पातांजलि, ये षट धर्म दिठावै।।
ब्रम्हा विष्णु सिव पद्म लिंग, अरू मीन बराह कहावै।।
बामन वर अस्कंध अगिन गुनि, कूरम गरूड़ सुनावै।।
नारद भव्य ब्रम्ह वैवर्तक, मार्कन्डे मन भावै।।
अष्टादस ब्रम्हांड भागवत, अमित बार कहि गावै।।
भारथ बाल्मीक रामायन, सुंदर नीति बतावै।।
कन्हर राम नाम की महिमा, बिलगि बिलगि समझावै।।1027।।
रघुवर लाल परौं थारी पइयौं।।
मिथिलापुर ते अब जिनि जयौ, सुनौ अवधपति सइयां।।
तुम बिन तौ अब कल न परैगी, मन न लगत घर मइयां।।
कन्हर छवि माधुरी बिना अब,दृगन धीर छिन नहिं अइयां।।1028।।
मन तुम सुमिरौ राम कबै।।
जौनौं तोइ कोऊ बूझत नाहीं, तौनौं तेरी फबै।।
जा दिन तोई सबरी सुध आवै, ता दिन हाथ दबै।।
कन्हर हरि बिन कौन करैगो, औगुन माफ सबै।।1029।।
सदा मन बसौ सिया रघुराई।।
सनमुख पवन कुमार विराजत, सरनागत सुखदाई।।
राम निवास मनोहर सुंदर, संत रहे बहु छाई।।
ध्यान करत निसि बासर हरि कौ, जुगल चरन उर ल्याई।।
सुभ अस्थान भूमि वर पावन, निकट पिछोर सुहाई।।
लसत समाधि पादुका सुंदर, विदित सबै है जाई।।
संत समाज विप्र वर राजत, बरनौ किमि है गाई।।
कन्हर अरज लिखी पदमाला, सरन तकौ हरि आई।।1030।।
तैलिंग गुर्जर कहे द्रावड़, अरू कय कर्णाट।।
पंच द्रावड़ बसत है, दछिन में महाराष्ट्र।।
कानकुब्ज मैथिल गौड़ अरू, सारस्वत जानि।।
उत्कल उत्तर बसत है, पंचगौड़ पहिचानि।।1031।।
राग – टोड़ी जौनपुरी
बिसरि गयौ है रे वा दिन की सुधि नाई।।
जब जम दूत तोहि लै चलिहै, संग न कोऊ सहाई।।
अब तूं मति भूलि मति भूलै, फिरि पीछे पछिताई।।
कन्हर प्रभु को नाम सम्हारौ, काम परै तहं जाई।।1032।।
तैं अपनौं करि हेरौ।।
संग विसंग संग नहिं कहौ, मानि लै मेरौ।।
जगत रूप मन विभ्रम निसि बसि, आयु सुअंत सबेरौ।।
कन्हर राम सिया पद पंकज, सुमिरत तब सेरौ।।
कवित्त1033।।
जपि मन रामचरन सुखरासी।।
प्रेम दास स्वामी निसिवासर, कहि – कहि गुन हरषासी।।।
तिनिके सिष्य भये लछिमन वर, राम ध्यान उर ल्यासी।।
तिनिके दयाराम गुननिधि भये, भक्ति गुरनि को आसी।।
तिनिके मारदास गुन जुत भये, रामचरन रति पासी।।
तिनि की कृपा सुदिष्ट भये ते, कन्हर बरनि राम गुन गासी।।1034।।
संवत्साल गुनैसैनौं वदि, कातिक मास की सप्तमी मानौ।।
गुरूवार औ पुष्य विचारि लये, सो सदा शुभ कारज कौ सुभ आनौ।।
या पदमाल जो गावै सुनै, बिन ही स्रम सो भव पार हो जानौ।।
कन्हरदास सियावर कौ जह, राम चरित्र पवित्र बखानौ।।1035।।
राग – रामकली।।
मन जो सीताराम कहै रे, सोई अमृत पान करै रे।।
निरभै रहत सोच नहिं वाकह, सुनि जमराज डरैं रे।।
आदि मध्य अरू अन्त तंत्र की, बिगरी सब सुधरै रे।।
कन्हर नाम लेत यक छिन महं, भव ते पार परै रे।।1036
।।
राग-जौंनार
विश्वामित्र अभय मुनि कीनैं प्रभु सबल निसाचर मारी हो।।
गौतम त्रिय आनि उधारी सब मेटि दिये दुख भारी हो।।
जहां भूप सकल मिलि आये भव चाप महा मद टारी हो।।
तुम कठिन सिंभु धनु टोरौ मुनि परसराम मद हारी हो।।
कन्हर नृप कौ प्रन राखौ ब्याही तुम जनक दुलारी हो।।1037।।
राग- झंझौटी
जग में जनक बंस जस छाई।।
निमी जनक नृप रूदा वसू वर महावीर्ज श्रुति गाई।।
धृतिमान सुधृति भये अरू धृष्टकेत मन भाई।।
अरू हरि जस्व मरूत वर सुंदर प्रत्वंधक सुखदाई।।
कीरति देव मीठ की करनी विवुध महा धकराई।।
कीर्ति रांत महा रौ वस्ह स्वरोमा शुभ आई।।
सुवर्ण रो मांदप मनोहर सीर ध्वज प्रभुाताई।।
कन्हर विदित लक्ष्मी निधिवर तस वरनत सकुचाई ।।1038।।
राग-गौंड़ मल्हार
मुख छवि छटा निहारि हिडोरै झूलैं राजकुमार।।
चारों कुमर मनोहर राजत उपमा बहुत प्रकार।।
भूषन वसन लसत तन सुन्दर अरून पुष्प वर हार।।
घन गरजत अरू बिजुरी चमकति त्रिविधि समीर सुढार।।
हरी-हरी भूमि सुहावन लागत मुरिला करत उचार।।
कन्हर गान करत पुर भामिनि सोरठि गौंड़ मल्हार।।।।1039।।
राग – देस, ताल – त्रिताल
नृपति कुमार सखा सब मिलिकै बीथिनि धूम मचाई।।
उड़त गुलाल लाल भये बादर, छाई रही अरूनाई।।
पुर नर- नारी हर्ष जुत धावैं देखन फागु सुहाई।।
कन्हर अतुलित देखि राम छवि जन्म लाभ भरि पाई।।
राम सौं खेलन होरी अवधि वधू मिलि आई।।
चोबा चंदन अबिरि अरगजा कनक कटोरन ल्याई।।
बाजत ताल मृदंग डप झांझर केसरि रंग मचाई।।
कन्हर के प्रभु घेरि लिए हैं छोड़गि करि मन भाई।।1040।।
रघुवर आज नवल जुवतनि संग सुन्दर फाग मचाई।।
भरि-भरि लाल गुलाल उड़ावत वीथिनि रंग रचाई।।
चोबा चंदन अबिरि अरगजा कर वर अंग लगाई।।
कन्हर के प्रभु खेल न जानत विनय कीन मुस्काई।।1041।।
राग – जौनपुरी टोड़ी
सरजू तीर मची होरी।।
रघुवर तीर मची होरी।।
रघुवर लछिमन भरथ सत्रहन, पकरि – पकरि रंग में बोरी।।
खेलत सखा सखिनि जुत सुन्दर, हास विलास दुहुं ओरी।।
कन्हर बार- बार बलिहारी, हेरनि मृदुजन मन चोरी।।1042।।
सजि आई वर पुर की नारि, रघुवर सौं खेलन होरी।।
माथै तिलक मांग मोतिनि की, चन्द्र बदन मुख पर रोरी।
चोबा चंदन कनिक कटोरनि, गान कोकिला रंग बोरी।।
कन्हर रंग परस्पर डारत, पीताम्बर गहि- गहि छोरी।।1043।।
राग - भैरवी
राम हमारे मोकौं सरन बसइयो जी।।
अपनी ओर कृपा करि राखौ, भव के भरम नसइयो जी।।
मैं तो बार – बार विनयौ प्रभु, अब जिनि त्रास त्रसइयो जी।।
कन्हर की हरि अरज यही है,नहिं जग लोग हंसइयो जी।।1044।।
राग – धना श्री
जय – जय अवध राम रजधानी।।
प्रनतपाल आरति हर रघुवर, निगम अगम कहि गानी।।
दीनदयाल दीन हितकारी, सुजस तिहूं पुर जानी।।
कन्हर सुमिरत नाम तुम्हारौ, तन मन आनंद सानी।।1045।।
राग – देस, ताल – त्रिताल
मन मानौं हरि ओर तकौ रे।।
भव सागर की लोभ लहरि में, सब जग जातु बहौरे ।।
पूरौ नाम प्रभाव जगत में, कहि – कहि पार लगौ रे।।
कन्हर जाइ वादि दिन बीते, रसना राम कहौ रे।।1046।।
राग – भैरों
बलिदाऊ की सुंदर महिमा, कहि न सकत कवि गाई।।
तन घनस्याम सरोरूह लोचन, सेस रहे छवि ल्याई।।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडिल, मुक्तन माल सुहाई।।
कन्हर प्रभु को नाम जपत ही, भव बाधा मिटि जाई।।1047।।
राग – रामकली
अवधपुरी छवि छटा अनूप।।
योजन चतुर्विस चकराई, सघन धाम नहिं व्यापत धूप।।
हय गज रथ दल लसत अंशखन, नर नारी तहं देव स्वरूप।।
वन उपवन बाटिका चहूं दिसि, सर सरोज विकसे बहु कूप।।
शेष महेश नारद अरू शारद, वरणत रहत लहत नहिं ऊप।।
कन्हर लोक चतुर्दश सेवहिं, सिया सहित रघुनायक भूप।।1048।।
राग- जौनपुरी टोढ़ी, ताल – कौजिल्लौ।।
सरजू तीर मची होरी।।
रघुवर लछिमन भरथ सत्रुहन, पकरि – पकरि रंग में बोरी।।
खेलत सखा सखिनि जुत सुंदर, हास विलास दुहूं ओरी।।
कन्हर बार – बार बलिहारी हेरनि, मृदु जन मन चोरी।।1049।।
राग – भैरव
राम हमारे मोकौं सरन बसइयो जी।।
अपनी ओर कृपा करि राखौ, भव के भरम नसइयो जी।।
मैं तो बार – बार विनयौ प्रभु, अब जिनि त्रास त्रसइयो जी।।
कन्हर की हरि अरज यही है, नहिं जग लोग हंसइयो जी।।1050।।
राग – देस
बसे मन में आली सुंदर राम।।
बिन देखे मोहि कल न परति है, सोभा वर सुख धाम।।
भूषन वसन तडि़त दुति निंदति, उपमा बहुत ललाम।।
कन्हर छवि अवलोकि लाल की, लजित भयौ मन काम।।1051।।
राग – आसावरी
अंत संग करिकौ काके जाई।।
ना संग आयौ ना संग जैहैं, पंथी पंथ मिलत जिमि आई।।
तात भ्रात सुत वित्त सब त्यागत, तब हरि होत सहाई।।
कन्हर चेति कहत अब तोसौं, फिरि पीछे पछिताई।।1052।।
।। श्लोक ।।
हरे श्वेततत्पादस्मरणा भज ध्यानं निपुणा।।
स्वयंतेनिस्तीर्णान खलु करूणां तेषु करूणा।।
भवे दीने लीने भय भज नहिं नैन करूणा।।
कथं नाथ व्यातस्त्व मसि करूणा सागरणा।।
।। इति श्री रामचन्द्र चरन किंकर कन्हर दास विरचित पदमाल सम्पूर्ण सम्वत् 1909।
।। श्री रामाय नम: ।।