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एक रिश्ता ऐसा भी - (अंतिम भाग)

एक रिश्ता ऐसा भी (अंतिम भाग)

उत्तरा के बारें में जानकर मयंक और भी व्यथित हो गया । अपने जिस अतीत को पीछे छोड़ अपने जीने की एक अलग ही वजह बना ली थी आज वही अतीत उसके वर्तमान के सामने आकर उसे उलझा रहा था । वह उत्तरा की हर संभव मदद करना चाहता था । अब आये दिन नलिनी से अतिशय प्यार जताकर मयंक ही धैर्य को स्कूल छोड़ने जाने लगा । इसी बहाने वह उत्तरा से दो घड़ी बातें करने का मौका ढ़ूढ़ लेता ।

नलिनी मयंक के स्वभाव अचानक आये परिवर्तन को देखकर खुश थी । मयंक नलिनी की छोटी से छोटी जरूरतों का बड़ी ही सावधानी के साथ ध्यान रखने लगा था । शादी के आठ सालों बाद वह मयंक को अपने प्रति प्यार व्यक्त करते देख रही थी । उत्तरा से मिलने के बाद से उसकी जीने की दिशा ही बदल गई । मयंक अच्छी तरह समझता था कि नलिनी से उत्तरा के बारें में छिपाकर वह उसे धोखे में रख रहा है पर उसके अतीत का प्यार वर्तमान पर हावी हो रहा था ।

उस दिन दोपहर को खाने के वक्त पर जब वह घर आया तो उत्तरा को अपने घर में मौजूद पाकर वह सकपका गया ।वह कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करता उससे पहले ही नलिनी ने जैसे उसे असमंज की स्थिति से उबार लिया ।

‘ये उत्तरा है । मेरी नई सहेली ।इनकी बेटी पिन्की और धैर्य एक ही क्लास में है। इनकी एक्टिवा चालू नहीं हो रही थी । मैकेनिक को बताया तो १ घंटें के बाद आने को कहा । मैं आग्रह कर इनको घर ले आई । बहुत जिद्दी है बड़ी मुश्किल से मेरे साथ आने को तैयार हुई।’

मयंक के चेहरे पर फीकी सी मुस्कान आ गई । वह कुछ बोलने ही जा रहा था कि धैर्य के पीछे पिन्की अन्दर से दौड़ते हुए आई । मयंक को देखकर वह खुशी से उछल पड़ी ।

‘अंकल ये आपका घर है ? कितना बड़ा है !’

‘हं ... हां ।’ पिन्की के सिर पर हाथ फेरते हुए मयंक ने कहा ।

‘अब आप सन्डे को जब मुझे और मम्मी को गार्डन में घुमाने ले जाओ तो प्लीज धैर्य और आंटी को भी ले लेना । बड़ा मजा आएगा।’नन्हीं पिन्की की बात सुनकर मयंक घबरा गया ।वह नलिनी और धैर्य के हिस्से के कई रविवार उत्तरा और पिन्की पर न्योछावर कर चुका था ।उसने एक नजर नलिनी पर डाली । वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी सफाई किस तरह से दे ।

उत्तरा इस परिस्थिति का सामना नहीं कर पाई और पिन्की का हाथ पकड़कर घर से बाहर जाने लगी । उत्तरा को इस तरह जाते देख हड़बड़ाहट में उसके कदम उसके पीछे जाने को उठे पर फिर नलिनी का ख्याल आते ही उसने अपने पर संयम रखकर अपने आप को रोक लिया । नलिनी उसे घूर रही थी पर वह उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था ।

‘रुक जाओ उत्तरा ।’तभी नलिनी की आवाज सुनकर मयंक और उत्तरा दोनों चौंक गए ।

‘धैर्य, पिन्की को अपने कमरे में ले जाकर तुम्हारें नए खिलौने दिखाओं।’ नलिनी की बात सुनकर दोनों बच्चें चहकते हुए अन्दर चले गए ।

‘मयंक, क्या है ये सब ?’ नलिनी के स्वर ने कमरे में छाये मौन को तोड़ते हुए पूछा ।

‘उस दिन जब धैर्य को जब स्कूल छोड़ने गया था, तब पहली बार लगभग ८ साल बाद उत्तरा फिर से इस शहर में देखा।’ मयंक ने सच्चाई बयान करते हुए कहा और पास ही रखे सोफे पर बैठ गया ।उत्तरा अपराधी की भांति वहीं दरवाजे के पास खड़ी रह गई ।

‘तुम दोनों एक दूसरे को पहले से जानते हो यह बात अब तक क्यों छिपा रखी तुमने मुझसे ?’ नलिनी के स्वर में रोष था ।

‘मुझे डर था कि तुम सब कुछ जानकर न जाने कैसे रिएक्ट करोगी । वैसे भी शादी हो जाने के बाद उस बात पर पूर्णविराम ही लग चुका था तो उसे कुरेद कर यादों में जी कर तुम्हारे संग अन्याय नहीं करना चाहता था मैं।’ मयंक ने अपनी बात पूरी की ।

‘मयंक, ईश्वर ने भले ही पुरुष को स्त्री से ज्यादा बलवान बनाया है पर स्त्री को भी एक शक्ति दी है जिसके जरिये वह अपने पुरुष साथी के मन में उठते भावों को उसके व्यक्त किए बिना ही जान सके और वह धोखा न खा सके।’

‘तुम कहना क्या चाहती हो ?’ मयंक नलिनी के कहने का मतलब नहीं समझ सका ।

‘तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर इस घर में तुम्हारी पत्नी बनकर आई हूं मैं । क्या कमी रह गई मयंक मेरे प्यार में ? तुमने मुझे इस काबिल भी नहीं समझा कि अपने मन की बात मुझसे कह सको ? क्यों तुम अपने अतीत की बातें मुझसे छिपा गए ?’

‘नलिनी सच कहूं तो तुम्हारे जैसी पत्नी को पाना मेरा भाग्य ही है । तुम्हे पाने के बाद मैं अपनी पिछली जिन्दगी पीछे छोड़ आया था पर फिर वर्षो बाद उत्तरा से फिर मिलकर उसके बारे में सब पता चला तो मैं खुद को उसका गुनाहगार समझने लगा । उसके तलाक का कारण कुछ हद तक मैं ही रहा हूं । पीछे छुट चुकी हमारी प्रेम कहानी उसकी शादीशुदा जिन्दगी में शंका के दायरों से गुजरते हुए तलाक तक पहुंच गई । मैं कुछ नहीं चाहता उत्तरा से – बस उसे थोड़ी खुशी दे देना ही मेरा उद्देश्य था उससे बार बार मिलने का।’ मयंक ने खड़े होकर खिड़की के पास जाते हुए कहा ।

‘मैंने तुम्हें अपने पूरे मन से ही प्यार किया है मयंक । पर मुझे हमेशा ही तुम्हारें प्यार में कुछ कमी नजर आई क्योंकि तुम्हारा प्यार बंटा हुआ था उत्तरा और मेरे बीच।तुम्हारें और उत्तरा के प्रेम पत्र मैं काफी पहले ही पढ़ चुकी थी । माफी चाहती हूं इसके लिए पर शादी के बाद तुम्हारी घुटन और बेबसी मुझसे छिपी न रह सकी, इसी से मुझे तुम्हारा अतीत कुरेदना पड़ा था ।’ नलिनी ने विस्तार से बोलते हुए कहा ।

‘तुम्हें सब पता था फिर भी ..........’ नलिनी की बात सुनकर मयंक आगे कुछ न बोल पाया ।

‘हां, स्त्री अगर कुछ बोले न तो इसका मतलब यह नहीं होता कि वह अनजान है । शादीशुदा स्त्री कुछ कड़वे घूंट अपनी गृहस्थी की खातिर ही सहन कर जाती है । तुम्हारें मन में अब भी उत्तरा के लिए चाहत है न ?’

‘ये तुम कैसी बात कर रही हो नलिनी ?’ नलिनी की बात सुनकर मयंक सकपका गया ।

‘मेरे प्रश्न का उत्तर केवल हां या ना में ही हो सकता है मयंक।’ नलिनी मन ही मन शायद एक फैसला ले चुकी थी ।

‘झूठ नहीं बोलूंगा । हां, मैं अपने पहले प्यार की दास्तान पीछे ही छोड़ आया था पर फिर अचानक ही उत्तरा........ ।’

‘ठीक है ।मयंक, स्त्री पुरुष के नाम बिना के सम्बन्ध हमेशा ही बदनाम हुए है समाज में। इस सम्बन्ध को कोई नाम दे पाओगे ? अपना पाओगे उत्तरा और पिन्की को ?’मयंक की बात पूरी होने से पहले ही नलिनी ने लगभग फैसला सुनाते हुए कहा ।

‘नलिनी । ये क्या कह रही तो तुम ?’ मयंक घबरा गया ।

‘तुम्हारी घबराहट ही कह रही है कि तुम समाज और दुनिया से डरते हो । अगर उस वक्त डरे नहीं होते तो आज हम तीनों यूं अधूरी जिन्दगी नहीं जी रहे होते मयंक । मैं जानती हूं तुम्हारे इरादे नेक है पर उत्तरा से चोरी छिपे मिलने से तुम अपने आस पास शंका की एक दीवार खड़ी कर रहे हो । बेहतर यही होगा कि तुम इस रिश्ते को एक नाम दे दो।’

‘नलिनी ?’ नलिनी की बात सुनकर मयंक की घबराहट और भी बढ़ गई । उत्तरा इस परिस्थिति का सामना नही कर पा रही थी ।

‘ठीक है । तुम उत्तरा को दुनिया के सामने अपनी जिन्दगी में शामिल नहीं कर सकते पर मैं तो कर सकती हूं न ?’ मयंक और उत्तरा नलिनी के कहने का मतलब समझ पाते इससे पहले ही उसने उत्तरा का हाथ थामकर उसे अपने पास लाते हुए कहा ।

‘उत्तरा आज से मेरी बहन हुई । तुम बेशक मिलोगे उत्तरा से । पिन्की को एक खुशहाल जिन्दगी देने के लिए तुम्हें हर सम्भव प्रयास करने की छूट है पर वादा करो तुम आइन्दा मुझसे कुछ भी छिपाकर नहीं रखोगे।’

नलिनी की बात सुनकर उत्तरा की आंखों में आंसू आ गए ।

‘नलिनी, मैं समझ नहीं पा रहा हूं तुम्हें । अजीब सी पत्नी हो तुम । पत्नी हमेशा अपने पति को अधिकार की भावना से बांधकर रखती है पर तुम तो मुझे खुली छूट दे रही हो ।’ मयंक के चेहरे से घबराहट दूर हो चुकी थी ।

‘तुम मुझे अभी भी नहीं समझ पाए मयंक । प्यार को बांधने से वह एक दायरे में सिमट कर रह जाता है और फिर घुटनभरी जिन्दगी के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं होता । बेहतर है प्यार बहता रहे।’ नलिनी ने भावुक होते हुए कहा ।

‘हां और मैंने तुम्हें खुली छूट नहीं दी है । तुम मेरी बहन से मिलोगे जरुर पर अकेले कतई नहीं । मैं और धैर्य भी साथ होंगे।’ नलिनी ने मुस्कुराते हुए मयंक के नजदीक जाते हुए कहा ।

‘अच्छा, पर अगर अकेले मिल भी लिया तो तुम्हें पता कैसे चलेगा ?’ मयंक ने उसे चिढ़ाते हुए कहा ।

‘तुम पर पूरा विश्वास है मयंक । तुम ऐसा अब कभी नहीं करोगे।’कहते हुए नलिनी ने उसके कन्धे पर सिर रख दिया ।

समाप्त

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