एक रिश्ता ऐसा भी (भाग २) Ashish Dalal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक रिश्ता ऐसा भी (भाग २)

एक रिश्ता ऐसा भी (भाग २)

मयंक,

जानती हूं पत्र पढ़कर तुम्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा । वैसे भी पिछले पत्र का भी तुमने कोई जवाब नहीं दिया तो नाराज तो तुम अब भी हो मुझसे । मुझसे तुम्हारी यह नाराजगी शायद अब जीवन पर्यन्त बनी रहेगी ।

मैं अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध ऐसा कदम कोई कदम नहीं उठा सकती जिससे उन्हें शर्मिन्दा होना पड़े । अगले महीने मेरी सगाई होने वाली है और दीवाली के बाद शादी भी हो जाएगी ।

तुम्हारा प्यार कभी भी भुला नहीं पाऊंगी पर सामाजिक बन्धनों के चलते तुम्हें स्वीकार न कर पाने का अफसोस सदैव ही बना रहेगा । मुझे बेवफा मानकर भूल जाना और कहीं ओर शादी कर मेरे हिस्से का प्यार उस खुशनसीब लड़की को समर्पित कर देना ।

सदैव तुम्हारी

उत्तरा

जिस दिन मयंक को उत्तरा का पत्र मिला उस दिन मानों उस पर बिजली गिर पड़ी हो । वह अब तक उम्मीद लगाकर बैठा था कि उत्तरा अपने मम्मी पापा को मना लेगी । उत्तरा के संग सहजीवन को लेकर उसने कई सपनें देख डाले थे और उन सपनों की साक्षी स्वयं उत्तरा भी तो थी ।

बतौर अकाउंट असिस्टेन्ट जब उसने दयाल एण्ड सन्स फर्म को ज्वाइन किया तब उत्तरा वहां रिशेप्सिनिस्ट के पद पर कार्यरत थी । नौकरी का स्थल अपने घर से ६० किलोमीटर दूर दूसरे शहर में होने से उसे रोज दो घण्टें आने जाने का सफर करना बिल्कुल पसन्द नहीं आता पर फिर धीमे धीमे उत्तरा से परिचय होने पर यह बात उसके लिए गौण हो गई । उत्तरा पहली नजर में ही उसके मन में बस गई । गोल भरावदार चेहरा, काले लम्बें रेशमी बाल, बड़ी बड़ी आंखें और उसमें समाई चंचलता उसकी आंखों को बिना कुछ कहे सुने भा गई । स्वभाव से वाचाल होने से अपने मन की बात उत्तरा के सामने जाहिर करने में उसे देर नहीं लगी ।

लंच के वक्त हंसी मजाक करते हुए उस दिन स्नेह ने उसे चैलेन्ज फेंकते हुए कहा – ‘मयंक, अगर तू सच्चा मर्द है तो आज सभी को बता दे कौन सी हसीना तेरे दिल पर कब्जा किए हुए है?’

पिछले ६ महीनों के दौरान अपने साथ काम करते स्नेह के साथ उसकी काफी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी । स्नेह उसकी हरेक बातों से वाकिफ था ।

‘अबे साले । नौकरी से निकलवाएगा क्या ?’ मयंक ने स्नेह को आंखें दिखाते हुए कहा ।

‘भोला मत बन । तू बताए या न बताए, हमें पता है हमारी होने वाली भाभी कौन है।’

‘मेरे बाप । तू चुप कर । उसने अगर सुन लिया तो कम्प्लेन कर देंगी।’ मयंक ने आजू बाजू नजर डालते हुए कहा । केन्टीन में उन दोनों के अलावा उनसे एक टेबल छोड़ उत्तरा कुछ महिला सहकर्मियों के संग बैठी थी । बाकी के लोग खाना खाकर जा चुके थे । मयंक और स्नेह जानबूझकर उत्तरा के लंच टाइम के साथ अपना लंच टाइम सेट करते थे ।

‘कौन ? कोई भी तो नहीं है यहां।’स्नेह ने इधर उधर देखते हुए कहा ।

‘उधर पीछे देख । उत्तरा यहीं बैठी है।’ मयंक ने कहा ।

‘कौन ? उत्तरा भाभी।’ स्नेह ने जानबूझ कर इतने ऊंचे स्वर में कहा कि उत्तरा सुन सके ।

उत्तरा ने सुना भी और मयंक की ओर मुस्कुराकर नजरें झुका ली ।

‘देखा, आग उधर भी लगी हुई है । तेरी तो निकल पड़ी यार।’ सारा नजारा देखते हुए स्नेह ने धीमे से मयंक से कहा ।

इस घटना के बाद मयंक ने खुले दिल से उत्तरा के सामने प्रेम का इकरार कर लिया ।

क्रमश: