घर का डर - २ suraj sharma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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घर का डर - २

नन्दन काका के पीछे जाकर उन्हें पकड़ कर फिर पूछने लगा,

"काका मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं, सच बताओ"

काका ने बस इतना ही कहा की अगर सच जानना ही है तो कल रात मेरे साथ उस घर के अन्दर चलना ..

तय वक्त के मुताबिक रात का अंधेरा गिरते ही नन्दन काका के साथ निकल पड़ा उस घर की ओर, वहा पहुंचते ही काका ने कहा की कुछ दिखाई दे या कुछ भी हो जाए बस शोर मत मचाना. घर के अंदर घुसकर काका ने आंगन में टिफिन खोलकर सारा खाना एक प्लेट में सजाया और फिर एक कमरे के सामने रख कर दरवाज़े की ओर अपनी पीठ करके खड़े हो गए और नंदन को भी वही करने का इशारा किया, काका जैसे ही पीछे मुड़े की कमरे का दरवाज़ा खुला और प्लेट की सरकने की आवाज़ के साथ साथ दरवाज़े की बंद होने की आवाज़ आने लगी..

जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ नन्दन ने पलट कर उस दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से बजाना शुरू किया और चिल्लाने लगा तुम जो कोई भी हो तुम्हारा भांडा फूट चुका है, अन्दर से बाहर निकलो नही तो इस दरवाज़े को मैं तोड़ दूँगा.. बार बार दरवाज़े को खटखटाया और चिल्लाने के बाद भी जब किसी ने दरवाज़ा नही खोला तो उसने दरवाज़े को धक्का दिया जिससे दरवाज़ा तुरन्त ही खुल गया.

कमरे के अन्दर नन्दन ने देखा तो पूरा का पूरा कमरा खाली था और वो प्लेट खाली ज़मीन पर पड़ी थी !! नन्दन कमरे को इधर से उधर देख ही रहा था की उतने में काका कमरे के अन्दर आए और नंदन कों ज़ोर का धक्का देकर कमरे के बाहर किया और दरवाज़े को बंद किया.

कुछ देर तक अन्दर से चिल्लाने की आवाज़े आयी और उसके बाद ... उसके बाद प्लेट सरक कर नीचे से बाहर आने लगी और साथ ही था एक कागज़ का टुकड़ा जिस पर लिखा था अब कल से यह खाना तुम लाओगे और अगर इसके बारे में किसी को बताया तो तुम्हारा भी वही हाल होगा जो काका का हुआ है

नन्दन अब समझ चुका था की कुछ भी झूठ या गलत नही बताया गया उसे, उसने समझ लिया की अब उसे वहाँ से वापस शहर भागना ही पड़ेगा उसके पास कोई दूसरा चारा नही है ..नन्दन घर जाने की बहाने सीधा गांव के स्टेशन पर भागा और ट्रेन की जो पहली टिकिट मिली वो ले लिया ट्रेन अगली रात की थी !!

सबेरे जब नन्दन उठा तो एक पल को मानना चाहता था की जो कुछ भी हुआ वो एक सपना हो लेकिन काश ऐसा होता शाम का वक्त आराम से रोज़ की तरह ही बिता बस दिल में डर और घबराहट बढ़ती ही जा रही थी, रात को जब तक खाना खाने का वक्त हुआ तब तक नन्दन बैग वगैरे सब बांध चुका था, उसने सोचा खाने खाकर निकल लूँगा चुपचाप स्टेशन के लिए.

तो रसोइया उसके हाथ में टिफिन देते हुआ बोला,

"लीजिए मालिक जल्दी जाइए देर न हो जाए खाना पहोचन में, ट्रेन तो आपकी कैंसल हो ही गई है !!

नन्दन को जैसे बिजली का झटका लगा ये सुनकर..उसने तुरंत फोन के इंटरनेट पर चेक किया तो वाकई ट्रेन कैंसल हो चुकी थी, उसने कहा,

"मतलब.. मतलब तुम्हे कैसे पता ये सब ?

रसोइया ज़रा सा मुस्कुराया और बोला, "अरे आप ही तो कल आकार बोले थे की खाना अब आप पहुंचाया करेंगे तो बीच में ऐसे काम छोड़कर जा नही ना सकते आप