सच, समय और साक्ष्य-शैलेन्द्र शरण राजनारायण बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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सच, समय और साक्ष्य-शैलेन्द्र शरण

शैलेंद्र शरण का कविता संग्रह "सच" समय और साक्ष्य" शिवना प्रकाशन से छपा हुआ एक शानदार संकलन है , जिसमें कुल 88 कविताएं संकलित हैं ।कविता संकलन की कविताएं एक परिपक्व दृष्टि और सधे हुए शिल्प की कविताओं के रूप में हमारे सामने आती हैं ।
कवि कम शब्दों में अपनी बात कहने में सिद्धहस्त है । कई कविताएं तो सूत्र वाक्य की तरह सामने आती हैं । इन कविताओं की रेंज बहुत बड़ी है यानी कि इतने विविधता पूर्ण विषय और शिल्प उनके इस कविता संग्रह में हैं कि उनके विजन पर सुखद अचरज होता है।
कवि सदा ही सच्चाई की जीत में विश्वास करता है और कभी कभार इस जीत में हुए विलंब को स्वीकार करने तैयार है, पर जीत चाहिए ।
हर कवि की अपने नजरिए से समाज को देखने की जिद होती है। शैलेंद्र शरण की यह जीत और नजरिया वर्तमान समाज के अनदेखे सच और भावों को सूक्ष्मता से परखता है।
प्रेम की गहन अनुभूतियां शैलेंद्र शरण की तमाम कविताओं में हैं। कविता सहज ही हो जाना मैं प्रेम की प्रगाढ़ता में परस्पर परिवर्तन का जादू देखिए
सब्र कहां है
इधर बात निकली
उधर आंखों में सपने
इधर चेहरे पर कड़वाहट
उधर प्रतिक्रिया में गुस्सा
इधर हरकत
उधर आंसू
इधर चुप्पी
उधर सन्नाटा
हथेलियों की ऊष्मा भी
कितनी अजीब है
पल में पिघला देती है
पृष्ठ( 40)

अन्य प्रेम कविताओं में किसी सड़क पर (71)स फिर किसी दिन(73) हिदायत (102) तुम्हारी आवाज के दृश्य (103) जहां से चले थे (53) और तुम चलेगये( 53) दृष्टव्य हैं।
शैलेंद्र भाई की अनेक कविताओं में विचार तत्व या दर्शन कूट-कूट कर भरा हुआ है जो सायास नहीं वल्कि कविता को सहज ढंग से लिखने में ही आ गया है खिलाफत: तीनचित्र (पृष्ठ 14 - 15) असंभव शब्द भर है (18) सच समय और साक्ष्य (19)समय (20) कल शायद (45) धैर्य (5 समंदर हो गए (70) इसी सड़क पर सेवन कर्फ्यू के बीच (75 )जैसी कविताएं दृष्टव्य हैं ।सच समय और साक्ष्य का यह देखिए-
जो कहे गए
सच नहीं सिर्फ तर्क थे
जो तर्क गलत साबित हुए
उनके सामने साक्ष्य थे
********
साक्ष्य को दरकार है सच की
और सच को जीत के लिए चाहिए समय सच साक्ष्य और समय
इन दिनों प्रबंध के विषय हैं
(पृष्ठ19)
इस कविता संकलन में प्रकृति प्रेम की कविता बरसात की पहली बूंद (64) की बरसात जितनी शाब्दिक है उतनी ही गहन अनुभूति परख है ।कर्फ्यू में बसंत (76) धूप का फूल (85) तुम्हारा होना (93) में मौसम और प्रकृति गहरे रूप में सामने आता है।
बचपन को याद करते हुए भी कवि आज के समाज के छोटे पन , बचकाने पन या नीच पन पर दुखी है । बड़े होकर कविता (85) का अंश देखिए-
जब हम छोटे थे
तो सचमुच छोटे थे
असंभव है लौट पाना
किंतु आज हम जितने छोटे हैं
उतने कभी नहीं थे

शैलेंद्र शरण के इस संग्रह से गुजरकर हमें खुद को एक वैचारिक ग्रंथ में से होकर निकला हुआ पाते हैं। कवि की इन कविताओं की हर पंक्ति विचार से भरी हुई है। दरअसल शैलेंद्र शरण जब लिखते हैं तो उनका वाक्य इकहरा नहीं होता, कई कई परतों से भरा हुआ वाक्य वे कविता में प्रयोग करते हैं ।
शैलेन्द्रशरण विभिन्न आकारों की कविता लिखते हैं और विभिन्न शिल्प भी प्रयोग में लाते हैं ।उनकी एक छोटी सी कविता देखिए -
कांच का एक भरोसा
टूटा तो बिखर गया
समेटा तो कटे हाथ
जोड़ा तो बिगढ़ गया
यह कविता बस आकार भर में छोटी है लेकिन कथ्य में बड़ी है, इस कविता में कहे से ज्यादा अनकहा है ।
भाषा, शैली और शिल्प का अपना मुहावरा विकसित करते हुए शैलेंद्र आज परिपक्व कवि के रूप में हमारे सामने हैं ।कवि ने खुद को समृद्ध किया है ।
यह संग्रह शैलेंद्र शरण को एक समृद्ध कवि के रूप में स्थापित करेगा।