अरुण सातले-शब्द गूँज राजनारायण बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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अरुण सातले-शब्द गूँज

अरुण सातले की कविताओं का सँग्रह"शब्द गूँज" शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित होकर पिछले दिनों सामने आया है ।इसमें कभी की कुल 77 कविताएं शामिल हैं ।
लसंग्रह की अधिकांश कविताएं जनजागृति में लगे एक विचार पूर्ण व्यक्ति की बातें , राजनीतिज्ञों द्वारा दिए जा रहे छलावेऔर उसके कुदरत, मां के प्रति, प्रेम के बारे में विचार इन कविताओं में मुख्य रूप से प्रकट हुये हैँ। यह कविताएं खुद को पढ़वा ले जाती हैं । राजनीतिज्ञ की असलियत दिखाती सौदागर कविता देखिए-
नीम बेहोशी में देखें
इन सपनों ने बहुत छला है
जिन पर किया था भरोसा
उन सौदागरों के पास
यही कला है
(पृष्ठ 46-47)
मां पर इस संग्रह में अनेक कविताएं हैं, जिनमें स्पर्श (पृष्ठ 17) संदूक (पृष्ठ 19) प्राकृत मन (पृष्ठ 21) उसका झुक जाना (पृष्ठ 22) विचार बच्चा होने का (पृष्ठ 36) में यूँ तो शीर्षक अलग अलग हैं पर इनमे मां की ही बात को विभिन्न भावनाओं और अनुभूतियों को व्यक्त किया गया है ।कविता स्पर्श का अंश यह देखिए-

डर चाकू और बलम के साथ आई रात वह करवट बदलते हुए बार-बार टटोलत आ रहा सिरहाने रखे चाकू और बलम को तभी एक आवाज ने चौंकाया उसे वह आवाज हाथ बनकर से लाती रही उसका माथा भारी होती पलकों के बीच मैं सोचता रहा क्या सोच सोते हुए भी मां जागती है चाकू और भाले की नोक के वर्क कितना धारदार होता है उसके खुरदुरे के हाथों का स्पर्श (पृष्ठ 17)
मनुष्य शरीर प्रकृति की धरोहर है। प्रकृति ही इस संसार का सर्जन करने वाली प्रमुख सकती है और मनुष्य की जिम्मेदारी है कि वह प्रकृति के मूल स्वरूप की रक्षा करें । कवि इस तथ्य को अनदेखा नहीं करता वह प्रकृति के प्रति कृतघ्न नहीं है। प्रकृति की उदारता, स्वभाव और दुरावस्था को अपनी कविता पृथ्वी- (पृष्ठ 27) ओ बूंदनिया (पृष्ठ 35) नदी (पृष्ठ 104) हम क्यों नहीं(पृष्ठ 39) पहचान अपनी अपनी (पृष्ठ 63) वर्षा (पृष्ठ 86) ऐसी ही कविताएं हैं। इनमें कविता पहचान अपनी-अपनी का अंश देखिए-
की दूब का मुंह अब
मुरझाएगा नहीं
पेड़ छोड़ेंगे नहीं अपनी जमीन
बीज माटी की परत हटाकर
खोलेंगे अपनी आंखें
पंछी ख़ूब खुजलाएंगे
अपनी पांखें। (पृष्ठ 86-87)

कविता केवल यथास्थिति विवरण नहीं होती बल्कि कविता में विचार की उपस्थिति जरूरी होती है ।कविता के प्राण उसकी सुगंध और उसके दीर्घ जीवी होने के हुनर में विचार की अहम भूमिका होती है। इस संग्रह में विचार विश्लेषण, नए विचारों के आगमन, श्रम का महत्व, राजनीति में विचारों का अभाव दर्शाती बहुत सी कविताएं संकलित है । कविता वाई काम पर नहीं आ रही (पृष्ठ 40-41) दाएं बाएं (पृष्ठ 43) दीमकें (पृष्ठ 50) साल। (पृष्ठ 78 ) एकाधिकार (पृष्ठ 84) विसर्जन जुलूस (पृष्ठ 98) प्रायोजित सपने (पृष्ठ 110) आदि सराहनीय हैं। नए विचार का महत्व दर्शाती कविता खिड़की देखिए-
खिड़की खोली
हवा घुसते ही बोली
कैलेंडर फड़फड़ाए
खूंटी पर टंगी कमीज की
लूली बाहों ने भी
हाथ हिलाए
मकड़ी के जाले के
लटके हुए तार में
फंसी मकड़ी
झूलती रही
बड़ी देर तक
कुछ भी नहीं हुआ था ऐसा
जब तक
बंद थी खिड़की (पृष्ठ 53)

हर कवि का मन सहज रूप से प्रेम के प्रति झुका हुआ होता है ।अरुण का मन भी वैचारिक ज्ञान,प्रकृति प्रेम व ममत्व के प्रति अनुग्रहित होने के साथ-साथ प्यार में आकंठ डूबा है । प्रेम की सुखद अनुभूतियां उनकी कविताओं में हैं, जिनमें टिक टिक करती घड़ी प्यार की( पृष्ठ 55 से 58) घोंसला( 62) दस्तक (72)वसूली (73) बरसा ( 86) अपना घर (100) प्रेम और सिर्फ प्रेम (101) ऐसी ही कविताएं हैं। प्रेम प्रेम अमूर्तन (111) आदि दृष्टव्य हैं । जिनमें प्रेम विभिन्न रूपों आता है और प्रेम में पड़े हुए व्यक्ति की सघन अनुभूतियों को समाज और कुदरत से जोड़कर किस तरह महसूस किया जा सकता है, वह इन कविताओं में प्रकट होता है ।प्रेम और सिर्फ प्रेम कविता का यह अंश देखिए
घना अंधकार में आज भी है
कई हलकों में
बस तुम जीवित रखो
अपनी हथेलियों की
उस गर्माहट को
जिसने उस भाषा को
जिंदा रखा है जिसे
प्रेम और सिर्फ प्रेम कहते हैं
(पृष्ठ 101-102)


संग्रह की कविताएं अपने शिल्प में लगभग 10 वर्ष पूर्व से अब तक की हैं। कवि इन्हें लिखते रहे होंगे ,छपने छपाने के प्रति संकोची रहने की वजह से अब इन्हें प्रकाशित कराया गया है ।लेकिन कविता अपनी कहन,अपने संदेश और अपने शिल्प में एकदम समकालीन महसूस होती है । विभिन्न आकारों की कविता लिखने वाले अरुण शब्द, शब्दावली और अपने संदेश की कहन के प्रति बेहद सचेत हैं । इस संग्रह में उनकी सबसे बड़ी कविता टिक टिक करती घड़ी है जो (प्रष्ठ 55 से 58 तक )है तो सबसे छोटी कविता खेलना 9 शब्द की है जो
( पृष्ठ 89) पर है ।
यद्यपि इस संग्रह की अधिकांश कविताएं ही छोटी हैं जैसे कि आज कल विदिशा जनपद के कवि ब्रज श्रीवास्तव और मणि मोहन लिख रहे हैं। छोटा आकार ,लेकिन सशक्त प्रस्तुति ,अनावश्यक व्यवधान नहीं, अनावश्यक वजन -शब्द नहीं ,अमूर्त प्रस्तुति नहीं। सीधी साधी कविताएं ।जो आम पाठक को कविता के फिर से निकट लाने में मदद करती हैं ।
अरुण की कविताओं से गुजरकर एक शाश्वत संदेश प्रेम -प्रकृति के प्रति विनम्र होने और मां के प्रति नतशिर होने का प्रकट होता है, जिनकी वजह से यह सँग्रह यादगार बन जाता है।
राजनारायन बोहरे