कोरोना के कारण देशबंदी में शिक्षकों को पढ़ाने का ‘जुनून’ होता है तथा साथ ही वे अपने छात्रों से ‘लगन’ के साथ ‘कठोर परिश्रम’ चाहते हैं। ये बच्चों के लिए ऑफलाइन क्लास में तो ठीक है लेकिन यही बात ऑनलाइन क्लास में उपयुक्त नहीं बैठती है। साथ ही शिक्षा का यह मिश्रित मॉडल सभी उम्र के बच्चों के लिए सटीक नहीं है। छोटे बच्चों के खेलने-पढने की उम्र रहती है। पहले की व्यवस्था में बच्चे विद्यालय में अपने सहपाठियों के साथ पढ़ाई करते थे तथा विद्यालय से आने के बाद खेलते थे। इससे उनका स्वस्थ मानसिक विकास होता था। अभी स्थिति एकदम उलट है। ऐसा लगता है कि कोरोना की मार यही छोटे-छोटे बच्चे झेल रहे हैं। उनका बचपन कोरोना की भेंट चढ़ रहा है। घर में बैठे-बैठे वे खिलने से पहले ही मुरझा रहे हैं। अभी हाल ही में जम्मू-कश्मीर से ऑनलाइन क्लास को लेकर एक छोटी बच्ची का वीडियो वायरल हुआ। वीडियो देखकर तो हंसी आती है लेकिन सोचने के लिए सवाल भी उत्पन्न करती है। इसके बाद सरकार ने मामले को संज्ञान में लेते हुए ऑनलाइन क्लासेस के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए। इन दिशानिर्देशों के अनुसार कक्षा पांचवीं तक के बच्चों की कक्षाओं को प्रतिदिन 30 मिनट से अधिक नहीं लेना है। कक्षा एक से 8वीं तक की क्लास एक दिन में अधिकतम 3 और 30 से 45 मिनट की होगी, जबकि कक्षा 9वीं से 12वीं की चार कक्षाएंस होंगी। प्रत्येक सत्र की अवधि 30 से 45 मिनट के बीच होगी। साथ ही साथ छोटे बच्चों को गृहकार्य नहीं देना है। इसी गृहकार्य को लेकर बहस होती रहती है। एक तरह से छोटे बच्चों को गृहकार्य घर से सम्बंधित ही देने से उचित रहता है। उदाहारण के लिए शरीर के अंगों के नाम बच्चों को पता होना चाहिए। स्वच्छ रहने से क्या फायदे हैं? स्वस्थ रहना क्यों आवश्यक है? इस प्रकार की जानकारी घर में माता-पिता देकर अपने बच्चों को तनाव-मुक्त रख सकते हैं। बच्चों के लिहाज से यह एक उचित निर्णय है। नए दिशानिर्देश में वर्चुअल कक्षाओं में छोटे बच्चों पर विशेष ध्यान देने का आह्वान भी किया गया है। जब हम अपने बच्चों की तरफ देखते हैं तो लगता है कि बच्चों को छुट्टियों में भी चैन नहीं मिल पाता। परियोजना-कार्य, दत्त-कार्य जैसे तमाम भारी भरकम शब्दों के बोझ तले दबे बच्चे अक्सर छुट्टियों में भी व्यस्त और तनावग्रस्त रहते हैं। और तो और, अभिभावकों पर भी होमवर्क पूरा करवाने का दबाव होता है। बच्चे पूरा न कर पाएं तो मां-बाप करते हैं। बच्चे के विकास के लिए उनका परिवार के साथ अधिकाधिक समय व्यतीत करना आवश्यक है। आजकल पिता के साथ-साथ माएं भी कामकाजी हैं, साथ ही साथ बच्चों को अधिक से अधिक देर तक आधुनिक उपकरणों के पास बैठना पड़ता है। उनका पूरा समय तो इलेक्ट्रॉनिक गजट ही खा जाते हैं। बच्चे बाहर खेलने जा नहीं सकते हैं। उनका जो विकास होना चाहिए वह नहीं हो पाता है। शैक्षणिक कार्य आवश्यक तो है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य भी कम आवश्यक नहीं है। इसका ध्यान भी रखा जाना जरुरी है। हम अध्यापक गृहकार्य देते समय इन बातों का ध्यान रखें तो अति उत्तम। आभासी कक्षाओं में मनोरंजन से बच्चों को सिखाने पर ध्यान दिया जा सकता है। जापान की ‘मिमामोरू’ तकनीक को भी अभी अपना सकते हैं। हालांकि यह पद्धति भी अपने देश की लगती है लेकिन विद्वान इसे जापान की बताते हैं तो मान लेते हैं। विश्व में शिक्षक अगर बच्चों को बहस या झगड़ा करते देखते हैं तो बीचबचाव करते हैं, उन्हें समझाते हैं। लेकिन जापान में बड़ों के द्वारा दूर रहने की नीति अपनाई जाती है। यानी बच्चों के झगड़े में बड़ों द्वारा दखल न देना। इससे बच्चों में स्वायत्तता और समाधान निकालने के लिए प्रोत्साहित होने के मौके निकलते हैं। इससे झगड़ने वाले बच्चों को संभालने की नई रणनीति भी सामने आती है। इसे ‘मिमामोरू’ कहते हैं। ‘मिमा’ का अर्थ है नजर रखना और ‘मोरू’ यानी रक्षा करना। इसे टीचिंग बाय वॉचिंग के तौर पर समझ सकते हैं। अतः आज महामारी के समय में यह तकनीक बच्चों के विकास में सहायक सिद्ध हो सकती है।