दैहिक चाहत - 14 Ramnarayan Sungariya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दैहिक चाहत - 14

उपन्‍यास भाग—१४

दैहिक चाहत –१४

आर. एन. सुनगरया,

‘’हैल्‍लो......तनया अभी तक पहुँची नहीं।‘’

‘’टू व्‍हीलर में पेट्रोल भरवाना था.......पेट्रोल पम्‍प पर पहले ही लम्‍बी लाईन थी........ अभी पहुँची।‘’

‘’हॉं जल्‍दी आ, मगर सुरक्षा पूर्वक.....।‘’

तनूजा व्‍याकुल है, कैसी, कैसी शंका-कुशंकाएँ उमड़-घुमड़ रही हैं, दिमाग में।

वास्‍तव में हॉस्‍टल ,……..खासकर कॉ-हॉस्‍टल में रहने वाली लड़कियों की छबि ही कुछ ऐसी निर्धारित कर ली है लोगों ने कि ऐसी लड़कियों को जीवन के सम्‍पूर्ण अनुभव हो चुके होते हैं, घाट-घाट का पानी पी चुकी होती हैं, कोई अछूती नहीं रहती। जिन्‍दगी के सारे मजे, कर्मकाण्‍ड, क्रियाकलाप, भोग, विलास का प्रेक्‍टीकल करके, अपनी जिज्ञासाओं को सन्‍तोष जनक शॉंत कर चुकी रहती हैं,। शेष क्‍या रहता है।

सामाजिक मर्यादा, संस्‍कार, परम्‍पराएँ अनेक छात्राओं को भटकने से रोकती हैं। बाहरी तौर पर देखकर यही धारणा निर्मित होती है, कि हॉस्‍टल की छात्राऍं आजाद एवं आधुनिक ख्‍यालात को महत्‍व देती हैं। इसी कारण स्‍वछन्‍द और स्‍वतंत्र जीवन जीती हैं। टोटली फ्रि हेन्‍ड। देखने वालों को लगता है कि सबकी-सब लड़कियॉं पथ-भ्रष्‍ट हो जाती हैं, जबकि यह अर्धसत्‍य है। उनके बात-व्‍यवहार का एक पहलू है, मगर एक्‍का-दुक्‍का अपवाद के अलावा, शेष लड़कियॉं बहुत ही समझदार, मान-मर्यादा के प्रति सचेत, चरित्रवान, संयमित, संयमी, आत्‍मनियन्त्रित, अन्‍तर्मन से दृढ़, समग्र जिस्‍मानी कुदरती उभरती वासनायुक्‍त क्षणिक भावनाओं के समान अथवा सुरक्षित समाधान करने के लिये अनेक तात्‍कालिक आर्टिफिशियल विकल्‍पों का सहारा लेती हैं अस्‍थाई रूप में.......।

लगभग सभी छात्र-छात्राऍं अपने करियर को सुदृढ़ करने के बारे में संकल्पित रहते हैं, स्‍थाई रूप से अपने आप को तथा अपनी दिनचर्या को कठोरता से पालन करके अपने लक्ष्‍य की ओर ध्‍यान देकर कड़ा परिश्रम करके सफल होने हेतु अपनी पूर्ण ऊर्जा को लगा देते हैं। परिणाम स्‍वरूप उन्‍हें अपना उद्देश्‍य प्राप्‍त होता है। भविष्‍य उज्‍जवल होने की ग्‍यारन्‍टी। काल्‍पनिक धारणा के आधार पर, किसी के बारे में निजि चारित्रिक दुर्बलता का लॉंछन लगाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हो सकता। समय-बे-समय हॉस्‍टल के रहवासियों को गोपनीय प्रणाली से परखा जा सकता, मूल्‍यांकन किया जा सकता है, परन्‍तु बगैर किसी बात-बे-बात पर, एक क्षण के रोमांच हेतु अप्रमाणिक-विचारहीन आरोप आवोहवा में उछाल देना, मस्‍खरी करना, मजे लेने के लिये कहना, ‘’लड़के-लड़किओं के संग-संग, घुल-मिल कर रहने पर, कोई अनछुआ रह सकता है! कोयले की कोठरी में बगैर कालिख लगे कोई, रह सकता है !’’ आज शैक्षिक संस्‍थानों का वातावरण बहुत ही खुला-खुला, यहाँ प्रत्‍येक विद्यार्थी को तमाम सम्‍बन्धित सामग्री पर्याप्‍त मात्रा में उपलब्‍ध है। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के कोर्स लागू हैं।

छात्र-छात्रा खुले दिमाग से एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं, आत्‍मीयता पूर्वक, सहयोग, सहायता की परिपाठी है, समस्‍याओं से सामूहिक रूप से निबटते हैं। किसी को भी प्रभावित हुये बगैर, अपने-अपने समग्र विकास के लिये गम्‍भीरता से प्रयासरत रहते हैं।

कुछ दकियानूसी दिमाग के कुछ लोग, चटकारे और लच्‍छेदार कहानियाँ गढ़कर माहौल में तैरने के लिये छोड़ देते हैं। जो सौहार्द पूर्ण परिवेश को वैचारिक, चारित्रिक, व्‍यवहारिक प्रदूषित करने का निरर्थक प्रयास करते रहते हैं। कुछ समय के लिये तो माहौल तनावपूर्ण हो जाता है, समझदारी पूर्वक सूझ-बूझ कर सकारात्‍मक उपाय करने के पश्‍च्‍चात पुन: सामान्‍य भी हो जाता है। उंगलियॉं छोटी-बड़ी रहती हैं। सावधानी पूर्वक रहने से ही समाज में भाई-चारा पोषित होता है। खुशहाल !

...........तनया धड़धड़ाती भड़भड़ाती, जोर का झटका-धक्‍का देकर दरवाजे में, लपकी तनूजा की ओर, ‘’क्‍या हुआ....!’’ हाँफते-हाँफते, ‘’कोई खास बात तो नहीं !’’

तनूजा आश्‍चर्य चकित नजरों से निहारे जा रही है, कुछ बोलते नहीं बन रहा है। मौन, जड़वत्त, बेड पर इत्मिनान से आलथी पालथी मारकर, गोद में नरम तकिया, उस पर कलाईयाँ धंसी उंगलियों में मोबाइल फंसा, कोई रोमांटिक वीडियो देख रही थी; गले में पहनी चमचमाती चैन उन्‍नतोरोजों पर झूल रही थी, सॉंसों से ताल पर ताल मिलाकर। निर्विकार ! तनया को घूर रही है। तनूजा चड्डा पहनी हुई थी। तनया ने नंग्‍गी जॉंघ पर चीमटी काटकर पूछा, ‘’बता ना..........।‘’

‘’श् ई......श....ई !’’ सुरीली चीख निकल पड़ी तनूजा की।

तनया का चेहरा तमतमाया सुर्ख हो गया। क्रोध उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है, ‘’बैठी है मूर्ती बनी !’’

तनूजा को तनया का यह हाल-बेहाल बहुत प्‍यारा लग रहा था। पहली बार उसके मुख मंडल पर, इतना आक्रोश देख रही थी।

‘’बैठ.....।‘’ तनूजा ने कहा, ‘’आराम कर ले, सामान्‍य सॉंस ले-ले.......।‘’ शॉंत करने की गरज से कहा, ‘’पसीने में तरबतर हो रही है।‘’…………गहरी-गहरी सॉंसें खींच कर, ‘’कितना परफ्यूम स्‍प्रे कर लिया। पसीने के साथ संयुक्‍त सुगन्‍ध ने रूम महका दिया है। रफ्ता- रफ्ता लावण्‍य युक्‍त शुरूर समाहित होता जा रहा है, रूम की हवा के साथ भँवर की भॉंति चक्‍कर लगाता सॉंसों के माध्‍यम से शरीर की रग-रग को उत्तेजित कर रहा है। तेरे तन-बदन की मांसल खुशबू की तासीर ने बनाया खुशगवार माहौल, असहनीय हो रहा है। तुझे गोद में लिटा लेने के लिये मन विवश हो रहा है।‘’

टप्‍प से तनया, तनूजा की गोद में टपक पड़ी पके फल की भॉंति !

‘’अब तो रहस्‍य ,खोल !’’ तनया ने उसके ओंठों के समीप अपने औंठ ले जाकर कहा, ‘’सस्‍पेन्‍स बना रखा है।‘’

‘’ठहर, तुझे छाती से सटाकर, प्‍यार तो कर लूँ......चूमा-चाटी, चूसा-चासी करके, प्‍यार पिपासा का प्रसाद तो चख लूँ।‘’

दोनों शरीर की कशमशाहट परस्‍पर घर्षण से अनियंत्रित, अस्‍त-व्‍यस्‍त होकर, उफनने लगीं.........समय, शाँत, संतृप्‍त, संतुलित, समीर शीतल, समान्‍य संतुष्‍ठ हुआ, तब तनूजा ने सस्‍पेन्‍स का रहस्‍योद्घाटन किया, ‘’मॉम से बात हुई !’’

‘’हॉं !’’ तनया ने दृढ़ता से आर्डर दिया, ‘’बिना रूके सुनाती जा, स्‍पष्‍ट !’’

‘’मॉम की बातों में रोष, गुस्‍सा, झुंझलाहट, अकुलाहट, बैचेनी, आतुरता झलक रही थी।‘’ तनूजा कुछ गम्‍भीर होकर बोली, ‘’लगता है, मॉम का हमारे प्रति जो विश्‍वास था, वह डगमगा गया है। उनके दिल-दिमाग में अनेक संदेह उत्‍पन्‍न हो गये हैं। उन्‍हें घबराहट हो रही है, शीघ्र-अति-शीघ्र इस मसले पर स्थिति स्‍पष्‍ट होनी चाहिए।‘’ तनूजा ने तनया को दुलार करते हुये, उसके सर पर स्‍नेहिल हाथ फेरते हुये समझदारी लहजे में बताया, ‘’मॉम चाहती हैं, करियर के साथ-साथ हमारी शादी भी सम्‍पन्‍न हो जाये। हम मन-पसन्‍नद अनुकूल परिवार में, अपना घर-द्वार सम्‍हाल लें........।‘’

‘’लेकिन.........।‘’ तनया अपने-आप को समेट कर बैठ गयी, ‘’मॉम तो जानती है, हमारी स्थिति...........।‘’

‘’हॉं।‘’ तनूजा ने समझाया, ‘’जात-बिरादरी, समाज ने धारणा, मिथक पाल रखा है कि हॉस्‍टल, खासकर कॉ-हॉस्‍टल में रहने वाले छात्र-छात्राऍं,…………सामाजिक मर्यादाऍं, संस्‍कार, संस्‍कृति परम्‍परा, परिपाठी, चरित्र की पवित्रता को नजर अन्‍दाज, अनदेखा, अनावश्‍यक, मानकर, उससे भयमुक्‍त होकर सरेआम उलंघन करना अपने आधुनिक स्‍वछन्‍दता का प्रमाण समझते हैं। सामाजिक, धार्मिक बाध्‍यताओं को दकियानूसी मानकर खारिज कर देते हैं। सारे-रिवाज-रस्‍में इत्‍यादि को ढकोसला समझ कर नकार देते हैं। भविष्‍य में इनके दुष्‍परिणाम भुगतने पड़ते हैं। समाज की मुख्‍य धारा से कट जाते हैं। इस धारणा की समर्थक है, मॉम। मॉम का मानना है कि समाज-जात-बिरादरी में अलग-थलग पड़ जाते हैं। वहिष्‍कृत जीवन जीने हेतु विवश हो जाते हैं। यह डर, भय, शंका संदेह विचलित किये हुये हैं मॉम को, उनका कहना है, पानी में रह कर मगर-मच्‍छ से बैर नहीं कर सकते। आदि काल से चले आ रहे समाज के नियम, कानून, सभी लोगों के अनुसार ही जीवन यापन करना श्रेयस्‍कर होता है।

‘’एक काल्‍पनिक समस्‍या से आतंकित हो गई है, मॉम।‘’ तनया ने अपना दृष्टिकोण जाहिर किया।

‘’मॉम ने सख्‍त शब्‍दों में, आगाह किया है, तो हमारा कर्त्तव्‍य है कि उनके आदेश को शिरोधार्य करें।‘’ तनूजा ने अपना निश्‍चय दोहराया।

‘’फिलहाल तो अपना कोई चाहने वाला नज़र नहीं आता, जिसे ठोंक-बजाकर प्रोपोज कर सकें।‘’ तनया ने स्‍पष्‍ट कर दिया।

‘’मॉम को लगता है कि उम्र के इस मुकाम पर पहुँचकर कोई ना कोई हम उम्र से स्‍वाभाविक‍ अंतरंग सम्‍बन्‍ध की सम्‍भावना रहती है।‘’ तनूजा ने अन्‍दाज लगाया।

‘’मॉम का सोचना वाजिब है, अनुभवी हैं, दुनिया देखी है। हम अपने आप को ही लें, जब सेक्‍स के किटाणु तन-बदन, दिल-दिमाग में अपना सर उठाते हैं, तब सारी चेतना एक मात्र केन्‍द्र पर टिक जाती है।‘’ तनया भी पूर्ण सहमत हुई।

तनूजा बोली, ‘’ऐसे हालातों में, मर्यादा, संस्‍कार, संस्‍कृति, लिहाज, शरम, परिवार, खानदान, जात, बिरादरी, मान-सम्‍मान, इज्‍जत इत्‍यादि-इत्‍यादि पर भविष्‍य में प्रभावित करने वाले काल्‍पनिक दुष्‍परिणामों के बारे में सोचने वाला तंत्र शून्‍य हो जाता है। केवल धधकती ज्‍वाला को शॉंत करने का उपक्रम ही अस्तित्‍व पर सवार, हावी रहता है।‘’

‘’हॉं, तो ऐसे अवसरों का निराकरण हम एक-दूसरे के सहारे अस्‍थाई रूप में कर लेते हैं।‘’ तनया संतुष्‍ट दिखी।

‘’मेरी लाड़ो।‘’ तनूजा ने बताया, ‘’यह समलिंगी उपाय है।‘’ मुस्‍कुराने लगी।

‘’अबैद्य अंदेशों से तो सर्वदा सुरक्षित हैं।‘’ तनया निश्चि‍न्‍त लगी।

‘’मगर ये समाज में स्‍वीकार नहीं हुआ है। सर्वमान्‍य, सर्वसुलभ उपाय नहीं है।‘’ तनूजा ने जानकारी दी, ‘’कानून तो है, समलिंगी शादी करने बाबत, मगर सामाजिक परिदृश्‍य में घृाणत एवं अप्राकृतिक कृत्‍य है। धर्मशारस्‍त्रों के विरूद्ध है। समलिंगी शादी में कुदरती वंशवृद्धि की सम्‍भावना नहीं है।‘’

‘’तत्‍काल राहत तो है।‘’ तनया गम्‍भीरता पूर्वक नहीं ले रही है।

‘’है तो आर्टिफिशियल व क्षणिक ही.......।‘’ तनूजा ने खारिज किया, तनया का विचार।

‘’समस्‍या वहीं-के वहीं........।‘’ तनया ने चिन्‍ता जाहिर की, ‘’मॉम को क्‍या जबाव दिया जाये, ताकि उन्‍हें संतोष हो सके, हमें मौका अथवा समय मिल सके सर्च करने के लिये।‘’

तनूजा-तनया ने गम्‍भीरता एवं विस्‍तार पूर्वक विचार-विमर्श, मंथन-मनन व्‍यवहारिक, वास्‍तविक आधार पर संयुक्‍त रूप से निर्णय लिया कि मॉम की अनायास अंदेशा भरी चिन्‍ता दूर करने हेतु, उन्‍हें वस्‍तुस्थिति समझायी जाये, जमीनी वास्‍तविक परिस्थिति से अवगत कराकर, भविष्‍य की समुचित योजना के क्रियाम्‍वन की दिशा में एप्‍रूवल लिया जाये।............

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश:---१५

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍