कोरोना काल का समय। फोन की घंटी बजी। देखा तो बोकारो में कार्यरत भाई का फोन था। उत्सुकता से फोन उठाया। उधर से काफी प्रसन्नता से भाई ने अपने सुपुत्र के जो कि टाटा स्टील, जमशेदपुर में कार्यरत है, पाणिग्रहण संस्कार के तय होने की सूचना दी। साथ में विवाह के अवसर पर आने का अनुरोध या निमंत्रण दिया। मैंने उसे राजकीय नियम से चलने की सलाह दी। कहा कि बीस व्यक्ति से अधिक का आना उचित नहीं है। उसने बीस व्यक्ति के आने की बात कही।
दो दिन के बाद मेरी एक भांजी ने अपने बेटे के उपनयन संस्कार में आने का निमंत्रण दिया। उसे भी मैंने केवल बीस व्यक्ति की बात याद दिलाई। उसने मुझे बीस में ही रखा था।
धनबाद से मेरी एक बहन ने अपनी बिटिया की शादी में आने का निमंत्रण दिया। उस वक्त कोरोना का कहर थोडा कम था। उस वक्त कोरोना के कहर पर कोई चर्चा नहीं की। मेरे अन्य भाई अपनी-अपनी सहधर्मिणी के साथ विवाह समारोह में पधारे थे।
दो दिन बाद मेरी श्रीमतीजी की बड़ी बहन ने उनकी बिटिया की शादी में आने का सन्देश दिया। श्रीमतीजी ने सन्देश दिखाया। सन्देश में कोरोना प्रोटोकॉल के हिसाब से शादी समारोह करने की बात कही गयी थी।
पुनः आश्चर्य हुआ। मैं पहले बीस में था। मुझे लगा था कि अब पहले बीस में स्थान बना पाना शायद संभव न हो। क्योंकि कुल बीस लोगों में से दस कन्या पक्ष के तथा बाद के दस वर पक्ष के रहेंगे। दोनों तरफ साला-साली का महत्त्व रहेगा। शायद अब किसी शादी में जाने का अवसर प्राप्त न हो। मगर संबंधियों के फोन ने मेरी इस धारणा को गलत सिद्ध कर दिया। सुदूर अरुणाचल में रहकर भी पहले बीस में स्थान बनाकर मैं अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। यह अलग बात है कि मैं परिस्थति को ध्यान में रखते हुए किसी भी शादी-विवाह में नहीं सम्मिलित हो पा रहा हूँ।
यदि मुझे निमंत्रण नहीं भी दिया जाता तो मेरा आत्मविश्वास नहीं डगमगाता। मेरी किसी से प्रतिस्पर्धा भी नहीं है। पिछले तीन दशकों से ऐसा ही है। अब किसी भी शादी-विवाह में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त नहीं हो पाता है। रही-सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी। सामाजिक – पारिवारिक मूल्यों में एक ठहराव की स्थिति आ गयी है।
मुझे ख़ुशी इस बात की है कि इतने सारे मेहमानों के बीच में भी मैं अपना स्थान बना पा रहा हूँ। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि आज के सामाजिक-पारिवारिक स्तर पर है।
यदि कोरोना अपना ढंग नहीं छोड़ेगा तो शायद अब रिश्तेदारों की शादी में भी न जाने का मौक़ा मिले क्योंकि परिवार में बहुत से बुजुर्ग हैं। मेरे नहीं भी सम्मिलित होने से शादी-विवाह सबकुछ रीति-रिवाज से सम्पन्न होता है। लेकिन कोरोना के समय में इतना तो है कि शादी-विवाह समारोह में सम्मिलित होने के लिए अब किसी के अहम् को संतुष्ट नहीं करना पड़ता है। कोई खुशामद, विनती, निवेदन नहीं होते हैं, जो आमतौर पर बड़ी शादियों में होते हैं।
शादी समारोह का विवरण अब अपने-अपने घरों से पूरी तरह ऑनलाइन प्राप्त कर लेते हैं। हर रस्म का वीडियो व्हाट्सएप्प पर प्राप्त हो जाता है। अब आगे भविष्य में हो सकता है कि शादी-विवाह में निमंत्रण पाने के लिए अलग से प्रतियोगिता हो। स्थान बनाने के लिए बाकी रिश्तेदारों से प्रतियोगिता होगी। अपना व्यवहार उदार रखना होगा नहीं तो बाकी प्रतियोगी आसानी से हमारे आत्मविश्वास की धज्जियां उड़ा सकते हैं। इस प्रतियोगिता में हम आवेदन नहीं कर सकते। विवाह समारोह में शामिल होने से ज़िम्मेदारियां समझने, उन्हें निभाने और उनके नतीजे जानने जैसे गुण हम सीख सकते हैं। साथ ही बच्चे भी इन छोटे-छोटे उपायों से सीख सकते हैं। जो उन्हें व्यावहारिक बनायेंगे। बड़े कामों का ज़िम्मा समझने-सम्भालने की सूझ देने की राह छोटी ज़िम्मेदारियों से होकर ही विस्तार लेगी।
जो भी हो, अब खर्चीली शादियों का शोर कम सुनाई देगा। कन्या पक्ष वालों को अब कर्ज लेकर अधिक खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ सकती है। शेष समय पर छोड़ सकते हैं।