The Author Anand Tripathi फॉलो Current Read प्रेम निबंध - भाग 2 By Anand Tripathi हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books You Are My Choice - 39 श्रेयाहमे हॉस्पिटल से घर पहुंचने में तकरीबन 15 मिनट लगेंगे अ... श्री राम कृपा मानस महाग्रन्थ एक अभिब्यकती श्री राम कृपा मानस और प्रभु श्री राम के प्रति :... 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की कहानी को भी दिल्ली ने ही कभी सजाया हो। मैं दिल्ली आ तो गया था जैसे तैसे करके हम लोग अपनी पेट पूजा भी कर लेते थे लेकिन बात सपनों की थी तरक्की की थी और किसी चीज को पाने की जुनून की थी उसमें पीछे कैसे रहते बस फिर क्या था चल पड़े सपनों की उड़ान भरने और दिल्ली आकर यहां एक छोटे से कोने में जा बसे जहां पर चारों तरफ बड़ी-बड़ी दीवारों से घिरे ना लें और छोटी-छोटी संकरी सी गलियां थी इन्हीं में गुजरा मेरा बचपन और कुछ छोटी मोटी शैतानियां धीरे-धीरे समय बीता गया और हम लोग बड़े होते गए परंतु जहां जहां हम रह कर आए वहां का प्रेम अभी तक भी कम ना हुआ क्योंकि हम तो किराएदार थे लेकिन हमारी जिंदगी किराएदार की सी लगती नहीं थी जो भी मकान मालिक हमें मिलता हम उसे अपना प्रेम का रिश्ता जोड़ लेते बस वह भी हमें अच्छी दृष्टि से देखता था और दोनों का प्रेम सदा बना रहता था इसलिए मैं प्रेम पर ज्यादा प्रकाश डालता हूं क्योंकि पूरे जीवन में अगर कोई भी एक ऐसी वस्तु है या भाव है जोकि किसी शत्रुता को काट सकता है तो वह है प्रेम चाहे वह बाली और सुग्रीव का हो या रावण और विभीषण का हो जीवन का हर एक अंग प्रेम रश्मि डूबता हुआ हो ऐसा जीवन बने तो अच्छा रहेगा यहां आने के बाद एक छोटे से स्कूल के आंगन में पढ़ लिखकर अपनी जिंदगी की कलम को और चमकाता जा रहा था कुछ दिनों बाद प्राइवेट से निकलकर सरकारी स्कूल के रुक कर लिए उसके बाद जीवन में थोड़ा सा तो परिवर्तन आ ही गया क्योंकि जब आप किसी एक घोसले से उड़ कर दूसरे घोसले में जाते हैं तो आप कितने भी प्रकांड क्यों ना हो परंतु आपको कुछ ना कुछ परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है बस ऐसा ही कुछ हाल मेरा भी था उससे कहीं बेहतर था मैं और मेरे दोस्त सब आपस में लंच करते छुट्टी में आपस में घर जाते हैं और एक साथ आपस में प्रेम से रह कर हालांकि ऐसा कहना उचित नहीं होगा कि सरकारी स्कूल के बालक दुष्टता से बाज आते होंगे फिर भी उनको प्रेम ने ही जीता था तो मैं भी निसंदेह उनसे प्रेम से बात करता था और धीरे-धीरे देखते देखते उस स्कूल का हीरा बन गया प्रधानाध्यापक का प्यार का प्यार विद्यार्थियों का प्यार एक शब्द में कहूं तो मेरे चारों तरफ प्रेम की बयार बह चली जिसको देखो कोई नफरत नहीं कोई शिकवा नहीं और हम भी मस्त रहते थे प्रेमी जन कि अगर परिभाषा दी जाए तो वह अकाट्य होगी। प्रेम की परिभाषा को केवल भाव में ही व्यक्त किया जा सकता है अन्यथा इसी कोई परिभाषा नहीं है प्रेम का कोई विषय अगर संवाद बन जाए तू है प्रेम निराधार होगा उसका फिर कोई आधार नहीं रहेगा इसलिए पढ़ाया प्रेम में भाव की मन स्थिति प्रधानता और उसी को शिरोधार्य करके ही कोई प्रेमी प्रेम की पराकाष्ठा को पार कर सकता है जिस प्रकार से कोई पक्षी बिना किसी जुबान के बिना किसी वाणी के बिना किसी अंतःकरण के अपने प्रेम को किसी दूसरे पक्षी के समक्ष व्यक्त करता है उस परिस्थिति में हम और आप तो वाणी से बुद्धि से मनसे हृदय से गति से मती से परिस्थिति से विख्यात हैं और यही सब वस्तु या तो हमें प्रेम शब्द से कहीं दो ले जाती है या फिर उसके और भी नज़दीक लाती है निर्भर करता है कि हम उसका प्रयोग किस दिशा में और किस परिस्थिति में करते हैं इसलिए प्रायः ऋषि मुनि संत वृंदा और ब्रह्म का भी यही अकाट्य उपदेश रहा है कि प्रेमी सर्वोपरि अर्थात प्रेम सबसे ऊपर है मैंने कई बार देखा है कि कई व्यक्ति जो कि किसी स्त्री प्रेम प्रसंग में लिप्त होने पर वह उसके ना रहने पर कई बार दूसरी स्त्री प्रेम प्रसंग में भी लिप्त हो जाते हैं ऐसा अमूमन कई बार देखा गया है और आज भी है इसलिए मैं बिरहा शब्द को वियोग शब्द को उन्मूलन शब्द को इन सभी से अपरिचय कराता हूं क्योंकि जो व्यक्ति एक के वियोग होने पर पर से संबंध स्थापित करता है उसके लिए विरह और वियोग की परिस्थिति अस्वीकार्य होती है मेरा मानना यह है कि कई दशकों में यह स्थिति जीने का एक सुनहरा मौका मिलता है और अगर कोई इस प्रकार की उद्दंडता के साथ इसको हानि पहुंचाता है या फिर इसका दुर्व्यवहार करता है तो फिर वह जीवन में किसी भी प्रासंगिकता में जुड़ने लायक नहीं रहता है मैं कुछ क्षण के लिए व्याख्या कार बन गया था परंतु मैं अपनी बातों से दूर नहीं हूं 10वीं 11वीं 12वीं स्कूल से करने के बाद कॉलेज के दिन शुरू हो गए लेकिन समय के साथ साथ उम्र भी बढ़ रही थी एक बात सर्वविदित है के जीवन काल का पड़ाव उम्र के साथ ही तय किया जाता है। और ऐसी ही कुछ मेरी भी उम्र थी जिसमे मैं एक तरफ संभल रहा था और दुसरी ओर मेरी जवानी के कुछ कण भी खिल रहे थे। जब मुझे पहली बार किसी लड़की नाम का परिचय अपने दोस्तो से मिला ये प्यार और आकर्षण की व्यवस्था उन्होंने ही मुझे बताई। लेकिन वहा दोस्तो के बीच में काम और वासना भी बहुत थी। मुझे यह समझने के लिए की लड़की क्या है कौन है। कैसी है ऐसा कोई भी मुझे नही मिला। जो भी मिले वो हवस मिटाने वाले मिले। पहली बार मैं जब छठी में था तब मैने किसी लड़की को इतना करीब से देखा था। और फिर ट्यूशन में देखा उसके लिए तो मैंने एक रात जागकर खत लिखा था। फिर रोया भी। विरह में लेकिन फिर सोचा कि यह एक बहुत साधारण सा बचपन था। बस यह भी एक दिन है निकल जायेगा। लेकिन वहा से प्रेम नगर का दाखिला तो पक्का हो ही गया था। क्रमशः ‹ पिछला प्रकरणप्रेम निबंध - भाग 1 › अगला प्रकरण प्रेम निबंध - भाग 3 Download Our App