मेरी मोहब्बत कौन (भाग 05)
वक़्त के साथ हरिओम धीरे-धीरे मेरे परिवार के करीब आता गया और मुझे ना तो इस बात को लेकर कभी जलन हुई और ना ही कभी बुरा लगा बल्कि मैं बहुत खुश थी । अब हम बहुत जल्द तीसरी कक्षा में जाने वाले थे परिक्षा के दिन काफी नजदीक था अब हरिओम मेरे ही घर पर रहता था और यही से पढ़ाई भी करता था क्योंकि हमारे स्कूल से उसका गाँव बहुत दूर था। अब तो मैं ओर भी खुश थी क्योंकि अब हम रात-दिन हर पल साथ ही रहने लगे। कभी-कभी हम खूब लड़ा भी करते थे।
"देख ओम बता रही हूँ ज्यादा चालाकी की ना तो मुझसे बूरा कोई ना होगा।",मैं हरिओम को धमकाते हुए बोली
"चलाकि मैं नहीं तू कर रही है देख तो अभी भी लालटेन की सारी रोशनी तेरे तरफ है।",उसने मेरा सिर किताब पर झुकाते हुए कहा
"हाँ तो वैसे भी तेरे पास दिमाग तो है नहीं पढ़कर क्या करेगा?"
"वहीं जो तू करेगी..।"
"अच्छा....",कहते हुए मैं लालटेन पर झपट पड़ी
एक साइड से लालटेन को मैं पकड़े हुई थी तो दूसरी तरफ से ओम और हम दोनों अपनी-अपनी छोटी-छोटी हाथों का पूरा ताकत उस लालटेन को जीतने में लगाएं हुए थे। और अंत लोमड़ी रोटी ले गई मतलब कि...मेरा बड़ा भाई उसने कहा...
"क्या हुआ ऐसे लालटेन का प्राण क्यों निकाल रहे हो तुम दोनों....",भैय्या ने कहा
और मेरे भैय्या का नाम सौरभ था मतलब कि है
"देखो ना भैय्या ये ओम मेरे ही घर में मुझसे लड़ रहा है वो भी इस लालटेन के लिए। जबकि इसे पता है कि परिक्षा में तो मैं ही फस्ट आने वाली हूँ। फिर भी....",मैं अपना चेहरा बनाते हुए बोली
"बस इतनी सी बात... लाओ इधर दो लालटेन अभी मैं तुम दोनों का लड़ाई सुलझा देता हूँ।"
जैसे ही भैय्या ने ऐसा कहा मैं ओम के हाथ से लालटेन झपटते हुए भैय्या के हाथो में थमा दी फिर उन्होंने कहा...
"अब तुम दोनों पूंगा-पूंगी करो जो पहले पूंगा उसे ये लालटेन मिलेगी और नहीं पूंगा उसेे कम रोशनी में पढ़ाई करनी होगी।"
अब हम दोनों एक दूसरे को पूंगाने में लगे थे मतलब कि जब हम लुक्का-छिप्पी खेलते हैं तो उसके लिए किसी जक को चोर चुना जाता है और उसके लिए हम कई प्रक्रिया करते हैं ठीक वैसा ही हम कर रहे थे जिसपर से शुरू होता था उसपर तो अंत होना मुश्किल था यानी कि मैं पूंगाना शुरू करती थी तो ओम हारता था और वो पूंगाता था तो मैं हारती थी इसमें हमारा आधा घंटा बरबाद हो गया और इसी बीच भैय्या लालटेन लेकर भाग गए...। कब भागे...? इसका पता तो हम दोनों में से किसी को चला ही नहीं अब अफसोस करने से तो कुछ होने वाला था नहीं इसलिए मैं रसोई में गई और एक दिया उठा लाई और हम दोनों फिर उसी दिये की रोशनी में पढ़ाई किए।
सुबह हुई... माँ ने हम दोनों को बड़े ही प्यार से पुचकारते हुए उठाया। पर मम्मी ओम को अपनी गोद में उठाकर बाथरूम तक पहुँचाई और मुझे खिचते हुए। जैसे कि मैं ने कोई अपराध किया हो और पुलिस मुझे खिचकर जेल ले जा रही हो।
हमलोगों ने जल्दी से नहा-धो कर नाश्ता करके भगवान जी के सामने माथ्था टेका और स्कूल के लिए चल दिए। 9:45 होते ही हमे हमारा सवाल मिल चूका था । और अब बारी थी हम दोनों की बिछड़ने कि......
"हरिओम और हेमाश्रि.... आज तुम दोनों साथ नहीं बैठ सकते चलो तुम सबसे पीछे की बेंच पर बैठो हरिओम..."गणित विषय के सर ने कहा
इतिहास गवाह है गणित विषय के शिक्षक हमेशा से खडूस ही रहे हैं। पता नहीं कैसे.... लगता ये गणित विषय ये लोग इतना पढ़ते ही कि दिमाग का ही गुणा-भाग बिगड़ जाता है। मेरे स्कूल के सबसे तेज होनहार और सबसे अधिक गुस्से वाले सर हैं ये.., दूर-दूर गाँव तक इनकी चर्चा होती है। एक शोले फिल्म का वो डाइलॉग "सो जा बेटा वरना गब्बर आ जाएगा" एक हमारे गाँव का डाइलॉग "पढ़ ले बेटा वरना गणित मास्टर साहब आ जाएंगे" जाने इन्हें क्या दुश्मनी है हम दोनों से....
"हरिओम तुम ने सुना नहीं... जाओ पीछे की बेंच पर बैठो वरना तुम्हें उत्तरपुस्तिका नहीं मिलेगी फिर देखता हूँ तुम कैसे देते हो इग्जाम .."
"हेमा तू चाय चिंता मत कर बस दो घंटों की ही तो बात है फिर तो सारी जिन्दगी तेरे पास ही रहना है। मन लगाकर लिखना।"
"नहीं ओम मत जा....",मैं रोते हुए बोली
"हेमाश्रि जिद मत करो वरना तुम्हें भी उत्तरपुस्तिका नहीं मिलेगी, और तुम हरिओम एक बार में बात सुनते क्यों नहीं...",इतना कहते हुए सर हरिओम को खिचकर जबदस्ती उसे बेंच से बाहर निकालते हैं तथा खिचते हुए सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठा देता है। सर का यह रवैया मुझे तनिक भी पंसद नहीं आया। बहुत गुस्सा आ रहा था उन पर, लेकिन ओम ने शांत करने को कहा था जिस कारण मैं शांत थी।
मेरे लिए यह दो घंटा बहुत भाड़ी पड़ रहा था हम कभी भी इतने पास होकर भी दूर नहीं हुए थे । मेरा दिल कर रहा था कि सर की नजरों से बचते हुए मैं ओम के पास चली जाऊं मैं कोशिश भी कि पर नाकामियाब साबित हुई। मेरा दिल जरा भी परिक्षा देने में नहीं लग रहा था मन ही मन मैं भगवान से यह प्रार्थना कर रही थी कि जल्दी से ये दो घंटे बीत जाएं और ओम मेरे पास आ जाए। पर शायद आज घड़ी की सुईयों में किसी ने पत्थर बांध रखा था तभी तो आज समय कट ही ना रहा था। मैं बार-बार उदास मन ओम की तरफ देखती वह मजे से लिख रहा था शायद उसे मेरी कमी महसूस नहीं हो रही थी। जैसे-तैसे करके मैं भी अपनी उत्तरपुस्तिका भड़ी और मेरे उत्तरपुस्तिका भरते ही स्कूल की घंटी भी बजी ऐसा लग रहा था जैसे मानो वो मेरा ही कॉपी भरने का इंतजार कर रहे हो । उत्तरपुस्तिका जमा करते ही मैं दौड़कर ओम के पास गई।
"कैसी रही परिक्षा.....?"
"बहुत ही अच्छी सारे आसान सवाल थे। यार हेमा तू तो बड़ी तेज है रात में जो-जो तू ने पढ़ने को बोला था वो सारे सवाल आए थे। तुझे कैसे पता था कि यहीं सब आएगा।"
"तू ना एकदम बुध्दू है और हमेशा रहेगा भी "
"क्यों....?"
"अरे! हमेशा तो सर बताया करते थे इन सारे अध्यायों के बारे में कि पढ़ते रहना इससें सवाल आएंगे फिर...."
"ओह हाँ याद आया..."
"अब घर चले...",कहते हुए मैं ने उसका हाथ पकड़ा
"नहीं हेमा घर नहीं आज मैं अपने घर जाऊंगा। पापा आ रहे हैं मुझे लेना और तेरी पहचान भी करवा दूंगा।"
"क्या तू घर जा रहा है मतलब हम अब साथ नहीं रहेंगे।",इतना कहते-कहते मेरी आँखों से आँसू झलक आते हैं
"हाँ हेमा मेरी मम्मा का तबीयत अचानक से बहुत बिगड़ गया है इसलिए मुझे जाना ही होगा।"
"पर तेरे कपड़े तेरा सारा समान तो मेरे घर पर.है।"
"हाँ तो रहने दे ना आऊंगा मैं कभी वापस ...."
"नहीं ओम.... तू मत जा प्लीज..."
"हेमा बात को समझने की कोशिश कर मुझे जाना होगा।"
"ठीक है पर फिर जिन्दगी में दुबारा कभी मत आना....",कहते हुए मैं ओम से रूठ कर बैठ गई
"हेमा नाराज क्यों होती है मैं मम्मा के लिए जा रहा हूँ ना अगर उनकी तबीयत ठीक होती तो सारी जिन्दगी मैं तेरे यहाँ रूकता।",उसने मेरे चेहरे को अपनी तरफ घूमाते हुए कहा
"ठीक है चले जाना पर आज रात के लिए तो रूक जाओ।"
"नहीं हो पाएगा पापा सुबह से ही आएं हैं।"
"तो उन्हें पर क्यों नहीं बुलाया तू ने...."
"बुलाया था पर उन्होंने आने से मना कर दिया। चल मैं तुझे अपने पापा से मिलवाता हूँ।"
"हृम्म्म्म.....",कहते हुए मैं अपनी जगह पर खड़ी हुई
"ऐसे जाएगी पागल....",ओम ने मुस्कूरा कर कहा और मेरे गालो पर से आँसुओं की बूदें साफ की...और मेरा हाथ खिचते हुए बाहर सड़क की तरफ ले गया।
वहीं सड़क पर एक बड़ी सी गाड़ी खड़ी थी जो कि काफी मंहगी दिख रही थी वैसे हरिओम तो था ही काफी अमीर फार उसके ये गाड़ी क्या चीज है वो बताया करता था कि गाँव में उसका बहुत बड़ा घर है पर उसने अपने गाँव का नाम नहीं बताया ना मुझे ना मेरे घरवालों को पता नहीं क्यों
मैं ओम के पापा से मिली उनका पैर छूकर आशिर्वाद लिया। उन्होंने एक बड़ी सी चॉकलेट मेरे हाथो में थमाते हुए कहा
"बेटा खूब मन लगाकर पढ़ना, अभी तो मैं हरिओम को लेकर जा रहा हूँ पर वो जल्दी ही लौटेगा।"
ओम के पापा की बात सुनकर मुझे जरा सी तसल्ली जरूर मिली कि ओम सच में जरूर लौटकर आएगा।
जाने से पहले उसने मुझे अपने गले से लगाया और मेरे पर किस करते हुए कहा
"ख्याल रखना अपना और परिक्षा ध्यान से देना। तुझे फस्ट आना है ठीक है।"
"हृम्म्म्म मैं तेरा इंतजार करूंगी ओम...."
"हाँ हेमा मैं आऊंगा.....",कहते हुए वह गाड़ी के अंदर बैठा और कुछ पलों में गाड़ी वहाँ से बढ़ी और देखते ही देखते वह गाड़ी सहित ओम भी मेरी आँखों से ओझल हो गया।
क्रमशः........
Swati kumari