मेरी मोहब्बत कौन...?(भाग 04)
बारिश लगभग बंद हो चूकी थी । हेमाश्रि झोपडी के बारह बैठी रो रही थी। हेमंत भी हेमाश्रि को बाहर बैठे देखकर वहाँ जाता है। हेमाश्रि ने अभी चश्मा नहीं लगया हुआ था। उसकी आँखों में आँसुओं की मोटी-मोटी बूदें थी । हेमंत एकटक से हेमाश्रि को बस देखते रह जाता है। वह बिना चश्मे में ओर भी ज्यादा खुबसूरत लग रही थी उसकी बड़ी-बड़ी आँखें उसमें लगा मोटा काजल उसकी खुबसूरत में चार चांद लगा रहा था ।
"त..त..तुम कब आएं....?",अचानक हेमाश्रि अपने आँखों से आँसू पोछते हुए कहती है
हेमाश्रि के सवाल पूछने पर हेमंत का ध्यान टूटा है और वो ख्याली दुनिया से निकलकर वास्तव में लौट आता है । हेमंत धीरे से हेमाश्रि की तरफ बढ़ता है
"क्या हुआ तुम्हें.... तुम रो क्यों रही थी?"हेमाश्रि के कंधे पर हाथ रखते हुए हेमंत कहता है
"क...कुछ नहीं....",कहते हुए वो अपना चश्मा दुपट्टे से पोछती है और पुनः पहन लेती है
"तुम बिना चश्मे में ओर भी ज्यादा खुबसूरत लगती हो ऐसा लगता जैसे तुम दुनिया की एकलौती सुंदर लड़की हो।",हेमंत हेमाश्रि के आँखों में देखते हुए कहता है
"बातें बनाना बंद करो और घर चलते हैं प्लीज...."हेमाश्रि हेमंत को घूरते हुए कहती है उसे खुद की या उसकी सुदंरता की तारीफें सुनना बिल्कुल पंसद नहीं था। वह वहाँ से निकलने के लिए खड़ी होती है
"अरे! सच में यकीन नहीं है तो तुम अपने बॉयफ्रेंड... उफ्फ सॉरी आई मिन तुम अपने लवर से पूछ सकती हो यकीनन वो झूठ नहीं कहेगा तुम से...."
"पहले लवर तो मिल जाए।",हेमाश्रि गहरी साँस छोड़ते हुए कहती है
"मतलब कि तुम ने जो भी कहा था कि तुम किसी ओर से प्यार करती हो, वो सब बस मजाक था...?",अचानक हेमंत का चेहरा खुशी से चमक उठता है
"नहीं... आज तक मैं ने जो भी तुम से कहा सब सच है।"
"तो तुम्हारा लवर गया कहाँ जो तुम ने कहा मिलेगा तब ना...बताओ..."
"यार लम्बी कहानी है।"
"तुम बताओ तो...."
"ठीक है बैठो बताती हूँ।",कहते हुए हेमाश्रि वापस वहीं पर बैठ जाती है और हेमंत भी एक ईट लेकर वहीं पर बैठ जाता है
"मैं जिससे प्यार हूँ उसका नाम हरिओम है वह मेरे ही साथ पढ़ता था....."
"था मतलब कि वो अब जिंदा नहीं है।",हेमंत बीच में ही बोल पड़ता है
"कमीने सुन ले पहले पूरी बात..",कहते हुए हेमाश्रि हेमंत के सर पर एक चपत मारती है
"हरिओम और मैं दोनों साथ ही मेरे गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे हरिओम किसी दूर गाँव से आया करता था किस गाँव से उसका पता मुझे आजतक नहीं चला। उस दिन हरिओम का पहला दिन हमारे स्कूल में......"
फलेशबैक...
"आज तेरा पहला दिन है हमारे स्कूल में....",मैं ने अपने तोतली जुबान से कहा
"हाँ.... यहां पर मेरा मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा, यहाँ मेरा तो कोई दोस्त भी नहीं है।",हरिओम काफी उदास मन से कहता है
"तो मैं किस दिन काम आऊंगी चल हाथ दे अपना...",इतना कहते हुए मैं दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाई कुछ देर तो उसने सोचा कि दोस्ती करूँ या नहीं फिर अंत में वो मान गया
"तू तो मेरा नाम जानती है पर मैं तो नहीं जानता ना...",हरिओम ने कहा
"मेरा नाम हेमाश्रि है...."
"अरे! बाप रे इतना कठिन नाम... मैं तो इतना मुश्किल शब्द बोल भी नहीं पाऊंगा। हाँ मैं तुम्हें हेमा जरूर बुला सकता हूँ । ",हरिओम ने कहा
"हेमा........",यह नाम सुनते ही जाने क्यों मेरे चेहरे पर मुस्कूराहट आ गई आज पहली बार ऐसा लगा जैसे हेमाश्रि का मतलब समझ आ गया हो भले ही हेमाश्रि का मतलब हेमा ना होता हो, लेकिन आज हरिओम के मुँह से खुद के लिए हेमा सुनकर जितनी खुशी हुई उतनी खुशी तो तब भी नहीं होती है जब माँ मुझे बुच्ची बुलाया करती है
"क्या हुआ कहाँ खो गई....?",हरिओम मेरे आँखों के सामने चुटकी बचाते हुए बोला
"क...क..कुछ नहीं",हरिओम के चुटकी बजाते ही जैसे मैं वास्तव म़े आ गई
"पंसद आया मेरा दिया हुआ नाम...",हरिओम ने मुस्कूरते हुए पूछा
"बहुत....",मैं बस एक शब्द ही बोल पाई क्योंकि उस खुशी को वया करने के लिए मेरे पास ना तो शब्द थे नाही ही कोई वाक्या....
"तू भी ना अब मुझे सिर्फ ओम ही कहना, यार आजकल के मम्मी पापा भी ना, नाजाने क्यों लम्बा चौड़ा नाम रख देते हैं हम छोटे बच्चों का पता है किसी को नाम बताने में भी तुतलाहट आ जाती है और लोग हँस पड़ते हैं।",उसने अपना मुँह सड़े हुए कदीमे की तरह बनाते हुए बोला
"हृम्म्म...",मैं बस मुस्कूरा कर बोली
"वैसे तू पक्का दोस्ती तो करेगी ना मेरे साथ...?"
"हाँ करूंगी लेकिन एक शर्त पर....",मैं ने अकड़ते हुए कहा
"कैसी शर्त...?",हरिओम ने आश्चर्य से पूछा
"यही कि तू... मेरे अलावा किसी ओर लड़की अपना दोस्त नहीं बनाएगा ।"
"पर क्यों....?"
"क्यों किस लिए, वो सब मुझे नहीं पता अगर दोस्ती करनी है तो तुझे शर्त माननी होगी। "
"चल ठीक है तू मेरी इस स्कूल की सबसे पहली, अच्छी और बेस्ट फ्रेंड है । तेरे अलावा मैं किसी ओर लड़की को अपना बेस्ट फ्रेंड नहीं बनाऊंग प्रोमिस वो भी पिंकी प्रोमिस....",कहते हुए उसने अपने हाथ के अंगुठे और मेरे हाथ के अंगुठे से टच करा और कनिष्ठा अंगुली पर से घुमाते हुए उसने मेरे हाथो में अपना हाथ डाला और हम हाथ मिलाकर दोस्ती कर लिए फिर उसने मुझे अपनी ओर खिचा ओर गले से लगाकर मेरे माथे को चुमा... सच में यह अनुभूति तो मेरे लिए ओर भी अलग था...पता नहीं क्या
"तो ले आज से हो गए हम बेस्ट फ्रेंड... ठीक है और हाँ तू मेरी और मैं तेरा...",कहते हुए हरिओम मेरा हाथ खिचते हुए क्लास रूम की तरफ बढ़ा
मैं क्लास में जाकर उसका परिचय सबसे करवाई मेरी सखियां भी हरिओम से दोस्ती करना चाह रही थी पर मैं ने दोस्ती तो क्या किसी को मिलने तक ना दिया जिस कारण मेरी एक-दो सखियों से मेरा दोस्ती भी टूट गया... पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा। हरिओम के आने से ऐसा लग रहा था मानो पूरी दुनिया मेरे साथ हो उस समय तो इन सारी को समझने के लिए मैं बहुत छोटी थी लेकिन अब सब समझ आ रहा है वो फिलिंग...
मैं और हरिओम क्लास में हमेशा साथ बैठा करते थे इसके लिए हमे रोज डांट भी पड़ती थी इसलिए कि हमारे स्कूल में कभी लड़का ओर लड़की को साथ नहीं बैठाया जाता था। हरिओम मेरे घर पर भी आता था और देखते ही देखते वो मेरी मम्मी का लाड़ला बन गया अब मेरी मम्मी मुझसे ज्यादा हरिओम से प्यार करने लगी। उसी को अब वो गोद में लेती थी, उसी को झुला झुलाती थी, उसको अपने हाथों से खिलाया करती थी ऐसा लगता जैसे मानो मैं नही वो उनका बेटा हो पर मुझे कभी इस बात का बुरा नहीं लगा बल्कि खुशी होती थी कि हरिओम मेरे परिवार के इतने करीब है पता नही क्यों....
क्रमशः........
Swati kumari