श्रीमद भगवत गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक "कर्मण्य वाधिकारस्ते माँ फलेशु कदाचन" के अनुसार मनुष्य का अधिकार केवल उसके कर्मो पर है । यूं तो कर्मों की व्याख्या की जाये तो कई ग्रन्थ बन जायेंगे कर्मो की बहुत ही गुह्य परिभाषा है। वास्तव में हमारा जीवन ही कर्म पर आधारित है। हमारे जन्म का आधार ही कर्म से सम्बन्ध रखता है इसलिए कर्मों का तत्वज्ञान (फिलॉस्फी) समझने के पहले हमको आत्मा का ज्ञान होना आवश्यक है।
अर्थात गीता के 47वें अध्याय के २२वें श्लोक "वासांसि जीर्णानी यथा विहाय नवनि ग्रहाती नरोपराणि तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवनि देहि" अर्थात जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को छोड़ नया शरीर धारण करती है। अब किस प्रकार किस आधार पर कहाँ नया शरीर धारण करती है यही सोचने का विषय है। वास्तव में आत्मा द्वारा नए शरीर को धारण किये जाने का सीधा सम्बन्ध कर्मो से है। विषय बहुत गुह्य है अभी तक जो ज्ञान मैंने प्राप्त किया है उसके आधार पर मेरे द्वारा इसको साधारण रूप में व्यक्त करने का प्रयास किया जा रहा है।
आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो उसके बाद उसे उस जन्म के सारे कर्मों का बोध होता है जब से वो गर्भ में आई थी । आत्मा को उस समय उस शरीर के द्वारा किये गए अपने अच्छे बुरे कर्मो का भान होता है। उस शरीर से जुड़े संबन्धों और उनके द्वारा किये गए कर्मो अथवा उस आत्मा द्वारा उनके लिए किये गए अच्छे बुरे कर्मो का भी आभास होता है । उसी आधार पर आत्मा ही यह निर्णय लेती है कि उसे अब कर्मो का हिसाब किताब चुकाने कहाँ किसके पास जन्म लेना है। अस्तु कर्मों का खाता जन्म जन्मांतर चलता रहता है। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि कभी कभी जन्म से ही दिव्यांगता या कोई और कमी होती है तो उस जन्म में तो उस आत्मा द्वारा कोई कर्म विकर्म हुआ ही नहीं जिसे भोगा जाये। अतः हम यह समझ सकते हैं कि कर्मो का ही महत्व है।
शरीर की कर्मेन्द्रियों द्वारा किए गए दैनिक कर्म एक प्रकार के अकर्म है जो सुकर्म या विकर्म की श्रेणी में नहीं आता है। अच्छे कर्म का अर्थ किसी के साथ बुरा न करने तक सीमित नहीं होता है । किसी दूसरे के प्रति किये गए कर्म की तीन स्टेज होते हैं - मन से सोचना, मुख से बोलना और फिर कर्म करना अर्थात मंशा, वाचा और कर्मणा । ये तीनो ही स्टेज महत्वपूर्ण हैं हमारे द्वारा अलग अलग तीनो स्टेज में किसी के लिए भी कोई बुरा कर्म नहीं होना चाहिए । अर्थात हमारे द्वारा किसी के लिए बुरा सोचना भी विकर्म बन जाता है चाहे कर्म हुआ ही न हो। इसी प्रकार बुरा बोलना भी विकर्म बन जाता है जिस पर हम ध्यान नहीं देते हैं। जो बाद में हमें ही चुकता करना पड़ता है। जाने अनजाने में भी हमारे द्वारा हुआ विकर्म हमें ही चुकाना पड़ता है। दैनिक जीवन में हमको इस बात पर बहुत ध्यान देना है कि हमारी आत्मा इस शरीर में पिछले जन्मो के कर्मों का हिसाब किताब चुकाने आई है तो कोई नया विकर्म न हो। यदि कोई आपके साथ बुरा भी कर रहा है तो आप यह सोंचे कि वह किसी जन्म का हिसाब चुका रहा है उसको जबाब देकर फिर से नया कर्म नहीं बनाना है। धीरे धीरे जब वे बुरा व्यवहार करने पर भी आपके द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं देखेंगे तो खुद ही बदल जायेगे। बहुत से लोग यह देखकर भी अच्छे कर्म करने के पथ से विचलित हो जाते हैं कि बहुत से लोग गलत काम करते हुए भी बहुत संपन्न प्रतिष्ठित हैं जबकि सही काम करने वाले परेशान रहते है। यह देख अमूमन निराशा आती है परन्तु यह सोचना चाहिए कि वो अपने पूर्व जन्मों की प्रालब्ध भोग रहे है इस जन्म के कर्म तो बाद में उनको चुकाने ही होंगे। किसी को दुःख देना या अपनी बात से किसी को दुखी करना यह भी विकर्म है जो हम समझ नहीं पाते । कुछ हमारे कर्म जो हमको विकर्म नहीं लगते परन्तु विकर्म बन जाते हैं । यदि आपके किसी भी कर्म द्वारा दूसरे के मस्तिष्क पर नकारात्मक वाइब्रेशन उत्पन्न होते हैं तो उसका भी कर्म आप पर आता है।
उदारणार्थ , आपने किसी को समय दिया है और आप उस समय नहीं पहुँच पा रहे है तो आपको सूचित करना चाहिए हम सोचते हैं 10 या 15 मिनट देर से क्या फर्क पड़ता है और यही सोचते सोचते कोई सूचना नही देते और 30 मिनट देर हो जाती हैं । अब आपके पहुंचने पर वो व्यक्ति आपसे देरी के लिए कुछ भी नहीं बोलता आपको देरी का अहसास भी नहीं होता क्योंकि वो सामान्य व्यवहार में रहता है। परन्तु उसके मन के विचारों को आप पढ़ नहीं सकते वो सोचता है पहले बता देते एक फ़ोन तो कर सकते थे कि लेट होगा मैं दिए गए समय से तैयार हूँ मुझे पता होता तो अपने अन्य काम निपटा लेता। ये सब नकारात्मक ऊर्जा आप पर असर करती है क्योंकि आपके कर्म द्वारा उत्पन्न हुई है। इसी प्रकार आप कहीं किसी के घर गए वहां से आपने कोई वस्तु उठाई अच्छी लगी उठाकर देखा और उसके बाद रख दी आप घर वापस आ गए अब जब उस व्यक्ति को आवश्यकता हुई तो वह वस्तु निर्धारित जगह नहीं मिली बहुत देर ढूंढने के बाद मिली क्योंकि आपने जहाँ से उठाई थी वहां न रखते हुए अन्य जगह पर रख दी अब इस नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भी आप पर पड़ा जबकि आपके अनुसार कोई विकर्म नहीं हुआ। किसी व्यक्ति विशेष के लिए हो रही चर्चा में बिना जाने समझे कमैंट्स करना भी विकर्म बनाता है। तो यह स्पष्ट हो गया की बहुत से कर्म हमारे द्वारा ऐसे होते है जिनको हम समझ नहीं पाते वो विकर्म बन जाते हैं। इसी प्रकार किसी के काम में अकारण कमी निकलना भी उसको दुःख पंहुचना है और वह भी विकर्म बनता है। हमारे दैनिक जीवन में इसी प्रकार की छोटी छोटी बातें जिन पर हमारा कोई ध्यान नहीं जाता अकारण हमारे विकर्म बनाती हैं। यदि बोल चाल या किसी अन्य बात को लेकर किसी से कुछ ऊंच नीच हो जाये तो तुरंत उसको बातचीत द्वारा निपटा कर सामान्य कर लेना चाहिए यदि मन मुटाव दूर न हुआ चलता रहा चलता रहा और इसी बीच आत्मा ने शरीर छोड़ दिया तो वह मन मुटाव आत्मा पर रिकॉर्ड हो जाता है । फिर दूसरे जन्म में आत्मा उस व्यक्ति को पहचान तो पाती नहीं है परन्तु उसको देखकर नकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं जबकि वर्तमान जन्म में हम न तो उसको जानते हैं न ही पहले कभी देखा। ऐसा अनुभव तो आप सब ने किया होगा किसी व्यक्ति को देखकर जिसे आप जानते भी नहीं है अच्छा नहीं लगता जबकि उसने आपके साथ कुछ बुरा किया भी न हो तब भी उसे देख गुस्सा आता है। इसके विपरीत कुछ व्यक्तियों को देखकर हमें बहुत अच्छा लगता है जबकि हम उस व्यक्ति से इस जन्म में पहले कभी मिले ही नहीं।
अर्थात, हमारे भाग्य लिखने की कलम सच्चे रूप में हमारे कर्म ही हैं। परम पिता परमात्मा ने जो सृष्टि का रचयिता है हम सब बच्चों का भाग्य ऊंच से ऊंच लिखा है सुख शांति सम्वृद्धि स्वास्थ सब उत्तम लिखा है कोई भी पिता अपने बच्चों का भाग्य ख़राब कैसे लिख सकता है । हमारे अपने कर्म -विकर्म इन प्राप्तियों से हमको वंचित रखते हुए हमें दुःख पहुंचते हैं ।
यदि हम दैनिक जीवन में अपने ऊपर पूरा पूरा अटेंशन रखते हुए अपने कर्मों पर ध्यान दें तो हमें कभी टेंशन नहीं हो सकता और कर्मो को सुधार कर हम न केवल अपना वर्तमान जीवन सुखमय बना सकते है बल्कि अपने अच्छे कर्मो द्वारा आगे के जन्म भी सुधार सकते हैं । आप में इस प्रकार के परिवर्तन को देख आपका परिवार, मित्र, साथी सदैव आपसे प्रसन्न रहते हुए अच्छा वातावरण बनायेगे और आप को देखकर अपने में भी परिवर्तन करने का प्रयास करेंगे। इसी प्रकार धीरे धीरे एक को देख दूसरे परिवर्तित होंगे और आप एक अच्छे समाज अच्छे राष्ट्र और अच्छे नव संसार के निर्माण में सहायक होंगे ।
इति॥