यात्रा Roop Kishore द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यात्रा


घटना वर्ष 1982 की है उस समय मुझे कानपुर से दिल्ली जाना पड़ा । दिन की गाड़ी से जाना था उस समय ट्रेन थी आसाम मेल अब उसका नाम परिवर्तित होकर उद्यान आभा एक्सप्रेस हो गया है। तो ट्रेन सुबह कानपुर से चलती थी और रात्रि तक दिल्ली पहुंच जाती थी। मैं निश्चित समय पर स्टेशन पहुंचा ट्रेन कुछ लेट हो गयी । उस समय कौन सा कोच कहाँ लगेगा इसके डिजिटल डिस्प्ले की सुविधा नहीं थी। तो एक ही रास्ता होता था कुली से पूछो कोच कहाँ लगेगा। खैर मैंने सोचा ज्यादा सामान तो है नहीं कुली का क्या करना। उस दौरान व्हील वाले सूटकेस नहीं होते थे तो मैं स्वयं ही अटैची लेकर चल दिया। ट्रेन आने पर पता चला मेरा कोच काफी पीछे है सो मैं पीछे के तरफ चला और अपने कोच 3 टियर में बैठ गया। ट्रेन चलने में कुछ ही समय बचा था कि हमारे ही कार्यालय के एक अधिकारी अपनी पत्नी व बच्ची के साथ उस कोच में आये। बाद में पता चला कि ए से कोच में उपलब्धता न होने के कारण उन्हें ३ टियर जाना पड़ रहा है। तो अपने को काफी निराश इन्फीरियर महसूस कर रहे थे। सामान काफी था दो बड़े बड़े सूटकेस, तीन बैग, दो तीन बड़े झोले, होल्डाल, सुराही लकड़ी का सुराही स्टैंड ।
ट्रेन चल पड़ी तो वो तीनो लोग साइड सीट पर यूं ही बैठ गए। मैंने पूछा सर आप कैसे तो बोले कि ए सी में टिकट नहीं मिला और जाना अनिवार्य है। मैंने सीट के लिए पूछा तो बोले जो मेरी सीट है वो चेंज करनी तो टी टी से बात करने के बाद सीट चेंज करके बैठूंगा । टी टी को ढूंढते ढूंढते ट्रेन लगभग पनकी स्टेशन क्रॉस करते (२० किलोमीटर ) दूर निकल गयी। खैर जब टी टी आया तो उन्होंने कहा नीचे की सीट चाहिए। टी टी ने कहा सर आप लोग आपस में चेंज कर लीजिये मैं एलॉट नहीं कर सकता। सर जी काफी निराश हो गए । फिर मैंने ही पहल की सर आप मेरी सीट ले लीजिये मैं ऊपर बैठ जाऊँगा रेस्ट करने के लिए वैसे भी दिन का सफर है। वह हल्का सा मुस्कराए फिर सीट के नीचे सामान लगाना शुरू किया सारा सामान रखा फिर झोलों में चेन ढूंढने लगे। मैंने कहा सर जी परेशांन न हों हम लोग यहीं हैं और दिन का सफर है तो बोले कोई भरोसा नहीं काफी समय बाद उन्हें चेन मिली सामान बांध कर लॉक कर दिया। गाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी स्टेशन निकलते जा रहे थे वो यात्रा का आनंद नहीं ले पा रहे थे। पत्नी और बेटी तो बैठ गए परन्तु वो फिर भी पूरे डिब्बे का चक्कर लगाते रहे। मैंने पूछा सर और कुछ चाहिए तो बोले यार इस कोच में दोनों तरफ इंडियन टॉयलेट है वैसे एक इंडियन एक यूरोपियन होना चाहिए। मैंने कहा सर जी आप टेंशन मत लो अगले कोच में चले जाना। इस पर बोले मान लो उस समय ही ट्रेन का लिंक खुल जाये तो मैं दिल्ली और मेरे फॅमिली रास्ते में । खैर जैसे तैसे वो बैठ गए। तब तक भोजन का समय हो गया अब उन्होंने झोले खोलना शुरू किये प्लेट, कटोरी, चम्मच, गिलास सब निकाला फिर सलाद काटने लगे । फिर नेपकिन निकाला खाना परोसा तीनो ने खाया बर्तन धोया पोछ कर रक्खा बंद किया इसमें 2 घंटे लग गए। बोले अब आराम करना है मैंने कहा आप लेट जाये मैंने लोअर बर्थ खाली कर दी। बोले यह सूट नहीं करती है कयोंकि यह इंजन साइड की है हमको उल्टा उल्टा लगेगा मुझे गार्ड साइड वाले बर्थ सूट करती है। उस तरफ एक अन्य महिला थी खैर मैंने रिक्वेस्ट करके चेंज करा दी। अब उन्होंने अपना होल्डाल खोलना शुरू किया बिस्तर निकाला बिछाया ठीक किया चादर तकिया सब बड़े सलीके से लगाया । इसमें एक घंटा लग गया । अब तक गाड़ी गाज़ियाबाद (गंतब्य स्थान से एक स्टेशन पूर्व) पहुँच गयी। मैंने कहा सर जी अब मत सोइये दिल्ली आने वाला है। तो बोले अरे मैंने तो कुछ देखा ही नहीं मुझे आगरा से पेठा लेना था मथुरा से पेड़ा लेना था मैं तो यात्रा का कोई आनंद नहीं ले पाया, तब तक गाज़ियाबाद भी निकल गया। मैंने कहा सर सामान समेटिये फिर उन्होंने सारा बिस्तर होल्डाल में रखा और सामान खोला दिल्ली स्टेशन आ गया।
अब मन में विचार उठा खाने के अतिरिक्त एक बार भी पानी का प्रयोग नहीं किया गया तो क्या इतनी बड़ी सुराही लकड़ी के स्टैंड के साथ लाने की आवश्यकता थी, टॉयलेट के लिए परेशान हुए इंडिया यूरोपियन गए एक बार शायद, होल्डाल का प्रयोग सिर्फ खोलने बांधने के लिए हुआ । यात्रा का कोई आनंद नहीं आया जिसका उन्हें अफ़सोस भी हुआ।
आज हमारा जीवन भी एक यात्रा है हम व्यर्थ के झंझटों में उलझे रहते है और व्यर्थ की सामग्री एकत्र करते हुए उसी में बंधे रहने के कारण जीवन जीने का वास्तविक आनंद नहीं उठा पाते । इसलिए हमें अपने जीवन में व्यर्थ से बचना है दिखावा नहीं करना है । एक एक पल कीमती है बीता वक़्त दोबारा नहीं आता है । इसलिए प्रसन्न रहिये स्वस्थ रहिये मस्त रहिये जो परमपिता परमात्मा ने दिया संतोष करिये। इसमें मेहनत से तररककी जरूर करना है स्पर्धा से ही विकास होता है परन्तु अपने वास्तविक स्थिति को अचल अडोल बनाना है जिससे आप पर परिस्थितियों का प्रभाव कम से कम पड़े । न व्यर्थ समय गवाएं न व्यर्थ संकल्प करें। जितना जीवन में हल्के रहेंगे उतना हल्कापन महसूस करेंगे। वह तो ट्रेन थी समय और स्टेशन निर्धारित था इस जीवन की गाड़ी का तो समय भी नहीं ज्ञात है कब उतरना है। इसलिए सदैव हल्के रहिये रेडी रहिये टेंशन फ्री रहिये। इति ॥