स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 5 Nirav Vanshavalya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्टेट बंक ऑफ़ इंडिया socialem(the socialization) - 5

पांचवी कार के बाहर खड़े टीम मेंबर के हाथ में चाबी उछलती है, और एक के बाद एक छे वॉक्सवैगन रिवर्स होती दिखाई देने लगती है.

झंखना वॉक्सवैगन कंपनी में जूनियर मार्केटिंग executive है. और कैसुअल एड का सारा काम वही संभालती है.


ध्वनि प्रदूषण से रहित जंगल के हाईवे के बीच में खड़े हुए अदैन्य ने झंखना से पूछा तुम यहां कैसे!

झंखना ने फिर से मुस्कुरा कर कहा अदी तुमने मुझे अपने दिल में बिठानेका मुझ पर एहसान किया है.

अब तुम्हारे दिल की बात मैं नहीं जानुगी तो और कौन जानेगा !

मुझे कल से पता था कि कल यह ऐड पूरी होने वाली नहीं है.




आए दिन होने वाले आतंकवादी धमाकों से अदैन्य की छाती में अश्रुओ का सागर गहरा होता जा रहा है. और इस समय भी उसकी आंखें कुछ प्रतिशत अश्रु मिश्रित ही है.

झाँखना ने अदि की छाती पर हाथ रखा और कहां कब तक अपने आप को दोषी मानते रहोगे.

झंखना ने कहा तुम्हें जो करना था वह तुम कर चुके हो अब बारी उन लोगों की हैं.

और यह मत भूलो की पूरी दुनिया में सिर्फ एक ही कॉन्टिनेंट यूरोप नहीं है. अभी और छे खंड बाकी है.

कोई ना कोई तो होगा ही जो तुम्हें एंटीफंगस के लिए इनवाइट करेगा.

झंखना के शब्द समूहो की पूर्णाहुति पर ही अदैन्य का मोबाइल बजना शुरू होता है. और अदैन्य ने फोन काट दिया.

झंखना घूम गई और पीठ का भाग अदैन्य की और करके कहां now come on be my man.

झंखना ने कहा एड तो पूरी हो चुकी है, दोबारा ऐसा जंगल पता नहीं कब मिलेगा!!!

थोड़ी देर के बाद पेड़ की डाली पर से एक बंदर ने वॉक्सवैगन पर छलांग लगाई और वह हाईवे क्रॉस कर गया.मगर कार मे एक दूसरे को लिपटे हुवे नाग नागिन अदैन्य और झंखना को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

एंटीफंगस एक इकोनामी सिस्टम है जिससे करंसी का अंडर पास यानी की ब्लैक मनी में डायवर्सन रोका जा सकता है. लगभग 99.99 तक.

एक अकेले अदैन्य को छोड़कर लगभग सारा संसार आज आतंकवाद से छुटकारा पाने के लिए तराह तराह के उपाय कर रहा है. कोई दुआ कर रहा है तो कोई अपने पैसे बर्बाद कर रहा है और कोई शहीदों की छड़ी लगा रहा है. मगर आतंकवादी लोग हमारी ही करेंसी का इस्तेमाल करके उसी से हथियार खरीद करें हम पर ही गोलियां बरसा रहे हैं, यह बात अदैन्य जैसे मंजे हुए अर्थशास्त्री के दिमाग को ही डंका दे सकती है.

जी हां, आतंकवादीओ कि अपनी कोई करेंसी नहीं होती, वह हमारी ही करेंसी से सारे डिल करते हैं और हम ही को अल्टीमेटम देते हैं.

यह बात अदैन्य ने कई बार यूरोपीयन करंसी एक्सपर्टस को चिक चिक कर बताइए मगर सभी ने अदैन्य की बात को अनसुना और नजरअंदाज कर दिया. और उसी मोड़ से अदैन्य ने यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली और एंटीफंगस यानी कि प्रतिफुग बना डाला.

अदैन्य के हिसाब से एंटीफंगस और स्टॉक एक्सचेंज होना दोनों लगभग समान है.

अदैन्य तो यहां तक मानता है कि यदि इस संसार में स्टॉक स्ट्रीटस( शेयर बाजार) नहीं होती तो हमारी 30 प्रतिशत इकोनामी लिक्विड होकर पता नहीं कहां चली जाती?