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बबली

"बबली"

मायके की दहलीज पार करते समय माँ-पिताजी की दुआओं में लिपटी ढेर सारी नसीहतों को अपने साथ लेकर गरिमा ने ससुराल में प्रवेश किया और परम्परानुसार मंगल गीत-संगीत के वातावरण में अपने नए जीवन की शुरुआत करी।

नई-नवेली गरिमा थोड़ी सहमी-सहमी सी ससुराल पक्ष के हर एक सदस्य के दिल मे अपनी जगह बनाने में दूसरे दिन से ही जुट गई। तीनों ननंदों का उम्र के साथ-साथ ओहदे में भी बड़ा होना शुरुआती दौर में संकोच और झिझक का कारण बना। परन्तु पतिदेव के भरपूर सहयोग से परिवार में जल्दी ही घुल-मिल गई।


गरिमा की सबसे छोटी ननद बबली की ससुराल पड़ोस में ही थी। अपनी परिवारिक ज़िम्मेदारी निभाने के साथ-साथ बबली पढ़ाई को लेकर बेहद जज्बाती रहती। हर वक़्त किताबें ही उसका साज-सिंगार बनी रहती। बबली के नज़दीक होने से तकरीबन रोज़ाना उससे मिलना भी हो ही जाता। किसी दिन अगर कारणवश वह नहीं आ पाती तो उसकी कमी घर के कोने-कोने को खलती। बड़े-बुजूर्गों जैसी समझदारी और बच्चो जैसी हठधर्मिता के सम्मिश्रण वाली बबली को शुरू-शुरू में समझना आसान नहीं था गरिमा के लिए, जिसका अहसास उसे जल्दी ही हो गया। एक तरफ सासू-माँ की तरह गरिमा की छोटी से छोटी बात का ख्याल रखना तो दूसरी ओर बच्चों सा आग्रह करते हुए कह देना, "मेरे बड़े भाईसाहब पहले हैं, आपके पति बाद में।" पतिदेव की भी सबसे चहेती और लाड़ली बहन होने के कारण गरिमा की भी भरपूर कोशिश बनी रहती कि बबली की आवभगत मे कभी कोई कमी ना रह जाए। धीर गंभीर प्रवृत्ति और सादगी प्रिय बबली की बातें अब गरिमा को बहुत ही कर्णप्रिय लगती। हल्की-फुल्की नोक-झोंक और माधुर्य से मिश्रित गरिमा की ससुराल बबली की उपस्थिति से ओर भी सुसज्जित हो जाती।


ननदोई जी बैंक मे अफ़सर थे। सोभाग्य से वे भी बेहद शांतिप्रद व्यवहार के धनी व्यक्तित्व वाले रहे। नौकरी के सिलसिले में ज़्यादातर शहर से बाहर ही रहते। बबली किस्मत की अच्छी थी कि सास-ससुर भी बहुत ही सादा तबियत के मिले। उसकी सासू-माँ उच्च स्तर की पढ़ी-लिखी बहुत ही समझदार महिला थी। नए ख़यालात के साथ परम्परागत दृष्टिकोण का सामंजस्य ख़ूब बख़ूबी निभाकर, अपनी सूझबूझ से घर-परिवार के सभी रिश्तों में मिठास बनाए रखती।


कुछ ही महीने बाद गरिमा भी अपना ग्रीनकार्ड बनने के उपरांत विदेश जाने की तैयारी में जुट गई। पतिमहोदय पहले से ही विदेश में कार्यरत थे। विदाई पर एक बार फिर से घर में मायके और ससुराल पक्ष के सभी सदस्य सम्मिलित हुए। माँ-पिताजी की ख़ुशियों मे छुपी हल्की सी चिंता भी साफ झलक रही थी कि बेटी पहली बार अकेली विदेश का सफ़र करने जा रही है। ससुर जी ने भी सर पर हाथ रखकर भारी मन और कम्पित स्वर में कहा था, "बेटी तुमने मेरा बहुत मान रखा। सदा ऐसे ही बनी रहना।" गरिमा की भी ऑंखे नम हो गई थी। ससुरजी ने हमेशा अपनी बेटियों से बढ़कर ख़्याल रखा था। बबली और ससुरजी दोनों ने मिलकर कभी सासू माँ के प्यार की कमी महसूस ही नही होने दी थी।


प्लेन में बैठते ही गरिमा खिडकी से बाहर झांकती, पीछे रह गए रिश्तों की यादों को समेटने मे लग गई। पीहर के साथ ससुराल से मिला प्यार-दुलार भी कम ना था उसके लिए। अपने साथ उन तमाम मधुर स्मृतियों की निशानी को दिल में संजोए सुनहरे सपनो की उड़ान भरकर विदेश क्या पहुँची, बस वहीं की ही होकर रह गई।


देखते ही देखते समय जैसे पंख लगा कर उड़ गया ओर समय के साथ-साथ सबके परिवार भी आगे बढ़ते रहे। दो बेटों की माँ बनने के उपरांत, गरिमा भी अपनी ग्रहस्थी के ख़ूबसूरत भंवर में खो गई।


उधर बबली को भी तीन रत्न प्राप्त हुए। ननदोई जी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए बबली ने बड़ी ही समझदारी और सूझबूझ से अपने घर-संसार की ज़िम्मेवारी सम्भाल ली और दिन-रात मेहनत करके अपने तीनों बच्चों को सफलता दिलाकर उनके मुक़ाम तक पहुँचाने में पूर्णतः क़ामयाब रही। जब लोग उसके बच्चों की सफलता पर तारीफ़ करते तब बबली के चेहरे पर ख़ुशी और गर्व के भाव झलक उठते।

गरिमा अपने बच्चों और पतिदेव के साथ साल-दो साल में महीने-ढेढ महीने के लिए परिजनों से मिलने विदेश से आ जाया करती। समय के साथ-साथ चलते अब बहुत कुछ बदल गया था। बस, नहीं बदला, तो वो था बबली का अपने भाईसाहब के प्रति लगाव। वह ज्यों का त्यों ही बना रहा। फ़ोन पर अपने भाईसाहब की आवाज़ सुनकर पहले भावुक हो जाना और फिर घन्टों बातें करना, साथ ही हरेक वार-त्योहार पर अपने सारे हक याद दिलाते रहना। कब उसके अंदर छुपा बालक प्रकट होकर बिलकुल बच्चों जैसी प्रकृति वाली बन जाती बबली। बात-बात पर रूठना, और झट से मान भी जाना। गरिमा भी दोनों बहन-भाई के माधुर्य पूर्ण संबंधों पर मुस्कुराती रहती। बबली का अपने भाई के प्रति लगाव देख गरिमा मन ही मन में उसे ख़ूब आशीष देती और अपने पतिदेव की किस्मत पर गर्व करती कि बड़े ही किस्मत के धनी हैं जो कि इतना मान-सम्मान देने वाली बहन है।


देखते ही देखते तीस वर्ष भी बीत गए। अब तो गरिमा जब भी पिछे मुड़कर देखती तो शुक्रगुज़ार होती उन लम्हों का, जो विवाह उपरांत ससुराल में सबके साथ रहकर बिताए, जिन्होंने अपनों के दिलों में अपनी कुछ जगह बनाने का अवसर दिया।


परन्तु आज अचानक फ़ोन पर आई ह्रदय विदारक सूचना ने हिलाकर ही रख दिया, जब सुना की बबली सांसारिक बंधनो से मुक्त हो अचानक चल बसी। पूरे घर में घोर उदासी छा गई। यकायक ढ़ेरों आंसू ना जाने कहाँ से घिर आए। बड़ी ही मुश्किल से खुद को और पति देव को सँभाला। इसी के साथ ही गरिमा को एक अव्यक्त रिक्तता का आभास सा होने लगा कि उसकी ससुराल रूपी धरोहर के मायने तो आज ख़त्म से ही हो गए। ससुरजी तो पंद्रह साल पहले ही स्वर्ग सिधार गए थे। परिवार में एक यह बबली ही तो ऐसी थी जिसने इतने वर्षों तक ससुराल का अहसास जगाए रखा।


अपने जीवन की किताब अधूरी छोड़कर बाक़ी के बचे हुए पन्नो को वक़्त के सुपुर्द कर उसका यूँ अचानक अनन्त यात्रा पर चले जाना बड़ा ही असहनीय हो रहा था। पुराने अनगिनत क़िस्से आज बबली के चिर निंद्रा मे लीन होते ही जैसे विलुप्त से होने लगे। सिसकते रुदन से गरिमा ने सपरिवार बबली की विदाई पर भावभीनी श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। रात भर नींद की झपकियों में बबली की मधुर स्मृतियों की झलकियाँ पलकों पर तैरती रही।

गीता कौशिक रतन

-समाप्त-

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