व्हील-चेअर Geeta Kaushik Ratan द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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व्हील-चेअर

"गौरी, मेरी गाड़ी सर्विस के लिए गई हुई है और आज ही मेरा डाक्टर का अपॉइंटमेंट भी है। प्लीज, तुम मेरे साथ चली चलो।"

फ़ोन पर गौरी का हाल-ख़बर ले, दीवी ने थोड़े संकुचित भाव में पूछ ही लिया।
"ठीक आधे घण्टे में तुम्हे पिक कर लूंगी, तैयार मिलना।" अपॉइंटमेंट का समय पूछकर गौरी ने फ़ोन रख दिया।

आदतन सबसे पहले गौरी ने पतिदेव समीर को आफिस में फ़ोन मिलाया, "कुछ देर दीवी के साथ बाहर रहूंगी।" फिर अपने दोनों बच्चों को कार-सीट में बिठाया ओर कार ड्राइव करके दीवी के घर की ओर रवाना हो गई। दीवी अपने घर के बाहर ही गौरी का इन्तज़ार कर रही थी।

दीवी को समय पर डाक्टर के क्लीनिक पहुँचाकर दोनों बच्चों को डबल-स्ट्रोलर में बिठाकर वहीं वेटिंग-ऐरिया में दीवी का इन्तज़ार करने बैठ गई। गौरी की वहीं बैठे-बैठे कांच के दरवाजे से बाहर की ओर नज़र पड़ी, तो वहीं ठहर सी गई। व्हील-चेअर पर बैठा एक आदमी हरेक आने-जाने वाले को एक उम्मीद की सी निगाह से देख रहा था।

कुछ ही देर में दीवी भी वेटिंग-ऐरिया में अंदर से लोट आई। बिल्डिंग से बाहर निकलकर गौरी उस व्हील-चेअर वाले आदमी के पास पहुँच कर रुक सी गई और पूछ ही बैठी,

"आपको कोई मदद की आवश्यकता है, तो प्लीज बताइए।"

वह आदमी भी जैसे इन्तज़ार ही कर रहा था। झट से बोल बैठा, "जी हाँ, कृपा रोड क्रास करा दीजिए। बड़ा अहसान होगा आपका।"

गौरी ने दीवी की ओर बच्चों का स्ट्रोलर बढाते हुए कहा, "पांच मिनट इन दोनों का ख़्याल रखना, मैं अभी आती हूँ।" और यह कहकर वह व्हील-चेयर के दोनों हैंडल पकड़कर उस पर बैठे आदमी को सड़क पार कराने में मदद करने लगी।

सड़क पार कराकर गौरी वापस आने को मुड़ी ही थी कि उस आदमी ने कहा, "पास में ही ट्रेन-स्टेशन है। आप प्लीज वहाँ तक पहुँचाने में मदद कर दीजिए। बडी मेहरबानी होगी।"

गौरी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि मना करे तो कैसे करे। वह तो यहाँ के रास्तों से भी अनजान थी। गाड़ी चलाकर आज दीवी के साथ पहली बार ही तो इस ओर आना हुआ। वह सोच में गुम ही थी कि उस आदमी की आग्रहपूर्ण आवाज़ ने उसे फिर से असमंजस में डाल दिया,
"प्लीज, स्टेशन यहां से बहुत नज़दीक है। बस आगे दो मोड़ के बाद।" उसने हाथ के इशारे से आगे का रास्ता बताते हुए कहा।

आख़िर, मदद का भाव मन में रखते हुए व्हील-चेअर को आगे बढ़ाने लगी। उस आदमी के बताए रास्ते पर कुछ ही कदम बढाए थे कि एक मोड़ पर गौरी ठिठक सी गई। एक तो अनजान रास्ता, ऊपर से सामने सुनसान जगह देखकर गौरी की घबराहट बढ़ने लगी। कहीं भी कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही थी। इससे पहले कि गौरी, उस आदमी को आगे की मदद का मना करके वापस लौट जाने का कहती, अचानक ही उसकी नज़र व्हील-चेयर के एक ओर लटकती उस आदमी की जेब पर पड़ी, जिस में पडी हुई पिस्तौल उसे साफ नजर आ रही थी।

उसे अंदाज़ा होने लगा कि मुसीबत ने बुरी तरह से घेर लिया है। अपने ऊपर अब आगे गुजरने वाले लम्हों की कल्पना मात्र से और मोत का साया करीब मंडराते देख गौरी मारे डर के पसीने-पसीने होने लगी। चाहते हुए भी मुड़कर भागना मुनासिब नही लग रहा था। कुछ भी हो सकता था। सोच नहीं पा रही थी कि इस मुश्किल से कैसे छुटकारा पाए। फिर हिम्मत जुटाकर गहरी सांस लेते हुए मन ही मन अपने आप को समझाया, "इससे पहले कि यह आदमी कोई भारी नुकसान पहुँचाए, बचाव की कुछ तो कोशिश करनी ही पड़ेगी।"

उसने देखा कि वह आदमी एक तरफ गर्दन टिकाए कुछ नींद सी की एक्टिंग कर रहा था। गौरी ने जल्दी से इधर-उधर नज़र दौड़ाई। उसे थोडी दूरी पर एक बडी सी बिल्डिंग दिखाई दी, जिसके सामने के बडे से पार्किंग-लाट में बहुत सी गाड़ियाँ मौजूद थी। गौरी को अपने बचाव का एकमात्र यही सहारा नज़र आया कि कुछ भी करके बिल्डिंग तक पहुँचना होगा। वह ख़ुद को जोख़िम में डाले बड़ी सावधानीपूर्वक व्हील-चेअर उस ओर बढ़ाने लगी, कि कहीं उस आदमी को कोई आभास ना हो। बिल्डिंग की ओर बढ़ते क़दमों में ना जाने कहाँ से अचानक इतनी जान आ गई, जो इतनी रफ़्तार पकड़ने लगे। गौरी ने पार्किंग-लाट अभी आधा ही पार किया था कि यकायक ही उस आदमी ने चोंककर अपना हाथ उसी जेब की ओर बढ़ाया जिसमें पिस्तौल थी। गौरी पहले से ही सतर्क थी, मोका देखकर उसी पल व्हील-चेयर साइड में लगे दो ट्रकों के बीच बचे सकुंचित स्थान की ओर जोर से धकेलकर, ख़ुद बचाव के लिए बिल्डिंग की ओर तेजी से भागना शुरू कर दिया।

वह पार्क हुई गाड़ियों के बीच लुकती-छुपती बिल्डिंग की ओर बढ़ती जा रही थी और बिल्डिंग के काफ़ी नज़दीक भी पहुँच गई थी कि तभी उस आदमी की दूर से गूंजती कर्कश आवाज ने उसे ओर भी डरा दिया, "जहाँ भी छुपी हो, बाहर निकल आओ। वरना तुम्हारे लिए अच्छा नही होगा। तुम ऐसे नहीं जा सकती।" गौरी के आगे बढ़ते कदम मारे डर के वहीं रुक गए। गाडियों के बीच छुपकर धीरे से झाँककर देखा। वही व्हील-चेअर वाला आदमी अपने पैरो के बल गौरी को पार्किंग-लाट में गाडियों के बीच में ढूँढता उसी ओर बढ़ रहा था। पर अभी दोनों के बीच की दूरी अच्छी-ख़ासी थी। गौरी ने छुपे हुए ही उस बड़ी सी बिल्डिंग की ओर नज़र दौड़ाई। बिल्डिंग का मुख्य दरवाजा सामने ही दिखाई दे रहा था। कुछ भी करके बस सतर्क हो, उस आदमी से बच-बचाकर सड़क पार करके वहां तक पहुँचना ही होगा। परन्तु कैसे करे, गाड़ियों के बीच छुपी सोच ही रही थी कि तभी उसे एक बड़ी सी गाड़ी सामने की सड़क से मुडकर पार्किंग-लाट में उसी लेन की ओर जाती दिखाई दी जहाँ वह आदमी था।

गौरी ने इस मौके का पूरा फ़ायदा उठाया और हिम्मत जुटाकर दोड़ते हुए सड़क पार कर सीधे बिल्डिंग के अन्दर पहुँच कर हांफते-हांफते काउंटर पर जाकर सारी बात बताई, सुनते ही काउंटर पर मौजूद एक औरत ने सबसे पहले पुलिस को फ़ोन मिलाया और जैसे ही उसने दूसरा फ़ोन किया, बिल्डिंग के अंदर से कई लोग आकर उस बड़े से हाल में जमा हो गए। अब गौरी ने भी अपने को कुछ हद तक संभाल लिया था और समीर को आफ़िस में फ़ोन कर दिया। सारी कहानी सुनकर समीर ने कहा, "शुक्र है तुम ठीक हो, वहीं रुको, मैं बच्चों को पिक करके तुम्हारे पास पहुंचता हूँ।"


बिल्डिंग के 3-4 सिक्योरिटी गार्ड बाहर की ओर भागे। गौरी वहाँ खड़े लोगों के साथ कांच की बनी दिवार से बाहर देख रही थी। कुछ ही देर में पुलिस की कुछ गाड़ियों ने पार्किंग-लाट को घेर लिया।


उधर से समीर भी दोनों बच्चों और दीवी के साथ पहुँच गए और अन्दर आते ही गौरी को गले लगाते हुए बोले, "अब चिंता छोड़ दो। पुलिस ने उस आदमी को पकड़ लिया है, उसकी पुलिस को बहुत समय से तैलाश थी।"

एक तरफ अपनी मदद की भावनाओं के परखच्चे उड़ते देखकर और दूसरी ओर अपनी सलामती का अहसास, आंसुओ के ज़रिए बहते मिश्रित भावों को सबसे छुपाने के प्रयास में गौरी ने धूप का चश्मा आखों पर चढा लिया।


----समाप्त्त-----

गीता कौशिक रतन