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डिसीजन- फ़ैयाज़ हुसैन

हर बात को सोचने ..समझने का नज़रिया सबका अपना अपना एवं अलग अलग होता है। ये ज़रूरी नहीं कि आप किसी की बात से या कोई आपकी बात से इतेफाक रखता हो। खास तौर पर जब आप अपने मन में किसी बात को ले कर एक निश्चित धारणा बना चुके होते हैं तो तमाम तर्कों कुतर्कों के बाद भी आप अपने तयशुदा नज़रिए से डिगना या किसी अन्य नज़रिए से सोचने का मन नहीं बना पाते। ऐसी ही मतभिन्नता कई बार जिगरी दोस्तों की टूटती दोस्ती या बिछुड़ते प्रेम का सबब भी बनती है।

दोस्तों..आज बात कर रहा हूँ एक ऐसे ही उपन्यास की जिसमें एक दूसरे से विचारों की असहमति एक ऐसे कष्टदायी मुकाम पर जा पहुँचती है जहाँ बरसों की दोस्ती और प्रेम को टूटते पल भर की भी देर नहीं लगती।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की हॉस्टल लाइफ..रैगिंग..यारी दोस्ती और पढ़ाई के इर्दगिर्द पनपती फ़रहान और स्वाति की प्रेम कहानी में अचानक, राम मंदिर पर आया सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन, एक झटके से मत भिन्नता के चलते एक ऐसे खड्ढे या स्पीड ब्रेकर का रूप धर लेता है कि झटका खा..उन दोनों को हमेशा हमेशा के लिए जुदा होना पड़ता है।

उनका यह उपन्यास जहाँ एक तरफ सैक्स से जुड़ी भ्रांतियों..आदतों..बदलते हार्मोन्स और सैक्स की ज़रूरत पर खुले मन से बात करता है तो वहीं दूसरी तरफ़ पढ़ाई और कैरियर की वजह से इसमें होती देरी और उसकी वजह से उत्पन्न होती फ्रस्ट्रेशन पर भी गहरी चिंता जताता है।

उनका उपन्यास कहीं लव जिहाद के डर भरे अंदेशी से लैस पलों को जीता है तो कभी समझदारी भरे ढंग से महिला सशक्तिकरण के सही मायनों एवं मुद्दों की पड़ताल करता है। कहीं यह कभी तहज़ीब और शिक्षा का केंद्र रह चुके अलीगढ़ की खोई हुई विरासत और रुतबे की बात करता है तो कहीं यह शिक्षा के महत्त्व और उसके प्रति मुस्लिमों में उदासीनता की बात करता है।

कहीं यह शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ते राजनैतिक वर्चस्व और नित प्रतिदिन लापरवाह होती अफसरशाही पर अपनी चिंता जताता है। तो कहीं अलीगढ़ के नवाबों, शेरवानी, तांगों, उर्दू, शायरी और वहाँ की मोहब्बत भरी बातों के अब लुप्त हो जाने पर अपनी हताशा ज़ाहिर करता है। कहीं यह उपन्यास एक दूसरे की मदद करने के जज़्बे और भाईचारे के खो जाने पर..परेशान हो..चिंता जताता है।

कहीं यह उपन्यास अलीगढ़ की शेरो शायरी के बहाने 'शहरयार' को याद करता है तो कहीं अलीगढ़ के मुशायरों में अब पहले जैसी बात ना होने पर अपनी निराशा ज़ाहिर करता है। कहीं वहाँ के बाशिंदों की अलीगढ़ के प्रति उदासीनता देख..अपनी छटपटाहट ज़ाहिर करता है कि ना उनको इसका ग़म है..ना ही खुशी है और ना ही उनमें कुछ कर गुज़रने का माद्दा बचा है।

समझदारी भरे मुद्दों से लैस इस उपन्यास में प्रूफरीडिंग की कमी के चलते वर्तनी की अनेकों त्रुटियों के अलावा कुछ अन्य कमियाँ भी दिखाई दी मसलन..


*पेज नंबर 35 पर चाय को चाप लिख दिया गया है गलती से।

*उपन्यास में पहली बार फोन पर बात होते ही किसी लड़की को 'आई लव यू' बोल देना थोड़ा सतही लगा।

*पेज नंबर 79 पर दिखा दिखाई दिया..

'स्वाति ने जो कान में बाली पहन रखी थी, वह फरहान ने उसको गिफ्ट में दी थी।'

जबकि फरहान उस दिन स्वाति से पहली बार डेट पर मिल रहा था।

*पेज नंबर 90 पर लिखा दिखाई दिया कि..

"तेज धूप में बरगद के घने पत्तों को चीरते हुए स्वाति के माथे पर पसीने की बूंदों को लाकर फरहान को परेशानी में डाल दिया था।"

इसके आगे लिखा दिखाई दिया कि..

"स्वाति के माथे पर पसीने की बूंदें उसके चेहरे की सुंदरता को बढ़ा रही थी मानों किसी कमल पर ओस की बूंदे कमल की सुंदरता को बढ़ा रही हो।"

यहाँ एक तरफ तो लेखक लिखता है कि स्वाति के माथे पर पसीने की बूंदों ने फरहान को परेशान कर दिया था जबकि अगली पंक्ति में कहता है कि पसीने की बूंदे उसके चेहरे की सुंदरता को बढ़ा रही थी।

•पेज नंबर 96 पर एक जगह बताया गया कि स्वाति, फरहान के लिए आलू के पराठे बना कर लाई थी।

जबकि इससे पहले कि पेजों पर यह बताया जा चुका है कि स्वाति हॉस्टल में रहती है। हॉस्टल में रहने वाली लड़की खाना खुद कैसे बना सकती है? हॉस्टल में ऐसा करना अलाउड नहीं होता।

*इसी तरह पेज नंबर 97 पर लिखा दिखाई दिया कि..

"ट्रेन ने जैसे ही हॉर्न बजाया स्वाति का दिल धड़कने लगा।"

हॉर्न, कारों इत्यादि का बजता है जबकि ट्रेन सीटी बजाती है।

"ऑमलेट, सिलाइस ऑमलेट, पचहत्तर, समोसा, ब्रेड और...

रेस्टोरेंट के मेन्यू में 'पचहत्तर' का मतलब समझ नहीं आया।

गहन और ज़रूरी मुद्दों से लैस इस पूरे उपन्यास में नुक्तों की कमी के अलावा फ़ॉन्ट्स के छोटे होने की वजह से भी पढ़ने में थोड़ी असुविधा महसूस हुई। इसके साथ ही उपन्यास में एक दूसरे से जुड़ी पंक्तियाँ भी अलग अलग दिखाई दी जबकि आसानी से उनका पैराग्राफ़ बनाया जा सकता था।

किसी भी किताब की सफ़लता में उसके कवर का आकर्षक होना बहुत मायने रखता है। इस लिहाज़ से इस उपन्यास का कवर डिज़ायन मुझे काफ़ी साधारण लगा। 131 पृष्ठीय इस उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है राजमंगल प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 199/- रुपए। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।

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