मैडम तुसाद म्यूजियम
टिकट लेने में आधा घंटा बीत गया । इस बीच खड़े- खड़े मैं टिकट काउंटर पर उपलब्ध मैडम तुसाद के बारे में जानने के लिए बुकलेट को पढ़ने लगी । मैडम तुसाद फ्रांस के स्ट्रांसबर्ग में पैदा हुई थीं । इनका नाम अन्ना मैरी ग्रोशॉटज रखा गया । उनकी मां डॉक्टर फिलिप्स क्यूरटियस के घर हाउसकीपिंग का काम करती थी । डॉक्टर फिलिप्स फिजिशियन थे तथा उन्हें मोम के मॉडल बनाने में सिद्धहस्तता हासिल थी । मैडम तुसाद में उनके साथ रहकर यह कला सीखी तथा अपना पहला मॉडल सन 1777 ने बनाया ।
1795 उनका विवाह फ्रेंकोसिल तुसाद के साथ हुआ । अपने एक मित्र के बुलावे पर वह लंदन आईं । कई वर्ष इधर-उधर घूमने के पश्चात वह लंदन में बस गईं । सन 1835 मैडम तुसाद ने लंदन में अपना पहला म्यूजियम खोला । इस म्यूजियम की अधिकांश मूर्तियां एक आग में नष्ट हो गई थीं । बाद में इसका पुनरुद्धार किया गया । मैडम तुसाद के मरने के पश्चात उनकी कला को उनके उत्तराधिकारीयों ने जीवित रखा । न्यूयॉर्क में सन 2000 में मैडम तुसाद म्यूजियम खोला गया ।
अब तक हमारा नंबर आ गया था । टिकट लेकर हम अंदर गए तथा हमने एक बड़े से हॉल में प्रवेश किया । हॉल के मध्य में एक बड़ी सी प्रतिमा सुशोभित थी ...उसके साथ ही वहां मॉम की बनी विभिन्न मूर्तियां मनमोहक छटा पेश कर रही थीं । अमेरिका के प्रेसिडेंट कैनेडी ,निक्सन ,ओबामा के अलावा माइकल जैक्सन, स्पाइडरमैन, हॉलीवुड के कई नामी स्टार तथा प्रसिद्ध खिलाड़ियों की मूर्तियां भी यहां उपस्थित हैं । हमें खुशी हुई जब हमने वहां महात्मा गांधी, दलाई लामा के अलावा सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन की मूर्ति भी वहां देखी । कुछ समय के लिए तो हम इन मूर्तियों को देखकर दंग रह गए क्योंकि एक दृष्टि में ये सभी मूर्तियां मोम की बनी हुई नहीं , वरन सजीव नजर आ रही थीं । इस म्यूजियम में विभिन्न प्रतिष्ठित लोगों की लगभग 225 मूर्तियां हैं ।
कुछ मूर्तियों के साथ फोटो खिंचवाने के पश्चात हमने यहां के मुख्य आकर्षण चेंबर ऑफ हॉरर में प्रवेश किया । इस भाग में फ्रेंच रिवॉल्यूशन के समय हुए युद्ध में खून से लथपथ तड़पते सहायता मांगते, भुक्त भोगियों के साथ अत्याचार करते आतताइयों को दिखाया गया था । यह सब दृश्य सजीव लग रहे थे कि लगा ही नहीं कि यह सब नाटक है । एक दो बार तो मुंह से चीख निकलते -निकलते बची । जैसे- तैसे गैलरी से बाहर आकर चैन की सांस ली । देर हो रही थी हमारे पास समय कम था । हमारी बनाई सूची के अनुसार हमें दो तीन स्थान और देखने थे अतः हम बाहर आ गए ।
बाहर आए तो देखा अभी भी बरसात हो ही रही है । पहले तो हम पास स्थित दुकान के शेड में खड़े हुए, फिर अंदर चले गए । वह मेंस (आदमियों ) के कपड़ों की दुकान थी । समय पास करने के लिए कपड़े देखने लगे पर कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिसे देखकर ऐसा लगे कि खरीद ही लिया जाए । जब कुछ समझ में नहीं आया तब दुकान के सामने खड़े होकर पानी के रुकने का इंतजार करने लगे । तभी हमारी तरह कुछ अन्य यात्री भी पानी से बचाव के लिए शॉप में घुसे । यह देखकर अच्छा लगा कि वहां के स्टाफ ने हमारी तरह ही उनका भी मुस्कुरा कर स्वागत किया । कुछ पानी दुकान के अंदर भी आने लगा था । ' फ्लोर इस वेट ' का बोर्ड लगा कर एक आदमी गीले फर्श को वाईपर की सहायता से पोंछने लगा । पानी कम होते ही हम बाहर आए ।पानी पूरी तरह तो नहीं रुका था, कुछ कम अवश्य हुआ था । अब तक थोड़ी-थोड़ी ठंड भी हो चली थी । एक कप कॉफी पीने के इरादे से एक कॉफी शॉप में घुस गए । कॉफी के साथ वेज बर्गर लिया...कॉफी पीते-पीते हम टाइम स्केवयर की रोशनी और चहल-पहल में खो गए ।
सुधा आदेश
क्रमशः