टाइम स्कवेयर और वर्ल्ड ट्रेड मेमोरियल
31 दिसंबर 1904 को दि न्यूयॉर्क टाइम के प्रकाशक एडोल्फ एस. ओच्स ने अखबार के संचालन के लिए लॉन्गकेयर स्क्वायर पर 42 वें स्ट्रीट पर, पूर्व पाबस्ट होटल की साइट पर एक नए गगनचुंबी इमारत में स्थानांतरित कर दिया। द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 7th एवेन्यू के 42 और 43 स्ट्रीट पर बने ट्रैफिक ट्रायंगल पर बनी, अपनी नई बिल्डिंग का शुभारंभ फायर वर्क के जरिए धूमधाम से किया । 4 महीने पश्चात इस लोंगाकेयर स्कवेयर का नाम टाइम स्क्वायर कर दिया गया । यह विश्व का सबसे अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने वाला स्थान बन गया है ।
नववर्ष के अवसर पर स्क्वेयर की सबसे ऊंची इमारत पर एक क्रिस्टल बॉल लटकाई जाती है तथा नववर्ष प्रारंभ होते ही इसे नीचे किया जाता है... उस समय इस स्थान पर हजारों की संख्या में उपस्थित जनसमूह खुशियां मनाता है । पहले यहां फायर वर्क भी होता था पर अब इसे बंद कर दिया गया है ।
टाइम स्क्वेयर पर लगे लेड और नियॉन लाइट से झिलमिलाते बड़ी -बड़ी कंपनी ( नैस्डेक,तोशिबा ,सैमसंग) के बड़े-बड़े पोस्टर अपनी अलग छटा बिखेर रहे थे । कुछ वर्ष पहले की बात और है पर अब तो इस तरह के बड़े-बड़े पोस्टर भारत में भी बड़े-बड़े शहरों में दिख जाएंगे जिनके द्वारा बड़ी-बड़ी कंपनी अपने-अपने बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के पोस्टरों के जरिये प्रचारित करतीं हैं । इस स्क्वेयर पर कई थिएटर, टेलीविजन स्टूडियो, म्यूजियम और शॉप के अतिरिक्त विजिटर सेंटर (यात्री सूचना केंद्र ) भी है जहां से टूरिस्ट इनफॉरमेशन के साथ टूरिस्ट स्थानों की टिकटें भी प्राप्त की जा सकतीं हैं ।
बरसात धीरे-धीरे कम होने लगी थी । हम बाहर आए तथा टैक्सी से 'वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मेमोरियल ' की ओर चल दिए । टैक्सी ड्राइवर मुस्लिम था । वह भी हमसे काफी गर्मजोशी से बातें करने लगा । उसका कहना था कि कुछ सिरफिरे लोगों ने सारे पाकिस्तान को बदनाम कर रखा है । अल्लाह कभी किसी की जान लेने को नहीं कहता । उसकी बातों से हमें अच्छा लगा कि हमारे राजनेता भले ही एक दूसरे के लिए आग उबलते रहें पर भारतीयों और पाकिस्तानियों के दिलों में आज भी मोहब्बत है । अगर यह मोहब्बत परवान चढ़ जाए तो हम हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी पूरी दुनिया से अपनी योग्यता का लोहा मनवा सकते हैं । यह बात अलग है कि अगर ऐसा हुआ तो तथाकथित नेताओं की नेतागिरी खतरे में पड़ जाएगी । अंततः उसने हमें वर्ल्ड ट्रेड मेमोरियल के पास छोड़ दिया ।
वर्ड ट्रेड मेमोरियल वाली जगह अभी तक ऐसे ही पड़ी है । चारों तरफ बैरीकेड से घिरी, अंदर क्रेन टाइप कुछ स्ट्रक्चर नजर आ रहे थे... पूछ-पूछ कर हम मेमोरियल पहुंचे । यहां भी टिकट के लिए लंबी कतार थी । हम टिकट लेकर अंदर गए । यहां 11 सितंबर 2001 की उस भयानक दुर्घटना में मारे गए लोगों के कुछ चिन्ह सुरक्षित रखे हुए हैं ...जैसे बिल्डिंग को हिट करने वाले प्लेन का टुकड़ा, किसी का वॉलेट (पर्स ) का टुकड़ा , सेंडिल, पीतल का टुकड़ा जिस पर कोई नंबर खुदा है ...ऐसे ही न जाने कितनी चीजें इस मेमोरियल में रखी हैं । कुछ व्यक्तियों के फोटो, कुछ व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएं है तथा संवेदना संदेश...। सबसे बड़ी बात हमें यह लगी कि इस मेमोरियल में उपस्थित सभी लोग मौन थे । कुछ को हमने रोते भी देखा । लोगों के मौन तथा आंखों में आंसू मेरी इस धारणा को झुठला रहे थे कि पाश्चात्य देशों में लोग सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जीते हैं ।
नीचे बने हॉल में कुछ संदेशों के साथ अपनी प्रतिक्रिया लिखकर एक बॉक्स में डालने की भी सुविधा है । वहां एक बड़ी सी मेज है, बैठने के लिए कुर्सियां हैं । सामने मेज पर कागज पेन भी रखे हैं । हमने भी अपनी प्रतिक्रिया लिखकर बॉक्स में डाल दी तथा शांति के साथ बाहर निकल आए ।
हमारे पास जो नक्शा था उसके अनुसार पास में ही वॉल स्ट्रीट सेंटर की बिल्डिंग अर्थात अमेरिकन ट्रेड सेंटर की बिल्डिंग थी । पूछते पूछते हम वहां गए किन्तु रिमझिम बरसात ने हमारा सारा मजा किरकिरा कर दिया। आखिर टैक्सी कर हम एंपायर स्टेट बिल्डिंग की ओर चल दिये । क्योंकि आज हमारा अंतिम दिन था । अब चाहे जैसा भी दृश्य दिखें देखना ही था तो था ही । दुख था तो सिर्फ इतना कि हम यूनाइटेड नेशन हेडक्वार्टर नहीं देख पाए । हमने टैक्सी वाले से कहा भी तो उसने कहा कि यह स्थान यहां से काफी दूर पड़ेगा । वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मेमोरियल से एंपायर स्टेट बिल्डिंग तक लौटने के क्रम में हमने चाइना टाउन तथा लिटिल इटली के नाम से बने मार्केट को भी टैक्सी द्वारा देखा ।
सुधा आदेश
क्रमशः