1-कुछ चित्र मन के कैनवास से
नभचर जलथर की तरह थलचर के अनेकानेक प्राणियों में से एक मनुष्य भी एक यायावर प्राणी है । एक जगह बैठना तो मानो उसने सीखा ही नहीं हैं। यात्राएं उसकी जिजीविषा है वह यात्राएं कर अपने थके तन-मन को संजीवनी देने की चाह के साथ जगह-जगह की संस्कृतियों को आत्मसात करने का प्रयास करते हुए अपनी मानसिक भूख को शांत करने के साथ-साथ जहां ज्ञान वृद्धि करने का प्रयत्न करता है वहीं कूपमंडूकता से छुटकारा भी पाना चाहता है ।
बौद्धिक क्षमता से परिपूर्ण मानव एक ही जगह कुएं के मेंढक की तरह उछल कूद करते हुए अपनी जीवन यात्रा संपूर्ण नहीं करना चाहता । अगर वह ऐसा करता है तो उसका जीवन मृत के सदृश है । जिव्हा को संतुष्टि तभी मिलती है जब वह समोसे के साथ इडली बड़ा का भी रसास्वादन कर पाए । आंखें अच्छे बुरे में तभी भेज कर पाती हैं जब उन्हें आकाश में छाए इंद्रधनुष के साथ घनघोर वर्षा के दुष्परिणाम स्वरूप उत्पन्न कीचड़ को भी देखने का अनुभव होता है । कर्ण कर्कश ध्वनि की तीव्रता को तभी महसूस कर पाते हैं जब उन्हें सुरीला संगीत सुनने को मिलता है । उसी प्रकार इंसान का घुमक्कड़ मन तभी संतोष का अनुभव कर पाता है जब वह जगह-जगह भ्रमण कर प्रकृति के विभिन्न रूपों को दिल में संजोकर संतोष और शांति का अनुभव कर पाता है ।
कभी वह प्राची की नवकिरण में जीवन को फलते फूलते देख संतुष्टि का अनुभव करता है तो कभी सूर्यास्त की लालिमा में अपने जीवन के अवसान की कल्पना करने लगता है । कभी प्रकृति की मनोरम वादियों में अपना सुख खोजता है तो कभी बीहड़ जंगलों में घूमता वन्य प्राणियों से मित्रता करता नजर आता है । कभी वह मंदिर में भगवान के दर्शन कर अपनी आत्मशक्ति को जागृत करने का प्रयास करता है तो कभी किसी दरगाह पर माथा टेक कर सर्वधर्म समभाव का संदेश देना चाहता है । अगर अपने देश में भ्रमण की उसकी भूख शांत नहीं होती तो वह विदेश भ्रमण पर निकल कर वहां की सभ्यता और संस्कृति से अपने देश की सभ्यता और संस्कृति की तुलना करने की चाह रखता है । यही हमारे साथ हुआ अपने देश में अनेकों स्थानों पर भ्रमण करने के पश्चात हमारे मन में समुद्र पार दुनिया देखने की योजना बना ली ।
नेपाल तो मैं कई बार जा चुकी हूँ पर सात समुंदर पार जाने का यह पहला अवसर था । वह भी अपनी उस बहन के पास जिसे सदा यह मलाल रहता है कि उसके दो दशक से ज्यादा विदेश प्रवास के बावजूद उसके मायके से कोई भी उसके पास नहीं आया है । मेरे पति से आदेश जी जो उस समय रांची में कार्यरत थे निर्दिष्ट तिथि पर मुझे लेने आ गए । मम्मा पापा तथा भाई भाभी राकेश वंदना से विदा लेकर हम 21 जुलाई 2009 की सुबह लखनऊ से दिल्ली पहुंचे । दिल्ली में मेरी छोटी ननंद आभा तथा उनके पति रवि जी रहते हैं वह हमें लेने एयरपोर्ट पहुंच गए थे । 21 तथा 22 जुलाई की रात को हमारी फ्लाइट थी ।
नियमानुसार 2 घंटे पहले ही हम दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंच गए । आभा और रवि जी हमें छोड़ने आए थे । हमारी फ्लाइट नंबर IL-127 रात्रि के 1:10 मिनट पर चलने वाली थी । लगभग 18 घंटे के सफर के पश्चात शिकागो के ओ हेरे एयरपोर्ट पर वहां के समय समयानुसार सुबह 10:50 पर उसका पहुंचने का समय था । एयरपोर्ट पहुंचते ही बोर्डिंग पास लेने के लिए हम कतार में लग गए । सारे डॉक्यूमेंट तो थे ही अतः बोर्डिंग पास में मिलने में कोई परेशानी नहीं हुई । सामान जमा कराकर तथा बोर्डिंग पास लेकर हम गेट नंबर 5 पर जाकर बैठ गए क्योंकि फ्लाइट वहीं से जानी थी । बैठे हुए अभी आधा घंटा ही हुआ था कि वहां उपस्थित स्टाफ ने कहा फ्लाइट नंबर IL127 अब 10 नंबर गेट से जाएगी । ट्रेन में तो अक्सर अंतिम क्षण पर प्लेटफार्म बदलते सुना और देखा था पर अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट में भी ऐसा होगा देख सुनकर हमें आश्चर्य हुआ ।
3 घंटे पश्चात वह समय भी आ गया जब बोर्डिंग प्रारंभ हो गई एक-एक करके हम हवाई जहाज में सवार हुए । इच्छा होने के बावजूद विंडो सीट नहीं मिल पाई । विंडो सीट पर एक महिला विराजमान थी । सब कुछ वैसा ही था जैसा कि डोमेस्टिक फ्लाइट में होता है अंतर सिर्फ इतना था कि इस बोइंग विमान की सीटिंग कैपेसिटी ज्यादा थी । इसमें बीच में 4 सीट थी तथा दोनों तरफ 3-3... दो पैसेज थे । रियर और बैक में वॉशरूम के अलावा मिडिल में भी दो वॉशरूम और थे । इसके साथ ही हर सीट के पीछे टी.वी. लगा हुआ था। टीवी की आवाज से किसी को असुविधा ना हो इसलिए सभी यात्रियों को एयरफोन दिए गए थे । हवाई जहाज में हमें समय से बिठा दिया गया पर फ्लाइट लेट पर लेट होती जा रही थी । कारण पूछने पर पता चला कि कनेक्टिंग फ्लाइट के लेट होने के कारण कुछ यात्री नहीं आ पाए हैं उनका इंतजार हो रहा है। यह सुनकर अच्छा लगा ।
लगभग 2 घंटे पश्चात उन यात्रियों के आते ही विमान चल पड़ा । आकाश में विमान के गति प्राप्त करते ही नाश्ता सर्व कर दिया गया । रात के लगभग 3:30 बजे खाना अजीब लग रहा था पर क्योंकि इतनी देर से जगे थे और आगे भी जगना ही था इसलिए सोचा खा ही लिया जाए, कम से कम नींद तो दूर हो जाएगी ।
नाश्ता करते ही बगल में बैठी महिला से संक्षिप्त परिचय हुआ । उसका नाम नीलम था । वह पटियाला की थी तथा अमेरिका के इंडियाना स्टेट में पिछले 10 वर्षों से रह रही थी । वह अक्सर भारत आती जाती रहती थी । नाश्ता करने के पश्चात मेरी सहयात्री नीलम ने कहा, ' आज लोग ज्यादा नहीं लग रहे हैं अगर कहीं खाली सीट हो तो देखती हूं ।' कहकर वह उठकर चली गई । काफी देर तक जब वह लौटकर नहीं आई तो हमें लगा उसे दूसरी सीट मिल गई है ।
कुछ देर उसके इंतजार के पश्चात मेरे पति आदेशजी ने कहा, ' मैं भी जरा घूम कर आता हूँ शायद कोई खाली सीट मिल जाए ।'
थोड़ी देर पश्चात आदेश जी लौट कर आए तथा कहा,' आगे एक सीट खाली है ऐसा करो तुम यहां सो जाओ मैं वहां सो जाता हूँ ।'
अब तीन सीट पूरी अपनी थीं । सीट के हेंडिल को उठाकर उसी में सोने का प्रयत्न करने लगी । यद्यपि पैर पूरी तरह फैल नहीं पा रहे थे पर कहते हैं जब इंसान थकान से त्रस्त हो तो नींद आ ही जाती है यही मेरे साथ हुआ । इस बीच विमान की बिजली ऑफ कर दी गई तथा खिड़की के शटर डाउन करने के लिए कहा गया ।
लगभग 9:15 के करीब आदेश ही ने जगाया । 4 घंटे की नींद ने सारी थकान दूर कर दी थी । वॉशरूम गई फ्रेश होकर विंडो खोलकर बाहर का नजारा देखने लगी । थोड़ी देर पश्चात ही चाय नाश्ता या कहें हेवी ब्रेकफास्ट सर्व हो गया । नाश्ता करने के बाद सीट पर लगे टीवी पर पिक्चर देखने लगी । थोड़ी ही देर में घोषणा हुई 7500 किमी दूरी तय करके हम फ्रैंकफर्ट, जर्मनी की राजधानी में उतरने जा रहे हैं । खिड़की से नजारा बेहद खूबसूरत लग रहा था । हर जगह पेड़, सड़कों पर भागती खिलौना जैसी गाड़ीयां, कॉटेज टाइप घर, तथा पवन चक्की जैसे कुछ स्ट्रक्चर...फ्यूल लेने तथा प्लेन की साफ सफाई के लिए हमें करीब 2 घंटे यहां रुकना था । हमें हमारी आईडेंटिटी के लिए एक-एक कार्ड दिया गया तथा प्लेन से बाहर जाने का निर्देश दिया गया । हम उनके निर्देशानुसार बस द्वारा एक हॉल में पहुंचे । यद्यपि उस हाल में वॉशरूम की सुविधा थी पर सामान्य ही लगा...एक सामान्य वेटिंग रूम जैसा जिसमें कुछ कुर्सियां थी । पहले पहुंचने के कारण हमें कुर्सी मिल गई जबकि काफी लोग खड़े ही रहे । वस्तुतः लोगों की संख्या के हिसाब से हॉल बहुत ही छोटा था । लगभग 1 घंटे बाद बोर्डिंग की घोषणा की गई । एक बार फिर बोर्डिंग पास की चेकिंग हुई । उसके पश्चात हम फिर से अपनी-अपनी सीट पर आकर बैठ गए ।
अभी अपने पड़ाव पर पहुंचने के लिए लगभग लगभग 8 घंटे और लगने थे । फ्रैंकफर्ट से कुछ और यात्री विमान में चढ़े । मेरी सहयात्री उअपनी सीट पर आ गई थी । थोड़ी बहुत उससे बातें हुईं फिर वह सीट पर बैठे बैठे ही सो गई । मैंने भी सोने की कोशिश की पर सो नहीं पाई । नीलम की विंडो सीट होने के कारण बाहर के नजारे तो देख नहीं सकती थी अतः सामने टी.वी. पर (जिससे विमान का बाहर का नजारा देख रहा था) पर नजर टिकाई पर विमान के ऊपर आ जाने के कारण वहां भी कुछ साफ नजर नहीं आ रहा था । मैंने सीट के आगे लगा टी.वी. ऑन किया और मीना कुमारी और अशोक कुमार महल पिक्चर देखने लगी । इसी बीच खाना सर्व हुआ । इसके बाद हमें दो फॉर्म दिए गए । उसमें कुछ जानकारियों के अतिरिक्त यह भी भरना था कि हम कितना सामान (कीमत सहित) ले जा रहे हैं तथा हमारे सामान में कोई खाने पीने की चीज या कोई पौधा तो नहीं है ,फोन नंबर इत्यादि ।
धीरे-धीरे ऐसे ही खाते पीते पढ़ते या पिक्चर देखते 7 घंटे बीत गए तभी घोषणा हुई कि सभी यात्री सीट बेल्ट बांध लें, हमारा विमान शिकागो के ओ हेरे इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचने वाला है । विमान नीचे उतरने लगा... फ्रैंकफर्ट की तुलना में यहां ऊंची ऊंची इमारतें ज्यादा दिखाई दे रही थी तथा बीच-बीच में पानी भी नजर आ रहा था ।
सुधा आदेश
क्रमशः