कुछ चित्र मन के कैनवास से - 2 - शिकागो Sudha Adesh द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कुछ चित्र मन के कैनवास से - 2 - शिकागो

शिकागो

आखिर हमारे वायुयान ने जमीन छू ही ली । हम शिकागो के 'ओ हेरे इंटरनेशनल एयरपोर्ट ' पर उतरे । शिकागो की धरती पर कदम रखते हुए मुझे बेहद हर्ष हो रहा था क्योंकि यहां की धर्म संसद में 11 सितंबर 1893 में स्वामी विवेकानंद ने विश्व शांति का संदेश दिया था ।

हमें लग रहा था कि सामान आने में तथा कस्टम क्लियर होने में समय लगेगा पर यह सब फॉर्मेलिटी पूरी होने में 1 घंटे से ज्यादा समय नहीं लगा । इमीग्रेशन काउंटर पर उपस्थित अधिकारी ने हमारे आने का उद्देश्य तथा समयाविधि पूछी । हमारे समयाविधि बताने पर उसने आश्चर्य से कहा, ' बस इतना कम समय... हमारे अमेरिका को आप इतने कम समय में कैसे देख पाएंगे ?'

आदेशजी ने अपनी छुट्टी की समस्या बताई तो उसने मुस्कुराकर ओ.के. कहा । हो सकता है या प्रश्न और उत्तर उसकी ड्यूटी का हिस्सा हो पर उस देश जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां के लोग अंतर्मुखी हैं, का इस तरह से मुस्कुराकर बात करना सुखद आनंद ले गया ।

एयरपोर्ट काफी बड़ा था । सामान लेकर दिशा निर्देशों के आधार पर बाहर आए । गेट से बाहर निकलकर मैं अपनी बहन बहनोई प्रभा व पंकज जी को देख ही रही थी कि वे सामने से आते नजर आए । मुझे देखते ही प्रभा मेरे गले से लग गई । वह बहुत खुश थी आखिर कोई तो आया उसके मायके से...।

करीब आधा घंटे की ड्राइव के पश्चात हम घर पहुंचे । सारे रास्ते कुछ नया ढूंढने का प्रयास करती रही पर सड़कें चौड़ी होने वन वे ट्रैफिक तथा सड़कों पर सिर्फ गाड़ियां ही गाड़ियां होने के अतिरिक्त कुछ नया नजर नहीं आया । हां मौसम अवश्य जुलाई में हमारे देश के अक्टूबर-नवंबर जैसा था । घर पहुंचते ही गाड़ी में बैठे बैठे ही रिमोट कंट्रोल से पंकज जी ने खोला तथा गैराज से ही घर के अंदर जाने वाले दरवाजे से हमने घर के अंदर प्रवेश किया । वहां बच्चों प्रियंका एवं पार्थ के साथ उनके कुत्ते बंटी ने हमारा स्वागत किया । कुछ देर तो वह भौंकता रहा फिर धीरे-धीरे शांत हो गया। उसी समय प्रभा की नौकरानी मार्था ने आकर गुड मॉर्निंग कहा । उसे पता था कि हम आ रहे हैं । उसने इंग्लिश में हमसे हमारे बारे में पूछा तथा फिर कहा, 'बहुत खूबसूरत घर है ना ।'

रियली वेल मेंटेंड खूबसूरत बंगला है प्रभा का । डाइनिंग रूम में बड़े-बड़े शीशे से घर के बाहर बने स्विमिंग पूल के साथ-साथ हरा-भरा गार्डन भी दिख रहा था । बाहर का नजारा देखने के लिए हम बाहर निकले । उसी समय पंकज जी का फोन आ गया, वह बात करते हुए हमसे दूर चले गए । प्रभा हमें घुमाने लगी... बाहर बागान में हरियाली के साथ खूबसूरत रंग बिरंगे फूल लगे हुए थे । प्रभा ने बताया कि यहां काफी ठंड तथा बर्फ पड़ने के कारण सिर्फ इसी सीजन (मार्च से सितंबर तक) में फूल खिलते हैं । इनमें कुछ पेरीनियल (पूरे वर्ष खिलने वाले ) तथा कुछ एनुअली (वर्ष में एक बार) खिलने वाले हैं । गुलाब की भी कई वैरायटी वहां उसके बगीचे में मौजूद थीं ।

'घर के बाहर कोई बाउंड्री नहीं दिखाई दे रही है ।'आदेश जी ने पूछा ।

' यहां घर के बाहर कोई बाउंड्री नहीं बना सकता।' प्रभा ने उत्तर दिया ।

'फिर यह कैसे पता लगता है कि यह जगह हमारी है ?'

'हमने अपनी बाउंड्री की पहचान के लिए पेड़ लगवा लिए हैं ।' प्रभा ने इशारा करते हुए कहा ।

बाहर घूमने के पश्चात हम अंदर आए। प्रभा ने चाय का पानी रख दिया था । मार्था अभी काम कर रही थी । पूछने पर पता चला कि वह 1 घंटे का $15 लेती है । अब वह अपने ऊपर निर्भर करता है कि उससे क्या और कितनी देर काम कराया जाए । वह अपना वैक्यूम क्लीनर तथा साफ सफाई का सारा सामान अपने साथ लेकर आती है । उसके दो बच्चे हैं जो पढ़ते हैं माथा काफी हंसमुख एवं चुस्त लगी । वह अपना काम बेहद सफाई तथा मनोयोग से कर रही थी ।

इस बीच पंकज जी भी आ गए । बातचीत के साथ हमने चाय नाश्ता किया फिर हम अपने लिए निर्धारित कमरे में थोड़ी आराम करने चले गए । इतना लंबा सफर करने के कारण थोड़ी थकान तो थी पर इतनी भी नहीं जितना सुनते आए थे विशेषकर 'जेट लेग' वाला शब्द ...।

शाम को प्रभा एवं पंकज जी ने हमसे पूछा थकान तो नहीं हो रही है । हमारे मना करने पर उन्होंने हमें शिकागो की खूबसूरत झील मिशीगन लेक तथा डाउनटाउन घुमाने का प्रोग्राम बना लिया । लेक क्या थी, पूरा समुद्र ही नजर आ रही थी । यह लेक लगभग 150 किमी चौड़ी तथा 500 किमी लंबी है । इसी लेक नाम से मिशीगन स्टेट बन गया है । लगभग 2 घंटे इस लेक के किनारे घूमते रहे । पास में ही एडलर प्लैनेटोरियम स्थित है । इस स्थान से शिकागो की सबसे ऊंची इमारत सीयर्स टावर नजर आ रहा था । हमने लेक के किनारे लगी बेंच पर बैठकर सूर्यास्त देखा । जगह कोई भी हो प्रकृति का सौंदर्य प्रत्येक स्थान पर एक जैसा ही होता है । यह बात अलग है कि विभिन्न स्थानों पर आसपास के वातावरण के कारण दृश्य में थोड़ा परिवर्तन अवश्य जाता है ।

इसके पश्चात वे हमें डाउनटाउन गए जो वहां का मुख्य मार्केट एरिया है । करीने से सजी दुकानें, फुटपाथ पर चलते लोग बड़ी-बड़ी इमारतें, सड़कों पर अपनी-अपनी लेन में दौड़ती गाड़ियां...यहां आकर महसूस हो रहा था कि हम किसी दूसरे देश में आ गए हैं । समय ना होने के कारण हम कहीं उतरे नहीं सिर्फ गाड़ी से ही हमने मार्केट सर्वे किया ।

अब वे हमें इंडियन मार्केट देवन लेकर गए । इस जगह आकर ऐसा लगा जैसे हम इंडिया के ही किसी मार्केट में घूम रहे हैं । भीड़ भाड़ भी वैसी ही थी । दुकानों पर इंडिया की तरह ही डिस्प्ले होते लहंगे, साड़ियां इत्यादि ... नॉर्थ इंडियन साउथ इंडियन रेस्टोरेंट्स...। थोड़ी देर हम देवेन एवेन्यू घूमे । खाने का समय हो गया था अतः हम एक साउथ इंडियन रेस्टोरेंट्स में गए । रेस्टोरेंट का माहौल बिल्कुल इंडियन रेस्टोरेंट जैसा ही महसूस हुआ । वहां हमने उत्तपम तथा रवा मसाला डोसा का आर्डर दिया । स्वाद भी भारत के साउथ इंडियन रेस्टोरेंट जैसा ही पाकर हमें लगा ही नहीं कि हम अमेरिका के किसी रेस्टोरेंट में बैठ कर खा रहे हैं ।

लौटते हुए उन्होंने हमें पाकिस्तानी मार्केट भी घुमाया जो इंडियन मार्केट के पास ही था । वह भी काफी कुछ इंडियन मार्केट जैसा ही था पर दुकानों पर नाम उर्दू में लिखे हुए थे । कुछ लोग सिर पर पाकिस्तानी टोपी पहने हुए थे जो उनके मुस्लिम होने का एहसास करा रहे थे । भारतीय और पाकिस्तानी मार्केट को देखकर ऐसा लग रहा था कि कुछ लोग अपने देश से मीलों दूर रहकर भी अपने संस्कार और संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं । एक आम हिंदुस्तानी सोच भी नहीं सकता कि अमेरिका जैसे विकसित देश में भी लोग अपनी पहचान बनाने के लिए वही माहौल, वही पहनावा अपनाकर अपना देश प्रेम जीवित रखेंगे । सच तो यह है कि यह लोग मजबूरी वश या निज महत्वाकांक्षा के वशीभूत अपने देश से दूर तो चले गए पर अपने लिए वैसा ही माहौल बनाकर, अपने देश के खानपान, वेशभूषा और संस्कृति को न केवल जीवित रखे हुए हैं वरन विदेशी धरती पर प्रचार और प्रसार भी कर रहे हैं ।

देश से दूर रहकर, देश को अपने आसपास पाकर अत्यंत ही गर्व का एहसास हो रहा था वरना हमारे मस्तिष्क में तो ऐसे लोगों की छवि अंकित थी जो स्वयं को आधुनिक कहलाने के प्रयास में अपनी पहचान मिटाने से भी नहीं चूक रहे हैं । इस बात का एहसास उन भारतीयों को देखकर होता है जो कुछ वर्ष विदेशों में रहने के पश्चात भारत आकर ऐसा व्यवहार करते हैं मानो वे यहां कभी रहे ही नहीं है । लौटते लौटते रात हो गई पहला दिन काफी खुशनुमा रहा ।

दूसरे दिन अर्थात 23 तारीख को हम शिकागो के लेमोंट मंदिर गए । मंदिर काफी अच्छा और सुंदर बना हुआ था । साफ-सफाई भी काफी थी । इस मंदिर में बालाजी के मुख्य मंदिर के अतिरिक्त सभी देवी देवताओं की मूर्तियां थीं । अगर किसी को पूजा-अर्चना, हवन करवाना हो तो इसके लिए एक हॉल की व्यवस्था भी थी । मंदिर के पंडित जी पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करवाते हैं । मंदिर में जन्माष्टमी ,शिवरात्रि, होली, दीपावली ,दशहरा इत्यादि त्योहारों पर विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है तथा महाप्रसाद का आयोजन भी किया जाता है । यह आयोजन सप्ताहांत में किये जाते हैं जिससे सब सम्मिलित हो सकें । सभी भारतीय परिवार पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इन आयोजनों को सफल बनाने के लिए भरपूर योगदान भी करते हैं । कई भारतीय हमें वहां मिले वहां स्थित दुकान से हमने उपहार देने के लिए एक 'बाल गोपाल जी 'की मूर्ति खरीदी । यह हमारी यहां प्रथम शॉपिंग थी । भावभक्ति से युक्त खुशनुमा एहसास लेकर हम मंदिर से निकले । यहां आकर यह एहसास और भी दृढ़ हो गया कि हम भारतीय अपनी संस्कृति , संस्कार और धरोहरों को कभी नहीं भूलते । अगर कहीं बाहर जाते भी हैं तो इन्हें अपने साथ ले जाना नहीं भूलते ।

अब हमें टेनिस कोर्ट जाना था जहां मेरे भतीजे पार्थ का टेनिस का मैच चल रहा था । हॉल काफी बड़ा तथा एयर कंडीशन था । इस हॉल में एक साथ तीन मैच चल रहे थे । अंडर सिक्सटीन का मैच था । सबसे बड़ी बात यह थी यहां कोई एंपायर नहीं था । बच्चे स्वयं ही अपने स्कोर की पट्टियां पलट रहे थे । पार्थ मैच खेल रहा था तथा उसके हर पॉइंट पर हम ऊपर गैलरी में बैठे उसे प्रोत्साहित कर रहे थे । उसका मैच देखकर मैं अचानक उन दिनों में पहुंच गई जब हम अपने पुत्रों अभिषेक और आदित्य को बैडमिंटन मैच खिलाने ले जाया करते थे । वे दोनों अपने इस ग्रुप में बहुत ही अच्छा खेलते थे । डिस्ट्रिक टूर्नामेंट में वे अपने एज ग्रुप में विनर या रनर रहा करते थे । उनका खेल देखकर बैडमिंटन के बच्चों के कोच नायडू सर ने हमसे कहा भी था कि इन दोनों बच्चों की कोचिंग करवा दीजिए ,एक दिन अवश्य नाम रोशन करेंगे पर हम नहीं चाहते थे कि बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान आये अतः हमने उनकी पेशकश ठुकरा दी ।

यह सच है कि खेल में अच्छा खासा पैसा नाम और शोहरत है पर इसमें दो राय नहीं है कि किसी भी खेल में सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यंत ही शारीरिक परिश्रम की भी आवश्यकता है । साथ ही खेल जगत में राजनीति भी हावी है । इसका अंदाजा हमें बच्चों को बैडमिंटन की जिलास्तरीय प्रतियोगिता में भाग दिलाते-दिलाते धीरे-धीरे होने लगा था । एक बच्चे के माता-पिता ने अपने बच्चे को अंडर ट्वेल्थ ( बारह ) प्रतियोगिता में प्रथम का ताज पहनाए रखने के लिए उसका बर्थ सर्टिफिकेट ही बदलवा दिया था ...जब जिला स्तरीय प्रतियोगिता में यह हो सकता है तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में क्या कुछ नहीं होता होगा । आज हमें अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं है । अपने दोनों बच्चों को अपने अपने क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़ते देखकर हम बेहद खुश हैं ।

एक आवाज सुनकर अतीत के झरोखों से मैं वर्तमान में आई । पार्थ मैच जीत गया था ।उस दिन उसके दो मैच थे, दोनों मैचों में ही वह जीता था । उसकी मैच जीतने की खुशी को हमने एक मैक्सिकन रेस्टोरेंट्स सेलिब्रेट किया । घर आते आते-आते रात हो गई । कुछ देर बातें कर हम सब अपने अपने कमरों में सोने चले गए ।

दूसरे दिन पंकज जी की मौसी साधना अग्रवाल ने हमें लंच पर बुलाया था । उस दिन प्रभा और पंकज जी ने हमें घुमाने का व्यस्त कार्यक्रम बना रखा था अतः लंच के लिए उन्होंने उनसे मना कर दिया पर उनके अति आग्रह के कारण कुछ समय के लिए आने का वादा भी कर लिया था । दरअसल उस दिन सर्वप्रथम हमें पार्थ का मैच देखने जाना था । उसके पश्चात हमें वहां होने वाला वोट शो देखने जाना था जो वर्ष में एक बार होता है । संयोग से वह दिन हमारे सामने ही पढ़ रहा था । उस दिन भी पार्थ मैच जीत गया था । मैच के पश्चात हम मौसी जी के घर गए । बहुत ही गर्मजोशी से उन्होंने हमारा स्वागत किया । नाश्ते का भी उन्होंने बहुत अच्छा प्रबंध कर रखा था । मौसाजी और मौसी जी दोनों ही बहुत खुश मिजाज हैं । प्रभा और पंकज के अमेरिका प्रवास के प्रारंभिक दिनों में उन्होंने उनकी अत्यधिक सहायता की थी अतः वे दोनों उन्हें मानते भी बहुत हैं । लगभग 1 घंटे उनके साथ व्यतीत करने के पश्चात हम पहले डाउनटाउन स्थित मॉल में गए । यह मॉल लगभग हमारे देश के बड़े शहरों में बैंगलुरू तथा कोलकाता में स्थित मॉल जैसा ही लगा । हाँ थोड़ा स्पेशियस अवश्य था , भीड़ भी यहां , हमारे देश जैसी नहीं थी ।

सुधा आदेश

क्रमशः