जो लरे दीन के हेत- सुरेंद्र मोहन पाठक राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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जो लरे दीन के हेत- सुरेंद्र मोहन पाठक

अगर आप थिर्लर/रोमांचक उपन्यासों को हिंदी में कभी भी पढ़ा है तो यकीनन आप सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के नाम से बिल्कुल भी अपरिचित नहीं होंगे। अब तक वे 300 रोमांचक/थ्रिलर उपन्यास लिख लुगदी साहित्य के क्षेत्र में, अपने नाम और हुनर का डंका बजा अपनी सफलता का झण्डा गाड़ चुके हैं। लुगदी साहित्य के क्षेत्र में इसलिए कहा कि तमाम बड़ी एवं बंपर सफलताओं के बावजूद उनके लेखन को कभी भी तथाकथित साहित्यकारों अपनी असुरक्षा के चलते साहित्य का दर्ज़ा नहीं दिया।

थिर्लर उपन्यासों के अलावा उन्होंने सुनील, सुधीर और विमल जैसे किरदारों को ले कर अलग अलग उपन्यासों की लंबी श्रंखला भी लिखी। सुनील सीरीज़ के अब तक 120 उपन्यास आ चुके हैं। फिलहाल बात उनके सबसे प्रसिद्ध किरदार विमल उर्फ़ सोहल की जो सरकार की नज़र में सात राज्यों से भागा हुआ, भेष बदलने में माहिर, फरार इश्तिहारी मुजरिम है लेकिन आम जनता की नज़र में उसकी हैसियत रॉबिनहुड सरीखी है जिसने जुर्म का समूल नाश करने की कसम खाई है।

कोई उसे चेम्बूर का दाता तो कोई गरीब गुरबों का आइडियल कह के बुलाता है। कोई उसे गरीबों का हमदर्द तो दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन बताता है। किसी के लिए वो भूखे के मुंह में निवाला देने वाला तो किसी के लिए नंगे के तन पर कपड़े डालने वाला है। कोई उसे अँधे की आँख तो कोई लंगड़े की लाठी तक का तमगा भी दे डालता है। अब किसी एक किरदार में अगर इतनी खूबियां होंगी तो यकीनन उसके दोस्तों और दुश्मनों की संख्या भी उसी हिसाब से ही बेहिसाब होगी। दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ विमल सीरीज़ के 42वें उपन्यास 'जो लरे दीन के हेत' की। जो वैसे तो इनके पिछले उपन्यास की कड़ी को ही आगे बढ़ाता हुआ है लेकिन फिर भी अपने आप में संपूर्ण है।

इस उपन्यास में कहानी है एक लेखक के घर में उसके उस दोस्त द्वारा बतौर अमानत छोड़े गए दो सूटकेसों की, जिसकी सवा साल पहले दो गुण्डों ने पीट पीट कर उसी के घर में, उसकी पत्नी का वहशियाना तरीके बलात्कार करने के बाद, हत्या कर दी थी। अब विक्षिप्त हालात में पत्नी कुछ महीने सैनिटोरियम में बिताने के बाद अपने बच्चों समेत लापता है। उन सूटकेसों का कोई वली वारिस ना होने और पत्नी की ज़िद के मद्देनज़र मजबूर हो जुगाड़ से नक़ली चाबी द्वारा सूटकेस खोलने पर उन्हें पता चलता है कि उनमें 64 लाख रुपए के वो नकद नोट भरे पड़े हैं। जो असल में अमृतसर की एक बैंक डकैती में लूटे गए हैं। नोट मिलने के अगले ही दिन दोनों सूटकेस घर से गायब हो जाते हैं।

फ्लैशबैक, बदला, जेल ब्रेक, रेप, नोटों को पाने की चूहा दौड़ भरी भागमभाग, मुखबिरी और वर्चस्व की लड़ाई समेत तमाम अफ़रातफ़री के बीच झूलती कहानी ड्रग्स, किडनैपिंग, गैंगवार जैसे मसालों से लिपटती चिपटती हुई बहुत ही रोचक और रोमांचक अंदाज़ में अपने मुकाम याने के अंत तक पहुँचती है।

छोटे-छोटे संवादों से लैस लच्छेदार..धाराप्रवाह लेखन के बीच कहानी इतनी तेज़ी से गुज़रती जाती है कि पता ही नहीं चलता कि कब आप पन्ना दर पन्ना आगे बढ़ते हुए पूरे उपन्यास को एक या दो सिटिंग में ही खत्म कर डालते हैं। शुरुआती पृष्ठों में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के लेखकीय के अंतर्गत लेखन और प्रकाशन से जुड़ी बहुत ही रोचक जानकारियां भी मूल उपन्यास के आकर्षण को और बढ़ाने में इज़ाफ़ा करती हैं।

रहस्य/रोमांच से भरपूर इस रोचक उपन्यास के 314 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को 2014 में छापा था हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया ने और इसका मूल्य रखा गया है 125/ रुपए। किंडल पर यह उपन्यास फिलहाल 72/- रुपए में उपलब्ध है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।