दो आशिक़ अन्जाने - 3 Satyadeep Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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दो आशिक़ अन्जाने - 3


य प्रमाण पत्र और राशन कार्डों को अगर आधार मानें, तो यूपी-बिहार के 60% लोग; भूखों मर जाने की हद तक ग़रीब हैं। इन दोनों राज्यों की एक बड़ी आबादी अपनी रोजी-रोटी की तलाश में मेट्रो शहरों का रुख करती है, जहाँ इन्हें प्रवासी मजदूर कहा जाता है। कोरोना वायरस के चलते जब लॉकडाउन हुआ तो ये लोग बाहरी राज्यों में ही फँस गए। जैसे-तैसे हफ़्ते-दस दिन तो कटे लेकिन जब लॉकडाउन की मियाद बढ़ने लगी तो इन मज़दूरों को अपने घरों की याद सताने लगी। राशन की व्यवस्था तो सरकारों ने कर दी थी, बहुतेरे समाजसेवी भी आगे आकर गरीबों में साग-सब्ज़ियाँ और राशन बाँट रहे थे, पर घर तो आख़िर घर होता है न। और हुक्मरानों की नज़र में भले ये लोग वोट के चंद टुकड़े मात्र हों, लेकिन हैं तो ये भी इंसान ही- दया,स्नेह, पीड़ा और करुणा जैसे मानवीय भाव इनमें भी होते हैं। आखिरकार जब सब्र का बाँध टूट गया तब सरकार की तमाम हिदायतों और मिन्नतों को धता बताते हुए ये प्रवासी मजदूर, झुंड के झुंड बनाकर अपने घरों की तरफ बढ़ने लगे। सैकड़ों किलोमीटर लंबे राजमार्गों को ये मेहनतकश मजदूर, अपने पैरों से नापने लगे। लेकिन सारे मजदूर पैदल-गामी नहीं थे - कुछ बड़भागी ऐसे भी थे जिन्होंने छोटे-छोटे समूहों में पैसे मिलाकर, बसें या ट्रकें बुक कर ली थीं।

ऐसे ही एक ट्रक में हमारा अर्जुन और हमारी मीनाक्षी बैठे हुए हैं।


प्रेम यथार्थ है। छल, प्रतिशोध और ईर्ष्या से भरी इस दुनिया में, सच्चे प्रेम की सुखद अनुभूति से ही स्वर्गिक आंनद मिलता है। वासना क्षणिक हो सकती है, मगर प्रेम शाश्वत है। सच्चे प्यार के दो बोल, ज़िंदगी भर की कड़वाहट मिटा सकते हैं। प्यार में पड़कर आशिक़ अपना अच्छा-बुरा, आगा-पीछा सब भुला देते हैं।


तेरी जुल्फ़ों की घटाओं के सिवा मुझे कुछ दिखता नहीं।

तेरी दिलकश अदाओं के सिवा मुझे कुछ दिखता नहीं।।


डॉक्टरों से अगर इस सस्ते शेर की विवेचना करने को कहें तो वे निश्चित ही गायक को 'पार्शियली ब्लाइंड' करार देंगे। लेकिन जिन लोगों ने अपने किशोर जीवन के दौरान प्यार में पीएचडी कर रक्खी हो, ऐसे लोग सहज जान सकते हैं कि ये लाइनें सौ फ़ीसदी सच हैं। शरीर के विविध अंगों पर, बुक्स के लास्ट पेज, स्कूल डेस्क पर और पेड़ के तनों पर खुरच-खुरच कर अपने ‘टुरु-लभ’ का इज़हार करने वाली सुंदरियाँ तथा स्कूल-कॉलेज में हर चौथे दिन, अपने सहपाठियों का अलग-अलग भाभियों से परिचय कराने वाले लौंडे-इस मार्मिक विषय पर बड़ी सरलता से दसियों पेज लंबा निबंध लिखने की महारथ रखते हैं। मगर हमारे ऐसे पाठक जो प्रेमरोग से अछूते रहे हैं, (हालाँकि ऐसा संभव नहीं) वे अगर वर्तमान परिस्थितियों पर एक नज़र डालें तो उपरोक्त लाइन का रहस्य समझ लेंगे:-

कोरोना का संक्रमण बड़ी तेजी से समूची दुनिया को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है, मृतकों की संख्या लाखों में है, संक्रमितों की संख्या करोड़ों में। तालेबंदी से गरीब के भूखों मरने की नौबत आ गयी है, मध्यम वर्ग का दम फ़ूल रहा, उद्योग-धंधे बैठ रहे हैं, सरकारों की नींद हराम है, पूरी दुनिया में अफ़रा-तफ़री मची है और यहाँ ट्रक के इस कोने में प्रेम के दो पंछी, चाँद की शीतल चांदनी में बैठे चोंच लड़ा रहे हैं।


ट्रकरूपी इस कुरुक्षेत्र में हमारे अर्जुन को चारों दिशाओं से दुष्ट कौरवों ने घेर रखा है। एक उसके सहयात्री ने अपनी केहुनी उसके पेट में उतार दी है जबकि दूसरे ने अपनी देह का समूचा भार; उसके ऊपर लाद रखा है। बगलवाले की बगल से आ रही दुर्गंध ने अर्जुन के नथुने सड़ा दिए हैं-और अब उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाने को है। इन सब झंझावातों से उसे सौंदर्य-दर्शन में खासी दिक्कत आ रही है। अर्जुन के जींस की पिछली पॉकेट में जो पर्स है उसमें उसने चंद सिक्के रख छोड़े थे, जो अब उसके स्थान विशेष में बारम्बार चुभ रहे हैं। ट्रक जब भी किसी स्पीडब्रेकर से होकर गुज़रता है या फ़िर बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक किसी गढ्ढे में उतर जाता है तो उसकी तकलीफ़ कई गुना बढ़ जाती है- तिसपर वो ड्राइवर की स्वर्गवासिनी माता को मन ही मन नमन कर लेता है। तत्पश्चात थोड़ी सी जगह बनाकर; ऊपर की तरफ़ सरकने की नाकाम कोशिश करता है। ट्रक की इस्पाती फ़र्श; आग में घी का काम कर रही है और थक-हारकर अर्जुन ने अब यह मान लिया है कि वह शरशैय्या पर बैठा है। लेकिन इतने दुख-दर्द के बावजूद जब वो मीनाक्षी की आंखों में आँखें डालकर मुस्कुराता है तो इस बात की तस्दीक होती है कि सफ़र में सामने अगर खूबसूरत लड़की बैठी हो, तो पिछवाड़े की आग में भी चेहरे पर मुस्कान सजानी पड़ती है।

यहाँ उपरोक्त पंक्तियों में सड़क की जिस अवस्था का वर्णन है उसे सुनकर; शायद आपके मन में ख़स्ताहाल सड़कों का विचार उठने लगा हो, पर आपका यह अंदाज़ा सरासर गलत है। दरअसल यूपी की कुछेक सड़कों पर प्रदेश सरकार द्वारा, फ़्री वाइब्रेशन थेरेपी की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। किसी महंगे फ़ाइव स्टार क्लीनिक में हज़ार-दो हज़ार फ़ूंकने से बेहतर है कि आप यूपी रोडवेज की बस में मऊ से वाराणसी तक की यात्रा कर लें। बदन की ऐसी कोई हड्डी जो कहीं इधर-उधर खिसक गई हो, यात्रा पूरी होते-होेते वो शर्तिया अपनी यथास्थिति में आ जाएगी। हाँ हड्डी अगर पहले से अपनी सही जगह पर अवस्थित है, तो कृपया अपने रिस्क पर यात्रा करें। यूपी रोडवेज़; किसी प्रकार की टूटफ़ूूट का उत्तरदायी नहीं होगा।

देशभर में बढ़ती बेरोज़गारी को देखते हुए यूपी सरकार ने सड़क में बने गड्ढों में मत्स्यपालन और बत्तख-पालन की योजना शुरू करने का फ़ैसला किया है। इसके लिए युवाओं को बाक़ायदा ट्रेनिंग दी जाएगी। ट्रेनिंग के बाद कुछ विशेष सत्र भी आयोजित किये जायेंगे जिसमें उन्हें यह बताया जाएगा कि अगर कोई बाइक सवार दुर्घटनावश, सड़क पर स्वछन्द विचरण करते किसी शाही मेमने या मुर्गे का कचूमर निकाल देता है, तो आरोपी को पहले बालों से पकड़कर ससम्मान घसीटा जाए और फ़िर उसके सामने कुछ चुनिंदा विकल्प रखे जायें मसलन-“बता साले! बाइक से हाथ धोना है कि पसलियों से?” इसके अलावा, कुछ ले-दे के मामला सलटाने अथवा गाँव भर से लात खाने का विकल्प भी खुला रखना होगा, जिससे कि मजबूर सवार; स्वेच्छा से किसी एक विकल्प का चयन कर सके।


बहरहाल यहाँ ट्रक में हमारी कथा-नायिका मीनाक्षी को भी बैठने में खासी दिक्कत आ रही है मगर उसके हवाले से दो बातें ठीक हैं- पहली तो यह कि उसने जीन्स नहीं पहनी बल्कि सलवार-सूट पहन रखा है जिसमें जेबें नहीं होतीं और दूसरी ये कि उसकी अगल-बगल में उसके मां-बाप बैठे हैं। मां उसके कंधे पर सिर रखकर सो रही है और बाप - अपने सिर के पीछे गमछा लगाए ट्रक की दीवार से टेक लगाकर सो रहा है।



क्रमशः