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सरप्राइज

सरप्राइज

अखबार में ईयर फोन का विज्ञापन देखकर प्राची को एकाएक लगा कि उसकी सारी परेशानी सुलझ गई हैं । काफी दिनों से उसे लग रहा था कि यदि लोग आपस में फुसफुसाकर बातें करते हैं तो वह चाह कर भी नहीं सुन पाती है । विनय से परेशानी बताई तो उसने उसकी बात को हँसी में उड़ाते हुए कहा था …

' यह तुम्हारा भ्रम है । तुम काम में स्वयं को इतना लीन कर लेती हो कि आसपास क्या हो रहा है, तुम्हें तो इसका पता ही नहीं चलता है जिसके कारण तुम सुन नहीं पाती हो ।'

शुभांगी और सुलभ भी अपने पापा की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहते , ' आप ठीक कह रहे हैं पापा ...टेलीविजन की आवाज जरा भी तेज हो जाए तो सबसे पहले मम्मी ही टोकती हैं । '

दरअसल संगीत उसे सदा से ही धीमा सुनना अच्छा लगता था । उसका मानना था कि तेज आवाज अच्छे भले गाने को बेसुरा कर देती है । वैसे भी गाना तन -मन को सुख पहुंचाने वाला होना चाहिए ना कि शोर के कारण सिर में दर्द पैदा करने वाला... अतः जब -जब भी टीवी का वॉल्यूम बच्चे तेज करते थे , वही सबसे पहले टोकती थी । खासतौर पर जब गाने आ रहे हों ।

प्राची को जब भी कोई गाना अच्छा लगता, वह गुनगुनाने लगती थी । इससे वह अपने को तनाव रहित महसूस करती थी जिसके कारण वह हर काम पूरा मन लगाकर कर पाती थी चाहे वह घर का काम हो या उसकी चित्रकारी का ...। यद्यपि उसने किसी संस्था में जाकर चित्रकला की शिक्षा नहीं ली थी फिर भी उसके बनाए चित्रों को लोग पसंद करते थे तथा इससे प्रभावित होकर ही उसने पिछले चार सालों में अपनी चित्रकला की दो प्रदर्शनी लगाई थीं... ।

उसके कुछ चित्र तो मुँह माँगे दामों में भी बिक गए थे । इसके अलावा समाज के सच को उजागर करते उसके कुछ कार्टून भी लोगों को बेहद पसंद आए थे । दरअसल चित्रों के जरिए वह जो कुछ भी कहती थी वह केवल अपने मन को तसल्ली देने के लिए करती थी । अगर पैसे कमाने की सोच रखकर चित्र या कार्टून बनाती तो शायद अपनी बात बेबाकी से नहीं कह पाती । उसे डर था कि कहीं वह व्यावसायिक हो गई तो वह रचनाओं में जान नहीं डाल पाएगी जिससे कारण वह अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हो पाई है ।

प्राची अपने जीवन से संतुष्ट थी । विनय के रूप में उसने सभी जरूरतों को पूरा करने वाला पति पाया था । सुलभ और शुभांगी जैसे प्यारे बच्चे थे तथा माँ जैसी सासू माँ थीं किंतु कुछ दिनों से कानों में आई खराबी ने उसका सुख चैन छीन लिया था । सहेलियाँ में होती फुसफुसाहट को न सुन पाने के कारण उसे क्रोध आता, कभी-कभी उसे लगता था कहीं उसके खिलाफ कोई साजिश तो नहीं रची जा रही है ।

उसकी इस परेशानी को देखकर विनय ने उसे ई.एन. टी. के डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी थी । डॉक्टर ने उसके शक को सही पाया और बताया कि कान की एक नस कमजोर हो गई है जिसके कारण खराबी आई है तथा अब उसका इलाज भी संभव नहीं है । उन्होंने उसे ईयर फोन लगाने की सलाह दी थी लेकिन कानों में लगे तार तथा बैटरी को ब्लाउज में छुपाने की लाचारी उसे कभी अच्छी नहीं लगी । कोई क्या कहेगा सोचकर वह चाहकर भी यह ईयरफोन नहीं लगा पाई थी । जबकि विनय और डॉक्टर दोनों ने उसे समझाया था कि जब आँखों के खराब होने पर लोग चश्मा लगाने को बुरा नहीं समझते तो भला कानों में खराबी आने पर ईयर फोन लगाने में क्या बुराई है !!

उस समय प्राची ने यह कहकर टाल दिया था कि ठीक है बाद में सोचूँगी लेकिन टालने की अपनी आदत से उसे परेशानी उठानी पड़ रही है । अब तो बच्चे भी यदि एक बार में नहीं सुन पाती की तो तुरंत कह देते हैं , ' ममा,आपको तो बहुत ही कम सुनाई पड़ने लगा है । अब तो आप मशीन लगवा ही लीजिए । ' और तो और उसके सुन पाने पर विनय भी अब झुंझलाने लगे हैं ।


हालत यह हो गई थी कि वह कभी-कभी तो अंदाज ही काम चलाने की कोशिश करती थी क्योंकि दोबारा पूछने में लगता था कि पता नहीं लोग क्या सोचेंगे ? अपने विश्वास में लगातार आती कमी के कारण उसका बाहर निकलना भी कम हो गया था । एक बार विनय से उसका एक मित्र मिलने के लिए आया । उसने ठंडा पीने की इच्छा जाहिर की । ठीक से न सुन पाने के कारण वह चाय बनाकर ले गई ।

' क्या स्क्वेश नहीं था ? ' अपनी झेंप मिटाने के लिये विनय ने थोड़ा तेज स्वर में कहा ।

' स्क्वेश तो था पर बर्फ नहीं थी, बिना बर्फ के अच्छा नहीं लगता अतः चाय बना लाई । ' अपनी गलती का पता चलने पर उसने तुरंत बात संभालते हुए कहा ।

उस समय बिगड़ी बात तो बन गई थी लेकिन मन ही मन उसे बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई थी , साथ ही साथ विनय की तेज आवाज ने उसके दिल को दुखा दिया था ।

अभी हफ्ते भर पहले की बात है । वह अपनी एक अधूरी पेंटिंग को पूरा करने में लगी थी । अचानक दरवाजे की खड़खड़ाहट ने उसके ध्यान को भंग कर दिया । दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी…

' क्या बात है ? क्या घंटी नहीं बज रही है ? '

' कब से घंटी बज रही हूँ, कोई खोल ही नहीं रहा था अतः दरवाजा खटखटाया ।' उसने उत्तर दिया ।

घंटी बजाकर देखी तो वह बज रही थी । प्राची को लगने लगा था अब लोग चाहे जो कुछ भी कहे ईयर फोन लगवा ही लेगी । कम से कम इन हालातों का सामना तो नहीं करना पड़ेगा ।

और आज इस विज्ञापन पर नजर पड़ते ही उसे लगने लगा कि उसको मन माँगी मुराद मिल गई है । एक बार सोचा कि विनय को बता दे किन्तु तभी मन में आया क्यों ना सबको सरप्राइज दिया जाए ।

आजकल सरप्राइज का दौर है । विनय और बच्चे अक्सर उसे सरप्राइज देते रहते हैं । एक बार वह भी सरप्राइज देकर देखे । दूसरे दिन विनय के ऑफिस एवं सुलभ और शुभांगी के कॉलेज जाने के बाद, घर का काम जल्दी से निपटाया तथा माँजी को कुछ जरूरी काम है , आने में देरी भी हो सकती है , कहकर निकल गई । अक्सर वह अपनी पेंटिंग या शॉपिंग के सिलसिले में बाहर आती जाती रहती थी अतः उन्होंने भी ज्यादा कुछ नहीं पूछा ।

प्राची ईयर फोन खरीदने जब हियरिंग एड की दुकान में पहुंची तो उसकी कीमत को देखकर मन डगमगा गया किन्तु सरप्राइज देने की उसकी इच्छा ने उसके मन को दबा दिया । टेक्नीशियन ने डॉक्टर की जाँच के आधार पर ईयर फोन सेट करके उसके कान में लगाकर उसको चलाने का तरीका बता दिया ।

घर में कदम रखते ही माँ जी बड़बड़ाई ,' पता नहीं कहाँ कहाँ घूमती रहती है । सुबह की गई अब आई है । घर की तो कोई चिंता ही नहीं है ।'

प्राची ने सुन लिया था किंतु अनजान बनते हुए पूछा, ' आपने कुछ कहा क्या माँ जी ।'

' कुछ नहीं बहू, आज बहुत देर हो गई, चिंता होने लगी थी । थक गई होगी । चाय बनाऊं ।' अपनी आवाज को कोमल बनाते हुए माँ जी ने पूछा ।

प्राची ने उनको आश्चर्य से देखा । पहले और बाद के कहे शब्दों का भेद साफ नजर आ रहा था । वह एकाएक समझ नहीं पाई कि किन शब्दों पर भरोसा करे ...।

खुद को संभालते हुए प्राची ने कहा , ' मेरी तो इच्छा नहीं है माँ जी , आपकी चाय का समय हो गया है अतः आपके लिए बना देती हूँ ।'

अभी वह मन की उलझन से उबर भी नहीं पाई थी कि सुलभ और शुभांगी कालेज से आ गए ।

' भूख लगी है ममा , जल्दी से कुछ खाने को दो । '

नाश्ता करके बच्चे तो खेलने चले गए और वह सुबह से पड़े काम को निपटाने में लग गई । अभी काम कर ही रही थी कि विनय ने फोन पर सूचना दी कि किसी जरूरी काम के कारण वे देर से घर आएंगे, खाने पर वह उनका इंतजार न करे । प्राची आज तक कोई भी बात विनय या माँ जी से छुपा नहीं पाई थी । आज भी वह ईयर फोन की बात , विनय को आते ही बताना चाहती थी किंतु पहले माँ जी के शब्द और अब विनय का जरूरी काम पर जाना , उसकी खुशी को धूमिल कर गए । सुबह का समय तो इतनी हाय तौबा के साथ गुजरा की दिल की बात दिल में ही रह गई । विनय भी दो दिन के लिए बाहर चले गए ।

शाम तीन बजे से किटी पार्टी थी । बच्चों के लिए खाना बनाकर हॉट केस में रख दिया , साथ में खाने के लिए प्लेटें रखते देखकर माँजी बोली , ' बहू, मैं तो घर में ही हूँ, बच्चों को मैं खाना खिला दूँगी तू बेफिक्र होकर जा । '

'किटी पार्टी में पहुंची ही थी कि मेजबान नीना ने उसका जोरदार स्वागत करते हुए कहा , 'आओ प्राची , हम सब तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे । बहुत देर लगा दी ।'

' हाँ, कुछ काम आ गया था ।'

' अरे भाई प्राची, हम लोगों की तरह खाली थोड़े ही हैं एक मशहूर चित्रकार एवं कार्टूनिस्ट है । अपनी किसी कृति मैं व्यस्त होंगी । हमें तो यह बताने में गर्व होता है किप्रसिद्ध चित्रकार हमारी किटी पार्टी की सदस्य हैं ।' नई आई नम्रता ने प्रसंशक की नजरों से उसकी ओर देखते हुए कहा ।

अभी वह नम्रता को धन्यवाद देना ही चाहती थी कि करुणा की आवाज उसके कानों से टकराई, ' हुंह, चित्रकारी तो हम इससे भी अच्छी कर लेते हैं किंतु घर के झंझटों से फुर्सत नहीं मिलती और इनके चित्र तो बड़े-बड़े चित्रकारों की नकल भर होते हैं ।'

' अब चुप भी रहो ...प्राची सुनेगी तो क्या सोचेगी !!' उसकी पड़ोसन सरला ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा ।

' प्राची ...वह कहाँ सुन पाएगी?' कहते हुए वे दोनों आँखों आँखों में मुस्कुरा दी ।

ईयर फोन ने उनकी फुसफुसाहट उसके कानों तक पहुंचा दी थी तथा उसके मन का शक हकीकत में बदल चुका था । अभी वह इस कानाफूसी से उबर भी नहीं पाई थी कि दूसरी ओर से आवाज आई , ' देखो तो कितनी चुप -चुप रहती हैं । किसी से मिलना या बात करना ही नहीं चाहतीं । कुछ चित्र क्या छप गए, खुद को हुसैन ही समझने लगी है ।' कविता की आवाज में कुछ फुसफुसाहट थी ।

ना चाहते हुए भी प्राची की नजर कविता की ओर उठ गई उसको अपनी ओर देखते हुए वह सकपका कर बोली, ' मैं बीना से कह रही थी कि आपकी साड़ी कितनी सुंदर लग रही है ।'

मन में उठे उथल- पुथल के कारण आज प्राची सामान्य शिष्टाचार निभाने में भी स्वयं को असमर्थ पा रही थी । अब ऐसी दो मुँही बातें सुनकर वह समझ नहीं पा रही थी कौन उसका अपना है ...किटी पार्टी का पूरा मजा किरकिरा हो गया था । पता नहीं वहाँ मौजूद हर महिला अचानक उसके लिए अनजान हो उठी थी । ऐसा नहीं था कि कविता या करुणा की बातें दूसरी महिलाएं सुन नहीं पाई हों लेकिन सुनकर भी सब अनजान बनी रहीं...उसकी अभिन्न सखियाँ नीना और गीता भी, जिन्हें वह सदा अपना समझती रही तथा जिनके कहने पर वह किटी में शामिल हुई थी... वरना उसे ऐसी किटी पार्टियां सदा से ही समय की बर्बादी लगती रही हैं ।

पता नहीं यह सिलसिला कब से चल रहा है !! एक बार उसका मन किया कि वह उनकी कही बातों का विरोध करें लेकिन सदा से संकोची होने के कारण वह बात को बेवजह बढ़ाकर माहौल में गर्मी पैदा नहीं करना चाहती थी किंतु मन ही मन उसने सोच लिया था कि आगे यदि कोई उसका इस तरह मजाक करेगा तो वह उस से नाता ही तोड़ लेगी ।

घर लौटी तो ननद प्रिया के साथ बच्चों और माँ जी को बातें करते देख कर मन खुशी से भर उठा ।

'अरे , तुम कब आईं । पहले से सूचना दी होती तो मैं तुम्हें लेने स्टेशन आ जाती ।'

'भाभी , अचानक इनका यहाँ का काम निकल आया, साथ में मैं भी चली आई, सोचा सब से मिलना हो जाएगा ।'

' यह तो बहुत अच्छा किया आपने दीदी ।' पर्ची ने प्रसन्नता से कहा ।

प्रिया के आने से थोड़ी देर पहले की कटुता दूर हो गई थी । मन उत्साह से भर गया । उसकी एक ही तो ननद है जिसके साथ उसने जीवन के पंद्रह बसंत बिताए हैं । वह उसके हर सुख -दुख के साथी रही है । नादानी में हुई उसकी गलतियों को खुद पर लेते हुए उसनेवउसे डांट से भी बचाया है । वास्तव में प्रिया उसकी ननद ही नहीं अच्छी दोस्त तथा समीक्षक भी रही है और शायद उसी के कारण ही वह अपने शौक को साकार रूप दे पाई वरना माँ जी को तो उसकी चित्रकारी करना बिल्कुल ही पसंद नहीं था ।

प्राची प्रिया के मनपसंद ब्रेड रोल बनाने के लिए रसोई में घुसी ही थी कि अपने पीछे- पीछे प्रिया को आते देख कर बोली, ' प्रिया , तुम जाओ । माँजी और बच्चों के साथ जाकर बैठो । यह तुम्हारा मायका है । यहाँ तो आराम कर लो । ससुराल मैं तो काम करना ही है । '

' भाभी , आपका यह प्यार दुलार ही ससुराल में मुझे आपकी कमी महसूस कराता है ।' कहते हुए प्रिया की आँखों में अनायास ही आँसू भर आए थे ।

' अब जाओ भी वरना शुभांगी देखेगी तो कहेगी ममा आते ही बुआ को क्यों रुला दिया ? ' बरबस आँखों में छलक आए आँसओं को छुपाते हुए, प्रिया के कंधे पर प्रेम से हाथ रखकर उसे तसल्ली देते हुए प्राची ने कहा । पर आँसू उससे छिप कहाँ पाए । प्रिया ने भी वहाँ से हटना ही ठीक समझा ।

खाना भी प्राची ने खूब मन से बनाया था । खाना देखकर अमोल बोले, ' भाभी, यदि मैंने हफ्ते भर आपके हाथ का बना खाना खा लिया तो दूना हो जाऊँगा । '

' ऐसा तो मैंने कुछ भी नहीं बनाया । सादा खाना ही तो है । ' मुस्कुराते हुए प्राची ने कहा ।

प्राची को किचन का काम पूरा करते-करते दस बज गए । अमोल और बच्चे क्रिकेट मैच देखने लगे तथा माँ जी और प्रिया अंदर कमरे में बातें करने में लीन थीं । अमोल और बच्चों को दूध का गिलास पकड़ा कर प्राची कमरे में प्रवेश करने ही वाली थी कि उनकी बातों में अपना नाम सुनकर ठिठक गई …

'अम्मा, भाभी से कह कर दो अच्छी साड़ियां तथा अमोल के लिए सफारी सूट का कपड़ा मँगवा कर दे देना वरना घर में घुसते ही सास पूछेंगी ... क्या दिया तेरी माँ ने या इस बार भी खाली हाथ ही बेटी को विदा कर दिया । ' प्रिया की आवाज थी ।

' क्या करें बेटी, अपना तो नसीब ही खोटा है वरना विनय के लिए तो लाखों के रिश्ते आ रहे थे । वह डॉक्टर तो अपनी बेटी के लिए दो दिन घर में डेरा भी डाले रहे ... चार लाख नगद भी देने को तैयार थे लेकिन विनय ने इसमें न जाने क्या देख लिया कि बिना दहेज के फेरे पड़वा कर ले आया । दहेज में कुछ मिलता तो तेरे काम आ जाता ।' लंबी सांस खींचकर माँ जी ने कहा ।

' माँ पिछली बातों को याद करके क्या रोना । वैसे भी भाभी के मायके से आए समान पर मेरा क्या हक ? ' प्रिया ने सिर झुका कर कहा था ।

'' बेटा , उस समय तो तू भी विनय की तरफदारी कर रही थी । यह तो सदियों की परंपरा है कि बेटों की ससुराल से मिला समान बेटी को दे दिया जाता है आखिर मेरे साथ भी तो ऐसा ही हुआ था । '

आगे सुनने का उसमें साहस नहीं था अतः कमरे में कदम रखा तो उसे देखकर दोनों ही सकपका गईं । दोनों को दूध का ग्लास पकड़ा कर सहज रूप में कहा , ' माँ जी हमारे कमरे में अमोल और प्रिया सो जायेंगे तथा मैं बच्चों के साथ सो जाऊंगी । '

अभी कमरे से बाहर कदम रखा ही था कि कमरे से फुसफुसाहट सुनाई दी , 'अम्मा , कहीं भाभी ने सुन न लिया हो । '

'अरे, इतनी धीमी आवाज वह कहाँ सुन पाएगी !!'

उसे लगा कि इस समय माँ जी के चेहरे पर भी औरों की तरह ही मुस्कान होगी । उसने अनचाहे विचारों को झटका ...। उसे याद आया वह पल जब उसने पहली बार इस घर में कदम रखा था ...तब नाते रिश्तेदारों ने उसके द्वारा लाए दहेज के बारे में टीका टिप्पणी की थी तो प्रिया ने कहा था हमारे घर किस बात की कमी है जो दहेज लें । वैसे भी जिन्होंने अपनी जान से प्यारी चीज हमें दे दी उनसे और क्या चाहना ।'

लोग तो चुप हो गए थे लेकिन जब- जब प्राची माँजी के कोप का शिकार होती तब - तब इसी प्रिया ने ढाल बनकर उसे सहारा दिया था लेकिन आज वही प्रिया उसी दहेज रूपी राक्षस के कारण परेशान है , सोचकर वह परेशान हो गई । वैसे उसने और विनय ने जरूरत का सभी सामान अपनी हैसियत के अनुसार प्रिया के विवाह पर उसे दिया था लेकिन फिर भी उसे प्रताड़ित किया जाना उसकी समझ से परे था । प्राची ने सोच लिया था कि कल वह माँजी के कहे बगैर ही प्रिया को लेकर बाजार जाएगी तथा उसके लिए खरीदारी करेगी । उसके कुछ पूछने पर कह देगी कि रक्षाबंधन पर नेग देने के लिए उसे साड़ी खरीदनी है ...जिस ननद ने उसके आज को सुखद बनाया , क्या उसके लिए वह इतना भी नहीं कर सकती ? और फिर अब तो विनय की तन्खाह भी बढ़ गई है । उनकी माली हालत पहले से बेहतर है । उसे दुख था तो सिर्फ इतना कि उसकी सेवा में ऐसी क्या कमी रह गई है कि बीस वर्ष पश्चात भी माँ जी उसे बहू रूप में स्वीकार नहीं कर पाई हैं । क्या महज चंद कागज़ के टुकड़े किसी के व्यक्तित्व को इतना ओछा बना सकते हैं ? यही सब सोचकर प्राची के सिर में भयंकर दर्द होने लगा था । उसने सिर दर्द से निजात पाने के लिए दर्द की गोली खा ली लेकिन विचारों के चक्रव्यूह से वह चाहकर भी नहीं निकल पा रही थी ।

प्रिया को नेग के साथ खुशी-खुशी विदा करते समय प्राची ने संतोष की सांस ली थी । बच्चे भी दो दिन की छुट्टी के बाद आज कॉलेज गए थे । घर को ठीक-ठाक कर आज वह तनाव रहित महसूस कर रही थी । शाम को कॉलेज से लौटकर खाना खाते हुए सुलभ ने शुभांगी से कहा , ' आज बड़ा मजा आया । कॉलेज से अनिल और सुनील के साथ ' छपाक ' फिल्म देखने गया था , अच्छी लगी ।'

प्राची को आता देखकर शुभांगी ने धीरे से कहा, ' भैया मम्मी …'

' मम्मी को कहाँ सुनाई पड़ेगा ।' कहते हुए वह शरारती हँसी हँस दिया । आँखों- आँखों में उसका साथ दिया था शुभांगी ने ।

प्राची के पूछने पर सुलभ ने मासूमियत से उतर दिया था शुभांगी अपनी एक समस्या का हल मुझसे पूछ रही थी वही बता रहा था ।

बच्चों के मुख से भी चिरपरिचित वाक्य सुनकर वह सोच भी नहीं पाई थी कि क्या कहे ? एकाएक उसे लगा कि दोनों काफी बड़े हो गए हैं लेकिन क्या कॉलेज टाइम में फिल्म देखने जाना ठीक है । जाना ही था तो उससे पूछ कर जाते । क्या वह मना करती ? अभी वह कुछ कहकर उनका और अपना मिजाज खराब नहीं करना चाहती थी । अतः चुप ही रही ।

शाम का काम निपटा कर प्राची शुभांगी के कमरे में जाकर लेट गई । शुभांगी किसी से फोन पर बात कर रही थी । स्वर धीमा था किंतु ईयर फोन से साफ-साफ सुन पा रही थी । कॉलेज से भागकर उनका कहीं पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बन रहा था । देर होने पर , देर तक पढ़ाई होने की बात कहनी थी ।

सबकी एक एक करतूत उसके सामने आ रही थीँ । आज उसे लग रहा था कि कभी-कभी छिपकर सुनना भी फायदेमंद होता है । कम से कम दूसरों के उस रूप को तो देख पाते हैं जिसकी आमतौर पर आप कल्पना भी न कर सकते ।

प्राची को दुख था तो सिर्फ इतना कि बाहर तो बाहर घर में भी उसे उसके सामने ही बेवकूफ बनाया जा रहा है और वह भी न जाने कबसे ? गुस्से में एक बार उसके मन में आया कि शुभांगी के झूठ का अभी खुलासा कर दे लेकिन फिर सोचा थोड़ा और इंतजार करके देखे, घर में और क्या-क्या गुल खिल रहे हैं । वैसे भी क्रोध से किसी समस्या का हल नहीं निकलता । बच्चों को कभी शांत मन से उनकी गलतियों का एहसास करवाना चाहिए वरना अनर्थ भी हो सकता है ।

रात के दस बजे एक फोन में उसके तन मन को झकझोर कर रख दिया .. विनय कह रहे थे...

' शिखा तुम्हें इतनी रात में फोन करने की क्या आवश्यकता पड़ गई ? कल बात करके समस्या का हल निकाल लेंगे । तुम चिंता मत करो ।'

' किसका फोन था ?' पूछने पर विनय टाल गए लेकिन उनके चेहरे पर परेशानी के चिन्ह स्पष्ट नजर आ रहे थे ।

प्राची को अपनी दुनिया उजड़ती लगी । कुछ दिनों में ही सब उसके लिए अजनबी हो गए थे । सभी का एक अलग ही रूप नजर आ रहा था । माँ जी जिन्हें वह सदा से अपनी सगी माँ मानती रही, उनके मन में उसके लिए इतनी कटुता...विनय का तो लगता है कहीं चक्कर चल रहा है और शुभांगी और शुभम के तो रंग ही निराले लग रहे हैं ।

सबसे अधिक आश्चर्य इस बात का था कि यह सब काम उसके सामने, उसकी कमजोरी का फायदा उठाकर किये जा रहे थे । जिस ईयर फोन को लगाकर वह सबको सरप्राइज देना चाहती थी, उसके कारण उसे आज कई ऐसे सरप्राइज मिल गए जिनके कारण उसके शांत जीवन में एक भूचाल आ गया था । इसका अंत कहाँ और कैसे होगा , इसका भी वह अभी कोई अंदाजा लगा पाने में असमर्थ थी ।

जिनके लिए उसने अपनी तमाम जिंदगी कुर्बान कर दी , उन्होंने ही उसकी मजबूरी का ऐसा सिला दिया !! उसकी मजबूरी का जब -तब मखौल उड़ता रहा और वह अनजान बनी रही... लेकिन अब वह मजबूर नहीं है । उसने मन ही मन विज्ञान को धन्यवाद दिया जिसके कारण उसे नई रोशनी मिली और अब उसने किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर लिया था ।

सुबह कॉलेज जाते समय शुभांगी को बड़ा टिफिन पकड़ाते हुए प्राची बोली , ' आज तुम पिकनिक पर जा रही हो । कुछ ज्यादा खाना रख दिया है , काम आएगा । और सुलभ तुमने तो 'छपाक' पिक्चर देख ली है । कैसी लगी ? फिर विनय की तरफ मुखातिब होकर कहा मेरी सहेलियां इस फिल्म की काफी तारीफ कर रही थी यदि आपका आज शिखा के साथ किसी खास जगह जाने का कार्यक्रम ना हो तो शाम के शो की बुकिंग करा लूँ ।'

तीनों उसे हैरान होकर देख रहे थे । आखिर विनय ने चुप्पी तोड़ी , ' अगर तुम फ़िल्म देखने जाना चाहती हो , तो टिकट मंगा लो... जहाँ तक शिखा सवाल है वह मेरे एक कर्मचारी की पत्नी है । उसका पति विमल बहुत शराब पीता है जिसके कारण उसके लिवर और किडनी खराबी आ गई है । उसकी पत्नी शिखा उसे इलाज के लिए वेलूर ले जाना चाहती है । वह कल उसके इलाज के लिए एडवांस लेने आई थी । क्योंकि मैं एक जरूरी मीटिंग में था इसलिए उसके एडवांस के कागजों पर मेरे हस्ताक्षर न होने के कारण एकाउंटेंट ने उसे पैसा देने से इंकार कर दिया । परसों उसे जाना है , वह जानना चाहती थी कि कल मैं ऑफिस आऊँगा या नहीं । इसलिए परेशान होकर उसने फोन किया था । विमल की कच्ची गृहस्थी है । उसकी अपनी बुरी आदतों के कारण आज उसकी जान पर बन आई है । इसलिए मन काफी परेशान हो उठा था । तुम भी उसके बारे में जानकर परेशान होतीं, यह सोचकर मैं तुम्हारे पूछने पर बात को टाल दिया था ।' विनय ने अपनी सफाई देते हुए कहा ।

प्राची अभी विनय की कही बातों के बारे में सोच रही थी कि शुभांगी की आवाज सुनाई पड़ी, ' ममा, आपको कैसे पता चल गया कि मैं आज पिकनिक पर जा रही हूँ ।'

' तुम कल जब बात कर रही थी तब उस समय मैं तुम्हारे कमरे में ही लेटी हुई थी शायद तुम्हें ध्यान ही नहीं दिया ।'

' ध्यान तो दिया था ...पर ...।'

' तुमने सोचा होगा कि मम्मी तो सुन ही नहीं पाती अतः मेरी कमरे में मौजूदगी के बाद भी तुम कार्यक्रम बनाती रही ।'

' मुझे माफ कर दो मम्मी ।'

' माफी माँगने से क्या सब गलतियां समाप्त हो जाती है ? छिपकर फिल्म देखना , पिकनिक जाना क्या ठीक है ? तुम दोनों किस को धोखा दे रहे हो मुझे या खुद अपने आप को ? आज जितनी मेहनत करोगे, कल उतना ही सुख पाओगे । आज की मौज मस्ती आने वाले समय को दुखद बना देगी ।'

' ममा हमें माफ कर दो । अब ऐसा कभी नहीं करेंगे ...।' शुलभ और शुभांगी ने एक साथ कहा ।

'लेकिन तुम इनकी शैतानियों को पकड़ कैसे पाई ? ' विनय ने पूछा।

' इसकी सहायता से ...।' प्राची ने कान में लगे ईयर फोन को सावधानी से निकाल कर उन्हें दिखाते हुए कहा ।

' इसे कब लगवाया... पहले बताया क्यों नहीं ?' विनय ने खुशी से पूछा ।

' यदि बता देती तो इतनी सब बातें कैसे पता लगती ?' मंद मंद मुस्कुराते हुए प्राची ने उत्तर दिया ।

इसके साथ ही प्राची के मन में कल से मंडराते काले- काले बादल छंटने लगे थे । सभी के चेहरों पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी । प्राची को लगने लगा था कि शरीर के हर अंग की अपनी अपनी महत्ता है, उपयोग है अतः किसी भी अंग में खराबी आने पर फौरन इलाज करवा लेना अच्छा होता है । लोग क्या कहेंगे ...सोच सोच कर बेकार में अपना दिमाग खराब करना बेवकूफी ही है ।

सुधा आदेश




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