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सलीब पर टंगा प्रश्न

सलीब पर टंगा प्रश्न

निशा आफिस के पश्चात् निधि को लेने स्कूल पहुँची, उसे देखते ही दौड़कर उसके पास आने वाली निधि ठीक से चल भी नहीं पा रही थी…

उसे देखते ही अटेन्डेट ने दवायें देते हुये कहा,‘ मैम, आज निधि दर्द की शिकायत कर रही थी, डाक्टर को बुलाकर उसे दिखाया तो उसने यह दवा दी है आप इस दवा को दिन में दो बार तथा इसको दिन में तीन बार दे दीजियेगा ।’

‘ मुझे फोन कर दिया होता ।’

‘ हो सकता है न मिला हो इसलिये डाक्टर को बुलाकर दिखाया हो ।’

‘ ओ.के. डाक्टर का पर्चा...।’

‘ डाक्टर ने पर्चा नहीं दिया सिर्फ यह दवाई दी है ।’

निशा ने सोचा शायद इससे पर्चा कहीं खो गया होगा अतः बात बना रही है...उसने मन ही मन स्कूल प्रशासन को धन्यवाद दिया । नाम के अनुरूप काम भी है, सोचकर संतुष्टि की सांस ली । निशा ने निधि को ‘ किस ’ किया तथा उसे गोद में उठाकर कार तक ले गई... निधि कार में बैठते ही सो गई ।

कैसी भागमदौड़ वाली जिंदगी है उसकी...? वह अपनी पुत्री को भी समय नहीं दे पा रही है । स्कूल तो ढाई बजे ही बंद हो जाता है पर घर में किसी के न रहने के कारण उसे निधि को स्कूल के क्रेच में ही छोड़ना पड़ता है । कभी-कभी लगता है कि एक छोटी सी बच्ची पर कहीं आवश्यकता से अधिक शारीरिक और मानसिक बोझ तो नहीं पड़ रहा है, पर करे भी तो क्या करे ? अपने-अपने कार्यक्षेत्र में व्यस्त होने के कारण न तो उसके और न ही दीपक के माता-पिता का लगातार उनके साथ रहना संभव हो पा रहा है । बस एक ही उपाय है कि वह नौकरी छोड़ दे पर इसके लिये वह तैयार नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि यह तो जीवन की अस्थाई अवस्था है...एक बार वह अगर नौकरी छोड़ देगी तो फिर पता नहीख्र ऐसी नौकरी मिले या न मिले ।

घर पहुँचने पर निशा ने निधि को जगाने का प्रयत्न किया । उसके नहीं जागने पर उसने उसे यह सोचकर गोद में उठा लिया कि शायद उसे दर्द से अभी आराम मिला हो इसीलिये गहरी नींद में सो गई है । रात को निधि ने खाना भी नहीख्र खाया । रात्रि में उसकी बुदबुदाहट सुनकर उसकी नींद खुल गई, उसे थपथपाने के लिये हाथ लगाया तो पाया कि वह ज्वर से तप रही है । नींद में उसने दवा ले ली, दवा खाते ही वह पुनः बुदबुदाई, ‘ मैख्र गंदी लड़की नहीं हूँ, प्लीज अंकल मुझे पनिश न करो, मुझे पनिश न करो ।’

निशा समझ नहीं पा रही थी कि निधि ऐसा क्यों कह रही है...क्या उसे किसी ने पनिश किया पर क्यों ? क्या उसका दर्द इसी वजह से है ? निधि की दशा देखकर उसने दूसरे दिन छुट्टी लेने का निर्णय कर लिया वरना पहले कभी-कभी ऐसी ही स्थितियों में उसमें और दीपक झगड़ा हो जाता था बिना यह सोचे समझे कि उनके इस वाद-विवाद का उस मासूम पर क्या असर होता होगा !!
दूसरे दिन निधि सुबह दस बजे के लगभग उठी, उठते ही वह उससे चिपककर रोने लगी तथा रोते-रोते उसने कहा, ‘ ममा मैं अब कभी स्कूल नहीं जाऊंगी ।’

‘ क्यों बेटा, क्या आपसे स्कूल में किसी ने कुछ कहा ?’ उसने आश्चर्यचकित स्वर में पूछा ।

‘ बस मैं स्कूल नहीं जाऊंगी ।’

‘ लेकिन बेटा, स्कूल तो हर बच्चे को जाना पड़ता है ।'

‘ मैंने कहा न मैं स्कूल नहीं जाऊंगी ।’ कहते हुये वह फफक-फफक कर रो पड़ी थी ।

‘ ठीक है रो मत बेटा, जब आप स्कूल जाना चाहेंगे तभी आपको भेजूँगी ।’ निशा ने उसे सांत्वना देते हुये कहा ।

कल स्कूल जाकर टीचर से बात करूँगी, न जाने ऐसा क्या घटित हुआ है इस लड़की के साथ कि हमेशा स्कूल जाने के लिये लालायित रहने वाली लड़की, स्कूल ही नहीख्र जाना चाह रही है वैसे भी नींद में ‘ पनिश पनिश ’ कर रही थी...सोचकर मन को सांत्वना दी ।

निशा निधि को नाश्ता करा कर उसके कपड़े बदलने लगी...उसकी पेंटी में खून के निशान लगे देखकर वह चौंक गई, सात वर्ष की उम्र में रजस्वला...इसके साथ ही निधि ने दर्द की शिकायत की । दर्द की वजह से वह पैर भी जमीन पर ठीक से नहीं रख पा रही थी । कुछ समझ में नहीं आया तो उसने उसे पेडियाटिफस्ट डा0 संगीता के पास ले जाना उचित समझा । निधि जन्म से ही डा0 संगीता की देखरेख में थी, डा0 संगीता ने उसे चैक करने के पश्चात् कहा, ‘ ओह नो...।’

‘ क्या हुआ डा0...?’

‘ निशा, इस बच्ची के साथ रेप हुआ है...।’ डा0 संगीता ने उसे अलग ले जाकर कहा ।

‘ रेप पर कहाँ और कैसे ? कल तो स्कूल के अतिरिक्त यह कहीं गई ही नहीं है । ’ डा0 संगीता की बात सुनकर निशा ने चौंक कर कहा ।

‘ निशा यह मेरा अनुमान नहीं सच्चाई है ।’

‘ क्या...?’ कहकर निशा अपना सिर पकड़कर कुर्सी पर बैठ गई...। क्या हो गया है इन नरपिशाचों को...? एक सात वर्ष की बच्ची के साथ ऐसी घिनौनी हरकत...!! एक मासूम नन्हीख्र बच्ची में भी उसे सिर्फ स्त्री देह नजर आई...। मन क्यों नहीख्र काँपा इस मासूम के साथ बलात्कार करते हुये...? इंसानियत को तार-तार करने वाले इंसान के रूप में वह इंसान हैवान से कम तो नहीं...? उसे याद आया निधि का नींद में बड़बड़ाना...प्लीज अंकल, मुझे पनिश न करो...।

‘ निशा संभालो स्वयं को...तुम बिखर गई तो बच्ची को कौन संभालेगा ? हमें वस्तुस्थिति का पता लगाना होगा ।
’ डा0 संगीता ने उसे सांत्वना देते हुये कहा ।

निशा ने निधि की ओर तड़पकर देखा उसके चेहरे पर दर्द की लकीरें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं । वह मासूम चुपचाप डाक्टर की बातों से अनजान उनकी ओर देखे जा रही थी । आखिर डा0 संगीता ने उससे प्रश्न किया, ‘बेटा, आपको चोट कैसे लगी ?’

डा0 संगीता महज निधि की डाक्टर थी पर उसकी बच्ची के प्रति संवेदना ने निशा को बल दिया । उसे ऐसा महसूस हुआ कि संगीता जितनी अच्छी डाक्टर है उससे भी अच्छी एक इंसान है । निथि को चुप देखकर निशा ने डा0 संगीता का प्रश्न दोहराते हुये पुनः पूछा, ‘ निधि बेटा, डाक्टर आंटी की बात का उत्तर दो...तुम्हें चोट कैसे लगी ?’

‘ ममा, मैं नहीं बता सकती वरना मुझे डाँट पड़ेगी ।’

‘ पर क्यों...?’

‘ मेम ने कहा है अगर तुम घर में किसी को भी बताओगी तो तुम्हें अपने ममा-पापा की भी डाँट सुननी पड़ेगी । आपने गलती की है, आप एक गंदी लड़की हो इसलिये आपको पनिशमेंट मिला है । ममा मैंने कुछ नहीं किया...प्रॉमिस ।’ कहते हुये उसकी आँखें भर आई थीं ।

‘ मेम ने ऐसा कहा...बेटा, आप हमें बताओ...हम आपको कुछ नहीं कहेंगे ।’

डा0 संगीता के बार-बार पूछे जाने पर निधि ने सच्चाई उगल दी...सच्चाई सुनकर निशा और डा0 संगीता
अवाक् रह गई...एक स्विमिंग इंस्टफक्टर का ऐसा अमानवीय व्यवहार...!!!

‘ निशा तुम उस राक्षस के प्रति केस दायर करो, उसके खिलाफ गवाही मैं दूँगी...। मैंने अपने मोबाइल पर निधि का बयान नोट कर लिया है ।’ कहते हुये डा0 संगीता के चेहरे पर आक्रोश स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था ।

डा0 संगीता के साथ ने उसे आत्मिक बल प्रदान
किया पर क्या ऐसा करना उचित होगा...? कहीं यह बात समाज में फैल गई तो निधि का जीना न दूभर हो जाये...। हमारे समाज में लड़कों के हजार खून माफ हैं पर लड़की के दामन पर लगा एक छोटा सा धब्बा भी उसके पूरे जीवन पर कालिख पोत सकता है । निधि पर इस घटना का बुरा असर न पड़े इसलिये निशा ने निधि के सोने के पश्चात् ही दीपक को इस घटना के बारे में बताने का निश्चय किया, गर्म दिमाग के दीपक सुनकर पता नहीं कैसे प्रतिक्रया व्यक्त करें पर बताना तो था ही । और सच दीपक सुनते ही भड़क गये तथा टेबिल पर हाथ मारते हुये कहा,‘ मैं उस कमीने को छोड़ूँगा नहीं, सजा दिलवाकर ही रहूँगा ।’

‘ शांत दीपक शांत...।’

‘ सुनकर मेरा भी खून खौला था...तुम्हारी जैसी ही बात मेरे मनमस्तिष्क में भी आई थी पर अगर हम इस सच्चाई को दुनिया के सामने लाते हैख्र तो क्या समाज की अंगुलियाँ हमारे उकपर नहीं उठेंगी ? हो सकता है लोग हमारी बच्ची का जीना भी दूभर कर दें ।’

‘ शायद तुम्हारा कहना ठीक हो पर ऐसा करके क्या हम अपराधी को मनमानी करने की छूट नहीख्र देंगे...? आज तो हमारी पुत्री उसकी हवस का शिकार हुई है, कल न जाने कितनों को वह हवशी अपनी हवस का शिकार बनायेगा...?’

इस सोच ने अंततः निशा और दीपक को अपने अंतःकवच से बाहर निकलने के लिये प्रेरित किया तथा उन्होंने एफ.आई.आर. दर्ज करवा दी । एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म की...डा0 संगीता की गवाही मजबूत सबूत बनी ।

बच्ची के आरोपी को पहचानने के बावजूद स्कूल प्रशासन इस आरोप को मान ही नहीं रहा था । मानता भी कैसे उसकी अपनी साख पर जो बन आई थी । यह खबर आग की तरह फैली...मीडिया के साथ अन्य बच्चों के माता-पिता ने उनकी आवाज को बल दिया क्योंकि आज जो एक बच्ची के साथ हुआ है वह कल उनकी बच्ची के साथ भी तो हो सकता है अंततः पुलिस ने स्विमिंग इंस्ट्रक्टर को गिररुतार कर लिया ।

दूसरे दिन यह खबर तमाम समाचार पत्रों में प्रमुखता के साथ छपी...यलोलाइन इंटरनेशनल स्कूल में सात वर्ष की बच्ची के साथ रेप...। स्विमिंग करने के पश्चात् स्विमिंग पूल के पास बने चैम्बर में बच्ची कपड़े बदलने के लिये गई थी । उसके पीछे-पीछे स्विमिंग इंस्ट्रक्टर भी चैम्बर में घुस गया तथा उसके मुँह पर कपड़ा बाँधकर उसे डराते हुये उसके साथ जबरदस्ती की तथा किसी को न बताने की चेतावनी भी दी...। बच्ची की क्लास टीचर ने जब उसे दहशत में देखा तो अनहोनी की आशंका से उसने उससे प्रश्न किया, उसके प्रश्न के उत्तर में बच्ची को ‘ दर्द...दर्द ’ कहते हुये रोते देखकर क्लास टीचर ने प्रिंसीपल को बताया तथा निधि के घर फोन करने की इजाजत माँगी । निधि की हालत देखकर प्रिंसिपल ने निधि के घर फोन करने से पूर्व डाक्टर को बुलाकर चैकअप करवाने को कहा ।

डाक्टर की बात सुनकर टीचर और प्रिंसीपल दंग रह गई । डाक्टर ने उसकी ड्रेसिंग कर दवा खाने को दे दी पर स्कूल का नाम न खराब हो इसलिये टीचर ने उसे घर में किसी को कुछ भी न बताने की चेतावनी देने के साथ यह भी कहा,‘ तुम गंदी लड़की हो इसलिये तुम्हें सजा दी गई, अगर तुम घर में बताओगी तो तुम्हें अपने ममा-पापा से भी डाँट खानी पड़ेगी...।’

पढ़कर निशा ने माथा पीट लिया तथा दनदनाती हुई दीपक के पास गई तथा कहा,‘ देखो समाचार पत्र...सब जगह हमारी थू...थू हो रही होगी ।’

‘ थू...थू...किसलिये...हमारी बच्ची की कोई गलती नहीं है ।’

‘ आप पुरूष हैं शायद आप इसीलिये ऐसा सोच रहे हैं...एक लड़की के दामन पर लगा एक छोटा सा भी दाग उसे दुनिया के लिये अप।श्स्य बना देता है ।’

‘ तो क्या हम उस अपराधी को ऐसे ही छोड़ दें...?’

‘ मैंने ऐसा तो नहीं कहा पर मैं नहीं चाहती कि हमारी निधि का नाम दुनिया के सामने आये ।’

‘ नहीं आयेगा...पर मैं अपराधी को सजा दिलवाकर ही रहूँगा...मैंने वकील से बात कर ली है ।’

‘ वह तो ठीक है पर इस सब में पता नहीं कितना समय लगेगा...मैं अपनी बच्ची को तिल-तिल सुलगने नहीं दे सकती...निधि के मनमस्तिष्क से कड़वी यादें मिटाने के लिये हमें स्थान परिवर्तन करना होगा ।’

‘ स्थान परिवर्तन...।’

‘ आप अपना स्थानांतरण करवा लीजिये...।’

‘ स्थानांतरण इतना आसान है क्या ?’

‘ निधि के जीवन से अधिक कुछ कठिन नहीं है अगर आप नहीं करा सकते तो मैं अपने मैनेजमेंट से बात करती हूँ मेरा हैड आफिस दिल्ली में है...वहाँ की एक लड़की यहाँ आना चाह रही थी, म्यूचल स्थानांतरण होने में कोई परेशानी नहीं होगी ।’

म्यूचल ट्रांसफरमें ज्यादा परेशानी नहीं हुई, एक महीने के अंदर निशा का स्थानांन्तरण दिल्ली हो गया...। पहले दिल्ली जाने से मना करने के कारण आफिस वालों की आँखों में प्रश्न झलके थे, पर फैमिली प्राब्लम का हवाला देकर उसने उनका समाधान कर दिया । दीपक ने भी स्थानांतरण के लिये एप्लाई कर दिया था...।

दिल्ली में निशा निधि का डी.पी.एस. में दाखिला करवाने के लिये गई । प्रिंसीपल ने उसके ट्रांसफर सर्टिफिकेट को देखकर कहा,‘ यलो लाइन इन्टरनेशनल स्कूल ’...वहाँ कुछ दिन पूर्व स्कूल के स्टाफ के किसी कर्मचारी द्वारा एक बच्ची का रेप हुआ था ।’

‘ हाँ मेम, मेरा यहाँ स्थानांतरण हो गया है आपका स्कूल प्रसि$ है, इसलिये मैं इसका यहाँ एडमीशन कराना चाहती हूँ ।’ उसने बिना घबराये उत्तर दिया था क्योंकि उसे पता था कि ऐसे प्रश्न शायद आगे भी उठें पर उसे विचलित नहीं होना है...। गनीमत है कि निधि उसके साथ नहीं आई थी । वह उसे अपनी मित्र अलका के पास छोड़कर आई थी । उसने सोचा था पहले स्वयं जाकर स्कूल प्रशासन से बात कर ले । पता नहीं एडमीशन होगा भी या नहीं ।

‘ आप लकी हैं...अभी हरुते भर पूर्व ही स्थानांतरण के कारण फर्स्ट स्टेन्डर्ड में एक स्थान रिक्त हुआ है, हम निधि को वहाँ एकोमोडेट कर लेंगे...आप फार्म भर दीजिये तथा कल से उसे स्कूल भेज दीजिये ।’

‘ थैंक यू मेम...।’ निशा ने उठते हुये उनसे हाथ मिलाते हुये कहा ।

‘ मोस्ट वेलकम...।’

अलका उसकी बचपन की मित्र है । अक्सर वह उसे बुलाती रहती थी अतः जैसे ही उसे टफांसफर ऑडर मिला, उसने सबसे पहले उसे ही फोन किया । उसने सुनते ही कहा,‘ हमारी दिल्ली में तुम्हारा स्वागत है...तुम सीधे मेरे पास ही आओगी...।’

उसकी लड़की शुचि डी.पी.एस. में पढ़ती है अतः उसने निधि का दाखिला डी.पी.एस. में कराने का सुझाव दिया था । वैसे तो उसकी ननद विभा भी दिल्ली में रहती थी पर एक तो उसका घर उसके आफिस से दूर था वहीं उसे डर था अगर उसे जरा सी भी भनक लग गई तो निधि का जीना हराम हो जायेगा वह चलता फिरता अखबार है...उसके पेट में एक भी बात नहीं छिपती । उसने कहीं पढ़ा था कि एक अच्छा मित्र अच्छा हमराज हो सकता है जबकि रिश्तेदार बाल की खाल निकालने से बाज नहीं आते । अपने मन के इसी डर के कारण उसने उनके पास न जाकर अलका के पास ही रूकना मुनासिब समझा ।
दूसरे दिन वह निधि को स्कूल के लिये तैयार करने लगी तो उसने कहा,‘ ममा मुझे स्कूल नहीं जाना है ।’

‘ बेटा, स्कूल तो हर बच्चे को जाना होता है, अगर आप स्कूल नहीं जाओगे तो डाक्टर कैसे बनोगे ?’

‘ मुझे डाक्टर नहीं बनना है ।’

‘ घर में रहकर बोर नहीं हो जाओगे...स्कूल में बहुत सारे फ्रेंडस मिलेंगे, गेम होंगे और तो और आपको अच्छी-अच्छी बुक्स पढ़ने को मिलेगीं ।’

उसके चेहरे पर थोड़ी सहजता देखकर उसने पुनः कहा,‘ शुचि भी आपके साथ जायेगी ।’

‘ क्या वह भी मेरे साथ मेरी क्लास में पढ़ेगी ?’

‘ नहीं बेटा, पर वह आपके स्कूल में ही पढ़ती है ।’

‘ ओ.के. ममा...। ’

‘ शुचि तुम तैयार हो गई, चलो मैं तुम दोनों को स्कूल छोड़ आती हूँ ।’

‘ आंटी, मेरी बस आ रही होगी ।’

‘ आज मेरे साथ चलो...निधि भी कल से तुम्हारे साथ बस से आयेगी, जायेगी । आज मैं उसकी बस की फीस जमा करा दूँगी ।’

‘ ओ. के. आंटी...।’

उस दिन उसने उन्हें स्कूल छोड़ दिया । खुशी तो इस बात की थी कि कुछ ही दिनों में निधि ने स्वयं को स्कूल में एडजेस्ट कर लिया । अब वह बिना नानुकुर किये स्कूल जाने लगी थी । शुचि के साथ ने उसे पहले जैसी ही चंचल बना दिया था पर फिर भी वह कभी-कभी रात में डरते हुये उठकर बैठ जाती या नींद में बड़बड़ाती, ‘ प्लीज अंकल, मुझे पनिश न करो, मैं गंदी लड़की नहीं हूँ ।’
वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे...?

दीपक वैसे ही परेशान थे...आफिस, कोर्ट कचहरी...अभी सोच ही रही थी कि मोबाइल बज उठा...उसके फोन उठाते ही दीपक ने कहा, ‘ निशा, स्कूल प्रशासन ने स्विमिंग इंस्ट्रक्टर को बर्खास्त कर दिया है तथा वकील नागेन्द्र ने कोर्ट में विशेष अर्जी देकर कोर्ट से माँग की है कि बच्ची की उम्र को देखते हुये बच्ची को कोर्ट न आने की अनुमति प्रदान की जाये सिर्फ डा0 संगीता तथा उसके द्वारा निधि के रिकॉर्ड किये बयान को ही साक्ष्य मान लिया जाय । देखो क्या होता है ? इसके साथ ही एक खुशखबरी और है मेरे स्थानांतरण की अर्जी को मौखिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है लिखित रूप में आदेश महीना पंद्रह दिन में मिल जाना चाहिये ।’

दीपक की बात सुनकर निशा ने चैन की सांस ली । सजा तो वह भी उस दरिंदे को दिलवाना चाहती थी पर उसकी एक ही शर्त्त थी कि इस सबमें निधि का नाम न आये...वह नहीं चाहती थी कि वह बार-बार उन पलों को जिये जिसने उसके तन-मन को घायल कर दिया है ।

निशा का निरंतर बड़बड़ाना उसकी रात्रि की नींद तथा दिन के चैन में खलल डाल रहा था । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उसके मन का डर समाप्त किया जाये ? उसने सोचा क्यों न किसी चाइल्ड साइकियाट्रिस्ट से संपर्क करे...उसने ‘ प्रेक्टो ’ बेबसाइट में सर्च किया, डिग्री और अनुभव देखकर उसे डा0 सुभाष ठीक लगे ।
पर अलका के पास रहते हुये निधि को डाक्टर के पास ले जाना संभव नहीं था । न जाने कितने प्रश्न उठते...इसी सोच की तहत उसने एक दिन अलका से कहा,‘ बहुत दिन हो गये तुम्हारे पास रहते-रहते, अब मैं चाहती हूँ अलग घर ले लूँ...दीपक भी शायद अगले महीने तक आ जायें...।’

‘ तुम्हारे रहने से मुझे अच्छा लग रहा है । शुचि भी निधि के साथ बहुत हिल गई है पर तुम्हारा कहना भी जायज है...अभी कुछ ही दिनों पूर्व इसी अपार्टमेंट में एक घर खाली हुआ है, तुम देख लो अगर पसंद आ जाये तो शिरुट कर लेना । पास भी रहोगी ।’

निशा को वह घर पसंद आ गया और उसने वहीख्र शिरुट कर लिया । उसके इस फैसले से अलका के साथ निधि और शुचि भी यह सोचकर बेहद प्रसन्न थी कि उनका साथ नहीं छूटेगा । अलका ने स्वयं यह कहकर उसके मन के बोझ को हल्का कर दिया था कि तुम निधि की चिंता मत करना, तुम्हारे आफिस से आने तक निधि मेरे पास ही रहेगी ।

निशा डा0 सुभाष से अपाइन्टमेंट लेकर पहले स्वयं उससे समस्या के बारे में डिस्कस करने गई । उसकी बात सुनकर डा0 सुभाष ने कहा,‘ आप बच्ची को लेकर कल इसी समय आ जाइये...बच्ची कम उम्र की है अतः हमें बहुत ही सावधानी से उसके डर को समाप्त करना होगा पर मुझे विश्वास है हम सफल होंगे ।’

‘ डा0 इसी आशा के साथ आपके पास आई हूँ ।’

दूसरे दिन वह निधि को लेकर डा0 सुभाष के पास गई...डा0 सुभाष ने उसे देखकर कहा, ‘ स्वीट एन्जिल, वाट इज योर गुड नेम ?’

‘ निधि...।’

‘ निधि बेटा, आपकी ममा कह रही हैं कि ‘ पनिश न करो...पनिश न करो...गंदी लड़की ’ कहते हुये अक्सर रात में आप उठकर बैठ जाती हो...कौन आपको पनिश करता है ?’ डाक्टर की बात सुनकर निधि ने निशा की ओर देखा ।

‘ मत डरो, डाक्टर अंकल को सच-सच बता दो ।’

‘ पर आपने तो किसी को भी बताने के लिये मना किया था ।’

‘ मना किया था बेटा पर यह डाक्टर अंकल है, इनको बताने से ये आपके डर को दूर कर देंगे ।’

‘ अच्छा छोड़ो यह बताओ...आपको किसी अंकल ने चोट पहुँचाई थी...बाद में उसने कहा कि आप गंदी लड़की हो इसलिये आपको पनिश किया जा रहा है ।’

‘ पर डाक्टर अंकल मैंने कुछ गलत नहीं किया...मैं गंदी लड़की नहीं हूँ ।’

‘ यही बात तो मैं तुमसे कहना चाह रहा हूँ...गंदी तुम नहीं वह अंकल है जिसने तुम्हें चोट पहुँचाई ।’

‘ फिर सुजाता मैम ने ऐसा क्यों कहा कि तुम गंदी लड़की हो, इसलिये तुम्हें पनिश किया गया ।’

‘ तुम्हारी मेम ने गलत कहा ।’

‘ पर क्यों डाक्टर अंकल...?’

‘ अच्छा यह बताओ...अगर तुम अपनी किसी मित्र को चोट पहुँचाती हो तो गंदा कौन हुआ ?’ डाक्टर ने बात का रूख मोड़ते हुये पूछा ।

‘ मैं...।’

‘ बिल्कुल ठीक...इसी तरह उस अंकल ने आपको चोट पहुँचाई तो गंदा काम उसने किया न कि आपने ।’

‘ फिर ममा किसी को बताने के लिये मना क्यों करती हैं ?’

‘ आपकी ममा ठीक कहती हैं...बुरी बातें जो हमें चोट पहुँचाती हैं, उन्हें बार-बार याद नहीं करना चाहिये ।’

‘ ओ.के. अंकल...।’

‘ निशाजी आज के लिये इतना ही काफी है...अगले हरुते फिर इसी समय...आई होप जल्द ही सब ठीक हो जायेगा ।’

इसी बीच दीपक से पता चला कि यलोलाइन इंटरनेशनल स्कूल ने स्कूल के प्रत्येक कमरे यहाँ तक कि कोरीडोर में भी सी.सी.टीवी लगाने का निर्णय कर लिया है । सुनकर उसने मन ही मन सोचा अब स्कूल प्रबंधन चाहे जो भी प्रबंध कर ले निधि के साथ हुई घटना तो बदल नहीं जायेगी...वैसे भी सार्वजनिक स्थानों पर लगे सी.सी.टीवी कैमरे के पास लिखा स्लोगन ‘ आप कैमरे की नजर में हैं ’ उसे कैमरा कम कैमरा लगे होने का विज्ञापन अधिक नजर आता था ।

केस की जिम्मेदारी वकील को सौंपकर महीने भर में ही दीपक भी आ गया था । सब कुछ भुलाकर नये सिरे से जिंदगी प्रारंभ करने का प्रयत्न कर रहे थे । अब निशा प्रत्येक दिन निधि का होमवर्क कराते हुये उससे उसकी पूरे दिन की एक्टिविटी के बारे में पूछने लगी थी जिससे उसे पता रहे कि वह स्कूल में किससे मिलजुल रही है...क्या कर रही है तथा कहाँ आती जाती है ?
डा0 सुभाष के इलाज तथा शुचि के साथ के कारण निधि में काफी परिवर्तन आ रहा था । कक्षा में भी वह अच्छा प्रदर्शन कर रही थी । देखते देखते चार वर्ष बात गये...निधि को खुश देखकर हम भी बेहद प्रसन्न थे आखिर हमारी बच्ची उस दुःस्वप्न को भूलकर जीवन में आगे बढ़ रही है ।

एक दिन सायं वे सब बैठे टी.वी देख रहे थे कि एकाएक निधि ने पूछा, ‘ ममा रेप क्या होता है ?’

उसका प्रश्न सुनकर वह और दीपक चौंके थे...ध्यान दिया तो पाया कि न्यूज चैनल में एक गैंगरेप की घटना को पूरे जोर-शोर से दिखाया जा रहा है...दीपक ने तुरंत चैनल चेंज कर दिया ।

‘ ममा रेप क्या होता है ?’ उसने पुनः अपना प्रश्न दोहराया था ।

‘ निशा खाना लगा दो, देर हो रही है...कल मुझे आफिस भी जल्दी जाना है ।’ दीपक ने निधि का ध्यान हटाने के लिये कहा ।

‘ ओ.के. ।’ कहकर वह उठ गई थी ।

निधि का बार-बार प्रश्न पूछना उसे आतंकित करने लगा था पर उत्तर तो देना ही था अंततः उसने कहा, ‘ जब कोई किसी को परेशान करता है, उसे रेप कहते हैं ।’

‘ जैसे उन अंकल ने मुझे किया था...।’

‘ नहीं बेटा...।’ कहते हुये उसने निधि को अंक से लगा लिया था...।

वह समझ गई थी कि उसके मन का घाव अभी भरा नहीं है । उन्हें बहुत सावधानी बरतनी होगी पर इन टी.वी. वालों का क्या करें, इनकी तो कोई न्यूज इस तरह की घटनाओं के बिना समाप्त ही नहीं होती है !! नित्य ऐसी घटनाओं को देखकर उसे न जाने ऐसा क्यों महसूस होने लगा था जैसेकि हमारे समाज में चारों ओर अमानुष ही अमानुष अपना डेरा जमाये हुये हैं जिन्होंने न केवल हमारा जीना हराम कर रखा है वरन् अराजकता भी फैला रखी है...। लड़की को सदा देवी रूप में पूजा जाता है...यह क्या मात्र दिखावा है ? अक्सर लड़कों के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है क्योंकि उनसे वंश चलता है, उन्हें समाज का रक्षक माना जाता है पर उन्हें संस्कार देने में न जाने कहाँ चूक हो जाती है जो वे नर से राक्षस बन जाते हैं । अपनी माँ बहन समान नारियों पर दरिंदगी करते समय उनकी आत्मा उन्हें जरा भी नहीं कचोटती !!! हम अपनी लड़कियों को तो ‘ यह न करो वह न करो ’ के बंधन में बाँधते हैं पर लड़कों को क्यों नहीं...? हमें अपने लड़कों को नैतिकता की शिक्षा देने का प्रयास करना होगा क्योंकि जब तक व्यक्ति की मानसिकता नहीख्र बदलेगी तब तक अपराध कम नहीख्र होंगे इसके साथ ही अपनी लड़कियों को ऐसे शातिर अपराधियों से बचाने के उपाय भी बताने होंगे ।

निधि के मन के दर्द ने उसके मन में ऐसी उहापोह मचा रखी थी कि उसके तन-मन की शांति भंग हो गई थी । कहते हैं कड़वे अतीत को भूलकर आगे बढ़ने में ही भलाई है पर अगर अतीत बार-बार दिल पर दस्तक दे तो इंसान क्या करे ? घर बाहर का काम करने के बावजूद कुछ ऐसा था जो उसके मन की ज्वाला को शांत नहीं होने दे रहा था ।

उस दिन उसे अपनी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी अतः आफिस से छुट्टी ले ली थी । दीपक के आफिस और निधि के स्कूल जाने के पश्चात् वह पेपर लेकर बैठी ही थी कि एक समाचार पर उसकी नजर ठहर गई...दिव्या खन्ना की मौत...पुलिस छानबीन में लगी है...इनसेट में फोटो देखकर चौंक गई...अरे, यह तो उसकी उसकी ननद विभा की जिठानी रमा की लड़की है...पिछले वर्ष ही इसका विवाह तय हुआ था पर दहेज की माँग सुनकर इसने स्वयं ही उस लड़के से विवाह करने से इंकार कर दिया था । उसके इस निर्णय की समाज तथा मीडिया में काफी चर्चा हुई थी । अब वह सिविल सर्विसेज के लिये कोचिंग कर रही है, ऐसी साहसी और दृढ़निश्चयी युवती के साथ ऐसा हादसा...।

उससे आगे पढ़ा नहीं गया...उसने गाड़ी निकाली तथा विभा के घर की ओर चल दी । वह पहुँची ही थी कि विभा अपनी जिठानी रमा के घर खाना लेकर जाने की तैयारी कर रही थी, उसे देखकर विभा ने कहा, ‘ निशा, कल से किसी के मुँह मेख्र अन्न का एक दाना भी नहीख्र गया है, कुछ लेकर जा रही हूँ, शायद कुछ खा लें ।’

‘ मुझे तो आज पेपर से पता चला, कम से सूचना तो दे देतीख्र ।’ उसने कह तो दिया पर तुरंत ही अपने प्रश्न पर यह सोचकर संकुचित हो उठी कि ऐसे समय में उलाहना देना उचित नहीं है ।

‘ निशा परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी हो गई थीख्र कि मस्तिष्क ने काम करना ही बंद कर दिया था ।’

‘ मैं समझ सकती हूँ...चलिये दीदी मैं गाड़ी लेकर आई हूँ ।’

विभा के साथ वह रमा के घर पहुँची । रमा का बुरा हाल था...उसकी आँखें रो-रोकर सूज गई थीं। बार-बार वह यही कह रही थीं, ‘ मेरी फूल सी बेटी ने उसका क्या बिगाड़ा था जो उस दरिन्दे ने उसे ऐसी मौत दी ।’

समझ में नहीं आ रहा था कि रमा को क्या कहकर सांत्वना दें...? विभा ने उन्हें खिलाने का प्रयास किया पर उनके मुँह से निकला,‘ जिसकी बेटी का अभी तक अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ, उसके मुँह में अन्न का दाना कैसे जा सकता है...? कल उसने मुझसे दोसा बनाने के लिये कहा था, मैं सारी तैयारी कर उसका इंतजार ही करती रह गई पर वह नहीं आई ।’

उनका प्रलाप कठोर से कठोर हृदय को द्रवित कर रहा था...आखिर जवान इकलौती बेटी की दुर्दान्त मृत्यु से किसका दिल नहीं उबलेगा पर चाहकर भी कोई कुछ कर भी नहीं सकता था । इस दर्द को सहने के अतिरिक्त कोई चारा भी तो नहीं था ।

इसी बीच इंस्पेक्टर ने हॉल में प्रवेश किया, उसे देखते ही रमा ने पूछा,‘ इंस्पेक्टर साहब, अपराधी का पता चला ।’

‘ अभी तो नहीं पर क्या दिव्या से किसी की कोई दुश्मनी थी ?’

‘ नहीं...मेरी बेटी तो बहुत मृदुभाषी थी...उसका किसी से कोई बैर नहीं था ।’ विलाप करती रमा ने रूधें गले से कहा ।

‘ आप याद कीजिये खन्ना साहब, बिना दुश्मनी के कोई किसी के साथ बलात्कार कर उसे इतनी बेरहमी से मौत के घाट नहीं उतारता ।’ इंस्पेक्टर ने विशाल खन्ना की ओर मुड़ते हुये कहा ।

‘ मुझे तो याद नहींहै सिवाय इसके कि उसने विवाह के लिये संजीव नामक युवक से इसलिये मना कर दिया था क्योंकि वे लोग दहेज माँग रहे थे ।’

‘ आप मुझे उसका नाम और पता दीजिये उससे भी पूछताछ करके देखते हैख्र वैसे हमने इस काम के लिये खोजी कुप्रे भी लगाये हैं । दिव्या की कॉल डिटेल भी ख्ांगाल रहे हैं । .उस समय एक नंबर से उसे कॉल आया था, उस न0 को तलाशने का प्रयास कर रहे हैं । खोजी कुप्रे ने जिस जगह की ओर हमारा ध्यान केंद्रित किया वहाँ पर सी.सी.टीवी कैमरा भी लगा है । सी.सी.टीवी कैमरे का फुटेज बाइक के पीछे चेहरा ढंके किसी लड़की को बैठा तो दिखा रहा है पर हैलमेट लगा होने के कारण न तो आदमी को पहचान पा रहे हैं न ही चेहरा ढंके होने के कारण लड़की को... आश्चर्य तो इस बात का है कि जिस रूट से वह बाइक गई है, उस रूट पर सी.सी.टीवी. कैमरे लगे होने के बावजूद हमें न बाइक का न0 दिखा और न ही उस लड़के का पता चल पा रहा है...पर आप चिंता न करें, कानून के हाथ बहुत लंबे हैं अपराधी पकड़ा अवश्य जायेगा ।’

‘ सर, बुरा न मानें तो एक बात कहूँ...।’ निशा ने पूछा ।
‘ जी कहिये...।’

‘ जैसे मूवी में पुलिस सायरन बजाती आती है जिससे अपराधी को भागने का अवसर मिल जाये...ठीक वैसा ही जगह-जगह लगा आपका सी.सी.टीवी. कैमरा है । जहाँ-जहाँ कैमरे लगे हैंवहाँ-वहाँ ‘ आप कमरे की नजर में हैं ’ लिखी वार्निग क्या अपराधी को उसकी कैद में आने देगी ? आशा है मेरे इस प्रश्न पर आप और आपकी सरकार अवश्य ध्यान देंगे ।’

‘ आप कैमरे की नजर में हैं ’ के बोर्ड जगह-जगह मिल जायेंगे । कहीं कैमरे चल रहे हैं तो कहीं आउट आफ ऑडर हैं, उन्हें ठीक कराने की भी किसी को फुर्सत नहीं है । चाहे हम कितने भी उपाय कर लें, अगर अपराधी को अपराध करना है तो उसका शातिर दिमाग कोई न कोई उपाय खोज ही लेगा...। काफी दिनों से मन में उमड़ती घुमड़ती बात कह देने से जहाँ निशा के मन का बोझ कम हो गया था वहीं उसकी बात सुनकर सन्नाटा छा गया था । निधि के स्कूल से आने का समय हो गया था अतः वह क्षमा माँगते हुये घर लौट आई थी ।

नित्य घटती ऐसी घटनायें उसे चैन नहीं लेने दे रही थीं... हवस मिटानी हो या बदला लेना हो मसल दो स्त्री देह को...चाहे वह सात वर्षीया बच्ची हो या एक वयस्क लड़की...या सत्तर वर्षीय वृद्धा !! क्या स्त्री सिर्फ देह भर ही है ? जिसे जिसने जब चाहा, जैसे चाहा रोंदा और चलते बने...अगर किसी ने विरोध करने का प्रयास किया तो उसे रास्ते से हटाने में भी संकोच नहीख्र किया । निधि और दिव्या दोनों ही केसों में अपराधी अनजान नहीं थे...। अगर जानपहचान वाले ही धोखा करें तो एक स्त्री क्या करे ? जीवन को चलना है वह तो चलता ही जाता है चाहे आँधी आये या तूफान...!!!

धीरे-धीरे छह महीने बीत गये...कभी पुलिस की खोज दिव्या के फेसबुक फ्रेंड की ओर घूमती है तो कभी उसके क्लास के लड़कों पर...। निशा के मतानुसार ‘ आप कैमरे की नजर में हैं ’ के वार्निग साइन बोर्ड के कारण अपराधी अभी तक पकड़ में नहीं आ पाया है । छह महीने पश्चात् भी पुलिस अंधेरे में हाथ पैर मार रही है । निशा को लग रहा था कि अगर यही हाल रहा तो शायद एक दिन कोई सबूत न मिलने के कारण कहीं केस ही बंद न हो जाये । उससे भी बुरा उसे यह सोचकर लग रहा था कि सारे सबूत पेश करने के बावजूद भी निधि के आरोपी को सजा नहीं मिल पाई है...तारीख पर तारीख लगती जा रही हैं । अगर न्याय में ऐसे ही देरी होती रही तो अपराधी को अपराध करने से शायद ही कोई रोक पाये !

सलीब पर टँगा यह प्रश्न उसके मनमस्तिष्क में लगातार चोट पहुँचा रहा था । क्या अमानुषों द्वारा दिल में लगाई गई इस आग में उस जैसे लोगों का तिल-तिल जलना नियति बनती जा रही है...? निशा ने निश्चय कर लिया था कि उसे इन आग की लपटों से अपनी बेटी को बचाना है । वह उसकी उम्र के अनुसार शारीरिक संरचना में होते परिवर्तनों की जानकारी देने के साथ उसे सेक्स एजूकेशन देने का भी भरपूर प्रयास करेगी । इसके साथ ही उसे जूडो कराटे की शिक्षा भी दिलवायेगी जिससे दोबारा ऐसी अनहोनी उसके जीवन में न आये । जीवन में हादसे हो सकते हैं पर जीवन को हादसां की सलीब पर नहीं टाँगा जा सकता...!!! उसकी इस सोच ने उसके मन में छाये अंधेरे को दूर करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया था ।

सुधा आदेश


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