मे और महाराज - ( एक परीक्षा_2)15 Veena द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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मे और महाराज - ( एक परीक्षा_2)15

जैसे ही समायरा अपने कमरे मे पोहोची, उसकी वो हालत देख मौली डर गई।

" क्या हुवा सैम। सब ठीक है ना ????" मौली।

" मौली ये काले कपड़े पहने लोग कौन होते है ????" उसकी आवाज मे एक जिझक और डर साफ साफ सुनाई पड़ रहा था।

" काले कपड़े वाले। तुमने किसी गुंडे को देखा क्या? वो लोग दुसरो को मारने का काम करते है। हमे ऐसे लोगो से दूर रहना चाहिए।" मौली।

" वो लोग अभी राजकुमार के कमरे मे थे। क्या वो राजकुमार को मार डालते ? " समायरा।

" क्या आप ये भी भूल गई के राजपरिवार मे जन्म लेने का यही मतलब है, की आप की जान हमेशा एक तलवार की नोक पर रहेगी। तुम फिक्र मत करो सैम राजकुमार एक काबिल योद्धा है, उन्हे कुछ नही होगा।"मौली।

" लेकिन में तो नहीं हू। मेरी जान का क्या ? " समायरा।

" तुम फिक्र मत करो। जब तक राजकुमार सिराज की छाया मे हो कोई तुम्हे छु नही सकता उनके अलावा।" मौली।

" इसी बात से तो ज्यादा डर लगता है।" समायरा।

" क्या ?" मौली।

" कुछ नही। तुम जाओ सो जाओ। में भी सो जाती हु।" समायरा।

एक घंटे के भीतर समायरा को नींद आ गई। तभी राजकुमार सिराज कमरे मे आए।

" प्रणाम राजकुमार। राजकुमारी अभी अभी सोई है। आप चाहे तो जगा दू।" मौली।

" नही। तुम जाओ यहां से।" सिराज।

" जी।" राजकुमार को अभिवादन कर मौली वहा से चली गई।

सिराज समायरा के पास जा कर बैठा। उसने उसके माथे पर हाथ रख बुखार नापा। उसका बदन अभी ठंडा था उम्मीद से ज्यादा ठंडा। सिराज ने एक कंबल लिया और उसे ओढ़ा दिया।

" कितनी मासूम लगती है सोते हुए। हमे लगा शायद आज आपको नींद ना आए उस हादसे की वजह से पर हम जो भी आपके बारे मे सोचते है। सब गलत साबित हो रहा है। क्यों ??? क्यों इतनी अजीब है आप।" सिराज ने समायरा को देखते हुए सोचा। थोड़ी देर बाद वो अपने कमरे मे वापस चला गया।


सुबह 10 बजे के करीब समायरा ने आंखे खोली।
" नया दिन नई सुबह।" समायरा। " मौली कहा हो तुम।"

" सैम। उठ गई। जल्दी से तैय्यार हो जाओ। राजकुमार ने तुम्हे चाय लेकर उनके अध्ययन कक्ष मे बुलाया है। ये अच्छा मौका है, उनसे मेरे बारे मे बात कर लेना। मुझे चिंता हो रही है।" मौली।

" हा । तुम्हारी वाली बात। कल के हादसे की वजह से मे भूल ही गई थी। ठीक है। मैंने जो खुद बनवाए है, वो वाले कपड़े लाओ।" समायरा।

" वो नही सैम। वो कपड़े बोहोत खुले खुले है।" मौली।

" इसीलिए तो। सिराज मुझे देखते ही हा कह देगा।" समायरा।

" या फिर वो डाट कर तुम्हे वापस भेज देंगे और तो और में तुम्हे संभाल नहीं सकती ये इंजाम लगेगा वो अलग।" मौली रोने लगी।

" ठीक है। रो मत। तुम्हे जो पसंद आए वो कपड़े ले आओ। जाओ।" समायरा।

समायरा तैय्यार हो कर राजकुमार सिराज से मिलने उनके अध्ययन कक्ष पोहोची। राजकुमार सिराज के भाई वीर पहले ही वहा मौजूद थे। समायरा को देख वो अपनी जगह से खड़े हुए और उन्हे प्रणाम किया।

" हमने आपके बारे मे बोहोत कुछ सुना है भाई सा से राजकुमारी। लेकिन आज ये हमारी पहली मुलाकात है।" वीर।

" हां। तुम राजकुमार के भाई हो। अच्छी बात है। तुम्हारे परिवार मे शायद सभी अच्छे दिखते है। Good । जब भी वक्त मिले मेरे साथ खेलने आना। अभी अपने भाई के साथ आराम करो। ये रही चाय।" समायरा ने चाय के बर्तन पास ही के मेज पर रख सिराज से विदा लेनी चाही।

" इतनी जल्दी क्यों है आपको ???" सिराज।

" आप अपने काम मे व्यस्त है। में आपका ज्यादा वक्त बर्बाद नही करूंगी। चलती हू।" समायरा।

" रुकिए । यहां बैठिए और स्याही तैयार कीजिए हमारे लिए।" सिराज।

" क्या में करु ? यहां इतने लोग है। किसी और से करवा लीजिए। मेरे कपड़े गंदे हो जायेंगे।" समायरा।

" आप हमारी बीवी है। हमारे लिए कुछ कपड़े तक खराब नही कर सकती ????" सिराज ने एक गुस्सैल नजर समायरा की ओर डाली। जिसके बाद बिना बहस करे वो सिराज के पास बैठ स्याहि घुटने लगी। तभी सिराज के हरम की औरते गौर बाई और चांदनी वहा पोहौचे। दोनो ने सिराज को अभिवादन किया। उसके बाद समायरा को अभिवादन किया। समायरा पहले ही सिराज की वजह से गुस्से मे वहा बैठी थी। उन दोनो को देख उसका गुस्सा ओर बढ़ गया।

" मेरे महाराज। जैसे ही पता चला छोटे राजकुमार आए है, हम अभिवादन करने चले आए।" चांदनी।

" अरे दीदी। आप ये क्यों कर रही है। एक राजकुमारी को ये काम शोभा नही देता दीजिए में कर देती हु।" गौर बाई और चांदनी तुरंत समायरा के सामने बैठ गई। गौर बाई ने समायरा के हाथ से स्याही का बर्तन छीनने की कोशिश शुरू की।

" अपने पति के लिए किया गया कोई काम छोटा या बड़ा नही होता।" समायरा ने गौर बाई के हाथ से बर्तन फिर अपनी तरफ खींचा।

" महाराज हमारे भी कुछ लगते है। सेवा का मौका हमे भी मिलना चाहिए।" चांदनी ने गौर बाई के हा मे हा मिलाते हुए स्याही का बर्तन फिर खींचने की कोशिश की, इस बार समायरा ने वो बर्तन पूरी ताकद के साथ उन्ही पर उड़ेल दिया। पूरी स्याही दोनो के मुंह से लेकर कपड़ों तक फ़ैल गई। कमरे में बैठा हर कोई हसने लगा। एक पल के लिए सिराज का भी ध्यान भटक गया।

" हा। मेरे महाराज देखिए दीदी ने ये जान बूझकर किया।" चांदनी।

" किसने कहा ये ? तुमने खींचा अपने हाथो से।" समायरा।

" नही । आपने जान बूझकर किया। आप जलती है हमसे।" गौर बाई।

" क्या मज़ाक है।" समायरा।

" आपको इन्हे डाटना चाहिए महाराज।" चांदनी।

" वो भला क्यों ? मेरी कोई गलती नही है।" समायरा।

औरतों की ये बहस थी जो रुकने का नाम ही नही ले रही थी। वहा वो दोनो सिराज के नाम से मदत की गुहार लगा रहा थे। यहां समायरा थी जो उन्हे सिराज की तरफ देखने भी नही दे रही थी।

" तुम्हे नही लगता तुम्हारी राजकुमारी को मदद की जरूरत है।" वीर ने मौली से कहा।

" नही। मेरी राजकुमारी होशियार है। वो अपने अधिकार संभाल लेंगी।" मौली ने विनम्रता से जवाब दिया।

काफी देर सुनने के बाद सिराज ने चुप्पी तोडी।
" बस। बोहोत बहस कर ली आप सब ने। हमने आप सब को काफी बिगाड़ दिया है। ये तमीज तक भूल गई आप के मेहमान के सामने कैसे पेश आना है। आप लोगो को एक औरत की शालीनता और नियम फिर दोहराने होंगे। अभी । रिहान।"

सिराज का इशारा मिलते ही रिहान ने कागज कलम के साथ तीन मेज तैयार करवा कर सिराज के सामने लगवाई। जिस पर एक तरफ गौर बाई और चांदनी बैठे तो दूसरी ओर समायरा थी। तीनो को पारिवारिक नियम की किताबे बाटी गई जिसमे से उन्हे नियम पेपर पर लिखने थे।

" मुझे तो पूरा हिंदी पढ़ना तक नहीं आता। लिखूंगी कैसे?????" समायरा ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा।