निर्णय Sudha Adesh द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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निर्णय

निर्णय

बेटे तुषार के जन्मदिन की शॉपिंग कर केक और मिठाई का ऑर्डर देने नीलेश्वरी शहर की नामी दुकान में घुसी तो अनिमेष को एक अतीव सुंदर लड़की के साथ हँस-हँसकर
काफी पीते देखकर चौंक गई । वह बिना कुछ कहे ही दुकान से बाहर निकल आई । उसका मस्तिष्क संज्ञा शून्य हो गया था । उसे लग रहा था जैसे वह वहीं गिर जायेगी । थोड़ी देर पश्चात जब वह संयत हुई तो बिना आर्डर दिए ही वह घर की ओर चल दी ।

नीलेश्वरी कुछ दिनों से अनिमेष के व्यवहार में परिवर्तन आता तो देख रही थी पर समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे !! देर से घर आना, पूछने पर उखड़ जाना, जरा जरा सी बात पर क्रोधित होना तथा जब तक उससे फूहड़ से सिद्ध करने का प्रयास करना । उसने कभी भी उसकी इन सब बातों को गंभीरता से नहीं लिया था । ऐसा नहीं था कि उसे उसकी ऐसी हरकतों पर क्रोध नहीं आता था लेकिन सदा उसका संकोची, सहनशील स्वभाव जो उसे विरासत में मिला था , उसे आक्रामक होने से रोक देता था । वह घर की सुख शांति को भंग नहीं करना चाहती थी और न ही बच्चों के सामने वह स्वयं की या अनिमेष की सम्मानीय छवि को धूमिल करना चाहती थी । कभी-कभी उसे लगता था कि ऑफ़िस के अत्याधिक कार्य के बोझ ने अनिमेष को चिड़चिड़ा बना दिया है ...लेकिन आज उस लड़की के साथ हंस-हंसकर बातें करना उसे मर्माहत कर गया था ।

उस लड़की का हो सकता है अनिमेष से ऐसा वैसा रिश्ता ना हो, वह उसकी सहयोगी मित्र हो, वह उसे काफी पिलाने ऐसे ही रेस्टोरेंट्स मैं लेकर आया हो... लेकिन एक लड़की सिर्फ काफी पीने ही परपुरुष के साथ क्यों आएगी ? नीलेश्वरी ने सोचा ।

नीलेश्वरी को यह सोच-सोच कर स्वयं पर क्रोध आने लगा कि वह उल्टे पैर ही क्यों लौट आई ? उसने अगर उनसे उसी समय उस लड़की का परिचय प्राप्त कर लिया होता तो वह अनबूझ पहेली में उलझी नहीं रहती ।किंतु यदि वह अचानक उनके सामने जाकर खड़ी हो जाती और कुछ पूछती तो हो सकता है कि अनिमेष उसकी पूछताछ से उत्तेजित होकर या घबराकर कुछ ऐसा वैसा कह देता तो वहां तमाशा बनने में देरी नहीं लगती !! वैसे भी कोई कार्य बिना सोचे समझे करने में सदैव असफलता ही हाथ लगती है इस विचार ने उसे थोड़ा संयत किया ।

ऑटो के रुकने के साथ ही नीलेश्वरी की विचार श्रंखला को लगाम मिली । बच्चों ने तुरंत आकर उसके हाथों से सारा सामान ऐसे ले लिया मानो वे उसके आने का ही बेसब्री से इंतजार कर रहे हो । बच्चों को कुछ याद रहे या ना रहे लेकिन अपने जन्मदिन का उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता है । वह उनकी उत्सुकता समझती थी उन दोनों को नये कपड़े बनवाने के साथ-साथ वह उस दिन उनके कुछ अभिन्न मित्रों को बुलाकर एक छोटी सी पार्टी का आयोजन करती रही थी लेकिन इस घटना ने उसे विचलित कर दिया था ।

उसको अन्मयस्क देखकर नन्हीं सीमा ने पूछा, ' क्या बात है ममा ...क्या आपकी तबीयत ठीक नहीं है ?'

' तबीयत तो ठीक है बेटा बस ऐसे ही थोड़ा थक गई हूँ ।' कहते हुए वह आंखें बंद कर करके बैठ गई । उस मासूम बच्ची से आखिर कहती भी तो क्या कहती ।

कहीं उस सुंदर लड़की के लिए अनिमेष ने उसे छोड़ दिया तो !! अचानक नीरलेश्वरी असुरक्षा की भावना से भर उठी । वह अतीत सुंदरी तो नहीं थी लेकिन उसके साधारण रूप रंग में आकर्षण अवश्य था जिसे उसने जब तक महसूस भी किया था । लेकिन सदा से ही तड़क-भड़क एवं दिखावे की संस्कृति से दूर रहने की मानसिकता के कारण उसकी सारी दुनिया इच्छाएं आकांक्षाएं घर की परिधि के अंदर विशेषकर बच्चों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई थीं । इसका उसे कभी भी अफसोस नहीं रहा था क्योंकि उसके अनुसार बच्चों का जीवन बनाने के लिए इंसान को कुछ तो त्याग करना ही होगा ...लेकिन बच्चों का जीवन संभालने की धुन में वह घर के अत्यंत ही महत्वपूर्ण सदस्य की उपेक्षा करने लगी है इसका उसे कभी भान ही नहीं हुआ था ।

पिछली कुछ घटनाएं उसके मस्तिष्क में चलचित्र की भांति मंडराई तो उसे अनिमेष की बजाय स्वयं में ही दोष नजर आने लगा । कभी ऑफिस से आकर अनिमेष उससे कहीं घूमने यह पिक्चर देखने या किसी मित्र के घर चलने के लिए कहता तो वह कभी बच्चों को होमवर्क कराना है या अभी सीमा को डांस क्लास लेकर जाना है या तुषार अभी तक जिम से नहीं लौटा है । स्कूल से आकर उसने ढंग से नाश्ता भी नहीं किया था या ऐसा ही अन्य कोई बहाना बनाकर अनिमेष के आग्रह को टाल जाती थी । पता नहीं क्यों उसे बचपन से ही सैर सपाटा या कपड़े गहनों का कोई शौक नहीं रहा था । साड़ी भी वह जो सुबह नहा धोकर पहन लेती, उसे ही पूरे दिन पहन कर रह जाती थी । उसे याद आया कि उसकी इस आदत पर कभी-कभी अनिमेष चिढ़कर कहता... तुम्हारे साथ बैठो तो ऐसा महसूस होता है कि मसालों के डिब्बे के बीच में बैठा हूँ । इतनी साड़ियां अलमारी में बंद पड़ी हैं पता नहीं किस दिन काम आयेंगी ।

अनिमेष को सदा से ही अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने का शौक था । वह जब भी कहीं टूर पर जाता तो उसके लिए साड़ी अवश्य लाता था । उसकी अलमारी हर जगह की साड़ियों से भरी है... पटोला ,कांजीवरम, बनारसी सिल्क, ढकाई सिल्क, तांत, बालूचरी इत्यादि इत्यादि । पर न जाने क्यों उसे कहीं जाने तथा कपड़े बदलने में अत्यंत ही आलस आता था । उसे कपड़ों में पैसा लगाना व्यर्थ लगता था ।

यही कारण था कि अनिमेष की फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाते हुए वह ऐसे अवसरों पर जब तक बिगड़ कर कहती क्या आवश्यकता थी साड़ी लाने की ? अभी मकान की किश्त भरनी है। तुषार के स्कूल की पिकनिक जा रही है वह भी जाने की जिद कर रहा है उसके लिए भी पैसे चाहिए । सीमा गिटार सीखना चाहती है उसकी फीस के पैसे देने हैं । साड़ियां तो मेरे पास वैसे ही इतनी है कि पहन ही नहीं पाती हूँ । उसकी बातें सुनकर अनिमेष आश्चर्य से उसकी ओर देखता रह जाता । उसने तो अपने इष्ट मित्रों से सुना था कि स्त्रियों की मन को जीतना हो तो साड़ी या गहना उपहार में दे दो ...लेकिन यह तो न जाने किस मिट्टी की बनी है उपहार प्राप्त कर भी खुश नहीं होती है । हर बार उससे प्राप्त नई साड़ी को देखकर ऐसे ही बहानों का अंतहीन सिलसिला प्रारंभ हो जाता था । अंततः उसने उसके लिए साड़ी या अन्य कोई उपहार लाना ही बंद कर दिया था।

बाजार भी नीलेश्वरी को अनिमेष के साथ जाना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसके साथ जाने से ना तो वह मोलभाव कर पाती थी और ना ही कई दुकानें देखकर समान का चयन करना संभव हो पाता था अतः वह दिन में ही अपनी सुविधानुसार कभी अकेले या कभी किसी सहेली के साथ ही शॉपिंग करने चली जाती थी । एक तरह से वह घर की छोटी-छोटी वस्तुओं की खरीदारी के लिए अनिमेष को परेशान नहीं करना चाहती थी लेकिन कभी-कभी उसने महसूस किया था कि अनिमेष को उसका ऐसे अकेले जाना भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि अक्सर ही वह उसके द्वारा लाए समान में कुछ न कुछ कमी निकाल ही देता था या अपने लिए लाई वस्तुओं को देखकर झुंझलाकर कहता तुम अपनी और बच्चों की शॉपिंग ही किया करो । हरे ,नीले ,पीले रंग के कपड़े पहना कर मुझे जोकर मत बनाओ ।

उसने उसकी बातों को कभी गंभीरता से नहीं लिया था । उसने कहीं पढ़ा था कि स्त्री और पुरुष एक ही गाड़ी के दो पहिए होते हैं दोनों में सामंजस्य स्थापित होने पर ही जीवन रूपी गाड़ी सुचारू रूप से चल पाती है लेकिन उससे पता नहीं कहां चूक हो गई कि उसकी गाड़ी असमय ही लड़खड़ाने की कगार पर आ पहुंची है ।

आज नीलेश्वरी को स्वयं अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी । हो सकता है उसके रूखे व्यवहार के कारण ही अनिमेष उससे दूर हुआ हो । वह यह क्यों भूल गई थी कि आज का पुरुष अपनी अर्धांगिनी को सुघड़ गृहणी के साथ-साथ सर्वगुण संपन्न संगिनी के रूप में प्राप्त कर ज्यादा गौरवान्वित महसूस करता है । जो उसके साथ साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके तथा सभा सोसाइटी में राजनैतिक, सामाजिक आर्थिक मुद्दों पर अपनी बेबाक एवं निष्पक्ष राय पेश कर सके । वह तो अक्सर उसके मित्रों के द्वारा दी गई पार्टी में भी कोई न कोई बहाना बनाकर जाने से इंकार कर दिया करती थी । नतीजा यह हुआ कि वह अकेले ही पार्टी में जाने लगा । तब भी उसे लगता था कि अच्छा हुआ अब वह बच्चों पर और ज्यादा ध्यान दे पाएगी । दरअसल उसका दिन बच्चों से ही शुरू होता था और बच्चों के साथ ही समाप्त होता था । अनिमेष के लिए तो उसके पास समय ही नहीं था ।

कभी अनिमेष अपने मित्रों को पार्टी देना चाहता तो वह बजट का रोना लेकर बैठ जाती । यह सच है कि उसने फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाने का प्रयास किया था तथा इसी के परिणाम स्वरूप वह शहर की पॉश लोकेलिटी में मकान बुक कराने में सफल हो पाए थे । नीलेश्वरी के अनुसार किराए पर प्रत्येक महीने इतनी रकम देना फिजूलखर्ची है यदि अपना मकान होगा तो इसी रकम से वह मकान की किस्त भर सकते हैं तथा कुछ वर्षों पश्चात घर अपना हो जाएगा । आज उसे महसूस हो रहा था कि जीवन के एक ही मोर्चे पर सफलता प्राप्त करने की धुन में वह दूसरे मोर्चे पर ध्यान ही नहीं दे पाई । अनिमेष के कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पाई । क्या उसने कभी अनिमेष की इच्छा को जानने या समझने का प्रयत्न किया? क्या वह जब-तब अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं को ही उस पर थोपने का प्रयास नहीं करती रही ? क्या उसने जब तक अपनी बात को ही सही सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया ? क्या कभी उसने यह महसूस करने की कोशिश कि पार्टियों में अनिमेष को अकेला आया देखकर उसके मित्र जब उससे अकेले आने का कारण पूछते होंगे तो वह क्या उत्तर देता होगा ?

मन में चल रहे तर्क वितर्कों ने उसका सुखचैन छीन लिया था । दृढ निश्चय के साथ वह उठी । उसने बच्चों को आवाज लगाते हुए कहा,' बच्चों जिस जिसको तुम बुलाना चाहते हो , एक लिस्ट बनाकर मुझे बता दो जिससे मैं प्लानिंग कर सकूँ ।'

नीलेश्वरी ने पीले रंग की कलश लगी तांत की साड़ी पहनी । हल्का मेकअप किया । लंबे घने बालों को करीने से सँवार कर, हल्का सा जुड़ा बनाकर ,पीले रंग का गुलाब का फूल बाग से तोड़कर बालों में लगा लिया । शीशे में स्वयं को निहारा तो क्षणों के लिए वह स्वयं के लिए ही अपरिचित हो उठी ।

अचानक नीलेश्वरी को अपनी बुआ की कही बात याद आई जब वह कई वर्षों पश्चात अमेरिका से उनसे मिलने भारत आई थीं । उसकी सुडौल काया तथा बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों को देखकर उन्होंने माँ से कहा था ...भाभी तुम्हारी बन्नो है तो साँवली लेकिन साँवले रंग में भी क्या गजब की कशिश है । ऐसी कशिश पश्चिमी देशों के गोरे रंग में कहाँ ? आज समझ में आया क्यों वहां के भारतीय नौजवान बीबी भारतीय ही चाहते हैं ? कोई राजकुमार आकर यूँ ही तुमसे इसका हाथ मान ले जाएगा ।

वास्तव में अनिमेष भी उसकी काली कजरारी आँखों में इतना उलझ गया था कि उसके गहरे रंग की ओर ध्यान ही नहीं दे पाया और वह अब तक यही समझती रही कि उसकी आँखों का जादू उसे कभी उससे दूर नहीं जाने देगा लेकिन आज की घटना ने उसके सोए दिल और दिमाग को चैतन्य कर दिया था । अब तक उसकी गलती से जो खो गया है उसे वापस लाने के लिए वह प्रयत्नशील हो गई । नीलेश्वरी ने दिन भर के तनाव से स्वयं को मुक्त किया तथा अनिमेष की पसंद के प्याज के पकोड़े बनाने की तैयारी करने लगी ।

अनिमेष के आते ही उसने प्याज के पकोड़े के साथ चाय परोसी तथा स्वयं भी प्लेट लेकर उसका साथ देने के लिए बैठी तो अनिमेष ने उसे ऊपर से नीचे तक भेजती निगाहों से निगाह निहारा तथा चौंकते हुए कहा, ' क्या बात है मैडम , रंग कुछ बदला बदला है । क्या आज बच्चों को पढ़ाना नहीं है ?'

'बच्चे अब बड़े हो गए हैं । उन्हें स्वयं पढ़ने की आदत डालनी चाहिए । ' बालों में लगे गुलाब को ठीक करते हुए नीलेश्वरी ने नज़ाकत से कहा ।

'आज कोई आने वाला है या कहीं जाने की तैयारी है । आज मैडम का किस पर बिजली गिराने का इरादा है ।' अनिमेष ने गहरी नज़रों से उसे देखते हुए कहा ।

अचानक इतने दिनों पश्चात अनिमेष का चिरपरिचित स्वर उसके अंतःस्थल में हिलोर पैदा करने लगा था । वैसे भी अनिमेष जब अत्यंत ही प्रसन्न रहते हैं तभी उसे इस संबोधन से संबोधित करते हैं । उनका प्रश्न सुनकर उसने संयत स्वर में उसने प्रति प्रश्न कर डाला, ' क्या कहीं जाने के लिए ही सजा जाता है ।'

' ऐसी बात तो नहीं है लेकिन ...।'

अनिमेष के लेकिन में छिपे अर्थ को नीलेश्वरी भली-भांति समझ कर भी अनजान बनने की चेष्टा कर रही थी। अपने मन में चल रहे झंझावात से अनिमेष को कैसे परिचित करवाती । निरर्थक सवाल जवाब करके वह बात को और बढ़ाना नहीं चाहती थी अतः चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा ।

'तुषार के जन्मदिन के लिए क्या तुमने केक का ऑर्डर दिया ?'अचानक अनिमेष ने पूछा .

'गई तो थी लेकिन आर्डर नहीं दे पाई ।'

' लेकिन क्यों ..?'

'बस ऐसे ही ...। 'नजरें चुराते हुए नीरलेश्वरी ने कहा ।

' मैं जानता था कि तुम आर्डर नहीं दे पाओगी अतः मैं ऑर्डर दे आया । परसों 4:00 बजे किसी को भेजकर मंगा लेना ।'

'लेकिन आप कैसे जानते थे ?'

'बस ऐसे ही...।' कहकर अनिमेष अर्थपूर्ण ढंग से उसे देखकर मुस्कुराया तथा नीलेश्वरी को एक दूसरे रहस्य में उलझा कर अपने कपड़े बदलने उठ गया ।

खाने में नीलेश्वरी ने अनिमेष की पसंद के पनीर कोफ्ते तथा मटर पुलाव बनाया था लेकिन अनिमेष प्रशंसा का एक भी शब्द कहे बिना चुपचाप खाता रहा । नीलेश्वरी ने हार नहीं मानी तथा बोली, ' तुम अक्सर अपने मित्रों को पार्टी देने के लिए कहते रहते हो क्यों ना हम तुषार के जन्मदिन की पार्टी में उन्हें भी बुला लें ।'

प्रस्ताव सुनकर अनिमेष आश्चर्य से नीलेश्वरी की ओर देखने लगा तथा बोला ,'तुम तो सदा उनकी उपेक्षा करती रहती हो और आज उन्हें बुलाने के लिए कह रही हो !! क्या तुम इतने लोगों का इंतजाम कर पाओगी ?'

' कर क्यों नहीं पाऊँगी । नीमा , बीना जबसे आपका प्रमोशन हुआ है तब से पार्टी माँग रही हैं । यदि आप उचित समझें तो बुला लूँ । वैसे भी आप सदैव उनके घर पार्टी में आते जाते रहते हैं । कभी-कभी तो हमें भी उन्हें अपने घर बुलाना चाहिए ।' नीलेश्वरी ने उसके मन की थाह लेने का प्रयत्न करने की चेष्टा करते हुए कहा ।

'अगर तुम कहती हो तो बुला लेते हैं । चलो एक पंथ दो काज हो जाएंगे ।'अनिमेष ने प्रसन्नता पूर्वक कहा ।

' जितने भी परिवारों को बुलाना हो आप मुझे बता दीजिएगा जिससे मैं तैयारी कर सकूँ ।' उसकी प्रसन्नता में सम्मिलित होते हुए नीलेश्वरी ने उत्तर दिया ।

नीलेश्वरी को अपनी पाक कला पर पूरा विश्वास था । फिर अभी कल का पूरा दिन बाकी है जन्मदिन के मीनू में ही एक दो डिश और सम्मिलित कर वह पार्टी को यादगार बनाने का पूर्ण प्रयत्न करेगी, उसने सोचा ।

रात्रि का काम निपटाते हुए नीलेश्वरी का मन मस्तिष्क अनबूझ पहेली में ही उलझा रहा । उसने अनिमेष के मित्रों को पार्टी में आमंत्रित करने का सुझाव देखकर अनिमेष के दिल में अपने लिए थोड़ी जगह बनाने में सफलता हासिल कर ही ली थी, इसका आभास उसे उसके व्यवहार से हो गया था ।

बच्चों को सुला कर गुलाबी टू पीस नाइटी जो अनिमेष उसके लिए सिंगापुर से लाया था, पहनकर बेडरूम में घुसी तो अनिमेष उसे आश्चर्य से निहारता रह गया तथा बोला , 'कहीं मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ ।'

' स्वप्न स्वप्न ही होते हैं यह वास्तविकता है ।' नीलेश्वरी ने उसके पास बैठते हुए कहा ।

'तुम यदि अपने मित्रों को आमंत्रित कर रहे हो तो उस केक से तो काम चलेगा नहीं , हमें बड़े केक का ऑर्डर देना पड़ेगा । ऑर्डर देने तुम जाओगे या...।' बात अधूरी छोड़कर नीलेश्वरी ने फिर बात का सूत्र संभालते हुए पूछा।

'तुम ही चली जाना । कल एक आवश्यक मीटिंग है । मेरा निकल पाना संभव नहीं हो पायेगा ।' अनिमेष ने लाचारी प्रदर्शित करते हुए कहा ।

'मीटिंग या किसी और के साथ कोई अपॉइंटमेंट ...।' काफी देर से मन के अंदर कुलबुलाता प्रश्न आखिर जुबां पर आ ही गया ।

' अच्छा तो यह बात है । अब समझ में आया मैडम का यह बदला बदला रूप ।' अचानक अनिमेष खिलखिला कर हंस पड़ा ।

नीलेश्वरी अनिमेष को ऐसे खिलखिलाते देखकर उसे आश्चर्यचकित निगाहों से देखने लगी ।

उसको असमंजस की स्थिति में देखकर अनिमेष ने कहा,' अरे , मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया । दिनेश याद है ना तुम्हें मेरे बचपन का मित्र जो पिछले वर्ष अपनी बहन ममता को बैंक की परीक्षा दिलवाने यहाँ आया था । उसे मेरे ही बैंक में नियुक्ति मिली है । उसने आज ही जॉइन किया है । उसकी एक चचेरी बहन भी यहाँ रहती है । उसके घर वह अपनी नौकरी की खुशी में मिठाई लेकर जाना चाहती थी अतः उसने शहर की अच्छी मिठाई की दुकान पर ले चलने के लिए मुझसे आग्रह किया । मैं उसे मिठाई दिलवाने के लिए , उस मिठाई की दुकान पर लेकर गया था । जब तक मिठाई पैक हो रही थी हमने कॉफी का ऑर्डर दे दिया । इसी बीच तुम आ गई । मेरी तुम्हारी तरफ पीठ थी अतः देख नहीं पाया। ममता ने तुम्हें पहचान कर रोकना चाहा तो मैंने मना कर दिया । '

'आपने मना क्यों कर दिया । मैं भी उससे मिल लेती ।' नीलेश्वरी ने रूठने का अभिनय करते हुए कहा ।

' मैं इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता था मैं जानता था कि कोई भी स्त्री अपनी प्रिय के जीवन में आई दूसरी स्त्री को सहन नहीं कर सकती यदि तुम्हें मुझसे प्यार होगा तो या तो तुम लड़ झगड़ कर अपना विरोध प्रकट करोगी या स्वयं में सुधार लाकर लेकिन मेरी आशा के अनुरूप तुमने दूसरा मार्ग चुना ।'अनिमेष ले उसकी ओर प्यार से देखते हुए कहा ।

' ममता को भी तुषार के जन्मदिन की पार्टी में अवश्य आमंत्रित कर दीजिएगा ।' नीलेश्वरी ने अपनी झिझक छुपाते हुए कहा ।।

'क्यों नहीं आखिर उसे कैसे भूल सकता हूँ जिसने हमारे जीवन में नए रंग भर दिए हैं ।' कहते हुए अनिवेश ने उसे आगोश में भर लिया ।

नीलेश्वरी को पिछले कुछ घंटों से परेशान करती पहेली का हल मिल गया था । मन में दंश मारते सर्प दंश भी अपना जहरीलापन खो चुके थे । आशा और विश्वास की एक नई सुबह ने अंगड़ाई ले ली थी । साथ-साथ इस घटना से एक नया सबक सिखा था कभी-कभी आँखों देखी और कानों सुनी बातें भी सच नहीं होती अतः किसी बात पर बिना सोचे समझे कोई निर्णय लेना या किसी को दोषी ठहराना न केवल रिश्तो को तोड़ सकता है वरन जीवन को असमय ही बदरंग भी बना सकता है । उसने विश्वास की नई राह पर चलने का निर्णय कर लिया ।

सुधा आदेश